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फ्रैक्चर (हड्डी टूटना) क्या होता है, लक्षण, कारण, प्रकार, जांच और इलाज – Bones Fracture Causes, Symptoms And Treatment In Hindi

Fracture Detail In Hindi फ्रैक्चर का मतलब होता है एक प्रकार की टूटी हुई हड्डी। टूटी हुई हड्डी पतली दरार जैसी भी हो सकती है या पूरी तरह से चकनाचूर हो चुकी हड्डी जैसी भी हो सकती है। हड्डी में फ्रैक्चर कई तरह से हो सकते है यह फ्रैक्चर कई जगह या कई टुकड़ों में हो सकता है या क्रॉसवाइज़ भी हो सकता है। किसी हड्डी में फ्रैक्चर तब होता है जब जरुरत से ज्यादा वजन वाली चीज हड्डी पर गिर जाये या हड्डी पर किसी तरह का दबाव हो और हड्डी अपनी क्षमता से ज्यादा वह दबाव सहन ना कर पाए। आज इस लेख में हम जानेंगे की फ्रैक्चर क्या होता है और इसके लक्षण कारण प्रकार जांच इलाज और बचाव क्या है।

हड्डी में फ्रैक्चर होने का कारण चिकित्सा स्थितियां भी हो सकती है जिसमे हड्डीयां कमजोर हो जाती है जैसे ऑस्टियोपोरोसिस, कुछ कैंसर, या ऑस्टोजेनेसिस अपूर्णता (Osteogenesis Imperfecta) (जिसे ब्रिटल बोन डिजीज के रूप में भी जाना जाता है)। किसी चिकित्सा स्थितियों के कारण होने वाले फ्रैक्चर को पैथोलॉजिकल फ्रैक्चर (Pathological Fracture) कहा जाता है। यदि आपको ऐसा लगता है की आपको फ्रैक्चर है तो तुरन्त अपने डॉक्टर से सलाह लें।

  1. फ्रैक्चर क्या होता है – What Is Fracture In Hindi
  2. हड्डी टूटने (फ्रै‌क्चर) के प्रकार – Types Of Bone Fracture In Hindi
  3. हड्डी टूटने के लक्षण – Fracture Symptoms In Hindi
  4. फ्रैक्चर के कारण – Fracture Causes In Hindi
  5. फ्रैक्चर की जांच – Fracture Diagnosis In Hindi
  6. फ्रैक्चर का इलाज – Fracture Treatment In Hindi
  7. फ्रैक्चर से होने वाली जटिलताएं – Fracture Complications In Hindi
  8. हड्डी टूटने से बचाव के उपाय – Fracture Prevention In Hindi

फ्रैक्चर (हड्डी टूटना) क्या होता है – What Is Fracture In Hindi

आमतौर पर हड्डी का टूटना फ्रैक्चर माना जाता है परन्तु यह जरुरी नहीं है की हड्डी हमेशा टूटने पर ही फ्रैक्चर हो, हड्डी में हल्का सा क्रैक आने पर भी डॉक्टरों द्वारा उसे फ्रैक्चर माना जाता है। शरीर के किसी भी हिस्से की हड्डी में फ्रैक्चर हो सकता है। हड्डी में फ्रैक्चर होने के भी कई तरीके है, जैसे वह हड्डी का टूटना जिससे आसपास की त्वचा और टिश्यू को कोई नुकसान नहीं पहुँचता है वह फ्रैक्चर क्लोज्ड फ्रैक्चर (Closed Fracture) कहलाता है। और जिस फ्रैक्चर से त्वचा और आसपास की टिश्यू को भी गंभीर नुकसान पहुँचता है वह कंपाउंड फ्रैक्चर (Compound Fracture) या ओपन फ्रैक्चर (Open Fracture) कहलाता है। कंपाउंड फ्रैक्चर सिंपल फ्रैक्चर से ज्यादा गंभीर और खतरनाक होते है।

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हड्डी टूटने (फ्रै‌क्चर) के प्रकार – Types Of Bone Fracture In Hindi

हड्डियों में फ्रैक्चर विभिन्न प्रकार के होते है, जैसे-

अलगाव फ्रैक्चर (Avulsion Fracture) – इस तरह के फ्रैक्चर में मांसपेशियों और लिगामेंट (Ligament) में खिंचाव पैदा होता है जिससे हड्डी फ्रैक्चर हो जाती है।

कम्यूटेड फ्रैक्चर (Comminuted Fracture) – इस तरह के फ्रैक्चर में हड्डी कई टुकड़ों में बिखर जाती है।

कम्प्रेशन फ्रैक्चर (Crush Fracture) – यह फ्रैक्चर आमतौर पर रीढ़ की हड्डी में होता है। ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) के कारण जिनकी रीढ़ की हड्डी कमजोर होकर टूट जाती है उन्हें इस प्रकार का फ्रैक्चर होता है।

फ्रैक्चर डिसलोकेशन (Fracture Dislocation)- इस प्रकार के फ्रैक्चर में हड्डियों का जॉइंट डिसलोकेट हो जाता है और उसमे से ही एक हड्डी में फ्रैक्चर आ जाता है।

ग्रीनस्टिक फ्रैक्चर (Greenstick Fracture) – इस फ्रैक्चर में हड्डी एक तरफ से आंशिक रूप से फ्रैक्चर होती है, लेकिन पूरी तरह से नहीं टूटती है क्योंकि बाकी हड्डीयां तब भी  झुक सकती है। इस प्रकार का फ्रैक्चर बच्चों में सबसे आम है, जिनकी हड्डियों में ज्यादा लचीलापन होता है और हड्डियों नरम होती हैं।

हेयरलाइन फ्रैक्चर (Hairline Fracture) – यह हड्डी का एक प्रकार का आंशिक फ्रैक्चर है। कभी-कभी इस प्रकार के फ्रैक्चर को नियमित एक्सरे द्वारा भी पता लगाना कठिन होता है।

प्रभावित फ्रैक्चर (Impacted Fracture) – इस प्रकार के फ्रैक्चर में जब हड्डी फ्रैक्चर होती है, तो हड्डी का एक टुकड़ा दूसरी हड्डी के अंदर चला जाता है।

इंट्राआर्टिकुलर फ्रैक्चर (Intraarticular Fracture) – इस तरह के फ्रैक्चर में जॉइंट की सतह पर फ्रैक्चर आ जाता है।

लोंगिट्युडिनल फ्रैक्चर (Longitudinal Fracture) – यह फ्रैक्चर हड्डी की लम्बाई के साथ ही होता है।

ओब्लिक फ्रैक्चर (Oblique Fracture) – इस फ्रैक्चर में हड्डी डायगोनल (Diagonal) होकर टूट जाती है।  

पैथोलॉजिकल फ्रैक्चर (Pathological Fracture) – यह फ्रैक्चर पहले से ही किसी बीमारी या स्थिति की वजह से कमजोर हो चुकी हड्डी में होता है।

स्पाइरल फ्रैक्चर (Spiral Fracture) – इस तरह के फ्रैक्चर में हड्डी का कोई एक हिस्सा मुड़ा हुआ होता है।

स्ट्रेस फ्रैक्चर (Stress Fracture) – इस तरह का फ्रैक्चर एथलीटों में सबसे आम है, हड्डी पर बहुत ज्यादा स्ट्रेस और स्ट्रेन पड़ने से हड्डी टूट जाती है।

टोरस फ्रैक्चर (Buckle Fracture) – इस तरह के फ्रैक्चर में हड्डी मुड़ जाती है पर टूटती नहीं है, यह फ्रैक्चर बच्चो में बहुत आम है।

ट्रांसवर्स फ्रैक्चर (Transverse Fracture) –इस प्रकार के फ्रैक्चर में हड्डी सीधे जाकर टूट जाती है।

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हड्डी टूटने के लक्षण – Fracture Symptoms In Hindi

फ्रैक्चर या हड्डी टूटने के लक्षण और संकेत इस बात पर निर्भर करते है की कहाँ की कौन सी हड्डी टूटी है इसके आलावा रोगी की उम्र, सामान्य स्वास्थ्य और चोट की गंभीरता के आधार पर ही फ्रैक्चर के लक्षण तय किये जा सकते है, फिर भी हड्डी टूटने (हड्डी फ्रैक्चर) के कुछ सामान्य लक्षणों में शामिल है-

  • दर्द होना
  • सूजन आना
  • प्रभावित क्षेत्र के आस-पास की त्वचा में सूजन आना
  • एंगुलेशन (Angulations)- चोटिल क्षेत्र एक असामान्य कोण पर मुड़ा हुआ हो सकता है
  • रोगी प्रभावित क्षेत्र पर वजन डालने में असमर्थ है
  • रोगी चोटिल क्षेत्र को इधर से उधर नहीं कर पा रहा हो
  • प्रभावित हड्डी या जोड़ में झुनझुनी जैसा एहसास होना
  • यदि यह एक तरह का ओपन फ्रैक्चर है, तो रक्तस्राव भी हो सकता है

यदि शरीर की कोई बड़ी हड्डी टूटती है, जैसे कि पेल्विस (Pelvis) या फीमर (Femur) तब उस स्थिति में जो लक्षण दिखाई देते है, वह है-

यदि संभव हो, तो टूटी हुई हड्डी वाले पीड़ित व्यक्ति को तब तक न हिलाएं जब तक कि डॉक्टर ना आ जायें और स्थिति का आकलन ना कर लें, अगर ज्यादा जरुरत हो तो सिर्फ पट्टी लगायें।

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फ्रैक्चर (हड्डी टूटने) के कारण – Fracture Causes In Hindi

अधिकांश फ्रैक्चर कहीं से बुरी तरह गिरने से या वाहन दुर्घटना के कारण होते हैं। व्यक्ति की स्वस्थ हड्डियां बेहद सख्त और लचीली होती हैं और आश्चर्यजनक रूप से शक्तिशाली प्रभावों का सामना भी कर सकती हैं। परन्तु जैसे-जैसे लोगों की उम्र बढ़ती हैं, दो कारकों की वजह से हड्डी फ्रैक्चर होने का खतरा अधिक बढ़ जाता हैं, जो है कमजोर हड्डियां और गिरने का अधिक खतरा होना।

वह बच्चे, जो वयस्कों की तुलना में अधिक शारीरिक रूप से सक्रिय होते है, उन्हें भी हड्डी फ्रैक्चर होने का खतरा हो सकता है।

अंतर्निहित (Underlying) बीमारियों और स्थितियों की वजह से भी लोगों की हड्डियां कमजोर हो सकती हैं, जिसकी वजह से फ्रैक्चर होने का खतरा अधिक होता है। जैसे उन लोगों को जिनको ऑस्टियोपोरोसिस, संक्रमण या किसी तरह का ट्यूमर हैं।

हड्डियों पर ज्यादा तनाव पड़ने से भी फ्रैक्चर होने का खतरा रहता है, यह समस्या आमतौर पर पेशेवर खिलाड़ियों पायी जाती हैं।

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फ्रैक्चर (हड्डी टूटने) की जांच – Fracture Diagnosis In Hindi

अगर आपको ऐसा लगता है की आपकी हड्डी में फ्रैक्चर हुआ है तो तुरन्त डॉक्टर से संपर्क करें। डॉक्टर आपके चोटिल क्षेत्र की जांच करेगा, इसके लिए वह कुछ दृश्यता वाले टेस्ट कर सकते है। डॉक्टर आपके चोट की जांच करने के लिए आपको प्रभावित क्षेत्र को इधर उधर हिलाने और रखने के लिए कह सकते है।

यदि आपके डॉक्टर को ऐसा लगता है की आपको सच में फ्रैक्चर है तो वह आपको एक्स रे करवाने का कह सकते है। एक्स रे टूटी हुई हड्डी की जांच करने का सबसे आम तरीका है। एक्स रे में आपकी हड्डियों के अंदर की इमेज दिखाई देती है जिससे प्रभावित क्षेत्र के कारण और चोट की गंभीरता बारे में ज्यादा जानकारी मिल पाती है। एक्स रे से फ्रैक्चर का प्रकार और किस जगह पर फ्रैक्चर हुआ है यह भी जाना जा सकता है।

हड्डी टूटने की कुछ गंभीर स्थितियों में डॉक्टर आपको एमआरआई (Mri) और सी टी स्कैन (Ct Scan) करवाने के लिए भी कह सकते है।

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फ्रैक्चर (हड्डी टूटने) का इलाज – Fracture Treatment In Hindi

हड्डी फ्रैक्चर का इलाज आमतौर पर यह सोच के लिया जाता है की हड्डी जुड़ने के बाद आप आसानी से फिर से पहले जैसे सारे कार्य कर पाएं। बोन हीलिंग (Bone Healing) एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो समय के साथ खुद ही ठीक होती है।

टूटी हुई हड्डी को जोड़ने के लिए कई तरह से उपचार किया जाता है जिसमें शामिल है-

इमोबिलाइजेशन (Immobilization) – इमोबिलाइजेशन की प्रक्रिया में टूटी हुई हड्डी को जोड़ा जाता है और कोशिश की जाती है की ठीक होने तक हड्डी वैसी ही सीधी रहे इसके लिए कुछ उपाय अपनाये जाते है, जैसे-

प्लास्टर कास्ट या प्लास्टिक फंक्शनल ब्रेसिज़ (Plaster Casts Or Plastic Functional Braces) – इस प्रक्रिया में हड्डी को ऐसे जोड़ा जाता है की यह प्लास्टर हड्डी को तब तक पकड़ के रखता हैं जब तक हड्डी जुड़ नहीं जाती है।

मेटल प्लेट्स और स्क्रू (Metal Plates And Screws) – इस प्रक्रिया में टूटी हुई हड्डी को मेटल प्लेट्स और स्क्रू के द्वारा सहारा देकर जोड़ा जाता है।

इंट्रा-मेडुलरी नेल्स (Intra-Medullary Nails) – इस प्रक्रिया में आंतरिक मेटल की रॉड को लंबी हड्डियों के केंद्र के नीचे रखा जाता है। इस प्रक्रिया के तहत बच्चों में लचीले तारों का उपयोग किया जा सकता है।

एक्सटर्नल फिक्सेटर (External Fixators) – यह फिक्सेटर मेटल और कार्बन फाइबर से बने होते है और इसमें स्टील की पिन लगी होती है जो सीधे त्वचा के द्वारा हड्डी में जाती है और फिक्स हो जाती है। वैसे तो टूटी हुई हड्डी को इमोबिलाइजेशन से स्थिर होने के लिए 2-8 सप्ताह लगता है, पर यह समय इस बात पर निर्भर करता है की किस जगह की हड्डी फ्रैक्चर हुई है और कहीं कोई जटिलता जैसे रक्त की पूर्ति करने में परेशानी या किसी तरह का संक्रमण तो उत्पन्न नहीं हो रहा है।

हीलिंग (Healing यदि टूटी हुई हड्डी को ठीक तरह से जोड़ दिया जाता है और उसे स्थिर रखा गया है तो हीलिंग की प्रक्रिया अपने आप होने लगती है। रोगी की उम्र, हड्डी किस प्रकार प्रभावित हुई है, फ्रैक्चर के प्रकार, और रोगी का सामान्य स्वास्थ्य यह सभी कारक हैं जो यह बताते है कि हड्डी कितनी तेजी से ठीक हो रही है। यदि रोगी नियमित रूप से धूम्रपान करता है, तो उपचार प्रक्रिया में अधिक समय लगता है।

फिजिकल थेरेपी (Physical Therapy) – हीलिंग की प्रक्रिया समाप्त होने के बाद हड्डी के ठीक हो जाने पर मांसपेशियों की ताकत और साथ ही प्रभावित क्षेत्र की गतिशीलता को बढ़ाना बहुत ही जरुरी है। क्योकि यदि फ्रैक्चर जॉइंट के पास या जॉइंट के द्वारा हुआ है तो आपको भविष्य में आर्थराइटिस या हड्डी के कठोर होने की समस्या हो सकती है।

सर्जरी (Surgeryअगर टूटी हुई हड्डी के आसपास के सॉफ्ट टिश्यू और स्किन भी प्रभावित हुए है तो उसको ठीक करने के लिए प्लास्टिक सर्जरी का सहारा लिया जा सकता है।

देर से ठीक होने वाले फ्रैक्चर को ठीक करने के लिए आप कुछ तरीके अपना सकते है जैसे-

बोन ग्राफ्टिंग (Bone Grafting यदि फ्रैक्चर ठीक होने में बहुत लम्बा समय लग रहा है और या फ्रैक्चर ठीक ही नहीं हो रहा है तो इस स्थिति में बोन ग्राफ्टिंग की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है जिसमे प्राकृतिक हड्डी या आर्टिफीसियल हड्डी को टूटी हुई हड्डी से ट्रांसप्लांट किया जाता हैं।

स्टेम सेल थेरेपी (Stem Cell Therapy) – इस प्रक्रिया को करने के लिए अभी शोध जारी है की क्या स्टेम सेल थेरेपी के द्वारा टूटी हड्डियों को जोड़ा जा सकता है।

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फ्रैक्चर से होने वाली जटिलताएं – Fracture Complications In Hindi

फ्रैक्चर होने के बाद कभी कभी कुछ जटिलताएं उत्पन्न हो सकती है, जैसे-

गलत स्थिति में हीलिंग होना (Heals In The Wrong Position) – कभी कभी फ्रैक्चर के बाद यह समस्या उत्पन्न हो जाती है की हीलिंग या तो गलत स्थिति में होने लगती है या वहां से शिफ्ट हो जाती है जिसे कहा जा सकता है की पूरा फ्रैक्चर ही शिफ्ट हो जाता है।

हड्डी के विकास में व्यवधान होना (Disruption Of Bone Growth) – यदि बचपन में हुए हड्डी के फ्रैक्चर, हड्डी के ग्रोथ प्लेट को प्रभावित करते है तो यह एक जोखिम वाली बात  है कि उस हड्डी का सामान्य विकास भविष्य में प्रभावित हो सकता है, जो बाद में होने वाली  विकृति (Deformity) के जोखिम को बढ़ाता है।

बोनमेरो संक्रमण (Bone Marrow Infection) – यदि त्वचा में किसी प्रकार का कट है जो ज्यादातर कंपाउंड फ्रैक्चर की स्थिति में देखा जाता है तो इसमें बैक्टीरिया द्वारा संक्रमण पैदा करने का जोखिम उत्पन्न हो सकता है जिससे क्रोनिक ऑस्टियोमाइलाइटिस (Chronic Osteomyelitis) नाम का गंभीर संक्रमण हो सकता है। इस स्थिति में रोगी को अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए और एंटीबायोटिक्स देनी चाहिए।

बोन डेथ (Avascular Necrosis) – इस स्थिति में हड्डी में संपूर्ण मात्रा में खून ना पहुँचने से हड्डी के अंदर की टिश्यू ख़राब होकर मर जाती है जिसे बोन डेथ या एवास्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis) कहा जाता है।

(और पढ़े – कैल्शियम की कमी के लक्षण और इलाज…)

हड्डी टूटने से बचाव के उपाय – Fracture Prevention In Hindi

आप हड्डी फ्रैक्चर होने से तो नहीं बचा सकते क्योकि यह स्थिति किसी भी व्यक्ति के साथ कभी भी हो सकती है तो हड्डी को मजबूत बनाने के लिए पहले से कुछ बचाव के उपाय अपनाये जा सकते है, जैसे-

  • धूप और भरपूर मात्रा में विटामिन डी से युक्त खाद्य पदार्थ जैसे ऑयली फिश और अंडे लें ताकि हड्डीयों की ताकत बनी रहे।
  • कैल्शियम से युक्त खाद्य पदार्थ लें जैसे दूध, चीज़, योगर्ट, हरी सब्जियां ये सभी कैल्शियम के अच्छे स्रोत है।
  • ज्यादा से ज्यादा वजन वाली गतिविधियाँ जैसे वाकिंग, रनिंग करें क्योकि जितना ज्यादा वजन वाले काम आप करेंगे आपकी हड्डियाँ उतनी ही मजबूत होंगी।
  • महिलाओं में होने वाली मेनोपॉज की वजह से भी हड्डियाँ कमजोर हो सकती है इसलिए इस स्थिति से बचने के लिए ज्यादा से ज्यादा मात्रा में कैल्शियम के स्रोत लें और पोस्ट मेनोपौसल ओस्टोपोरिसिस के लक्षण से बचें।

(और पढ़े – हड्डी मजबूत करने के लिए क्या खाएं…)

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