False pregnancy in Hindi: जिन महिलाओं में मां बनने की बहुत ज्यादा इच्छा होती है, वे अक्सर फॉल्स प्रेगनेंसी की शिकार होती हैं। फॉल्स गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से छद्म विज्ञान या स्यूडोसेसिस (Pseudocyesis) कहा जाता है। इसे इमेजनरी प्रेगनेंसी या फैंटम प्रेगनेंसी भी कहा जाता है। जब कोई महिला कंसीव करने की कोशिश कर रही हो, लेकिन वह लगातार असफल हो रही हो, तो वह अक्सर काल्पनिक गर्भावस्था की शिकार हो जाती है। इसमें उन्हें ऐसा लगता है, कि वह गर्भवती हैं, लेकिन असल में वह गर्भवती नहीं होती हैं। फॉल्स प्रेगनेंसी में महिला के गर्भ में कोई बच्चा नहीं होता है। लेकिन उसे प्रेगनेंसी के कुछ ऐसे लक्षण होते हैं जिससे उसे यह भम्र हो सकता है कि वह प्रेग्नेंट है।
डॉक्टर्स का कहना है, कि फॉल्स प्रेगनेंसी के मामले बहुत कम देखने को मिलते हैं। ऐसी अवस्था 1000 में से किसी एक 1 महिला में देखने को मिलती है। डॉक्टर्स कहते हैं कि, जो महिलाएं कंसीव करने की कोशिश कर रही हैं, उनके लिए खुद को प्रेग्नेंट फील करना सामान्य बात है। इसमें महिला वो सभी लक्षण महसूस करती है, जो एक प्रेग्नेंट लेडी को होते हैं, जैसे पीरियड का लेट या मिस होना, चक्कर आना, मितली आना, स्तनों का मुलायम होना, पेट बढ़ना, बहुत भूख लगना आदि। लेकिन घबराने की कोई बात नहीं है, इससे आगे की प्रेगनेंसी पर कोई खास असर नहीं पड़ता। लेकिन फिर भी इस स्थिति में महिला को अपना ध्यान रखना चाहिए और कंप्लीट चेकअप कराना चाहिए।
आज के इस आर्टिकल में हम आपको फॉल्स, इमेजनरी व फैंटम प्रेगनेंसी के कारण और लक्षणों के बारे में बताने जा रहे हैं। लेकिन इससे पहले जानिए क्या होती है फैंटम व फॉल्स प्रेगनेंसी।
विषय सूची
फॉल्स प्रेगनेंसी एक दुर्लभ स्थिति है, जिसमें महिला मान बैठती है, कि वह गर्भवती है। एक झूठी गर्भावस्था को एक फैंटम प्रेगनेंसी के रूप में भी जाना जाता है। फॉल्स प्रेगनेंसी को मेडिकल की भाषा में स्यूडोसाइसिस भी कहा जाता है, एक ऐसी अवस्था है, जिसमें महिला को महसूस होने लगता है, कि वो प्रेग्नेंट है। लेकिन डॉक्टर के पास चेकअप के लिए पहुंचने पर उसे पता चलता है, कि वह गर्भवती है ही नहीं, बल्कि उनकी ऐसी हालत किसी और वजह से है। कहने का मतलब यह है, कि इस अवस्था में महिलाएं गर्भावस्था का संकेत देने वाले कई लक्षणों का अनुभव करती हैं, लेकिन वास्तव में वह गर्भवती नहीं होतीं। गर्भावस्था के दौरान मितली, थकान और स्तनों में कसाव आना आम बात होती है। आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान यह सारे लक्षण देखने को भी मिलते हैं, लेकिन ऐसा हर प्रेग्नेंट महिला के साथ नहीं होता है।
हैरानी की बात तो यह है, कि यह स्थिति पुरूषों में भी होती है, जिसे सहानुभूति गर्भावस्था के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थिति तब देखी जाती है, जब पुरूष की पत्नी गर्भवती हो।
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झूठी गर्भावस्था के मामले बहुत कम देखने को मिलते हैं। अगर किसी महिला का एक से ज्यादा बार गर्भपात हुआ हों, इंफर्टिलिटी की समस्या हो, जिनके बच्चे की हाल ही में मृत्यु हुई हो और वे मानसिक रूप से टूट गई हो, तो ऐसी महिलाएं फॉल्स प्रेगनेंसी की शिकार हो सकती हैं। जो महिलाएं तीव्रता के साथ बच्चा चाहती हैं, उन्हें आमतौर पर एक हिस्टेरिकल प्रेगनेंसी से पीड़ित देखा जाता है। डॉक्टर्स कहते हैं, कि 30 से 40 की उम्र वाली महिलाएं प्रेगनेंसी के प्रति बहुत भावुक होती हैं। ऐसी महिलाओं को मानसिक रूप से ज्यादा मजबूत होने की जरूरत होती है।
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फॉल्स प्रेगनेंसी या झूठी प्रेगनेंसी होने के सही कारण का तो अब तक पता नहीं चल पाया है, लेकिन शोधकर्ताओं के अनुसार इसके पीछे शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दोनो कारण हो सकते हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है, कि जिन महिलाओं में फॉल्स प्रेगनेंसी होती है, उन महिलाओं में मां बनने की इच्छा बहुत ज्यादा होती है। जब उनके आसपास उनकी दोस्त या कोई रिश्तेदार गर्भवती होती है, तो उनमें भी मातृत्व की इच्छा जागृत होती है और ये इतनी बढ़ जाती है कि उनका शरीर खुद गर्भावस्था के लक्षण दिखाने लगता है।
कुछ कुछ मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स का मानना है कि यह गर्भवती होने के डर से संबंधित है। यह संभव है कि यह अंतःस्रावी तंत्र (एंडोक्राइन सिस्टम) को प्रभावित करता है, जो गर्भावस्था के लक्षणों का कारण बनता है।
इसके अलावा पिट्यूरी ग्लैंड और शरीर में हार्मोन्स का बहुत ज्यादा बढ़ जाना भी फॉल्स प्रेगनेंसी का मुख्य कारण है। उनकी सोच का असर प्रोजेस्ट्रोन पर पड़ने से महिला इमोशनल और थका हुआ फील करने लगती है। इसके होने से महिला में मानसिक और भावनात्मक बदलाव आने लगते हैं, जिसकी वजह से उन्हें लगता है, कि वो प्रेग्नेंट हैं। नीचे हम आपको फॉल्स प्रेगनेंसी के अन्य कारणों के बारे में बता रहे हैं।
कंसीव न कर पाना- कंसीव न कर पाना भी फॉल्स प्रेगनेंसी की एक बड़ी वजह बताई जाती है। डॉक्टर्स का कहना है, कि जो महिलाएं हर वक्त प्रेगनेंसी के बारे में सोचती हैं और उनके पीरियड के कुछ समय पहले या कुछ समय बाद ही उन्हें महसूस होता है, कि उन्होंने कंसीव कर लिया है। लेकिन ऐसा होता नहीं है। ऐसी महिलाओं को कभी-कभी इमेजनरी प्रेगनेंसी का सामना करना पड़ता है।
पहले से कई गर्भपात होना- एक और सिद्धांत इच्छा पूर्ति से संबंधित है। कुछ मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स का मानना है कि जब एक महिला गर्भवती होने का अनुभव तब करती है जब उसके पहले से कई गर्भपात हुए हों, या उसमे बांझपन की समस्या हो, ऐसा होने पर वह अपने शरीर में कुछ बदलावों को गलत संकेत के रूप में समझ सकती है कि वह गर्भवती है।
हार्मोन्स में परिवर्तन- तीसरा सिद्धांत तंत्रिका तंत्र में कुछ रासायनिक परिवर्तनों से संबंधित है जो अवसादग्रस्तता विकारों से संबंधित हैं। यह संभव है कि ये रासायनिक परिवर्तन झूठी गर्भावस्था के लक्षणों के लिए जिम्मेदार हों।
काल्पनिक गर्भावस्था व आईपीएस- डॉक्टर्स कहते हैं कि महिलाओं में कंसीव करने की कोशिश करने के दौरान प्रेग्नेंट जैसा फील करना आम बात है। इस बीमारी को आईपीएस IPS ( integrated prenatal screening) कहते हैं। यह वह स्थिति है, जब आईपीएस से पीड़ित महिला को लगने लगता है, कि वह प्रेग्नेंट हो गई है, तो उसे लक्षण भी गर्भावस्था वाले ही दिखने लगते हैं।
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जब महिला वास्तव में गर्भवती नहीं होती है तो गलत गर्भावस्था में नैदानिक या उप-नैदानिक संकेत और गर्भावस्था से जुड़े लक्षण दिखाई देते हैं। फॉल्स प्रेगनेंसी में महिला नॉर्मल प्रेगनेंसी जैसा ही फील करती है। इस दौरान पेट बढ़ने लगता है, उल्टी जैसा मन होता है और कभी-कभी चक्कर भी आते हैं, जैसा अक्सर गर्भावस्था में होता है। देखकर ऐसा लगता है, जैसे गर्भ में बच्चे का विकास हो रहा हो। इस समय टमी पर फैट बढ़ने की स्थिति में पीरियड लेट या मिस होने लगते हैं, जो फॉल्स प्रेगनेंसी का सबसे जरूरी शारीरिक लक्षण होता है। कई महिलाएं बच्चे का किक महसूस करने लगती हैं, भले ही बच्चा पेट में ना हो। अब ऐसी स्थिति में आपके पेट में भ्रूण नहीं है, यह जानने के लिए कुछ लक्षणों पर गौर करना होगा।
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एक महिला के मासिक धर्म चक्र की अनियमितता या पीरियड्स का अनियमित होना दूसरा सबसे आम शारीरिक लक्षण है। कई महिलाओं के बीच फैंटम प्रैग्नेंसी या फॉल्स प्रेगनेंसी का अनुभव करते हुए बच्चे के मूवमेंट को महसूस किया है। कई महिलाएं बच्चे की किक महसूस करने की भी बात करती हैं, भले ही उनके गर्भ में कभी कोई बच्चा मौजूद था ही नहीं। अन्य लक्षण जिन्हें वास्तविक गर्भावस्था और फॉल्स प्रेगनेंसी के दौरान पहचानने में मुश्किल हो सकती है। इसमें यह लक्षण शामिल हो सकते हैं:
हालांकि ये लक्षण कुछ हफ्ते, नौ महीने या कई सालों तक रह सकते हैं। महिला के इन लक्षणों के कारण कभी-कभी डॉक्टर को भी आपके प्रेग्नेंट होने का शक हो जाता है। और वह इसकी पुष्टि करने के लिए अलग-अलग तरह की प्रेगनेंसी को कंफ़र्म करने की जांच करवाते हैं। ताकि उन्हें इस बात का पता चल पाए कि महिला सच में प्रेग्नेंट है या नहीं।
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कुछ लक्षणों के कारण कई बार डॉक्टर्स भी धोखा खा जाते हैं कि महिला प्रेग्नेंट है, इसलिए वे खुद इस बात को कंफर्म करने के लिए कई टेस्ट कराते हैं, जिससे उन्हें पता चल पाए कि महिला प्रेग्नेंट है या नहीं। जिसमें ब्लड टेस्ट कराना और गर्भावस्था का पता लगाने के लिए यूरीन टेस्ट कॉमन है।
इन दो विधियों का उपयोग आमतौर पर गर्भावस्था के निदान के लिए किया जाता है। गर्भावस्था होने के लिए पेट और श्रोणि क्षेत्र का अल्ट्रासाउंड टेस्ट होता है। फॉल्स प्रेगनेंसी के मामले में अल्ट्रासाउंड में न तो भ्रूण के दिल की धड़कन सुनाई देगी और न ही कोई भ्रूण दिखाई देगा। इस स्थिति में डॉक्टर फैंटम प्रेगनेंसी डिक्लेयर कर देते हैं। कई मामलों में महिला गर्भवती न भी हो, तो उसके यूट्रस में फैलाव होता है और गर्भाशय मुलायम हो जाता है। अन्य स्थितियां गर्भावस्था के लक्षणों का कारण हो सकती हैं, जैसे मोटापा या ओवरियन सिस्ट। इन स्थितियों के निदान के लिए टेस्ट कराना होगा। आपको बता दें, कि फॉल्स प्रेगनेंसी के मामले में यूरीन प्रेग्रेंसी टेस्ट हमेशा निगेटिव ही आता है, लेकिन अन्य कई लक्षणों को देखते हुए महिलाएं इस परिणाम को स्वीकार नहीं कर पातीं।
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झूठी या फैंटम प्रेगनेंसी का इलाज करने के दौरान दो कारकों पर विचार किया जाता है। यदि झूठी गर्भावस्था शारीरिक कारण से हुई है, तो पहले इसका इलाज किया जाता है। सिस्टिक ओवरीज के मामले में लाइफस्टाइल में बदलाव, मेडिटेशन करने की सलाह दी जाती है। लेकिन फॉल्स प्रेगनेंसी का कारण मनोवैज्ञानिक है, तो मनोविशेषज्ञ और डॉक्टर्स की मदद से इसका इलाज किया जाता है। जब महिला खुद को गर्भवती मानती है, तो वह उसकी परवरिश करने के लिए भी खुद को तैयार कर लेती है। लेकिन पता चलने पर कि वह गर्भवती नहीं है, तो वह टूट जाती है, तब उसे ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है।
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यह स्थिति उन महिलाओं में सबसे ज्यादा है, जो प्रजनन आयु वर्ग में हैं, विशेष रूप से 20 से 39 वर्ष की आयु के बीच। प्राचीन ग्रीक काल में इसका वर्णन किया गया है। इसका प्रचलन उन विकासशील देशों में ज्यादा है, जहां महिलाओं पर बच्चा पैदा करने का दबाव सबसे ज्यादा है। कुछ मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स का मानना है कि ऐसा गर्भवती होने के डर के कारण ऐसा महसूस होता है। पहले की कुछ रिपोर्टों में 25 में से 1 महिला के साथ यह स्थिति देखी जाती थी, लेकिन वर्तमान में रोजाना जन्म लेने वाले 22 हजार बच्चों की तुलना में ऐसे पांच से छह मामले होते हैं। बताया जाता है, कि 1531-1558 के दौरान इंग्लैंड की क्वीन मैरी भी दो बार इमेजनरी प्रेगनेंसी की शिकार हुईं थीं। इस समय उनका इलाज कर रहे डॉक्टर्स ने यूट्रस के ट्यूमर को प्रेगनेंसी समझने की गलती कर दी थी।
भारत में फैंटम या फॉल्स प्रेगनेंसी के मामले बहुत कम देखने को मिलते हैं। फॉल्स प्रेगनेंसी किसी भी अन्य गर्भावस्था की तरह दिखती है, लेकिन ऐसी स्थिति में अक्सर महिला प्रेग्नेंट होती ही नहीं है। यानि उसके पेट में भ्रूण नहीं होता। इसके लिए बेहतर है, कि आप अल्ट्रासाउंड टेस्ट के साथ प्रेगनेंसी कंफर्म करें, क्योंकि गर्भावस्था होने के लिए यह सबसे विश्वसनीय टेस्ट है।
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