Motiyabind in hindi मोतियाबिंद आमतौर पर आंखों की लेंस पर धुंधलापन छा जाने की समस्या को कहते हैं। मोतियाबिंद होने पर व्यक्ति को आंखों से स्पष्ट दिखायी नहीं देता है अर्थात् कोई भी वस्तु धुंधली (cloudy) दिखायी देती है। आंखों में यह धुंधलापन मोतियाबिंद के कारण ही होता है जिसके कारण व्यक्ति को पढ़ने, गाड़ी चलाने और लोगों के चेहरे के हावभाव को पहचानने में कठिनाई होती है। मोतियाबिंद आंखों में धीरे-धीरे फैलता है और आंखों की रोशनी को कम कर देता है। यह आमतौर पर दोनों आंखों को प्रभावित करता है लेकिन यह दोनों आंखों में एक साथ नहीं होता है। वृद्ध व्यक्तियों (old age) में यह बीमारी बहुत आम है। मोतियाबिंद होने पर इस बीमारी का निदान कराने के बाद ही इलाज कराना चाहिए।
जब आंखों के लेंस में प्रोटीन बनने लगता है और यह आंखों की रोशनी को धुंधला कर देता है तब व्यक्ति को मोतियाबिंद होने की संभावना होती है। यह स्पष्ट रूप से प्रकाश को गुजरने नहीं देता है जिसके कारण आंखों की रोशनी खोने का खतरा रहता है। अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को मोतियाबिंद हो सकता है क्योंकि इस बीमारी का सबसे बड़ा जोखिम व्यक्ति की बढ़ती उम्र ही है।
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आमतौर पर मोतियाबिंद होने के पीछे कई कारण होते हैं। इनमें के कुछ कारण निम्न हैं-
इसके अलावा गर्भ में संक्रमण, चोट या गर्भ (womb) का सही तरीके से विकास न होने के कारण नवजात शिशु को भी मोतियाबिंद हो सकता है।
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आपको बता दें कि मोतियाबिंद (motiyabind) विकसित होने में आमतौर पर कई साल लगते हैं और यह वृद्धावस्था में प्रकट होता है। इस उम्र में आंखों का लेंस धुंधला हो जाता है। मोतियाबिंद होने पर व्यक्ति को विशेषरूप से रात के समय वाहन चलाने में कठिनाई होती है और लोगों के चेहरे के हाव-भाव पहचानने में भी मुश्किल आती है। चूंकि मोतियाबिंद धीरे-धीरे विकसित होता है इसलिए ज्यादातर लोगों को शुरूआत में इसका पता भी नहीं चल पाता है। लेकिन जैसे-जैसे धुंधलापन गहराता जाता है आंखों की रोशनी भी धीरे-धीरे घटने लगती है।
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मोतियाबिंद के लक्षण निम्न हैं – motiyabind ke lakshan in Hindi
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आंखों की समस्या होने पर तुरंत नेत्र रोग विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए। आंख का परीक्षण और कुछ टेस्ट करने के बाद डॉक्टर मोतियाबिंद का निदान करते हैं।
आंखों के विशेषज्ञ आंखों की बीमारी का पता लगाने के लिए आमतौर पर विजुअल एक्यूइटी टेस्ट (visual acuity test) करते हैं जिसमें यह परीक्षण किया जाता है कि मरीज को कोई वस्तु कितनी स्पष्ट दिखाई पड़ रही है। इसमें मरीज को एक कमरे में बिठाकर सामने से अक्षरों की सूची पढ़ने के लिए कहा जाता है। इसके अलावा आंखों की बीमारी के निदान के लिए स्लिट लैंप परीक्षण भी किया जाता है जिसमें माइक्रोस्कोप की सहायता से कॉर्निया और आइरिस, लेंस और आइरिस एवं कॉर्निया के बीच के स्थान का परीक्षण किया जाता है। इसके अलावा आई ड्रॉप डालने के बाद आंखों की रेटिना का परीक्षण किया जाता है।
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यदि किसी व्यक्ति को मोतियाबिंद होने पर उसकी दैनिक दिनचर्या जैसे, लिखना-पढ़ना और वाहन चलाने में अत्यधिक कठिनाई महसूस हो रही हो तो डॉक्टर उसे सर्जरी कराने की सलाह देते हैं। इसके अलावा आंखों की अन्य बीमारियों के इलाज में जब मोतियाबिंद के कारण रूकावट पैदा होती है तब भी डॉक्टर मरीज को सर्जरी कराने की सलाह देते हैं। सर्जिकल प्रकिया को फैकोइमल्सिफिकेशन (phacoemulsification) कहते हैं, इसमें अल्ट्रासाउंड तरंगों के माध्यम से लेंस को अलग किया जाता है और टुकड़ों को हटाया जाता है। मोतियाबिंद के इलाज के लिए एक्स्ट्राकैप्सुलर सर्जरी भी की जाती है, इसमें आंखों की कॉर्निया में एक लंबा चीरा लगाकर लेंस के धुंधले हिस्से को हटाया जाता है। जो मरीज सर्जरी नहीं कराना चाहते हैं उन्हें डॉक्टर अच्छी गुणवत्ता एवं लेंस के चश्मे लगाने की सलाह देते हैं।
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मोतियाबिंद से बचने के लिए लोगों को अपनी आंखों का नियमित परीक्षण करवाना चाहिए, विशेषरूप से वृद्धावस्था में आंखों के प्रति अधिक सचेत रहना चाहिए। कुछ सावधानियां बरतकर आंखों की इस बीमारी से बचा जा सकता है।
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