Down syndrome in hindi डाउन सिंड्रोम एक आनुवांशिक बीमारी है जिसमें बच्चे का जन्म 21 क्रोमोसोम की एक अतिरिक्त कॉपी के साथ होता है। इसलिए इसका एक दूसरा नाम ट्राइसोमी 21 भी है। इस बीमारी की वजह से शिशुओं में शारीरिक और मानसिक विकास बहुत देर से होता है और कभी-कभी विकलांगता की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित मरीज की देखरेख बहुत ही आवश्यक होती है।
डाउन सिंड्रोम की बीमारी में ज्यादातर विकलांगता जीवन पर्यंत बनी रहती है और इसकी वजह से व्यक्ति की उम्र भी बहुत कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में मरीज सहित उसके परिवार को भी इन चुनौतियों से उबरने के लिए भावनात्मक सहयोग की जरूरत होती है।
1. डाउन सिंड्रोम होने के कारण – Causes of down syndrome in Hindi
2. डाउन सिंड्रोम के प्रकार – Types of Down syndrome in Hindi
3. डाउन सिंड्रोम के लक्षण – symptoms of Down syndrome in Hindi
4. डाउन सिंड्रोम का निदान – Down syndrome diagnosed in Hindi
5. डाउन सिंड्रोम का इलाज – Treatment for Down syndrome in Hindi
डाउन सिंड्रोम होने के कारण – Causes of down syndrome in Hindi
प्रजनन के सभी मामलों में माता और पिता दोनों के जीन उनके बच्चों में भी मौजूद होते हैं। ये जीन बच्चों में गुणसूत्र के माध्यम से पहुंचते हैं। जब बच्चे की कोशिकाओं का विकास होता है तो प्रत्येक कोशिका 23 जोड़ी अर्थात् 46 गुणसूत्र प्राप्त करती है। बच्चे के शरीर में आधा गुणसूत्र मां से प्राप्त होता है और आधा गुणसूत्र (chromosome) पिता से प्राप्त होता है।
लेकिन डाउन सिंड्रोम की स्थिति में एक गुणसूत्र ठीक से अलग नहीं हो पाता है और बच्चे के शरीर में दो के बजाय तीन या एक अतिरिक्त आंशिक गुणसूत्र 21 की प्रतियां पहुंच जाती हैं। इस अतिरिक्त गुणसूत्र के कारण बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो पाता है। हालांकि डॉक्टर भी डाउन सिंड्रोम होने के पीछे के सही कारणों को नहीं जानते हैं लेकिन वे यह जरूर बताते हैं कि यदि कोई महिला 35 वर्ष या इससे अधिक उम्र के बाद बच्चा पैदा करती है तो बच्चे में डाउन सिंड्रोम होने की संभावना होती है। यदि आपका कोई बच्चा पहले से ही डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है तो अगले बच्चे में भी डाउन सिंड्रोन होने की संभावना अधिक पायी जाती है। यह सामान्य बीमारी नहीं है लेकिन डाउन सिंड्रोम माता-पिता से बच्चे में आसानी से हो सकता है।
डाउन सिंड्रोम के प्रकार – Types of Down syndrome in Hindi
डाउन सिंड्रोम तीन प्रकार के होते हैं
ट्राइसोमी 21 (Trisomy 21)
यह वह स्थिति है जिसमें शरीर में मौजूद प्रत्येक कोशिकाओं में दो की बजाय क्रोमोसोम 21 की तीन कॉपी होती हैं।
ट्रांसलोकेशन डाउन सिंड्रोम (Translocation Down syndrome)
इस प्रकार के सिंड्रोम में प्रत्येक कोशिकाओं में पूरा एक या कुछ अतिरिक्त क्रोमोसोम 21 का भाग मौजूद होता है। लेकिन यह स्वयं के बजाय किसी और क्रोमोसोम से जुड़ा होता है।
मोजैक डाउन सिंड्रोम – (Mosaic Down syndrome)
यह दुर्लभ (rarest) प्रकार का डाउन सिंड्रोम है जिसमें सिर्फ कुछ ही कोशिकाएं के पास अतिरिक्त क्रोमोसोम 21 होता है।
कोई व्यक्ति यह नहीं बता सकता है कि वह किस प्रकार के डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है, क्योंकि इन तीनों प्रकार के डाउन सिंड्रोम का प्रभाव लगभग एक समान होता है। लेकिन मोजैक डाउन सिंड्रोम से पीड़ित मरीज में अधिक लक्षण दिखायी नहीं देते हैं क्योंकि इसमें सिर्फ कुछ ही कोशिकाओं (cells) के पास अतिरिक्त क्रोमोसोम होता है।
डाउन सिंड्रोम के लक्षण – symptoms of Down syndrome in Hindi
प्रेगनेंसी के दौरान ही स्क्रीनिंग के जरिए बच्चे में डाउन सिंड्रोम के विकार का पता लगाया जा सकता है, लेकिन प्रेगनेंसी के दौरान महिला को इस तरह का कोई लक्षण नहीं दिखायी देता है जिससे वह यह समझ सके कि उसके बच्चे को डाउन सिंड्रोम है।
जन्म के समय डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों में इस तरह के लक्षण दिखायी देते हैं-
- चिपटे आकार का चेहरा
- सिर और कान बहुत छोटे
- गर्दन बहुत छोटी
- फैली हुई जीभ
- ऊपर की ओर झुकी हुई आंखें
- असामान्य आकार का कान
- मांसपेशियां कमजोर
- जन्म के समय डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे का आकार औसतन ही होता है लेकिन सामान्य बच्चों की अपेक्षा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे के शरीर का विकास बहुत धीमी गति से होता है।
- इसके अलावा ऐसे बच्चों में सामाजिक एवं मानसिक भी बहुत देर से होता है। उनमें आमतौर पर ये लक्षण दिखायी देते हैं-
- आवेगपूर्ण व्यवहार
- चीजों को समझने की कम क्षमता
- ध्यान इधर-उधर भटकना
- सीखने की बहुत धीमी क्षमता
- डाउन सिंड्रोम से पीड़ित वयस्क पुरुष की लंबाई 5 फीट 1 इंच और वयस्क महिला की लंबाई 4 फीट 9 इंच होती है। इसके अलावा उम्र बढ़ने के साथ मोटापे (Obesity) की समस्या होना भी बहुत आम होता है। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित मरीज को हमेशा कुछ न कुछ स्वास्थ्य समस्याएं होती रहती हैं और वह हृदय रोगों से भी पीड़ित हो सकता है।
डाउन सिंड्रोम का निदान – Down syndrome diagnosed in Hindi
जब भ्रूण गर्भाशय में होता है तभी डाउन सिंड्रोम का निदान किया जा सकता है। प्रेगनेंट महिलाओं में रूटीन स्क्रीनिंग के द्वारा शिशु में इस बीमारी की पहचान की जाती है।
प्रेगनेंसी के पहले और दूसरे तिमाही में प्रेगनेंट महिला को ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड करवाना चाहिए, सिर्फ डाउन सिंड्रोम का पता करने के लिए ही नहीं बल्कि शिशु में अन्य आनुवांशिक असामान्यताओं के बारे में भी जानने के लिए। इसके अलावा एम्नियोसेंटेसिस (Amniocentesis) प्रकार के निदान में भ्रूण के आसपास मौजूद एम्नियोटिक फ्लूइड का सैंपल लेने के लिए गर्भाशय में एक सूई प्रवेश करायी जाती है। ट्राइसोमी 21 को जरिए भ्रूण के क्रोमोसोम का विश्लेषण किया जाता है।
डाउन सिंड्रोम का इलाज – Treatment for Down syndrome in Hindi
- डाउन सिंड्रोम से पीड़ित मरीज का इलाज कराकर और उसे अपना सहयोग देकर उसके जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है।
- इस रोग से पीड़ित शिशु का विकास बहुत देर से शुरू होता है। वह देर से बैठना शुरू करता है, देर से चलना और बोलना भी शुरू करता है। इसलिए माता-पिता को इस बारे में जरूर जानकारी होनी चाहिए कि डाउन सिंड्रोम से ग्रसित शिशु (infants) का विकास सामान्य शिशु की अपेक्षा देर से होता है।
- डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के देखभाल के लिए एक टीम होती है जिसमें फिजिकल थेरेपिस्ट, व्यावसायिक थेरेपिस्ट, और स्पीच थेरेपिस्ट होते हैं जो बच्चे की भाषा, मोटर, सोशल स्किल को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
- डाउन सिंड्रोम से पीड़ित जिन मरीजों में इस विकार के कारण हृदय एवं जठरांत्र प्रणाली (gastrointestinal system) प्रभावित होता है उन्हें अधिक मूल्यांकन, अधिक देखभाल की जरूरत होती है। कभी-कभी उन्हें सर्जरी की भी जरूरत पड़ती है।
- उम्र बढ़ने के साथ ही डाउन सिंड्रोम से पीड़ित मरीजों को शारीरिक क्रियाओं के लिए दूसरे व्यक्ति के मदद की हमेशा जरूरत पड़ती है।
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