Kidney Disease in hindi गुर्दे के रोग या किडनी की बीमारी (Kidney disease) शब्द का प्रयोग किडनी की कार्य क्षमता की हानि या क्षति के रूप में प्रयोग किया जाता है। किडनी मानव शरीर में रक्त को साफ करने, रक्त चाप को नियंत्रित करने तथा कई महत्वपूर्ण कार्यों में अपना योगदान देती हैं लेकिन जब किडनी सही तरीके से कम नहीं करती तो अनेक प्रकार की समस्याएँ पैदा होती हैं। किडनी रोग सम्पूर्ण मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। यदि इस बीमारी का समय पर निदान न किया जाये तो जीवन के लिए खतरा उत्पन्न कर सकती है। किसी भी स्थिति में किडनी रोग का इलाज किया जा सकता है। किडनी रोग की जटिलताओं से बचने के लिए इसके लक्षणों का समय पर निदान किया जाना आवश्यक होता है।
आज के इस लेख में आप जानेंगे कि किडनी रोग क्या है, इसके प्रकार, कारण, लक्षण और जटिलताएं क्या हैं तथा इसका निदान, इलाज और रोकथाम के लिए क्या कदम उठाये जा सकते हैं।
1. किडनी रोग क्या है – What is Kidney Disease in hindi
2. किडनी रोग के प्रकार – Types of Kidney Disease in hindi
3. किडनी रोग के कारण – Causes Of Kidney Disease in hindi
4. किडनी रोग के लक्षण – kidney disease symptoms in hindi
5. किडनी रोग के लिए जोखिम कारक – kidney disease Risk factors in hindi
6. किडनी रोग की जटिलताएं – kidney disease Complications in hindi
7. किडनी रोग का निदान – kidney disease diagnosis in hindi
8. गुर्दे के रोग का उपचार और इलाज – Kidney Disease Treatment in hindi
9. किडनी रोग से बचाव के उपाय – kidney disease prevention in hindi
किडनी रोग (Kidney disease) का सम्बन्ध किडनी की कार्य क्षमता में विकार उत्पन्न होने से है। किडनी रोग, शरीर द्वारा रक्त को साफ करने तथा रक्त से अतिरिक्त पानी को फ़िल्टर करने की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं, और रक्तचाप को नियंत्रित करने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकते हैं। किडनी की बीमारी (Kidney disease) को रेनल डिजीज (renal disease) भी कहा जाता है।
जब किडनी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, तो अपशिष्ट उत्पादों और तरल पदार्थों की मात्रा शरीर में बढ़ती जाती है। जिससे कि कमजोरी, खराब नींद और सांस की तकलीफ और सूजन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उपचार के बिना किडनी की कार्य क्षमता ओर खराब हो सकती है, और अंततः किडनी काम करना बंद कर सकती हैं। जो कि एक गंभीर समस्या है।
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किडनी की बीमारी (Kidney disease) किसी भी व्यक्ति को बहुत धीरे-धीरे या अचानक प्रभावित कर सकती है। अतः इस आधार पर किडनी की बीमारी मुख्य रूप दो प्रकार की होती है:
यदि किसी कारणवश किडनी अचानक काम करना बंद कर देती हैं, तो इस स्थिति को एक्यूट किडनी इंजरी (acute kidney injury) या एक्यूट किडनी फेल्योर (acute renal failure) कहते हैं। यह स्थिति दुर्घटना या संक्रमण के कारण उत्पन्न हो सकती है। एक्यूट किडनी इंजरी (acute kidney injury) में निम्न समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं:
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जब किडनी लगभग 3 महीने से अधिक समय तक अच्छी तरह से काम नहीं करती हैं, तो चिकित्सा के क्षेत्र में इस समस्या को क्रोनिक किडनी डिजीज कहते हैं। यह स्थिति समय के साथ धीरे-धीरे ख़राब होती चली जाती है। शुरुआती चरणों में क्रोनिक किडनी डिजीज के कोई लक्षण प्रगट नहीं होते हैं, लेकिन इलाज न किये जाने पर यह स्थिति गंभीर होती जाती है। मुख्य रूप से मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी स्थितियां क्रोनिक किडनी डिजीज का कारण बनती हैं। समय के साथ उच्च रक्त और उच्च शर्करा स्तर व्यक्ति के गुर्दे (किडनी) को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
दीर्घकालिक वायरल बीमारियां (viral illnesses,) जैसे एचआईवी / एड्स, हेपेटाइटिस बी (hepatitis B) और हेपेटाइटिस सी (hepatitis C ) आदि, क्रोनिक किडनी डिजीज का मुख्य कारण बनती हैं।
इसके अतिरिक्त किडनी से सम्बंधित बीमारीओं के अंतर्गत निम्न को शामिल किया जा सकता है, जैसे:
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किडनी रोग (renal disease) के संभावित कारणों में निम्न को शामिल किया जा सकता है:
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किडनी रोग के लक्षण इसके प्रकारों और रोग की गंभीरता पर निर्भर करते हैं। किडनी रोग के लक्षण निम्न हैं:
क्रोनिक किडनी की बीमारी कई वर्षों में बिना किसी लक्षणों के प्रगति कर सकती है। स्वास्थ्य परीक्षण के दौरान या प्रयोगशाला परीक्षण के दौरान गुर्दे (किडनी) की बीमारी के प्रारंभिक लक्षणों का पता लगाया जा सकता है। क्रोनिक किडनी डिजीज के संभावित लक्षणों में निम्न शामिल हैं:
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एक्यूट किडनी डिजीज या एक्यूट किडनी इंजरी (acute kidney injury) का सम्बंध अचानक किडनी को होने वाले नुकसान से है। यह स्थिति काफी गंभीर हो सकती है तथा इसके लिए तुरंत उपचार की आवश्यकता होती है। इस बीमारी के लक्षणों में शामिल हैं:
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निम्न कारक किडनी डिजीज के लिए जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं, जैसे:
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लम्बे समय से चल रही किडनी की समस्या निम्नलिखित जटिलताओं का कारण बन सकती है:
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किडनी रोग (renal disease) का निदान करने के लिए विभिन्न तरह के परीक्षणों का प्रयोग किया जा सकता है। ये परीक्षण किडनी की क्षति का अनुमान लगाने और बीमारी की गंभीरता का आकलन करने के लिए उपयोगी होते हैं।
डॉक्टर मरीज के लक्षण, आयु, चिकित्सा इतिहास तथा जीवनशैली को देखते हुए निम्न नैदानिक परीक्षणों की सलाह दे सकता है, जैसे:
मूत्र परीक्षण के अंतर्गत मूत्र प्रोटीन टेस्ट (Urine protein) तथा मूत्र-विश्लेषण (Urinalysis) की सिफारिश की जा सकती है। पेशाब में प्रोटीन का पता लगाने के लिए urine albumin-to-creatinine ratio test (urine ACR test), एक आवश्यक परीक्षण है। डॉक्टर इस परीक्षण के तहत् मूत्र में एल्बुमिन की मात्र की जाँच कर किडनी रोग का निदान कर सकता है। इसके अलावा मूत्र में क्रिएटिनिन की मात्रा भी किडनी डिजीज के निदान में योगदान दे सकती है।
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रक्त परीक्षण भी किडनी रोग का निदान करने के लिए एक उपयोगी परीक्षण है। इस परीक्षण के तहत् ग्लोम्युलर निस्पंदन दर (जीएफआर) ज्ञात की जा सकती है। डॉक्टर जीएफआर (GFR) के परीणामों के आधार पर किडनी की बीमारी का निदान कर सकता है। इसके अतिरिक्त रक्त परीक्षण के अंतर्गत एनीमिया, पोटेशियम के उच्च स्तर, कैल्शियम और फॉस्फेट के स्तर की भी जाँच की जा सकती है।
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डॉक्टर द्वारा इमेजिंग परीक्षण के अंतर्गत मरीज को सीटी स्कैन, एक्स-रे सिस्टोग्राम (एक मूत्राशय एक्स-रे) (cystogram), वॉयडिंग सिस्टोरेथ्रोग्राम (voiding cystourethrogram), अल्ट्रासाउंड, चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (एमआरआई) आदि में से एक या एक से अधिक परीक्षण की सिफारिश की जा सकती है। ये सभी परीक्षण किडनी रोग (renal disease) का निदान करने में मदद कर सकते हैं।
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बायोप्सी परीक्षण के अंतर्गत डॉक्टर किडनी के ऊतकों का एक छोटा सा नमूना प्राप्त करने के लिए, मरीज की पीठ में एक विशेष प्रकार की सुई डाली जाती है। किडनी बायोप्सी की मदद से क्रोनिक किडनी की बीमारी का निदान आसानी से किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त मूत्राशय बायोप्सी (bladder biopsy) की भी सिफारिश की जा सकती है।
इन परीक्षणों के अलावा, डॉक्टर द्वारा किडनी रोग का निदान करने के लिए रक्तचाप परीक्षण (blood pressure test) क्रिएटिनिन क्लीयरेंस (Creatinine clearance) तथा रेनल पैनल (Renal panel) की भी सलाह दी जा सकती है।
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किडनी रोग का यदि समय पर निदान न किया जाये, तो सम्बंधित व्यक्ति की किडनी स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त हो सकती है। अतः बीमारी का प्रारंभिक चरणों में निदान कर, किडनी की स्थाई रूप से होने वाली क्षति को रोका जा सकता है। किडनी रोग (renal disease) का कारण बनने वालें कारकों के आधार पर डॉक्टर द्वारा उपचार प्रक्रिया को प्रारंभ किया जा सकता है। उपचा प्रक्रिया में उचित दवाओं और एक स्वस्थ्य आहार के सेवन की आवश्यकता पड़ सकती है।
मधुमेह या उच्च रक्तचाप की स्थिति में उपचार के लिए उच्च दवाओं की सिफारिश की जा सकती है। यदि व्यक्ति के गुर्दे (किडनी) काम करना बंद कर देते हैं तो उपचार के दौरान डायलिसिस (dialysis) की आवश्यकता पड़ सकती है। इसके अतिरिक्त किडनी, गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त होने पर डॉक्टर द्वारा मरीज को किडनी प्रत्यारोपण (kidney transplant) की सिफारिश की जा सकती है।
दवाएं – एनीमिया, उच्च रक्तचाप, सूजन और किडनी रोग से सम्बंधित जटिलताओं और लक्षणों को कम करने के लिए दवाओं की सिफारिश की जा सकती है।
डायलिसिस (dialysis) – जब व्यक्ति की किडनी कार्य करना बंद कर देती हैं, तब डायलिसिस की आवश्यकता होती है। डायलिसिस एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें किडनी विफलता (Kidney failure) की स्थिति में रक्त से अपशिष्ट उत्पादों और अतिरिक्त तरल पदार्थ को कृत्रिम रूप से हटाया जाता है।
किडनी प्रत्यारोपण (kidney transplant) – किडनी प्रत्यारोपण एक प्रकार की शल्य चिकित्सा है, जिसमें मरीज की किडनी को, दाता व्यक्ति की स्वस्थ किडनी से स्थानांतरित कर दिया जाता है।
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गुर्दे के रोग (Renal Disease) की रोकथाम के लिए एक स्वस्थ्य आहार दिनचर्या और जीवनशैली में परिवर्तन आवश्यक होता है। अतः बेमारी की रोकथाम के लिए निम्न उपाय अपनाये जा सकते हैं:
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