Female Reproductive System in Hindi महिला प्रजनन (Female Fertility) का अर्थ महिलाओं में गर्भधारण करने की क्षमता और नौ महिनों तक गर्भ में भ्रूण को संभालने से है, जिसे पूर्णकालिक गर्भावस्था (full-term pregnancy) कहा जाता है। गर्भधारण करने के लिए महिला के शरीर में दो बुनियादी चीजों का सही होना बहुत जरूरी माना जाता है। पहला यह कि महिला के अंडाशय में अच्छी गुणवत्ता के अंडे बनाने की क्षमता होना चाहिए ताकि पुरुष का शुक्राणु (sperm) उसमें प्रवेश कर सके और उन्हें निेषेचित कर सके। दूसरा यह कि महिला का गर्भाशय निषेचन क्रिया से लेकर डिलीवरी तक प्रेगनेंसी को अच्छे तरीके से संभाल सके।
आपको बता दें कि महिलाओं में प्रजनन क्षमता को महिला के प्रजनन प्रणाली (reproductive system) और अंतःस्रावी तंत्र के द्वारा रेगुलेट किया जाता है। महिलाओं की प्रजनन प्रणाली आंतरिक अंग और वाह्य अंग दो भागों में विभाजित होती है।
विषय सूची
1. महिला प्रजनन प्रणाली के वाह्य अंग – External organs in Female Reproductive System in Hindi
2. महिला प्रजनन प्रणाली के आंतरिक अंग – Internal organs in Female Reproductive System in Hindi
3. प्रेगनेंसी में ऐसे होता है महिलाओं के अंगों में बदलाव – How do organs shift during pregnancy in Hindi
4. लड़कियां की यौवनावस्था की उम्र – When do girls hit puberty in Hindi
5. महिलाओं में प्रजनन क्षमता के लक्षण – Fertility signs in females in Hindi
6. महिला प्रजनन दर और उम्र का संबंध – Age and female fertility rates in Hindi
महिला प्रजनन प्रणाली के वाह्य अंग – External organs in Female Reproductive System in Hindi
महिलाओं के जननांगों के बाहरी भाग को योनि (vulva) कहा जाता है। इसमें निम्न भाग होते हैं।
मोन्स प्यूबिस या मोन्स वेनस (Mons pubis or mons Venus)
यह फैटी ऊतकों का बना एक गोलाकार ढेर होता होता है जो प्यूबिक की हड्डी, प्यूबिक के बाल और त्वचा को ढका रहता है। इसका कार्य इन हिस्सों पर लगने वाले आघात को रोककर अंदरूनी अंगों की रक्षा करना होता है।
लेबिया मेजोरा (Labia majora)
इसमें दो त्वचीय मोड़ (cutaneous folds) होते हैं जो योनि को सुरक्षा प्रदान करने में मदद करते हैं। इनका कार्य महिलाओं के प्रजनन प्रणाली में बैक्टीरिया के प्रवेश को रोकना होता है।
लेबिया माइनोरा (Labia minora)
यह दो तरफ से लटकी हुई त्वचा (flaps of skin) से मिलकर बनी होती है जिसका कार्य योनि द्वार की रक्षा करना और आंतरिक अंगों को अधिक तापमान से नीचे रखना होता है।
वोल्वल वेस्टिबुल (Vulval vestibule)
वाह्य अंगों के इस हिस्से में मूत्रमार्ग छिद्र(urethral orifice), योनि द्वार, हाइमन, बार्थोलिन ग्रंथियां और स्किन की ग्रंथियां(Skene’s glands) मौजूद होती हैं।
क्लिटोरिस (Clitoris)
यह एक बेलनाकार, बटन की तरह और उत्तेजी अंग है जो कई संवेदी तंत्रिकाओं से मिलकर बना होता है और यौन उत्तेजना ((erection) )के प्रति यह बहुत संवेदनशील होता है अर्थात् सेक्स के लिए अंगों को उत्तेजित करने का कार्य करता है।
पेरिनियम (गुदा और अंडकोष के बीच का भाग) वह क्षेत्र है जहां श्रोणि तल की मांसपेशियां (pelvic floor muscles) स्थित होती हैं। यह मांसपेशियों से बनी होती हैं और योनि एवं गुदा (anus) दोनों को घेरे रहती हैं और दोनों को सुरक्षा प्रदान करती हैं। इसके अलावा स्तन या स्तन ग्रंथियों को वाह्य मादा प्रजनन अंग माना जाता है। इनका कार्य दूध स्रावित करना और जन्म के बाद बच्चे को दूध पिलाना होता है।
महिला प्रजनन प्रणाली के आंतरिक अंग – Internal organs in Female Reproductive System in Hindi
महिलाओं के आंतरिक प्रजनन अंग पेट की गुहा (abdominal cavity) में स्थित होते हैं और यही अंग बच्चे को जन्म देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन अंगों के बारे में जानने के लिए नीचे पढ़िए।
योनि (Vagina)
यह मादा प्रजनन प्रणाली का मांसल और नलीदार(tubular) हिस्सा होता है जिसका कार्य गर्भाशय को इसके बाहरी हिस्से से जोड़ना होता है। यह सेक्स के दौरान योनि में लिंग को प्रवेश कराने का रास्ता प्रदान करता है और बच्चे को जन्म देने के लिए बर्थ कैनाल का कार्य करता है।
और पढ़े – योनि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी
सर्विक्स यूटेरी (Cervix uteri)
सर्विक्स गर्भाशय का निचला हिस्सा होता है और इसे योनि से जोड़ता है।
गर्भाशय या कोख (Uterus or womb)
यह एक चिकनी मांसपेशी है जहां भ्रूण का विकास होता है। इसकी आंतरिक परत या इंडोमेट्रियम गर्भ में भ्रूण आने के बाद हर महीने मोटा होता जाता है।
फैलोपियन ट्यूब (Fallopian tubes)
इस ट्यूब की लंबाई लगभग 10 मिमी. होती है जो अंडाशय को गर्भ से जोड़ता है। इसी ट्यूब में अंडे स्पर्म से मिलकर निषेचन का कार्य करते हैं।
अंडाशय (Ovaries)
यह महिलाओं की जननग्रंथि होती है जो गर्भाशय के बगल की दीवार में जोड़े के रूप में पायी जाती है। इसका कार्य महिला के अंडे की कोशिकाओं का उत्पादन करना होता है। इसके अलावा यह मेल सेक्स हार्मोन उत्पन्न करने के लिए भी जिम्मेदार होती हैं।
प्रेगनेंसी में ऐसे होता है महिलाओं के अंगों में बदलाव – How do organs shift during pregnancy in Hindi
महिलाओं के जिन अंगों के बारे में ऊपर बताया गया है उनमें प्रेगनेंसी के लगभग चालीसवें हफ्ते में परिवर्तन होना शुरू हो जाता है। जाहिर है ये परिवर्तन गर्भ के अंदर भ्रूण के बढ़ने के कारण होता है जो मां के शरीर के अंदर अधिकांश हिस्सों को घेर लेता है। भ्रूण के विकास के कारण गर्भवती महिला के आंतरिक अंगों पर बहुत अधिक दबाव पड़ता है जिससे कारण महिला को पीड़ा, दर्द और सामान्य समस्याएं जैसे पेट और स्नायु में दर्द होने लगता है। प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को कई मानसिक और शारीरिक दबाव झेलना पड़ता है।
- प्रेगनेंसी के तीसरी तिमाही के बाद महिलाओं के आंतरिक अंगों पर ये प्रभाव पड़ते हैं।
- फेफड़े सिकुड़ जाते हैं और ऊपर की ओर बढ़ने लगते हैं।
- आंत अपनी जगह से बाहर की ओर बढ़ने लगती है।
- पेट फेफड़ों की ओर अधिक दबाव देता है।
- गर्भाशय ब्लैडर अर अधिक दबाव डालता है जिससे यह काफी प्रभावित होता है।
जन्म के समय सभी अंगों पर अधिक दबाव पड़ता है। हृदय को पंप करने में अधिक मेहनत लगती है और बच्चा ब्लैडर पर दबाव डालता है जिसके कारण महिलाओं को बहुत असुविधा होती है।
(और पढ़े – प्रेगनेंट हैं तो नॉर्मल डिलीवरी के इन लक्षणों को जानें)
लड़कियां की यौवनावस्था की उम्र – When do girls hit puberty in Hindi
बचपन में प्रजनन प्रणाली में सेक्स हार्मोन स्रावित नहीं होता है जिसके कारण लड़कियों का शरीर सामान्य दिखाई देता है लेकिन 11 और 12 साल की उम्र में लड़कियों का अंडाशय पिट्यूयरी ग्रंथि द्वारा एफएसएच और एल एच हार्मोन्स के स्राव के कारण काम करना शुरू कर देता है और मादा प्रजनन अंगों का विकास होने लगता है और अंडाशय एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टीरोन को अलग करना शुरू कर देता है और इसके कारण लड़कियों के अंगों में तेजी से विकास होने लगता है। जैसे
- उनका स्तन बढ़ता है।
- प्रेगनेंसी के लिए पेल्विस का विकास होने लगता है।
- प्यूबिक पर बाल आने शुरू हो जाते हैं।
- लड़कियों को मासिक धर्म शुरू हो जाता है
- आवाज में बदलाव आ जाता है।
मासिक धर्म चक्र के कारण ही आमतौर पर महिला गर्भवती होती है। मासिक धर्म चक्र लगभग 28 दिनों का होता है और इसी समय प्रजनन के लिए अंडों का उत्सर्जन होता है और महिला गर्भवती होती है।
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महिलाओं में प्रजनन क्षमता के लक्षण – Fertility signs in females in Hindi
यह पता करने का कोई तरीका नहीं है कि कोई महिला बच्चे को जन्म दे सकती है या नहीं। लेकिन महिला के मासिक धर्म और शारीरिक संकेत यह बताने में सहायता जरूर करते हैं कि गर्भधारण के उचित समय क्या है।
ग्रीवा श्लेष्म (cervical mucus) महिलाओं की प्रजनन स्थिति के बारे में जानने का बेहतर तरीका है। यह एक तरल पदार्थ है जो सर्विक्स द्वारा स्रावित होता है और महिला के मासिक धर्म चक्र के अनुसार बदलता है। अंडोत्सर्ग के दौरान यह शुक्राणुओं को मार्ग प्रदान करने के लिए पारदर्शी और चिकना हो जाता है। इसके अलावा महिलाएं अपने बेसल बॉडी टेम्परेचर (BBT) पर ध्यान रखकर भी जनन क्षमता के बारे में पता कर सकती हैं। मासिक धर्म के पहले हिस्से में बीबीटी कम होता है लेकिन अंडोत्सर्ग (ovulation) के बाद यह बढ़ता है और तब तक इसी स्थिति में रहता है जबतक कि पीरियड शुरू न हो जाए। इसके अलावा अंडोत्सर्ग के दौरान कुछ महिलाओं को दर्द होता है क्योंकि उनका शरीर अंडे का स्राव कर रहा होता है। यह भी महिलाओं की प्रजनन क्षमता की पहचान है।
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महिला प्रजनन दर और उम्र का संबंध – Age and female fertility rate in Hindi
बचपन में लड़कियों के शरीर में सीमित मात्रा में अंडे होते हैं। इसका मतलब यह है कि लड़कियों के शरीर में पहले से ही अंडे मौजूद होते हैं। लेकिन महिला की उम्र बढ़ने के साथ ही उसके शरीर में अंडे की कोशिकाओं की मात्रा और गुणवत्ता घटती जाती है। इसका अर्थ यह है कि जो महिला जितनी अधिक उम्र में प्रेगनेंट होना चाहती है उसे प्रेगनेंट होने के लिए उतनी ही कोशिश करनी पड़ती है।
अधिक उम्र में प्रेगनेंट होने की संभावना कम होने लगती है और साथ में गर्भपात का भी खतरा बना रहता है। 32 वर्ष की उम्र से प्रेगनेंट होने की संभावना घटने लगती है और 35 वर्ष की उम्र तक यह संभावना बहुत कम हो जाती है। 30 वर्ष की उम्र में प्रत्येक महीने प्रेगनेंट होने की संभावना 20 प्रतिशत और चालीस साल की उम्र में 5 प्रतिशत हो जाती है। हम यह कह सकते हैं कि 40 वर्ष की उम्र में महिला की प्रजनन क्षमता आधी हो जाती है। इस स्थिति में बच्चे को जन्म देने में समस्याएं आती हैं।
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