Ayurvedic Diet Principles in Hindi: आयुर्वेद के अनुसार भोजन करने के कुछ नियम बताये गए हैं जिनका पालन करने पर आप कई तरह की गंभीर बीमारियों से बच सकतें हैं। इनसे हेल्थ अच्छी रहती है और लंबी उम्र मिलती है। इस लेख में आप आयुर्वेदिक आहार सिद्धांत और स्वस्थ भोजन की आदतों के बारे में जानेंगे। आमतौर पर भोजन हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि व्यक्ति जैसा भोजन करता है, उसका तन और मन भी वैसा ही बनता है। वैसे तो कुछ लोग अपने अपने तरीके और समय के अनुसार भोजन करते हैं जबकि कुछ लोग भोजन को लेकर बहुत सख्त होते हैं और भोजन के नियमों का पूरा ख्याल रखते हैं। भोजन सेहत के लिए फायदेमंद और नुकसान दोनों साबित हो सकता है। यह पूरी तरह से आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप किस तरह का भोजन खाते हैं।
सिर्फ भोजन करना ही महत्वपूर्ण नहीं होता है बल्कि सही समय पर और संतुलित भोजन ही अच्छे स्वास्थ की पहचान है। यदि भोजन के सभी नियमों का पालन किया जाए तो व्यक्ति के जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता। यही कारण है कि हमें आयुर्वेद के अनुसार भोजन के नियमों का पालन करने की जरूरत पड़ती है। अगर आपको भोजन के नियमों की जानकारी नहीं है तो इस आर्टिकल में हम आपको आयुर्वेद के अनुसार भोजन करने के नियमों के बारे में बताने जा रहे हैं।
विषय सूची
आयुर्वेद के सबसे महत्वपूर्ण वर्गों में से एक आयुर्वेदिक आहार है। लोग अक्सर इसे आयुर्वेदिक संतुलित आहार और कभी-कभी सात्विक आहार कहते हैं। आयुर्वेदिक आहार वास्तव में बुद्धिमानी से खाने की विधि है क्योंकि भोजन को दवाओं से अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। अगर हमें हर दिन सही समय पर सही खाद्य पदार्थ खाने मिलें तो हमें किसी दवा की जरूरत नहीं होगी।
स्वस्थ, खुशहाल और लंबा जीवन जीने के लिए आयुर्वेदिक के अनुसार भोजन करने के कुछ दिशानिर्देश हैं। आयुर्वेद एक स्थिर विज्ञान है। जो आपको स्वस्थ रहने की सलाह देता है, और वह अभी भी मान्य है। इस लेख में, हम खाने के आयुर्वेदिक सिद्धांतों के आधार पर स्वस्थ खाने की आदतों पर चर्चा करेंगे। इन स्वस्थ खाने की आदतों से आपको अपने जीवन में लगभग सभी बीमारियों से बचाव और छुटकारा मिलेगा।
आयुर्वेद में आहार और भोजन करने के संबंध में कई नियम बताए गए हैं। इन नियमों का पालन करने पर आपका सभी प्रकार की बीमारियों से बचाव तो होता ही है, साथ ही हेल्थ भी अच्छी रहती है और आयुर्वेदिक के अनुसार भोजन करने से लंबी उम्र भी मिलती है। इन नियमों में भोजन करने के समय और मात्रा से लेकर खाने के प्रकार के बारे में भी बताया गया है। जानिए आयुर्वेद के अनुसार भोजन के नियम नियमों के बारे में।
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कभी भी अपनी भूख को दबाएं नहीं। आयुर्वेद के अनुसार यदि आप भूख को दबाते हैं, तो निम्न बीमारी हो सकती है:
ऊपर कुछ स्वास्थ्य स्थितियां दी गई हैं। लेकिन अगर आप भूख को दबाते हैं और भूख लगने पर खाना नहीं खाते हैं, तो यह आपके समग्र स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है।
अगर आपको दिन में दो मुख्य भोजन खाने के बाद भी भूख लगती है तो आपको क्या करना चाहिए?
आपको ताजा और स्वस्थ खाद्य पदार्थ – फल, बिना पकी सब्जियां, सलाद और नट्स, और बीज खाने चाहिए। आप नारियल खा सकते हैं और नारियल पानी या सब्जियों का जूस भी पी सकते हैं।
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अक्सर देखा जाता है कि कुछ लोग हमेशा कुछ न कुछ खाते रहते हैं और भूख न लगी हो तब भी खाना खाने बैठ जाते हैं। आयुर्वेद में भोजन करने को लेकर बहुत सख्त नियम है। इसके अनुसार जब पिछला खाना पूरी तरह से पच जाए और खुलकर दोबारा से भूख महसूस हो तब आपको अपना अगला भोजन करना चाहिए। अपने शरीर की आवश्यकता को महसूस करें और नोटिस करें कि आपको कितनी देर पर प्यास और भूख लगती है। अगर आप बीमारियों से बचने के लिए आयुर्वेद का पालन करना चाहते हैं तो भूख लगने पर ही खाना खाएं।
भूख लगने पर खाने के फायदे
यदि आप भूख लगने पर खाते हैं, तो यह आपके दिमाग और शरीर को निम्नलिखित चीजें प्रदान करता है:
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आयुर्वेद में माना जाता है कि पेट की पाचन अग्नि सूर्य के समान होती है जो दिन के समय अधिक बेहतर तरीके से कार्य करती है। अगर आप तीनों समय ढेर सारा खाना खाते हैं तो यह आपके सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है और आपका वात और पित्त भी बढ़ सकता है। इसलिए आयुर्वेद के अनुसार आपको अगर ज्यादा भोजन करने की इच्छा है तो दोपहर के समय आप जितना चाहें उतना खा सकते हैं। दोपहर में किए गए भारी भोजन को पचने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। आपको नाश्ता और डिनर बहुत हल्का करना चाहिए। आयुर्वेद में भोजन के यही नियम हैं।
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आयुर्वेद के अनुसार आपको रोजाना तीन बार भोजन करना चाहिए। इसका मतलब यह है कि आपको सुबह का नाश्ता कभी नहीं छोड़ना चाहिए, दोपहर में संतुलित भोजन खाना चाहिए और रात में हल्का भोजन करना चाहिए। इसके अलावा आपके भोजन करने का समय निर्धारित होना चाहिए। जैसे कि सुबह का नाश्ता आपको सात बजे से नौ बजे के बीच कर लेना चाहिए। दोपहर का भोजन 12 बजे से 1 बजे के बीच में कर लेना चाहिए और रात का खाना शाम छह बजे से आठ बजे के बीच खा लेना चाहिए। भोजन करने के आयुर्वेद के इन नियमों का पालन करने से आप स्वस्थ रहेंगे और विशेषरुप से आपको पाचन संबंधी दिक्कतें नहीं होंगी।
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घी, जिसे की मक्खन के रुप में भी जाना जाता है, आयुर्वेद में हजारों वर्षों से औषधीय रूप से उपयोग किया जाता है। यह अग्नि (पाचन अग्नि) को उत्तेजित करता है और पोषक तत्वों के अवशोषण और आत्मसात करने की क्षमता दोनों को बढ़ाता है। घी में एंटीएजिंग गुण होते हैं और इसका उपयोग आयुर्वेद में बेहतर काया के लिए किया जाता है जो शरीर को गहराई से पोषण देने का काम करता है। यह ऊर्जा, प्रतिरक्षा, स्मृति और बुद्धि को बढ़ाता है। यहां तक कि घी विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने का काम करता है। आयुर्वेद के अनुसार भोजन के नियम का पालन करने के लिए भोजन में रोजाना लगभग एक चम्मच खाने की सलाह दी जाती है। आप दलिया, सूप, क्विनोआ व्यंजन, चावल, दाल, सब्जी और खिचड़ी में घी डालकर खा सकते हैं।
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आवश्यकता से ज्यादा भोजन करना बहुत से लोगों की आदत होती है। वास्तव में अत्यधिक भोजन करने से पाचन तंत्र पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ता है और भोजन सही तरीके से पच नहीं पाता है और अपच (indigestion) की समस्या हो जाती है एवं शरीर में विषाक्त पदार्थ जमा होने लगते हैं। एंजाइम की कमी के कारण अधिक अम्ल का स्राव होने लगता है जिससे पेट फूल जाता है, पेट में गैस बनता है और एसिड रिफ्लक्स की समस्या हो जाती है। अधिक भोजन करने से वजन भी बढ़ता है और पेट की अग्नि भी बढ़ती है।
आयुर्वेद के अनुसार आपको अपना पेट एक तिहाई भोजन, एक तिहाई तरल पदार्थ से भरना चाहिए और एक तिहाई हिस्सा पाचन प्रक्रिया के लिए छोड़ देना चाहिए। इससे आपके पेट की अग्नि मजबूत होगी और आप ऊर्जावान महसूस करेंगे। कोई भी खाना खाने के बाद आपको पेट में भारीपन महसूस नहीं होना चाहिए। हालांकि, पर्याप्त मात्रा में खाएं जो आपकी भूख को संतुष्ट करता है।
स्वस्थ भोजन के संकेत
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अगर आप आयुर्वेद के अनुसार भोजन नियमों का पालन करते हैं तो आप अधिक स्वस्थ रह सकते हैं। आयुर्वेद में बताया गया है कि आपको हमेशा ताजा और गर्म भोजन करना चाहिए। लंबे समय से बनाकर रखा गया भोजन करने से बचें और फ्रिज से भोजन निकालकर सीधे ना खाएं। इससे आपके पेट की अग्नि कमजोर होती है आपके पाचन में सहायता करने वाले एंजाइम सही तरीके से कार्य करें, इसके लिए आपको गर्म और फ्रेश भोजन करना चाहिए।
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हमें कितनी बार आदर्श रूप से खाना चाहिए? यहाँ आयुर्वेदिक आहार के तीसरे सिद्धांत में उत्तर दिया गया है।
आयुर्वेद 2 मुख्य भोजन के बारे में बात करता है – सुबह और शाम।
अष्टांग संघर्ष ने भोजन के लिए कोई समय नहीं दिया है, लेकिन इसमें केवल सुबह के भोजन और शाम के भोजन का उल्लेख किया है। उपरोक्त समय केवल सामान्य दृष्टांत के लिए हैं, आपको यह देखना चाहिए कि आपके लिए क्या समय उपयुक्त है। आपको अपनी व्यक्तिगत परिस्थितियों के अनुसार अपनी जैविक घड़ी निर्धारित करने की आवश्यकता है। और उसी के अनुसार भोजन करने की।
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हमेशा शांत जगह पर भोजन करें और जमीन पर बैठकर खाना खाएं। आयुर्वेद के अनुसार भोजन करते समय व्यक्ति को अपने पांचों इंद्रियों का प्रयोग करना चाहिए। भोजन करते समय ध्यान इधर उधर नहीं भटकाना चाहिए और खाना खाते हुए टीवी, किताब, फोन या फिर लैपटाप का उपयोग नहीं करना चाहिए। अपने भोजन का आनंद लें और उसे सही तरीके से चबाकर खाएं। इससे न सिर्फ आपको अपने भोजन का स्वाद मिलेगा बल्कि इससे आपकी सेहत भी बनेगी।
जल्दी- जल्दी नहीं खाना चाहिये। क्योंकि आयुर्वेद में, भोजन करना पूजा के समान है।
ये सभी कार्य अल्जाइमर रोग, अवसाद, चिंता और अन्य मनोवैज्ञानिक रोगों की रोकथाम में मदद करते हैं। अपने परिवार के सदस्यों के साथ भोजन करना सबसे महत्वपूर्ण है।
शोध के अध्ययनों ने निष्कर्ष निकला है कि जो लोग अपने माता-पिता और बच्चों के साथ भोजन करते हैं, उनके जीवन में बाद में मानसिक रोगों से पीड़ित होने की संभावना कम होती है।
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आज के भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास भोजन करने के लिए भी पर्याप्त समय नहीं बचा है। याद रखें, आयुर्वेद में जल्दी जल्दी भोजन करने पर प्रतिबंध है। इसके अनुसार आपको आराम से और पर्याप्त समय लेकर अपना भोजन करना चाहिए। भोजन को खूब चबाएं ताकि पचने में आसानी है। खड़े खड़े या बहुत जल्दबाजी में भोजन को गटकें नहीं और ना ही बिना चबाए भोजन को निगलें। इससे न सिर्फ पाचन क्रिया गड़बड़ होती है बल्कि आपको विभिन्न प्रकार की बीमारियां भी हो सकती हैं।
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आप अगर एक अच्छा स्वास्थ चाहते हैं तो हमेशा नजर रखें कि आप किस तरह का भोजन कर रहे हैं। वास्तव में आयुर्वेद में सादे और सामान्य भोजन को अधिक महत्व दिया जाता है। इसके अलावा किसी भी प्रकार का भोजन करते समय अपने पाचन का भी ख्याल रखें। बहुत अधिक सूखा भोजन न करें। रसेदार सब्जियां और कम मसालेयुक्त सब्जियां खाएं। आप अपने भोजन में जितना कम तेल और मसालों का इस्तेमाल करेंगे यह आपकी सेहत के लिए उतना ही बेहतर होगा और आप रोगमुक्त रहेंगे। आयुर्वेद में इसी प्रकार के भोजन को मान्यता दी गयी है।
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आयुर्वेदिक आहार का मतलब केवल चावल, उबली हुई सब्जियां और सलाद खाना नहीं है, आयुर्वेदिक विशिष्ट सिद्धांतों का पालन करता है और इसे किसी भी प्रकार के व्यंजनों में लागू किया जा सकता है। आयुर्वेद मुख्य रूप से छह स्वादों को मानता है और इन स्वादों में मीठा, नमकीन, तीखा, खट्टा, कसैला और कड़वा शामिल होता है।
भोजन एक विशेष क्रम में पचता है अपने आप को संतुष्ट महसूस कराने के लिए इन छह स्वादों को अपने दैनिक आहार में शामिल करना चाहिए। तो, आपको प्रत्येक रेसिपी में कुछ मसाले जैसे हल्दी, जीरा, दालचीनी, इलायची और ताजा मसाले जैसे ताजा अदरक, ताजा धनिया या सीताफल शामिल करना चाहिए।
आयुर्वेदिक के अनुसार आहार का पालन करने की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कदम यह है कि आप अपने व्यक्तिगत दोष को जानें। वात, पित्त और कफ दोष एक व्यक्ति के शरीर में विभिन्न शारीरिक कार्यों के लिए जिम्मेदार ऊर्जा है। हर दिन भोजन के लिए एक विशेष कार्यक्रम निर्धारित करने के लिए अपना समय लें।
सात्विक भोजन करें
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