वर्तमान दिनचर्या के कारण आदमी समय से पहले कई खतरनाक और जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ रहा है। इन बीमारियों की सबसे खास बात यह है कि ज्यादातर एक-दूसरे से संबंधित हैं, और इसी में कैंसर और दिल की बीमारियां भी आती हैं। इसलिए मरीजों को कैंसर और दिल की बीमारी का इलाज के महंगे खर्च से राहत देते हुए नेशनल फॉर्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) ने 51 जरूरी दवाओं के रेट 53 फीसदी तक कम कर दिए हैं। इनमें कैंसर, दर्द, हॉर्ट डिजीज और स्किन की बीमारी की दवाएं शामिल हैं। बता दें कि एनपीपीए समय-समय पर दवाओं का मैक्सिमम प्राइज तय करती है, जिससे मरीजों को महंगी दवाओं से छुटकारा मिल सके। और कैंसर और दिल की बीमारी का इलाज का खर्च कम किया जा सके|
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NPPA ने एक नोटिफिकेशन जारी कर कहा, “ड्रग्स (प्राइस कंट्रोल) अमेंडमेंट ऑर्डर-2013 के तहत 53 दवाओं की कीमतें 6 से 53 फीसदी तक घटाई गई हैं। इनमें 13 फॉर्म्युलेशन का मैक्सिमम प्राइज तय किया गया है, जबकि 15 फॉर्म्युलेशन के मैक्सिमम प्राइज को रिवाइज्ड किया गया है। वहीं, 23 जरूरी फॉर्म्युलेशन की रिटेल प्राइस को भी नोटिफाइड किया गया है।
NPPA ने नेशनल लिस्ट ऑफ इसेंन्शियल मेडिसिन 2015 के तहत अब तक 874 दवाओं के रेट घटाए हैं। सितंबर तक 821 दवाओं के रेट NPPA ने तय किए थे।
जिन दवाओं के दाम कम किए गए हैं, उनमें मुख्य तौर पर कोलोन या रेक्टल कैंसर में काम आने वाला ओक्साप्लैटिन (इंजेक्शन 100 ग्राम), जापानी इंसेफेलेटाइटिस वैक्सीन, मीसल्स में काम आने वाली रूबेला वैक्सीन, अनेस्थेसिया में काम आने वाली अनेस्थेटिक सेवोफ्लूरेंस, फाइटोमेनाडिओन और टीवी की रोकथाम में काम आने वाली बीसीजी वैक्सीन शामिल हैं।
वहीं, मलेरिया में काम आने वाली क्लोरोक्वीन, बैक्टीरियल इनफेक्शन में काम आने वाली कोफ्रियॉक्सिन, दर्द में काम आने वाली मॉर्फिन, ग्लूकोज इंजेक्शन और हार्ट डिजीज में काम आने वाली फ्यूरोसेमाइड भी शामिल हैं।
NPPA ने कहा है, मैन्युफैक्चरर्स तय कीमत से ज्यादा नहीं ले सकते हैं। अगर कंपनियां सीलिंग प्राइस और रूल्स का पालन नहीं करती हैं तो उन्हें वसूली गई एक्स्ट्रा कीमत ब्याज समेत जमा करानी पड़ेगी। कंपनियों को इन दवाओं की कीमतों में साल में 10% तक की ही बढ़ोतरी करने की इजाजत होगी। (और पढ़े: स्तन कैंसर कारण, लक्षण और बचाव के तरीके)
NPPA ड्रग्स (प्राइस कंट्रोल) ऑर्डर-2013 के तहत शेड्यूल-1 में आने वाली जरूरी दवाओं की कीमत तय करता है।
सरकार जरूरत के हिसाब से जरूरी दवाओं की लिस्ट तैयार करती है, जिसमें समय-समय पर नई दवाओं को शामिल किया जाता है। लिस्ट को नेशनल लिस्ट ऑफ एसेन्शियल मेडिसिन (एनएलईएम) कहा जाता है।
इन लिस्ट में शामिल दवाइयों को काफी किफायती कीमत पर दिलाने की जरूरत होती है, इसलिए समय-समय पर कीमतें कम की जाती हैं।
इसका मकसद सभी ब्रांड की एक ही दवा की कीमत बराबर रखना है, जिससे कस्टमर्स अपनी सुविधा के अनुसार चुनाव कर सकें।
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