अर्थराइटिस का नाम सुनते ही लगता है ये तो एक आम बीमारी है, लेकिन ऐसा है नहीं। ये आम बीमारी आपको जितनी आम लगती है उतनी ही खतरनाक है। पहले एक भ्रम था कि ये बढ़ती उम्र के साथ ही होती है, लेकिन हालिया शोध बताते हैं कि अर्थराइटिस केवल बुजुर्ग या उम्रदराज लोगों को ही नहीं होती बल्कि आज की युवा पीढ़ी इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होती है।
आज देश में घुटने के अर्थराइटिस से पीड़ित लगभग 30 प्रतिशत रोगी 45 से 50 साल की उम्र के हैं, जबकि 18 से 20 प्रतिशत रोगी 35 से 45 साल के हैं। अर्थराइटिस की समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक सामान्य…
तमाम बीमारियों के बीच भारत में अर्थराइटिस यानी गठिया रोग भी तेजी से बढ़ रहा हैं। इसके आंकड़े चिंताजनक है। भारत में 18 करोड़ से अधिक लोग अर्थराइटिस से प्रभावित हैं। सबसे बड़ी और चिंता की बात ये है कि भारत में हर साल 1 करोड़ से ज्यादा लोग इस बीमारी का शिकार होते हैंइन मामलों की संख्या कई अन्य रोगों जैसे मधुमेह, एड्स और कैंसर की तुलना में अधिक है। भारत की तकरीबन 14 फीसदी आबादी जोड़ों के इस रोग के इलाज के लिए हर साल डॉक्टर की मदद लेती है। एक अनुमान के अनुसार 2025 तक भारत में ऑस्टियो अर्थराइटिस के मामलों की संख्या छह करोड़ तक पहुंच जाएगी। इस तरह भारत इस दृष्टि से दुनिया की राजधानी के रूप में उभरेगा
अर्थराइटिस के कई रूप होते हैं। जब शरीर में यूरिक एसिड बढ़ जाता है तो वह शरीर के जोड़ो में छोटे-छोटे क्रिस्टल के रूप में जमा होने लगता है और दर्द का कारण बन जाता है। रूमेटाइड अर्थराइटिस, गाउट, सिरॉइसिस अर्थराइटिस, ऑस्टियो अर्थराइटिस प्रमुख हैं। आम भाषा में इसे गठिया का रोग कहते हैं।
अर्थराइटिस फाउंडेशन की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक बुर्जुगों से ज्यादा इन दिनों ये बीमारी युवाओं में खासकर महिलाओं में ज्यादा देखने को मिल रही है। 30 साल की उम्र सबसे खतरनाक होती है।
यूरिक एसिड का असामान्य स्तर गठिया को दर्शाता है। चालीस की उम्र के बाद मरीजों में ईएसआर (56.71 फीसदी, 61-85 वर्ष), सीआरपी (80.13 फीसदी, 85 से अधिक उम्र), आरएफ (12.77 फीसदी, 61-85 वर्ष) और यूए (34.76 फीसदी, 85 से अधिक उम्र) के स्तर असामान्य पाए गए हैं। ये आंकड़े जनवरी 2014 से पिछले साढ़े तीन सालों के दौरान अर्थराइटिस की जांच हेतु लिए गए 64 लाख नमूनों पर आधारित हैं।
हड्डी एवं जोड़ों के रोगों के निदान के लिए आमतौर पर एक्स-रे, सीटी-स्कैन, एमआरआई और डेक्सा स्कैन का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं रोग की स्क्रीनिंग एवं मॉनिटरिंग के लिए कई अन्य प्रयोगशाला परीक्षण काम में लिए जाते हैं। अर्थराइटिस का सबसे प्रचलित रूप ऑस्टियो अर्थराइटिस हर साल भारत में 1.5 करोड़ वयस्कों को प्रभावित करता है। इस तरह इसकी प्रसार दर 22 फीसदी से 39 फीसदी है।
इसके अलावा भारतीय आबादी में गठिया और रूमेटोइड अर्थराइटिस भी आमतौर पर पाए जाते हैं। ऑस्टियो अर्थराइटिस ज्यादातर महिलाओं में पाया जाता है और उम्र बढऩे के साथ इसकी संभावना बढ़ जाती है। अध्ययन में पाया गया है कि 65 साल से अधिक उम्र की तकरीबन 45 फीसदी महिलाओं में इसके लक्षण मौजूद हैं, जबकि 65 साल से अधिक उम्र की 70 फीसदी महिलाओं में इसके रेडियोलोजिकल प्रमाण पाए गए हैं।
क्या आपको पता है कि हमेशा जोड़ों में या हडि्डयों में दर्द होने से अर्थराइटिस नहीं होता है। कई बार आपकी नसों में बहुत दर्द होता है।
गठिया रोग का दर्द इतना तीव्र होता है कि व्यक्ति को चलने–फिरने और घुटनों को मोड़ने में भी बहुत परेशानी होती है। आपको अपने वजन का ध्यान रखना होगा।
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