Why babies cry in Hindi शिशुओं का रोना एक सामान्य बात है। कुछ शिशु (infants) अधिक और बिना वजह रोते हैं और जल्दी चुप नहीं होते हैं जबकि कुछ शिशु शरीर में विशेष परेशानी होने पर ही रोते हैं। लेकिन आमतौर पर हर मां के लिए यह समझना थोड़ा मुश्किल (hard) होता है कि उनका शिशु किस कारण से रो रहा है। बच्चे के रोने पर मां उन्हें चुप कराने के लिए स्तनपान कराने लगती है। लेकिन हर बार बच्चा सिर्फ दूध पीने (breastfeeding) के बाद ही शांत नहीं होता है क्योंकि उसके रोने की वजह कुछ और होती है। आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि शिशु आखिर किन वजहों से रोते हैं और उन्हें चुप कराने (bachon ke rone ke karan aur chup karane ke tarike) के तरीके क्या हैं।
विषय सूची
1. शिशु के रोने के कारण – Reasons of Babies Cry In Hindi
2. शिशु जब रोए तो उसे चुप कैसे कराएं – How To Soothe When Babies Cry In Hindi
नवजात शिशु के रोने का सटीक कारण पता करना बेहद मुश्किल होता है लेकिन कुछ अनुमानों और लक्षणों के आधार पर ही यह पता लगाया जाता है कि शिशु किस कारण से रो रहा है। आइये जानते हैं कि शिशुओं के रोने का मुख्य कारण क्या होता है।
आमतौर पर जब शिशु को भूख लगती होती है तब वह रोना शुरू कर देता है। ज्यादातर मांएं यह अंदाजा लगा लेती हैं कि भूख के कारण ही उनका शिशु रो रहा है। शिशु के रोने का यह पहला और मुख्य कारण होता है। लेकिन यदि आप नहीं समझ पा रही हैं कि आपका शिशु भूख लगने के कारण रो रहा है तो आप उसके संकेतों (sign) को पहचानना सीखें। शिशु को जब भूख लगती है तब वह अपनी उंगलियों को मुंह में डालता है, अपने होठों को चूसता है और मां के पास जाने के लिए बहुत बेचैन रहता है। इन संकेतों से आप पहचान सकती हैं कि आपको शिशु भूख लगने के कारण ही रो रहा है।
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पेट में किसी तरह की परेशानी (stomach problem) और गैस बनने के कारण भी शिशु बहुत जोर से रोना शुरू कर देता है। यदि आपका नवजात शिशु स्तनपान कराने के तुरंत बाद जोर से रोने लगता है तो इसका मतलब यह है कि उसके पेट में दर्द हो रहा है। इस दौरान शिशु के पेट दर्द को ठीक करने के लिए आपको उसे एंटी गैस ड्रॉप (anti gas drop) पानी में मिलाकर देना चाहिए। एंटी गैस ड्राप जड़ी बूटियों और सोडियम बाइकार्बोनेट का बना होता है और बहुत प्रभावी होता है।
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जब शिशु का डायपर (diaper) गंदा (गीला) हो जाता है तो उसे बहुत बेचैनी होती है जिसके कारण वह रोने लगता है। छोटे बच्चे थोड़ी-थोड़ी देर पर ही पेशाब करते रहते हैं जिसके कारण डायपर भीग जाता है और उसे बदलने की जरूरत पड़ती है। कभी-कभी हम यात्रा के दौरान भी बच्चों को डायपर पहनाते हैं और मल एवं पेशाब के कारण अधिक देर तक डायपर न बदलने पर वह खराब हो जाता है और अंदर से शिशु को परेशानी (discomfort) होने लगती है जिसके कारण वह रोना शुरू कर देता है।
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शिशु को किसी भी समय और कहीं भी नींद आ सकती है। ऐसे में यदि उसे सोने के लिए शांत वातावरण (calm place) नहीं मिलता है या बच्चे को सोने के लिए सही जगह नहीं मिल पाता है तो वह रोने लगता है। आपने अक्सर देखा होगा कि हम यह नहीं समझ पाते हैं कि शिशु को नींद आ रही है और उसे लगातार खिलाते या बुलाते रहते हैं जिससे वह सो नहीं पाता है और जोर-जोर से रोने लगता है। कभी-कभी यह भी होता है कि शिशु को नींद आ रही होती है और हम उसे कंधे से चिपकाए होते हैं जिसके कारण उसके शरीर में तनाव होता है और वह सो नहीं पाता है जिसके कारण शिशु रोने लगता है।
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यदि किसी कारण से शिशु को बहुत अधिक गर्मी (hot) या बहुत अधिक ठंडक लगती है तो वह रोने लगता है। शिशुओं को त्वचा बहुत संवेदनशील होती है और सामान्य तापमान भी उनके लिए अलग तरीके से काम करता है जिसके कारण या तो उन्हें अधिक गर्मी लगती है या अधिक ठंडी। इसके अलावा शिशु के कपड़े गीले होने पर भी उन्हें ठंड लगती है जिसके कारण वे रोने लगते हैं। ऐसा देखा जाता है कि जब शिशु अंडरवियर में ही पेशाब कर देता है तो कुछ मांएं काफी देर तक उस कपड़े को बदलती नहीं हैं जिसके कारण शिशु की त्वचा में खुलजी (itching) उत्पन्न हो जाती है और वह रोने लगता है।
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हालांकि शिशुओं को डकार आना जरूरी नहीं होता है। लेकिन कभी-कभी स्तनपान करते समय या बॉटल से दूध पीते समय बच्चे के पेट में हवा चली जाती है जिसके कारण उनके पेट में परेशानी होने लगती है। पेट में हवा जाने के तुरंत बाद कुछ शिशुओं को परेशानी उत्पन्न होती है और वे रोने लगते हैं या कुछ शिशुओं को बाद में परेशानी होती है। पेट से हवा न निकल पाने के कारण उनकी यह परेशानी बढ़ती जाती है। ऐसी स्थिति में उन्हें डकार आना जरूरी होता है। इसके लिए आप डॉक्टर की सलाह से शिशु को कोई ड्रॉप या लिक्विड दे सकते हैं।
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शिशु के शरीर का तापमान बढ़ने पर उसे बहुत बेचैनी (discomfort) महसूस होती है। इसलिए आपको समय-समय पर यह देखते रहना चाहिए कि कहीं शिशु को बुखार तो नहीं है क्योंकि शिशु को बुखार (fever) होने के कारण वह पूरे दिन रोता रहता है और दूध भी ठीक से नहीं पीता है। इसके अलावा यदि आपका शिशु अधिक दूध पी लेता है या स्तनपान कराते समय इंफेक्शन के कारण भी उसे डायरिया की समस्या हो जाती है जिसके कारण वह रोता है।
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शिशु के रोने का एक बड़ा कारण उसका दांत निकलना (teething) शुरू होना है। दांत निकलने के दौरान उनके मसूढ़ों (gum) में दर्द होता है जिसके कारण बच्चे का पेट खराब तो होता ही है साथ में उसका शरीर भी लगातार गर्म बना रहता है। शिशु इसे बर्दाश्त नहीं कर पाता है और पूरे दिन रोता रहता है। दांत आने के दौरान शिशु के आंख में लगातार आंसू भर रहते हैं और दांत निकलने के बाद उन्हें राहत (relief) मिलती है और उनका रोना कम हो जाता है।
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यदि शिशु किसी बीमारी (illness) से ग्रसित हो या अच्छा महसूस नहीं कर रहा हो तो वह रोने लगता है। इससे मां को समझ जाना चाहिए कि शिशु को कोई परेशानी है। कभी-कभी बच्चे के हाथ और पांव भारी बिस्तर से दब जाने के कारण भी वे चिल्लाने (weeping) लगते हैं या उनके सिर के नीचे कोमल तकिया या कपड़ा न रखा गया हो तब भी उन्हें परेशानी होती है और वे रोने लगते हैं।
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रोते हुए बच्चे को चुप कराना हर व्यक्ति के लिए एक मुश्किल (hard) काम होता है। लेकिन फिर भी बच्चे को चुप कराना तो पड़ता ही है। आइये जानते हैं बच्चे को चुप कराने के तरीके क्या हैं।
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