पित्ताशय की थैली (गॉलब्लेडर) मानव अंग के रूप में पित्तरस (bile) के भण्डारण का कार्य करती है तथा भोजन को पचाने के लिए पित्त को छोटी अंत में प्रभावित करती है। वर्तमान में पित्ताशय (गॉलब्लेडर) से सम्बंधित समस्याओं के मामलों में वृद्धि हुई है। इसके अंतर्गत गैल्स्टोन, अग्नाशयशोथ (pancreatitis) और कोहलेनजिटिस (cholangitis) आदि पित्ताशय की थैली (गॉलब्लेडर) से सम्बंधित रोग हैं। अपितु पित्ताशय की थैली मानव को जीवित रहने के लिए जरूरी नहीं है, क्योंकि पित्त अन्य तरीकों से भी छोटी आंत तक पहुँच सकता है। अर्थात पित्ताशय की थैली के बिना भी व्यक्ति जीवित रह सकता है। अतः आज के इस लेख में आप जानेंगे कि पित्ताशय की थैली (गॉलब्लेडर) क्या है, इसके कार्य, रोग, गॉलब्लेडर टेस्ट, गॉलब्लेडर उपचार और गॉलब्लेडर के स्वस्थ्य रखने के उपायों के बारे में।
1. पित्ताशय की थैली (गॉलब्लेडर) क्या है – What is the gallbladder in hindi
2. पित्ताशय के कार्य – Gallbladder Function in hindi
3. पित्ताशय के रोग – Gallbladder disease OR gallbladder function problems in Hindi
4. पित्ताशय रोग की जटिलताएं – Complications Of Gallbladder Disease in Hindi
5. गॉलब्लैडर फंक्शन टेस्ट – Gallbladder Function Test In Hindi
6. पित्ताशय रोग का इलाज – Gallbladder Disease Treatment in Hindi
7. स्वस्थ पित्ताशय की थैली (गॉलब्लेडर) के लिए आहार – Diet For A Healthy Gallbladder in Hindi
पित्ताशय की थैली (gallbladder) लगभग चार इंच का नाशपाती के आकार (pear-shaped) का एक अंग है। यह यकृत (liver) के नीचे और पेट के ऊपरी-दाएं भाग में स्थित होता है। यह मानव पित्त प्रणाली (human biliary system) का एक बी भाग है, जो पित्तरस (bile) के उत्पादन, भंडारण और परिवहन से सम्बंधित कार्य को संपन्न करता है। पित्ताशय की थैली (gallbladder), छोटी आंत (small intestine) में पित्तरस पहुँचाने का कार्य करती है। पित्तरस (bile) छोटी आंत में फैटी खाद्य पदार्थों को तोड़ने और पचाने तथा वसा में घुलनशील विटामिन (fat-soluble vitamins) और पोषक तत्वों (nutrients) को रक्त प्रवाह में आसानी से अवशोषित करने की अनुमति देता है।
भोजन से पहले, पित्ताशय की थैली पित्तरस से भरी हो सकती है, परन्तु भोजन के बाद, पित्ताशय की थैली खाली और सपाट हो जाती है। हालांकि पित्ताशय की थैली की संरचना और स्थिति मनुष्यों और पशुओं में भिन्न- भिन्न होती है।
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पित्ताशय (gallbladder) मानव शरीर में मुख्य रूप से निम्न कार्यों को संपन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है :
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पित्ताशय रोग, पित्ताशय की थैली को प्रभावित करने वाली स्थितियों से सम्बंधित होते हैं। पित्ताशय की थैली में सूजन (Inflammation) पित्ताशय रोग का प्रमुख कारण बनती है, जिसे कोलीसिस्टाइटिस (cholecystitis) के रूप में जाना जाता है। यह सूजन प्रायः छोटी आंतों की ओर खुलने वाले पित्ताशय नलिकाओं को अवरुद्ध उत्पन्न कर सकती है, और अंततः यह नेक्रोसिस (Necrosis) (ऊतक विनाश) या गैंग्रीन (Gangrene) का कारण बन सकती है। पित्ताशय रोग (Gallbladder disease) के कई प्रकार हैं:
जब किसी कारणवश पित्त में उपस्थित पदार्थ (जैसे कोलेस्ट्रॉल, पित्त लवण, और कैल्शियम या बिलीरुबिन) कठोर कणों का निर्माण कर पित्ताशय की थैली और पित्त नलिकाओं को अवरुद्ध कर देते हैं, तो इस स्थिति को गैल्स्टोन के रूप में जाना जाता है। गैल्स्टोन (Gallstones) आमतौर पर हानिरहित होते हैं, परन्तु कभी-कभी दर्द, मतली या सूजन का कारण भी बन सकते हैं।
गैल्स्टोन को उत्पन्न करने वाले निम्न कारण हो सकते हैं जैसे:
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कोलीसिस्टाइटिस (Cholecystitis) को गॉलब्लैडर की सूजन के रूप में जाना जाता है। यह पित्ताशय की थैली में एक प्रकार का संक्रमण है, जो अक्सर गैल्स्टोन (gallstone) के कारण उत्पन्न होता है। कोलीसिस्टाइटिस (गॉलब्लैडर की सूजन) (Cholecystitis) गंभीर दर्द और बुखार का कारण बनता है, पेट दर्द ज्यादातर भोजन करने के ठीक बाद उत्पन्न होता है। अत्यधिक संक्रमण की स्थिति में कोलीसिस्टाइटिस (Cholecystitis) का इलाज करने के लिए सर्जरी की आवश्यकता होती है। कोलीसिस्टाइटिस (cholecystitis) के निम्न लक्षण प्रगट हो सकते है:
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हालांकि गॉलब्लैडर कैंसर (Gallbladder cancer) काफी दुर्लभ है, परन्तु यह कैंसर पित्ताशय को प्रभावित कर सकता है। इसके लक्षण गैल्स्टोन के समान हो सकते हैं। गैलब्लैडर कैंसर (Gallbladder cancer) का इलाज करना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि प्राम्भिक अवस्था में इसका निदान नहीं किया जाता है। गैल्स्टोन (gallstones)s पित्ताशय की थैली में कैंसर का एक सामान्य कारण हैं।
गॉलब्लैडर कैंसर पित्ताशय की थैली की आन्तरिक परतों से लेकर बाहरी परतों, लीवर, लिम्फ नोड्स (lymph nodes) और अन्य अंगों तक फैल सकता है।
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पित्ताशय गैंग्रीन (Gangrene), अपर्याप्त रक्त प्रवाह के परिणामस्वरूप विकसित होता है। यह तीव्र कोलीसिस्टाइटिस (acute cholecystitis) की सबसे गंभीर जटिलताओं में से एक है। यह बीमारी 45 या उससे अधिक उम्र के पुरुषों और मधुमेह वाले व्यक्तियों के लिए काफी प्रभावित करती हैं। गॉलब्लैडर गैंग्रीन के निम्न लक्षण हो सकते हैं:
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गॉलब्लैडर पोलिप (Gallbladder polyp) का आशय पित्ताशय की थैली में उत्पन्न घाव या वृद्धि से होती है, जो आमतौर पर हानिरहित होता है, और कोई लक्षण प्रगट नहीं करता है। लेकिन पित्ताशय की थैली में 1 सेंटीमीटर से बड़े पोलिप कैंसर का जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं। जिसके कारण इसका इलाज किया जाना आवश्यक हो जाता हैं।
बिलीरी डिस्केनेसिया (Biliary dyskinesia) की समस्या तब उत्पन्न होती है, जब पित्ताशय की थैली में सामान्य से भी कम कार्य होता है। यह स्थिति पित्ताशय की थैली में सूजन से संबंधित होती है। बिलीरी डिस्केनेसिया (Biliary dyskinesia) के लक्षण निम्न होते हैं:
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कोलेडोकोलिथियासिस (Choledocholithiasis) का सम्बन्ध “सामान्य पित्त नलिका (bile duct) में कम से कम एक गैल्स्टोन (gallstone) की उपस्थिति” से होता है। यह पित्तरस के प्रवाह को अवरुद्ध कर सकता है और पित्ताशय (gallbladder) में सूजन या विकृत उत्पन्न कर सकता है। इसके सामान्य लक्षणों में शामिल हैं :
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पित्ताशय रोग की जटिलताओं में निम्न समस्याएँ शामिल हो सकती हैं:
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पित्ताशय (Gallbladder) रोग का निदान करने के लिए, डॉक्टर विभिन्न प्रकार के प्रायोगिक परीक्षण अपना सकता है। अतः इस हेतु निम्नलिखित परीक्षणों और प्रक्रियाओं में से किसी एक या अनेक प्रक्रियाओं का उपयोग किया जा सकता है, जैसे:
लिवर टेस्ट (Liver tests) – यह एक रक्त परीक्षण हैं, जो पित्ताशय रोग की जानकारी दे सकता है। पैनक्रियाज (pancreas) की सूजन की जानकारी प्राप्त करने के लिए रक्त में एमिलेज (Amylase) या लिपेज (lipase) के स्तर की जांच की जाती है। एमिलेज और लिपेज पैनक्रियाज (pancreas) में उत्पादित एंजाइम होते हैं। एक पूर्ण रक्त गणना (complete blood count (CBC)), के माध्यम से संक्रमण की स्थिति का पता लगाया जा सकता है।
अल्ट्रासाउंड (ultrasound) – अल्ट्रासाउंड (ultrasound) वह प्रक्रिया है, जिसमे शरीर के अंदर की छवियों का उत्पादन करने के लिए ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है। यह परीक्षण डॉक्टर द्वारा पित्ताशय रोग का निदान करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। एक अल्ट्रासाउंड (ultrasound) के द्वारा गैल्स्टोन (gallstones), पित्ताशय की दीवारों, पॉलीप्स (polyps) या अन्य समस्याओं की जानकारी के लिए पित्ताशय का मूल्यांकन किया जाता है। तथा इसके द्वारा लिवर (liver) के अन्दर किसी भी किसी भी समस्या की पहचान की जा सकती है।
HIDA स्कैन (cholescintigraphy) (HIDA scan) – HIDA स्कैन परीक्षण के द्वारा पित्ताशय की थैली (gallbladder) और यकृत (liver) के भीतर नली प्रणाली को देखा जा सकता है। इसके साथ ही इसका उपयोग पित्त नली प्रणाली (bile duct system) का बहुत अधिक गहन परीक्षण करने के लिए भी किया जा सकता है। इस परमाणु चिकित्सा परीक्षण में, रेडियोएक्टिव रंजक (radioactive dye) को नसों के माध्यम से प्रवेश कराया जाता है और पित्त में स्रावित होता है।
एक्स-रे (X-ray) – यदि पित्ताशय की पथरी (stones) में कैल्शियम होता है, तो कोलीसिस्टाइटिस (Cholecystitis) के लक्षणों का निदान करने के लिए पेट का एक्स-रे किया जा सकता है। छाती का एक्स-रे परीक्षण, प्लूरिसी (pleurisy) या निमोनिया (pneumonia) का निदान कर सकता है। हालांकि, एक्स-रे परीक्षण पित्ताशय की बीमारी की पहचान करने के लिए उचित परीक्षण नहीं है।
एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलांगियोपैंक्रेटोग्राफी (Endoscopic retrograde cholangiopancreatography) (ERCP) – मरीज के मुंह के माध्यम से, पेट से होते हुए छोटी आंत तक एक लचीली ट्यूब डालकर, डॉक्टर ट्यूब के माध्यम से परीक्षण कर सकता है और पित्त प्रणाली (bile system) की नलिकाओं में डाई (रंजक) इंजेक्ट कर सकता है। ERCP के दौरान कुछ गैल्स्टोन (gallstone) स्थितियों का इलाज करने के लिए छोटे सर्जिकल उपकरणों (surgical tools) का उपयोग किया जा सकता है।
चुंबकीय अनुनाद कोलांगियोपैंक्रेटोग्राफी (Magnetic resonance cholangiopancreatography) (MRCP) – इस परीक्षण के तहत एक एमआरआई स्कैनर (MRI scanner), पित्त नलिकाओं, पैनक्रिया (pancreas) और पित्ताशय (gallbladder) की उच्च रिज़ॉल्यूशन इमेजिस को प्रदान करता है। एमआरसीपी इमेजिस बीमारी के निदान और उपचार में सहायता प्रदान करती हैं।
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पित्ताशय रोग का इलाज (gallbladder treatment) करने के लिए निम्न प्रकार की प्रक्रियाओं को अपनाया जा सकता है:
जीवन शैली में परिवर्तन (Lifestyle changes) – जीवन शैली में परिवर्तन गॉलब्लेडर रोग (gallbladder disease) के लक्षणों को कम करने में मददगार हैं। अतः एक स्वस्थ्य जीवनशैली को अपनाकर गॉलब्लेडर से सम्बंधित समस्याओं तथा अन्य समस्याओं से बचा जा सकता है। अधिक वजन और मधुमेह जैसी समस्याएं गैल्स्टोन की संभावना में वृद्धि कर सकती हैं। अतः वजन कम करने और मधुमेह पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए स्वस्थ्य जीवन शैली को अपनाया जाना चाहिए। इसके तहत धूम्रपान छोड़ने और अल्कोहल सेवन को सीमित करने, व्यायाम करने आदि की सिफारिश की जाती है।
चिकित्सा उपचार (Medical treatment) – पित्ताशय की सूजन (gallbladder inflammation) का उपचार दर्द या एंटी-इन्फ्लामेट्री (anti-inflammatories) दवाओं के साथ किया जा सकता है। अतः अक्सर गंभीर दर्द के लिए चिकित्सकीय दवाओं की आवश्यकता होती है। डॉक्टर कोडेन (codeine) या हाइड्रोकोडोन (hydrocodone) के साथ दवाओं की सिफारिश कर सकता है।
इबुप्रोफेन (ibuprofen (Advil)) और नैप्रोक्सेन (एलेव) (naproxen) जैसी ओवर-द-काउंटर दवाएं अक्सर जी-मिचलाना और उल्टी होने की समस्याओं के बढ़ते जोखिम के कारण उपयोग में नहीं ली जाती हैं।
गॉलब्लेडर सर्जरी या पित्ताशय की थैली की सर्जरी (Gallbladder surgery) – गॉलब्लेडर सर्जरी, पित्ताशय की बीमारी का इलाज करने के लिए सबसे प्रभावी तरीका है।
गैल्स्टोन का उपचार करने के लिए डॉक्टर अक्सर शल्य चिकित्सा के माध्यम से पित्ताशय की थैली (Gallbladder) को हटाने की सलाह दे सकता हैं। यदि गैल्स्टोन की समस्या नहीं हैं, तो एंटीबायोटिक्स द्वारा उपचार किया जा सकता है। सर्जरी के दौरान पेट में चीरा लगाकर या लैप्रोस्कोपिक सर्जरी (laparoscopic surgery) का उपयोग कर पेट की दीवार में छेद कर कई छोटे-छोटे कैमरे डाले जाते हैं। फिर छोटे सर्जिकल उपकरणों के माध्यम से पित्ताशय की थैली को हटा दिया जाता है।
किसी भी विधि से पित्ताशय (Gallbladder) की सर्जरी के बाद, लोगों को दस्त का अनुभव होना सामान्य है। ज्यादातर लोगों के लिए सुर्जरी के बाद दस्त केवल कुछ हफ्तों तक चलते हैं। लेकिन कुछ मामलों में, यह समस्या वर्षों तक चल सकती है। यदि सर्जरी के बाद दो सप्ताह से अधिक समय तक दस्त की समस्या बनी रहती है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
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एक स्वस्थ आहार और नियंत्रित वजन, पित्ताशय की थैली को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। फलों, सब्जियों, दुबला मांस और फाइबर युक्त संतुलित आहार का सेवन पित्ताशय की थैली को स्वस्थ्य रखने के लिए आवस्यक होता है।
पित्ताशय की थैली को स्वस्थ्य रखने के लिए विशेष रूप से खाए जाने वाले स्वस्थ्य खाद्य पदार्थ निम्न हैं:
एवोकैडो (avocados), क्रैनबेरी (cranberries), जामुन, अंगूर, खीरे (cucumbers) और चुकंदर (beets) आदि को गॉलब्लेडर के लिए स्वस्थ्य आहार के रूप में जाना जाता है। ब्रोकोली, मिर्च (bell peppers) और संतरे फाइबर और विटामिन सी के उत्तम स्त्रोत हैं, जो गैल्स्टोन की समस्या को कम करने में अपना योगदान दे सकते हैं।
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कम से कम वसा युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन भी स्वास्थ्य गॉलब्लेडर के लिए एक अच्छा विकल्प है। किसी भी प्रकार की मछली, मांस, और त्वचा रहित चिकन को उचित आहार माना जा सकता है।
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एक स्वास्थ्य गॉलब्लेडर के लिए अच्छे खाद्य पदार्थ के रूप में जई (oats), ब्रान अनाज (bran cereal) और ब्राउन चावल (brown rice) आदि को शामिल किया जा सकता है। फाइबर की उच्च मात्रा युक्त रोटी और अनाज का सेवन करने का प्रयास करना चाहिए।
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किसी भी प्रकार के डेयरी उत्पाद में वसा की मात्रा पर विशेष ध्यान देना चाहिए। कम वसा युक्त डेयरी उत्पाद का ही सेवन किया जाना चाहिए।
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स्वस्थ्य सलाहकार द्वारा पित्ताशय (गॉलब्लेडर) को स्वस्थ रखने के लिए कुछ खाद्य पदार्थों से दूर रहने या उनका सेवन न करने (परहेज) की सलाह दी जाती है। अतः स्वस्थ पित्ताशय (गॉलब्लेडर) के लिए निम्न खाद्य पदार्थों पर रोक लगाई जानी चाहिए:
स्वीटर्स, चीनी, और परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट खाद्य पदार्थ पित्ताशय (गॉलब्लेडर) नुकसान पंहुचा सकते हैं अतः उच्च फ्रक्टोज मकई सिरप (corn syrup) और परिष्कृत शर्करा (refined sugars), जैसे कुकीज़ (cookies), सोडा और स्नैक फ़ूड (snack foods) आदि पदार्थों के सेवन पर रोक लगानी चाहिए।
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इसके अंतर्गत सफेद रोटी, पास्ता और कई मिठाई शामिल हैं, जिनका सेवन पित्ताशय (गॉलब्लेडर) के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
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अध्ययनों में पाया गया है कि कॉफी या शराब के माध्यम से कैफीन की अत्यधिक मात्रा (आमतौर पर प्रति दिन दो कप से अधिक) पित्ताशय (गॉलब्लेडर) पर लाभकारी प्रभाव नहीं डालती है। अतः कॉफी या शराब की सीमित मात्रा का ही सेवन किया जाना चाहिए।
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कुछ अध्ययनों से पता चला है कि मूंगफली या पेड़ के नट जैसे – बादाम और अखरोट खाने से गैल्स्टोन को रोकने में मदद मिल सकती है, लेकिन यह माध्यम प्रभावी नहीं है, क्योंकि नट्स में वसा की मात्रा अधिक होती है।
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पित्ताशय (गॉलब्लेडर) को स्वस्थ्य रखने और गॉलब्लेडर रोगों के खतरे को कम करने के लिए तला हुआ भोजन (Fried food), फैटी मांस, सभी दूध वाले डेयरी उत्पादों और अन्य अत्यधिक वसा युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन को कम करने और उनपर रोक लगाने की सलाह दी जाती है।
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