इस वक्त कोरोना वायरस को लेकर भारत में कई एहतियातन कदम उठाए जा रहे हैं लेकिन खतरा अभी भी लगातार बना हुआ है बड़े से बड़ा और शक्तिशाली देश भी इस पर काबू नहीं कर सका है जरा सोचिए यह जो कोरोनावायरस की कोविड-19 किस्म सामने आई है यह ज्यादातर लोगों में हल्की सी बीमारी पैदा करती है लेकिन दुनिया भर में इतनी मौतें कैसे हो रही हैं। तो यह कोरोना वायरस कैसे शरीर पर हमला कर रहा है? क्यों कुछ लोगों की इस से मौत हो रही है? और कैसे इसका इलाज संभव है?
यह वह वक्त होता है जब वायरस अपने शरीर में जगह बनाता है। वायरस शरीर की सेल्स के अंदर घुस कर उन पर काबू पा लेता है। कोरोना वायरस आपके शरीर में प्रवेश करता है जब उसे आप सांस के द्वारा इन्हेल करते हैं या फिर कोई संक्रमित जगह या चीज छू लेते हैं और उसके बाद अपने चेहरे को छूते हैं।
पहले यह गले और फेफड़ों की सेल्स पर अटैक करता है और बस फिर वहां कोरोनावायरस फैक्ट्री बनाकर अपनी संख्या बढ़ाने लगता है और नए वायरस पैदा करने लगता है ताकि शरीर की और सेल्स को भी प्रभावित कर सके।
शुरुआती स्टेज में तो आप बीमार नहीं होते और कुछ लोगों में लक्षण कभी भी नहीं दिखते। यूं तो यह इनक्यूबेशन पीरियड यानी संक्रमण होने और लक्षण दिखने के बीच का वक्त लोगों में अलग अलग होता है, लेकिन आमतौर पर यह 5 से 7 दिन का होता है।
ज्यादातर लोगों में हल्की सी बीमारी होती है 10 में से 8 लोगों में कोरोनावायरस संक्रमण माइल्ड होता है, और लक्षण होते हैं तेज बुखार और सूखी खांसी। शरीर में दर्द गले में खराश और सिर दर्द भी हो सकता हैं लेकिन जरूरी नहीं यह लक्षण दिखें ही।
बुखार का मतलब है हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता जिसे हम इम्यूनिटी कहते हैं वह संक्रमण पर अपना रिस्पॉन्ड कर रही है। इम्यूनिटी को पता चल जाता है कि वायरस शरीर में घुसा है और बाकी शरीर को भी सिग्नल जाता है जिससे एक केमिकल रिलीज होता है साइटोकाइन।
वैसे तो कोरोनावायरस में सूखी खांसी उत्पन्न होती है लेकिन कुछ लोगों में बलगम भी आने लगता है जिसमें फेफड़ों के डेड सेल होते हैं जो वायरस ने मारे हैं। इन लक्षणों को बेड रेस्ट लेने से लिक्विड पीने से और पेरासिटामोल से ठीक किया जाता है अधिकतर मामलों में यहां तक अस्पताल की जरूरत नहीं होती यह स्टेट एक हफ्ते तक रहती है।
इस स्टेज पर ज्यादातर लोग रिकवर हो जाते हैं क्योंकि उनके इम्यून सिस्टम ने वायरस को हरा दिया, लेकिन कुछ लोगों में गंभीर बीमारी भी हो जाती है।
यह गंभीर बीमारी वाली स्टेज तब आती है जब इम्यून सिस्टम कुछ ज्यादा ही रियेक्ट करने लगता है। इम्यून सिस्टम का केमिकल जब शरीर को सिग्नल देता है तो उससे इन्फ्लामेशन होती है जिसे हम सूजन कहते हैं और इसी को बैलेंस की जरूरत होती है।
ज्यादा इन्फ्लेमेशन हो जाने पर शरीर को नुकसान होता है। फेफड़ों की इनफॉरमेशन को ही निमोनिया कहते हैं, धीरे-धीरे सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और कुछ लोगों को वेंटिलेटर की जरूरत भी पड़ती है।
चीन के डाटा की मानें तो इस स्टेज में अब तक 14 फ़ीसदी लोग ही आए हैं।
ऐसा अनुमान है कि अब तक केवल 6% लोग ही क्रिटिकल रूप से बीमार हुए हैं इस स्टेज तक शरीर हार चुका रहता है और मौत होने का चांस बढ़ जाता है। यह तब होता है जब शरीर का ब्लड प्रेशर बहुत ज्यादा गिर जाता है और शरीर सेप्टिक शॉक में चला जाता है। शरीर के ऑर्गन काम करना बंद कर देते हैं।
डॉक्टरों ने बताया है कि हर संभव कोशिश के बाद भी कैसे लोगों की मौत हुई। पहली मौत एक 61 साल के व्यक्ति की हुई चीन के बुहान शहर में। उन्हें निमोनिया हो गया था वेंटिलेटर पर रखे जाने के बावजूद अस्पताल में 11 दिन के बाद उनकी मौत हो गई।
दूसरे व्यक्ति 69 साल के थे और उन्हें एक्यूट रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम हो गया था उन्हें निमोनिया हुआ और फिर सेप्टिक शॉक इस तरह उनकी भी मौत हो गई। इन दोनों मरीजों में एक नोट करने वाली बात थी यह दोनों ही मरीज स्वस्थ दिखने वाले थे लेकिन लंबे वक्त से स्मोकर थे, जिसकी वजह से उनके फेफड़े कमजोर हो गए थे और कोरोना के हमले से वह नहीं लड़ पाए।
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