Lung Diseases in Hindi वर्तमान में फेफड़ों से संबंधित बीमारियां, व्यक्तियों को सर्वाधिक प्रभावित करने वाली बीमारियाँ हैं, और व्यक्तियों की मौत का भी कारण बनती हैं। फेफड़े की बीमारीयां उन सभी विकारों को संदर्भित करती है, जो फेफड़ों की कार्यक्षमता को प्रभावित कर उन्हें नुकसान पहुंचती है। फेफड़ों की बीमारी किसी भी उम्र में उत्पन्न हो सकती हैं, लेकिन यह सर्वाधिक महिलाओं को अधिक परेशान करती हैं। यह बीमारी सामान्य से अधिक गंभीर हो सकती है और मृत्यु का भी कारण बन सकती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को फेफड़ों के रोग की पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है। यह लेख फेफड़ों के रोग के बारे में है, जिसमें आप फेफड़ों से संबंधित बीमारियां क्या हैं, कारण, लक्षण, प्रकार, जाँच, इलाज और रोकथाम उपाय के बारे में जानेगें।
विषय सूची
फेफड़ों की बीमारी क्या है – What is Lung disease in Hindi
फेफड़े की बीमारी (Lung disease), किसी व्यक्ति के फेफड़ों से सम्बंधित वह समस्या है, जो फेफड़ों को ठीक तरह से काम करने से रोकती है। फेफड़े संबंधी रोग अनेक कारणों से उत्पन्न हो सकते हैं जिसमें वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर एक प्रमुख कारक है। फेफड़ों की बीमारी के कारण उत्पन्न होने वाली सांस की समस्याएं, शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन प्रदान करने से रोक सकती हैं। फेफड़ों से सम्बंधित रोग निम्न हैं, जैसे कि:
- अस्थमा (Asthma)
- संक्रमण, जैसे कि इन्फ्लूएंजा (influenza) और निमोनिया (pneumonia)
- फेफड़ों का कैंसर (Lung cancer)
- क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD)
- क्रोनिक ब्रोंकाइटिस
- सिस्टिक फाइब्रोसिस
- सारकॉइडोसिस (Sarcoidosis)
- वातस्फीति (एम्फाइज़िमा)
- ब्रोन्किइक्टेसिस (Bronchiectasis), इत्यादि।
(और पढ़ें: फेफड़ों का कैंसर कारण, लक्षण, इलाज और रोकथाम)
फेफड़ों की बीमारी के प्रकार – Types of lung disease in Hindi
फेफड़ों की बीमारी मुख्य प्रकार निम्न हैं:
एयरवे डिजीज (Airway diseases) – इस प्रकार के रोग, ऑक्सीजन और अन्य गैसों को फेफड़ों से बाहर और अन्दर ले जाने वाली नलियों अर्थात वायुमार्ग को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार की फेफड़ों की बीमारी आमतौर पर वायुमार्ग की संकीर्णता या रुकावट का कारण बनती हैं। वायुमार्ग की बीमारियों (Airway diseases) में शामिल हैं:
- अस्थमा,
- क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD)
- सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic fibrosis)
- ब्रोन्किइक्टेसिस (bronchiectasis) इत्यादि।
लंग टिश्यू डिजीज (Lung tissue diseases) – इस प्रकार के रोग फेफड़े के ऊतकों की संरचना को प्रभावित करते हैं। ऊतक के घाव (Scarring) या ऊतकों की सूजन से फेफड़े पूरी तरह से फैलने में असमर्थ होते हैं। इससे फेफड़ों द्वारा ऑक्सीजन को लेना और कार्बन डाइऑक्साइड को छोड़ना मुश्किल होता है। जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित व्यक्ति गहरी सांस नहीं ले सकता है। फेफड़े के ऊतक संबंधी रोग के उदाहरण हैं:
- पल्मोनरी फाइब्रोसिस (Pulmonary fibrosis)
- सारकॉइडोसिस (sarcoidosis), इत्यादि।
फेफड़ों के परिसंचरण रोग (Lung circulation diseases) – फेफड़ों के परिसंचरण रोग (Lung circulation diseases), फेफड़ों की रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करती हैं। रक्त वाहिकाओं में थक्के का जमाव, घाव या सूजन इत्यादि की स्थिति इस प्रकार के रोगों का कारण बनती है। यह रोग फेफड़ों द्वारा ऑक्सीजन लेने और कार्बन डाइऑक्साइड को छोड़ने की क्षमता को प्रभावित करते हैं, साथ ही साथ यह दिल के कार्य को भी प्रभावित कर सकते हैं। फुफ्फुसीय उच्च रक्तचाप (Pulmonary hypertension) एक प्रमुख लंग सर्कुलेशन डिजीज है।
वायु कोष (एल्वियोली) सम्बन्धी रोग (Air Sacs (Alveoli) Diseases) – फेफड़ों के वायु कोष (एल्वियोली) को प्रभावित करने वाले फेफड़ों के रोगों में शामिल हैं:
- निमोनिया (Pneumonia)
- तपेदिक (Tuberculosis)
- वातस्फीति (Emphysema)
- पल्मोनरी एडिमा (Pulmonary edema)
- न्यूमोकोनियोसिस (Pneumoconiosis), इत्यादि।
(और पढ़ें: श्वसन संबंधी रोग के कारण, लक्षण, जांच, इलाज और बचाव)
कुछ महत्वपूर्ण फेफड़ों की बीमारी – Some important Lung disease in Hindi
फेफड़े के कुछ महत्वपूर्ण रोग इस प्रकार हैं:
दमा – Asthma in Hindi
अस्थमा एक क्रोनिक बीमारी (chronic disease) है, जो फेफड़ों के वायुमार्ग अर्थात ब्रोन्कियल ट्यूब (bronchial tubes) को प्रभावित करती है। ब्रोन्कियल नलिकाएं फेफड़ों से हवा को अंदर और बाहर ले जाती हैं। अस्थमा वाले लोगों में, इन वायुमार्गों की दीवारों में सूजन आ जाती है और बहुत ही संवेदनशील (oversensitive) हो जाती हैं। इसका कारण एलर्जिक पदार्थ (जैसे पराग और धूल के कण) और श्वसन संक्रमण हो सकता है। इस स्थिति में वायुमार्ग संकरे हो जाते हैं और सांस लेने में परेशानी का कारण बनते हैं। अस्थमा के लक्षणों में घरघराहट, खांसी और सीने में जकड़न को शामिल किया जाता है। महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अस्थमा होने की अधिक संभावना होती है।
क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज – Chronic obstructive pulmonary disease in Hindi
क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) मुख्य रूप से दो स्थितियां क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव ब्रोंकाइटिस (chronic obstructive bronchitis) और वातस्फीति (emphysema) को संदर्भित करती है। ये स्थितियां अक्सर एक साथ उत्पन्न होती हैं। दोनों ही रोग फेफड़ों के भीतर और बाहर वायुप्रवाह को सीमित कर, सांस लेना मुश्किल बनाते हैं। सीओपीडी (COPD) आमतौर पर समय के साथ खराब होता जाता है। सीओपीडी की स्थिति पीड़ित व्यक्तियों में ब्रोन्कियल नलियों (bronchial tubes) की सूजन का कारण बनती है। तथा वातस्फीति (emphysema) में, फेफड़े के ऊतक कमजोर हो जाते हैं, और वायुकोष (एल्वियोली) (alveoli) की दीवारें टूट जाती हैं। सिगरेट का धुंआ महिलाओं में सीओपीडी की स्थिति का एक मुख्य कारण है। सिगरेट का धुंआ पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए अधिक हानि पहुँचाता है।
फेफड़ों का कैंसर – Lung cancer in Hindi
फेफड़े का कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसमें असामान्य (घातक) कोशिकाएँ फेफड़े के अन्दर अनियमित रूप से कई गुना बढ़ जाती हैं। ये कैंसर कोशिकाएं आस-पास के ऊतकों पर आक्रमण कर सकती हैं, और शरीर के अन्य भागों में कैंसर को फैला सकती हैं। तंबाकू का सेवन फेफड़ों के कैंसर का प्रमुख कारण है।
दुर्लभ फेफड़े की बीमारियाँ – Rare lung disease in Hindi
रेयर लंग डिजीज में निम्न बीमारियों को शामिल किया जाता है:
- पल्मोनरी फाइब्रोसिस (Pulmonary fibrosis)
- क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD)
- अल्फा-1 एंटीट्रिप्सिन की कमी (Alpha-1 Antitrypsin Deficiency)
- पल्मोनरी एल्वोलर प्रोटीनोसिस सिंड्रोम (Pulmonary Alveolar Proteinosis (PAP) Syndrome)
- हर्मेंस्की-पुडलक सिंड्रोम (Hermansky-Pudlak Syndrome) (HPS)
- Birt-Hogg-Dube सिंड्रोम (BHD)
- पल्मोनरी लैंगरहैंस सेल हिस्टियोसाइटोसिस (Pulmonary Langerhans Cell Histiocytosis) (PLCH)
- पल्मोनरी एल्वोलर माइक्रोलिथियासिस (Pulmonary Alveolar Microlithiasis) (PAM), इत्यादि।
इंटरस्टीशियल लंग डिजीज – interstitial lung disease in Hindi
इंटरस्टीशियल लंग डिजीज (ILD) मुख्य रूप से फेफड़ों के दाग (scarring) या फाइब्रोसिस (fibrosis) का कारण बनने वाले विकारों का एक समूह है, जिसके अंतर्गत निम्न बीमारियों को शामिल किया जाता है:
- एस्बेस्टॉसिस (asbestosis) –एस्बेस्टॉसिस (asbestosis) की बीमारी, फाइबर में साँस लेने के कारण फेफड़ों में सूजन और निशान आने की स्थिति है।
- ब्रोन्कियोलाइटिस ओब्लिटरैनस (bronchiolitis obliterans) – यह एक ऐसी स्थिति है, जो फेफड़ों के सबसे छोटे वायुमार्गों, जिसे ब्रोंकिओल्स (bronchioles) कहा जाता है, में सूजन-संबंधी रुकावट का कारण बनती है।
- कोल वर्कर्स न्यूमोकोनिओसिस (coal worker’s pneumoconiosis) – यह कोयले की धूल के संपर्क में आने के कारण होने वाली फेफड़ों की एक बीमारी है, जिसे ब्लैक लंग डिजीज (black lung disease) भी कहा जाता है।
- क्रोनिक सिलिकोसिस (chronic silicosis) – खनिज सिलिका से भरे हुए वातावरण में सांस लेने के कारण होने वाली फेफड़े की बीमारी को क्रोनिक सिलिकोसिस कहा जाता है।
- अतिसंवेदनशीलता न्यूमोनिटिस (hypersensitivity pneumonitis) – हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस, एल्वियोली (alveoli) की सूजन की स्थिति है, जो एलर्जिक पदार्थों या अन्य उत्तेजक पदार्थों में सांस लेने से होती है।
- आइडियोपैथिक पलमोनेरी फ़ाइब्रोसिस (Idiopathic Pulmonary Fibrosis) – यह अज्ञात कारणों से उत्पन्न होने वाला एक रोग है, जो पूरे फेफड़े में स्कार टिश्यू (scar tissue) विकसित होने का कारण बनता है।
- सारकॉइडोसिस (sarcoidosis) – सारकॉइडोसिस बीमारी, फेफड़ों और लिम्फ ग्रंथियों जैसे अंगों में सूजन पैदा करने वाली कोशिकाओं के छोटे-छोटे समूहों के उत्पन्न होने का कारण बनती है।
रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करने वाले फेफड़ों के रोग – Lung Diseases Affecting Blood Vessels in Hindi
रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करने वाली कम सामान्य फेफड़ों की समस्याओं में निम्न शामिल हैं:
- पल्मोनरी एम्बोली (Pulmonary emboli) – यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें फेफड़ों में एक या एक से अधिक धमनियां रक्त के थक्के द्वारा अवरुद्ध हो जाती हैं। जोखिम को बढ़ाने वाले कुछ कारकों में गर्भावस्था, और जन्म नियंत्रण की गोलियाँ या रजोनिवृत्ति हार्मोन थेरेपी (menopausal hormone therapy) इत्यादि को शामिल किया जा सकता है। पल्मोनरी एम्बोली डिजीज, फेफड़ों में रक्त प्रवाह की स्थिति में हस्तक्षेप कर सकती है और रक्त में ऑक्सीजन के प्रवाह को कम कर सकती है।
- फुफ्फुसीय उच्च रक्तचाप (Pulmonary hypertension) – यह एक प्रकार के उच्च रक्तचाप की स्थिति है, जो फेफड़ों और हृदय की धमनियों को प्रभावित करती है।
फेफड़ों से सम्बंधित अन्य बीमारियाँ – Other Lung Diseases in Hindi
- पल्मोनरी फाइब्रोसिस (pulmonary fibrosis) – पल्मोनरी फाइब्रोसिस एक फेफड़े की बीमारी है, जो तब उत्पन्न होती है, जब फेफड़े के ऊतक क्षतिग्रस्त और जख्मी हो जाते हैं।
- एलएएम (लिम्फैंगियोलेयोमायोमैटोसिस) (LAM (lymphangioleiomyomatosis)) – यह काफी दुर्लभ फेफड़ों की बीमारी है, जो ज्यादातर महिलाओं को 30 से 40 की उम्र में प्रभावित करती है। इस स्थिति में फेफड़े सहित कुछ अंगों की मांसपेशियां (कोशिकाएँ) नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं।
- इन्फ्लुएंजा (फ्लू) और निमोनिया (Influenza and pneumonia) – फ्लू एक प्रकार का श्वसन संक्रमण (respiratory infection) है, जो वायरस के कारण होता है और फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है। जबकि निमोनिया फेफड़ों में गंभीर सूजन की स्थिति है, जिसका कारण बैक्टीरिया, वायरस और कवक हो सकते हैं। इस स्थिति में फेफड़ों में द्रव (Fluid) का निर्माण होता है, जिससे ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आती है।
फेफड़े की बीमारी का कारण – Lung disease causes in Hindi
वायु प्रदूषण और एलर्जी फेफड़ों की बीमारी का मुख्य कारण बनते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य कारक भी फेफड़े के रोग का कारण बन सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
धूम्रपान – सिगरेट, सिगार से निकलने वाला धुआं फेफड़ों की बीमारी का एक मुख्य कारण है। यदि कोई व्यक्ति पहले से ही धूम्रपान करता है या फिर धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के साथ रहता या काम करता है, तो वह फेफड़े के रोग से ग्रस्त हो सकता है। अतः व्यक्तियों को सेकेंड हैंड स्मोकिंग से भी फेफड़ों की बीमारी होना का जोखिम होता है।
रेडॉन – यह रंगहीन, गंधहीन गैस कई घरों में मौजूद है और फेफड़ों के कैंसर का एक सामान्य कारण बनती है।
अभ्रक (Asbestos) – एस्बेस्टस के छोटे तंतु फेफड़े की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाता है, जिससे फेफड़े में जलन और फेफड़ों का कैंसर होता है।
वायु प्रदुषण – वायु प्रदुषण का कारण बनने वाले प्रमुख पदार्थ अस्थमा, सीओपीडी, फेफड़ों के कैंसर और अन्य फेफड़ों के रोगों का कारण बन सकते हैं।
(और पढ़ें: कोरोनरी आर्टरी डिजीज (कोरोनरी धमनी रोग) के कारण, लक्षण, उपचार….)
फेफड़ों की बीमारी के लक्षण – Lung diseases symptoms in Hindi
फेफड़ों की बीमारी का एक प्रारंभिक संकेत ऊर्जा के सामान्य स्तर में कमी है। संकेत और लक्षण फेफड़ों की बीमारी के प्रकार के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। सामान्य संकेतों में निम्न को शामिल किया जा सकता है, जैसे:
- साँस लेने में कठिनाई
- सीने में दर्द
- ठण्ड लगना और बुखार आना (संक्रमण की स्थिति में)
- छोटी श्वास (Shortness of breath) या सांस फूलना
- घरघराहट या घुटन महसूस होना
- व्यायाम करने की क्षमता में कमी
- लगातार खांसी आना
- असामान्य रूप से वजन में कमी आना
- सीने में बलगम का जमाव
- साइनस इन्फेक्शन (Sinusitis (sinus infection))
- तेजी से साँस लेने पर सीने में दर्द
- सीने में जकड़न, इत्यादि।
फेफड़ों की बीमारियों की जाँच – Lung disease test in Hindi
फेफड़ों की बीमारी का निदान और जाँच करने के लिए डॉक्टर मरीज से लक्षणों और चिकित्सकीय इतिहास के बारे में जानकारी ले सकता है और कुछ महत्वपूर्ण परीक्षणों की सिफारिश भी कर सकता है। फेफड़ों की बीमारी की जाँच करने के लिए उपयोग किये जाने वाले परीक्षणों में निम्न को शामिल किया जा सकता है, जैसे:
- स्पिरोमेट्री (Spirometry) – इस परीक्षण के तहत स्पाइरोमीटर (spirometer) नामक एक मेडिकल मशीन का उपयोग किया जाता है। यह परीक्षण यह मापने में मदद करता है कि मरीज सांस लेने में कितनी हवा को अन्दर और बाहर छोड़ता है।
- ब्रोंकोप्रोवोकेशन (Bronchoprovocation) – फेफड़ों के कार्य का परीक्षण करने के लिए ब्रोंकोप्रोवोकेशन का उपयोग किया जाता है। इस परीक्षण के तहत स्पाइरोमीटर का उपयोग कर फेफड़ों पर अधिक दवाब डाला जाता है।
- ब्रोंकोस्कोपी (Bronchoscopy) – इसका उपयोग वायु मार्ग को देखने के लिए किया जाता है।
- एंडोब्रोंकियल अल्ट्रासाउंड (Endobronchial Ultrasound (EBUS)) – एंडोब्रोनचियल अल्ट्रासाउंड, विभिन्न प्रकार के फेफड़ों की बीमारी जैस- सूजन, संक्रमण या कैंसर इत्यादि का निदान करने के लिए प्रयोग की जाने वाली प्रक्रिया है।
- एक्सहेल्ड नाइट्रिक ऑक्साइड टेस्ट (Exhaled Nitric Oxide Test) – एक एक्सहेल नाइट्रिक ऑक्साइड लेवल टेस्ट, अस्थमा के निदान और प्रबंधन में मददगार होता है।
- अन्य परीक्षण जैसे- सीटी स्कैन, छाती का एक्स-रे (Chest x-ray), इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (electrocardiogram), लंग फंक्शन टेस्ट (Lung Function Tests), इत्यादि भी फेफड़ों के रोग का निदान करने में अपनी भूमिका निभाते हैं।
- पल्स ओक्सिमेट्री (Pulse Oximetry) – पल्स ऑक्सीमीटर, एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है, जो लाल रक्त कोशिकाओं द्वारा ऑक्सीजन ले जाने (oxygen carried) की क्षमता को मापा जाता है।
फेफड़े रोग की दवा – Lung disease medicine in Hindi
फेफड़ों की बीमारियों के इलाज के लिए निम्न दवाओं की सिफारिश की जा सकती है:
- इनहेल्ड कॉर्टिकोस्टेरॉइड (Inhaled corticosteroids) – यह दवाएं अस्थमा नियंत्रण और वायुमार्ग की सूजन को कम करने के लिए उपयोगी हैं।
- बीटा 2-एगोनिस्ट (beta2-agonists)
- ल्यूकोट्रिएन संशोधक (Leukotriene modifiers) – यह दवाएं वायुमार्ग में सूजन का कारण बनने वाली प्रतिक्रियों को अवरुद्ध करने में मदद करती हैं।
- थियोफिलाइन (Theophylline) – यह दवाएं वायुमार्ग को खोलने के लिए उपयोग में लाई जाती हैं।
- ब्रोंकोडाईलेटर्स (Bronchodilators) – यह श्वसन वायुमार्ग को खोलकर, फेफड़ों में वायु प्रवाह को बढ़ाने में मदद करता है।
- एंटीबायोटिक्स (Antibiotics) – ये दवाएं फेफड़ों में संक्रमण की स्थिति का इलाज करने में मददगार है।
फेफड़ों की बीमारी का इलाज – Lung disease treatment in Hindi
फेफड़ों की बीमारी के विभिन्न कारणों और प्रकारों के आधार पर भिन्न-भिन्न उपचार प्रक्रियाओं को अपनाया जा सकता है, जिनमें शामिल हैं:
ऑक्सीजन थेरेपी (Oxygen therapy) – फेफड़ों की बीमारी होने पर ऑक्सीजन थेरेपी एक महत्वपूर्ण उपचार है, जिसका उपयोग रोगी को अतिरिक्त ऑक्सीजन प्रदान करने के लिए किया जाता है।
पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन (Pulmonary rehabilitation) – पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन को रेस्पिरेटरी रिहैबिलिटेशन (respiratory rehabilitation) के रूप में भी जाना जाता है, यह क्रोनिक श्वसन रोग (chronic respiratory disease) का शारीरिक और मानसिक रूप से सामना करने में मदद करने की एक प्रमुख उपचार प्रक्रिया है। इसमें व्यायाम, बीमारी की रोकथाम के लिए प्रशिक्षण, आहार योजना और परामर्श को शामिल किया जाता है।
निमोनिया शॉट (Pneumonia shots) – न्यूमोकोकल (pneumococcal) वैक्सीन कुछ प्रकार के निमोनिया के खतरे को कम करने में मदद कर सकती है।
फेफड़ों के रोग के लिए सर्जरी – Surgery for Lung disease in Hindi
कभी-कभी गंभीर फेफड़ों की बीमारी या सीओपीडी का इलाज करने के लिए डॉक्टर की मदद ले सकता है। फेफड़े के रोग का इलाज करने के लिए विभिन्न प्रकार की सर्जिकल प्रक्रियाएं उपयोग में लाई जा सकती हैं, जिनमें शामिल हैं:
- लोबेक्टोमी (Lobectomy) – यह रोगग्रस्त फेफड़ों के एक हिस्से को हटाने के लिए की जाने वाली सर्जिकल प्रक्रिया है, डॉक्टर द्वारा फेफड़े का कैंसर, वातस्फीति और तपेदिक जैसी स्थिति के इलाज के दौरान लोबेक्टोमी की सिफारिश की जा सकती है।
- लंग वॉल्यूम रिडक्शन सर्जरी (Lung Volume Reduction Surgery) – यह गंभीर वातस्फीति (emphysema) की स्थिति में फेफड़ों के क्षतिग्रस्त ऊतकों को हटाने की एक शल्य प्रक्रिया है।
- न्यूनतम इनवेसिव थोरेसिक सर्जरी (Minimally Invasive Thoracic Surgery) – मिनिमली इनवेसिव थोरैसिक सर्जरी के तहत छोटे चीरों के माध्यम से छाती (सीने) की सर्जरी की जाती है। इसमें पसलियों को फैलने की आवश्यकता नहीं होती है। इस सर्जिकल प्रक्रिया में सर्जन छोटे चीरों के माध्यम से फेफड़े के क्षतिग्रस्त ऊतकों को हटा देता है।
- फेफड़े का प्रत्यारोपण (Lung Transplant) – कुछ गंभीर फेफड़े की बीमारी की स्थिति में उपचार प्रक्रिया में फेफड़े का प्रत्यारोपण किया जा सकता है। गंभीर वातस्फीति (severe emphysema) वाले रोगियों में फेफड़े के प्रत्यारोपण अधिक आम है।
फेफड़ों की बीमारी के लिए रोकथाम उपाय – Lung diseases prevention in Hindi
फेफड़ों की बीमारियों के जोखिम को कम करने के लिए व्यक्ति निम्न उपाय अपना सकते हैं, जैसे:
- धूम्रपान नहीं करना।
- सेकंड हैंड स्मोकिंग से बचना।
- सिगरेट, धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों से दूर रहना।
- एस्बेस्टस (अभ्रक) के संपर्क में आने से फेफड़े के कैंसर का ख़तरा बढ़ जाता है, और अन्य गंभीर बीमारियाँ भी हो सकती है। अतः एस्बेस्टस वाले वातावरण में एयर प्यूरीफायर मास्क का उपयोग करें।
- जानवरों की रूसी, परागकण, धूल, रासायनिक धुएं तथा घर पर उपयोग किए जाने वाले उत्पाद जैसे- पेंट और सॉल्वैंट्स इत्यादि में साँस लेने वाले व्यक्तियों को फेफड़ों की बीमारी का ख़तरा होता है। अतः व्यक्तियों को इन प्रदूषकों से अपनी रक्षा करनी चाहिए।
- स्वस्थ आहार का सेवन करना। क्योंकि स्वस्थ फल या सब्जियों का सेवन, फेफड़ों की बीमारी के खतरे को कम करने में मदद कर सकता है।
- नियमित रूप से स्पिरोमेट्री टेस्ट (spirometry test) करायें। जो व्यक्ति 45 साल से अधिक उम्र के हैं और धूम्रपान करते हैं या फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों के संपर्क में रहते हैं, तो उन व्यक्तियों को फेफड़ों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए समय-समय पर स्पिरोमेट्री टेस्ट (spirometry test) कराना आवश्यक होता है।
- फ्लू और निमोनिया जैसी स्थितियों से बचने के लिए डॉक्टर से टीकाकरण की सलाह लें।
- दूर नहीं होने वाली खांसी, साँस लेने में परेशानी, सीने में दर्द या अन्य लक्षणों के प्रगट होने की स्थिति में डॉक्टर की सिफारिश लें।
- सेकंड हैंड स्मोकिंग (Second hand smoking) से विशेष रूप से शिशुओं और छोटे बच्चों को दूर रखें।
(और पढ़ें: फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए योग)
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