Gestational diabetes in Hindi जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भकालीन डायबिटीज) गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को होने वाली एक समस्या है। यह समस्या अस्थायी (temporary ) होती है और गर्भावस्था के दूसरे तिमाही में होती है। समय पर इस समस्या का निदान कराकर इसे ठीक किया जा सकता है। इस लेख में आप जानेंगी गर्भावस्था में शुगर (गर्भावधि डायबिटीज या जेस्टेशनल डायबिटीज) के लक्षण, कारण, इलाज और बचाव के बारे में। जेस्टेशनल डायबिटीज क्या होती है, गर्भवती महिलाएं इससे कैसे बच सकती हैं, इसके कारण क्या होते हैं। Pregnancy me diabetes (Gestational diabetes) ke lakshan, karan aur ilaj in Hindi.
जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षणों को कम करने के लिए डॉक्टर आमतौर पर प्रेगनेंट महिला को स्वस्थ भोजन, एक्सरसाइज और मेडिटेशन करने की सलाह देते हैं ताकि रक्त शर्करा (blood sugar level) के स्तर को कम किया जा सके। आइये जानते है जेस्टेशनल डायबिटीज क्या होती है, गर्भ में डायबिटीज (गर्भकालीन डायबिटीज) क्या होती है, इससे गर्भवती महिलाएं कैसे बच सकती हैं, जेस्टेशनल डायबिटीज के कारण क्या होते हैं, इत्यादि बातों को। आइए जानें गर्भ में डायबिटीज गर्भकालीन मधुमेह (या गर्भकालीन मधुमेह मेलिटस, जीडीएम (GDM)) के बारे में।
विषय सूची
1. जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भकालीन मधुमेह) क्या है – what is Gestational diabetes in Hindi
2. गर्भावस्था में मधुमेह (जेस्टेशनल डायबिटीज) के कारण – Causes of Gestational diabetes in Hindi
3. जेस्टेशनल डायबिटीज के खतरे – Risk factors of Gestational diabetes in Hindi
4. गर्भावधि मधुमेह (जेस्टेशनल डायबिटीज) के लक्षण – Gestational diabetes Symptoms in Hindi
5. जेस्टेशनल डायबिटीज का निदान – Diagnosis of Gestational diabetes in Hindi
6. गर्भकालीन मधुमेह के उपचार, जेस्टेशनल डायबिटीज का इलाज – Treatment of Gestational diabetes in Hindi
7. गर्भावस्था के दौरान शुगर की मात्रा बढ़ने पर क्या क्या खाना चाहिये – Gestational Diabetes Diet in hindi
8. गर्भावस्था शुगर (जेस्टेशनल डायबिटीज) से बचाव – Prevention of Gestational diabetes in Hindi
गर्भकालीन मधुमेह या जेस्टेशनल डायबिटीज सामान्य डायबिटीज की तरह ही एक आम समस्या है लेकिन यह महिलाओं को प्रेगनेंसी (gestation) के दौरान होती है। प्रेगनेंट महिला के शरीर में ब्लड ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाने के कारण उसे यह समस्या होती है जिसके कारण उसकी प्रेगनेंसी प्रभावित होती है और उसके बच्चे के सेहत पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। हालांकि बच्चे को जन्म देने के बाद ब्लड शुगर लेवल आमतौर पर सामान्य हो जाता है। लेकिन प्रेगनेंसी के दौरान यदि महिला जेस्टेशनल डायबिटीज से पीड़ित हो तो उसे टाइप 2 डायबिटीज होने की संभावना भी बहुत ज्यादा होती है।
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जेस्टेशनल डायबिटीज की समस्या महिलाओं में प्रेनगेंसी के दौरान हार्मोन में परिवर्तन (Changes in hormones) के कारण होती है। जब कोई महिला गर्भवती होती है तो उस दौरान महिला के शरीर में कॉर्टिसोल, एस्ट्रोजन एवं लैक्टोजन जैसे कुछ विशेष हार्मोन्स का स्तर बढ़ जाता है जिसके कारण महिलाओं के शरीर में रक्त शर्करा का प्रबंधन गड़बड़ हो जाता है। इस स्थिति को इंसुलिन रेजिस्टेंस कहते हैं।
इस दौरान यदि इंसुलिन उत्पन्न करने वाला अंग अग्न्याशय (pancreas) पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं उत्पन्न करता है तो इन हार्मोन्स का स्तर वैसे ही बना रहता है और रक्त शर्करा का स्तर (blood sugar levels) अधिक बढ़ जाता है जिसके कारण गर्भवती महिला को जेस्टेशनल डायबिटीज हो जाती है। आपको बता दें कि इंसुलिन एक हार्मोन है जो हमारे शरीर में अग्न्याशय (pancreas) की विशेष कोशिकाओं में बनता है और शरीर को प्रभावी तरीके से ग्लूकोज को एनर्जी के रूप में मेटाबोलाइज करने के लिए अनुमति देता है।
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अब तक यह ज्ञात नहीं हो पाया है कि किस वजह से जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भकालीन मधुमेह) कुछ महिलाओं को होता है जबकि कुछ को नहीं होता है। हालांकि यह समस्या किसी भी महिला को हो सकती है लेकिन कुछ महिलाओं में जेस्टेशनल डायबिटीज होने का खतरा (risk) अधिक होता है।
जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षण या तो बहुत हल्के होते हैं या होते ही नहीं हैं। हालांकि हर महिला में इसके कुछ लक्षण अलग-अलग दिखायी देते हैं। आइये जानते हैं जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षण क्या हैं।
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गर्भावधि मधुमेह (जेस्टेशनल डायबिटीज) के निदान के लिए टेस्ट आमतौर पर प्रेगनेंसी के 24 से 28 हफ्तों के बाद कराया जाता है। हालांकि कुछ महिलाएं इस समस्या से पीड़ित होने की आशंका होने पर पहले ही टेस्ट करवा लेती हैं।
जेस्टेशनल डायबिटीज के निदान के लिए प्रेगनेंट महिला को ग्लूकोज स्क्रीनिंग टेस्ट करवाना पड़ता है। इस टेस्ट को करने के लिए प्रेगनेंट महिला को शुगर का एक विलयन पिलाया जाता है और करीब एक घंटे बाद ब्लड शुगर (blood sugar) की जांच की जाती है। इस दौरान यदि महिला का ब्लड शुगर सामान्य से अधिक पाया जाता है तो उसे दूसरे टेस्ट के लिए भेजा जाता है जिसे ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (glucose tolerance test) कहा जाता है।
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विभिन्न व्यवसायी यह निर्धारित करने के लिए विभिन्न मानकों का उपयोग करते हैं कि आपका स्तर बहुत अधिक है या नहीं।
यदि इस स्क्रीनिंग के लिए आपका रक्त ग्लूकोज स्तर 200 मिलीग्राम / डीएल से अधिक है, तो अधिकांश चिकित्सक आपको मधुमेह होने पर विचार करेंगे और आपको ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट कराने की आवश्यकता नहीं होगी। लेकिन 140 और 200 के बीच किसी भी स्कोर का मतलब है कि आपको एक निश्चित निदान के लिए तीन घंटे का ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट करना होगा।
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ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट करवाने के लिए गर्भवती मां को टेस्ट कराने से 8 से 14 घंटों पहले कुछ भी नहीं खाना होता है। टेस्ट से पहले उसका ब्लड लिया जाता है और आधे से एक घंटे के अंतराल के बाद उसे उच्च ग्लूकोज का विलयन (glucose solution) पिलाया जाता है और उसके दो घंटे बाद ब्लड ग्लूकोज और इंसुलिन लेवल की जांच कर यह पता लगाया जाता है कि इन दोनों के स्तर (level) में कितना फर्क हुआ है। आमतौर पर ग्लूकोज टॉलिरेंस टेस्ट कराने वाली तीन में से दो महिलाओं में जेस्टेशनल डायबिटीज की समस्या नहीं पायी जाती है।
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अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन का यह चार्ट उन स्तरों को दिखाता है जो परीक्षण के प्रत्येक अंतराल पर शुगर को असामान्य मानते हैं:
अंतराल (Interval) असामान्य रीडिंग (Abnormal reading)
उपवास 95 मिलीग्राम / डीएल या उच्चतम
1 घंटा 180 मिलीग्राम / डीएल या उच्चतर
2 घंटे 155 मिलीग्राम / डीएल या उच्चतर
3 घंटे 140 मिलीग्राम / डीएल या उच्चतर
लेकिन यदि इस दौरान महिला में जेस्टेशनल डायबिटीज की समस्या पायी जाती है तो बच्चे को जन्म देने के 6 से 12 हफ्ते बाद उसे दोबारा यह टेस्ट करवाना पड़ता है और प्रत्येक पहले और तीसरे साल में एक बार यह टेस्ट करवाना पड़ता है।
गर्भावस्था के दौरान सामान्य शुगर लेवल खाने से पहले 95 मिलीग्राम प्रति डिकिलिटर (मिलीग्राम / डीएल) से अधिक नहीं होना चाहिए
खाने से एक घंटे के बाद चीनी स्तर को 140 मिलीग्राम / डी एल अधिक नहीं होना चाहिए , और खाने के दो घंटे बाद 120 मिलीग्राम / डीएल से अधिक नहीं होना चाहिए।
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जेस्टेशनल डायबिटीज के इलाज के लिए गर्भवती मां को डॉक्टर के पास जाना होता है। इस समस्या के इलाज के लिए प्रेगनेंट महिला के ब्लड में ग्लूकोज के स्तर को कम या सामान्य करने का प्रयास किया जाता है। इस समस्या का सबसे बड़ा इलाज यह है कि मरीज को खुद जीवनशैली (lifestyle) और दिनचर्या में बदलाव करना होता है लेकिन इसके अलावा भी अन्य तरीकों से जेस्टेशनल डायबिटीज का इलाज किया जाता है।
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जेस्टेशनल डायबिटीज (Gestational Diabetes) का यह एक ऐसा इलाज है जिसमें ब्लड में ग्लूकोज के स्तर को दिन में चार से पांच बार जांच (check) की जाती है। आमतौर पर सुबह शाम टहलने और भोजन करने के बाद ग्लूकोज के स्तर की जांच खुद करनी पड़ती है ताकि यह पता लग सके कि ग्लूकोज का स्तर सामान्य हुआ या नहीं। इसके बाद भी अगर प्रेगनेंट महिला के ब्लड में ग्लूकोज का स्तर पहले की तरह (abnormal) ही बना हुआ होता है तो उसे विभिन्न एक्सरसाइज करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा उसे प्रेगनेंसी के बाद भी ग्लूकोज लेवल चेक कराना जरूरी होता है ताकि वह टाइप 2 डायबिटीज के खतरे से बच सके।
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जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षणों को कम करने के लिए आहार पर भी विशेष ध्यान देना होता है। यह भी इस समस्या का एक इलाज है। जेस्टेशनल डायबिटीज से पीड़ित महिला को उच्च फाइबर और कम वसा युक्त अधिक से अधिक फल, सब्जियां, होल ग्रेन (whole grains) खाने की सलाह दी जाती है। प्रेगनेंसी के दौरान इन आहार का सेवन करने से वजन कम होता है और इससे ग्लूकोज का स्तर भी घटता है और जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षण भी कम (reduce) हो जाते हैं।
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शारीरिक गतिविधियों से भी शरीर के ब्लड ग्लूकोज लेवल को कम किया जा सकता है। जेस्टेशनल डायबिटीज की समस्या से पीड़ित महिला को प्रतिदिन लगभग 30 मिनट एक्सरसाइज और शारीरिक गतिविधि (activity) करने की सलाह दी जाती है। गर्भास्था के दौरान टहलना (walking) और तैरना एक बेहतर फिजिकल एक्टिविटी है।
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जेस्टेशनल डायबिटीज से पीड़ित महिला में इस बीमारी के लक्षणों को कम करने के लिए और रक्त शर्करा (blood sugar) घटाने के लिए इंसुलिन का इंजेक्शन भी दिया जाता है। इसके अलावा मेटफॉर्मिन (metformin) नामक दवा भी दी जाती है लेकिन डिलीवरी के बाद इस दवा का सेवन बंद कर देना होता है।
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प्रत्येक दिन कितनी कैलोरी की मात्रा का उपभोग करना यह आपके वजन और गतिविधि स्तर जैसे कई कारकों पर निर्भर करता है। गर्भवती महिलाओं को आम तौर पर अपने प्रीपेरेंसी आहार में 300 कैलोरी प्रति दिन खपत में वृद्धि करनी चाहिए। डॉक्टर प्रति दिन तीन बार भोजन और दो से तीन बार स्नैक्स खाने की सलाह देते हैं। छोटे और थोड़े- थोड़े भोजन खाने से आप अक्सर अपने रक्त शर्करा के स्तर को स्थिर रखने की कोशिस कर सकती हैं।
डॉक्टर यह भी सिफारिश करते हैं कि गर्भवती महिलाएं प्रसवपूर्व मल्टीविटामिन, लौह पूरक, या कैल्शियम पूरक लें। यह गर्भावस्था के दौरान कुछ विटामिन और खनिजों की उच्च आवश्यकताओं को पूरा करने में आपकी मदद कर सकता है, और बच्चे को सामान्य रूप से विकसित करने में मदद करता है।
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कार्बोहाइड्रेट शरीर की उर्जा का मुख्य स्रोत है। आप अपने आहार में कार्बोहाइड्रेट के लिए निम्न को शामिल कर सकती है
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सब्जियां शरीर को कार्बोहाइड्रेट भी प्रदान करती हैं। कुछ सब्जियों में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा नगण्य हो सकती है, जैसे कि ग्रीन्स या ब्रोकली जैसे विकल्पों के मामले में होता है, इसके विपरीत आलू, मकई और मटर जैसे स्टार्च सब्जियों के मामले में कार्बोहाइड्रेट की एक बड़ी मात्रा हो सकती है। अपनी सब्जियों की कार्बोहाइड्रेट सामग्री की जांच करें ताकि आप जान सकें कि आप कितने कार्बोहाइड्रेट खा रहीं हैं।
आपको विशेष रूप से विभिन्न प्रकार की सब्ज़ियां खाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि प्रत्येक रंग की सब्जी में पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा अलग होती है।
प्रोटीन एक स्वस्थ आहार का आवश्यक घटक है। अधिकांश प्रोटीन स्रोतों में कार्बोहाइड्रेट नहीं होते हैं और रक्त शर्करा नहीं बढ़ाते है, लेकिन बीन्स और फलियां जैसे प्रोटीन के शाकाहारी स्रोतों की जांच करना सुनिश्चित करें, क्योकि इनमे कार्बोहाइड्रेट हो सकता हैं।
गर्भावस्था के मधुमेह वाले अधिकांश महिलाओं को प्रोटीन के दो से तीन सर्विंग्स की आवश्यकता होती है। प्रोटीन की एक सर्विंग निम्नलिखित में से एक के बराबर है:
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Fats : वसा रक्त शर्करा नहीं बढ़ाते है क्योंकि उनके पास कार्बोहाइड्रेट नहीं होते हैं। हालांकि, वे कैलोरी का एक अच्छा स्रोत हैं। यदि आप अपना वजन बढ़ने से रोकने का प्रयास कर रहीं हैं, तो आपको अपनी वसा का सेवन प्रबंधित करना चाहिए। इसके लिए आपको स्वस्थ वसा लेना आवश्यक हैं। नट्स, बीज, एवोकैडो, जैतून और कैनोला तेल, और फ्लेक्स बीजों में स्वस्थ वसा पायी जाती है।
अच्छे स्वास्थ्य के लिए, ट्रांस वसा जैसे संतृप्त वसा का सेवन सीमित करें। ट्रांस वसा मुख्य रूप से प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में अधिक पायी जाती हैं।
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गर्भावस्था से पहले एक स्वस्थ आदत विकसित (habit develop) करने से जेस्टेशनल डायबिटीज की समस्या से बचा जा सकता है। आइये जानते हैं जेस्टेशनल डायबिटीज से बचाव कैसे करें।
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