Prasav Pida Ke Lakshan In Hindi शिशु को जन्म देने से पहले आमतौर पर हर मां को प्रसव पीड़ा से गुजरना पड़ता है। प्रसव पीड़ा क्या है, डिलीवरी होने के लक्षण, लेबर पेन शुरु होने के लक्षण क्या हैं इन्हें कैसे पहचाने, इन सभी सवालों का जवाब आपको इस लेख में मिल जायेगा। वास्तव में गर्भावस्था का अंतिम महीना बहुत रोमांचित होने वाला महीना होता है क्योंकि यही वह समय होता है जब आप अपने बच्चे को इस दुनिया में लाने के लिए तैयार होती हैं, लेकिन देखा जाता है कि ज्यादातर महिलाएं प्रसव पीड़ा के डर के कारण अधिक तनाव में रहती हैं। एक स्टडी में पाया गया है कि लेबर पेन के तनाव के कारण गर्भवती महिलाओं की सेहत ज्यादा प्रभावित होती है और डर के कारण उनका दर्द भी अधिक बढ़ सकता है। कुछ महिलाएं प्रसव से जुड़ी सही जानकारी के अभाव में बहुत ज्यादा डरी सहमी रहती हैं। यदि आप भी मां बनने वाली हैं लेकिन आपको प्रसव पीड़ा के बारे में सही जानकारी नहीं है तो इस लेख में हम आपको प्रसव पीड़ा शुरू होने के लक्षणों के बारे में बताने जा रहे हैं।
विषय सूची
1. प्रसव पीड़ा कब शुरू होती है – When start labour pain in Hindi
2. प्रसव पीड़ा के मुख्य लक्षण – Common symptoms of labour pain in Hindi
आमतौर पर पूर्ण गर्भावस्था की अवधि 37 से 42 सप्ताह की होती है। लेकिन सिर्फ 3 से 5 प्रतिशत बच्चों का जन्म ही निर्धारित समय पर होता है। लगभग 40 प्रतिशत बच्चे निर्धारित समय से एक या दो हफ्ते पहले ही पैदा हो जाते हैं। इसलिए हर महिला में प्रसव पीड़ा शुरू होने का समय भी अलग-अलग होता है। डॉक्टर बताते हैं कि प्रेगनेंट महिला को प्रेगनेंसी के 37वें हफ्ते से लेकर 40वें हफ्ते के बीच किसी भी समय प्रसव पीड़ा शुरू हो सकती है। इसलिए गर्भवती महिला को इसी आधार पर बच्चे को जन्म देने की तैयारी कर लेनी चाहिए।
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नौ महीने की प्रेगनेंसी में समय समय पर महिलाओं के शरीर में बदलाव होते रहते हैं लेकिन डिलीवरी से कुछ हफ्ते पहले कुछ विशेष तरह के बदलाव दिखायी देते हैं जिनके आधार पर प्रसव पीड़ा शुरू होने का अनुमान लगाया जाता है और प्रसव पीड़ा की पहचान की जाती है। आइये जानते हैं प्रसव पीड़ा यानि लेबर पेन शुरू होने के मुख्य लक्षण क्या हैं।
जब महिला का गर्भाशय बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार हो जाता है तो यह अपने आप पतला होकर फैलने लगता है। आमतौर पर यह डिलीवरी के कुछ हफ्तों पहले होता है। हालांकि कुछ महिलाओं का गर्भाशय बहुत धीमी गति से फैलता है और कुछ महिलाओं का तेजी से फैलता है। माना जाता है कि प्रेगनेंट महिला का गर्भाशय लगभग 10 सेमी. तक खुलता है और इसी के आधार पर उसे प्रसव पीड़ा शुरू होती है। इस संकेत के आधार पर लेबर पेन के लक्षणों को आसानी से पहचाना जा सकता है और प्रसव पीड़ा की पहचान भी की जा सकती है।
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बच्चे को जन्म देने का समय नजदीक आते ही प्रोस्टाग्लैंडिन (prostaglandin) हार्मोन आंतों में लगातार हलचल पैदा करता है जिसके कारण गर्भवती महिला का पेट गड़बड़ हो जाता है और वह डायरिया की शिकार हो जाती है। जब आंत पूरी तरह खाली हो जाता है तब महिला का शरीर बच्चे को बाहर आने के लिए रास्ता बनाता है। कुछ महिलाओं को लेबर पेन के दौरान बार बार शौच लगती और कब्ज की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। हालांकि इसमें कोई चिंता जैसी बात नहीं होती है इसलिए घबराना नहीं चाहिए और इस दौरान खूब पानी पीना चाहिए
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गर्भाशय ग्रीवा फैलते ही एक मोटा श्लेष्म, जोकि प्रेगनेंसी के दौरान गर्भाशय को बंद रखता है, ढीला हो जाता है और योनि के माध्यम से बाहर निकलने लगता है। यह देखने में तरल, पानी की तरह, चिपचिपा और जेली की तरह भूरा, गुलाबी और लाल रंग का होता है। यह डिलीवरी से कई हफ्तों या कई दिनों पहले योनि से निकलना शुरू होता है। म्यूकस के साथ ही योनि से हल्का खून भी निकलता है। इस आधार पर प्रसव पीड़ा शुरू होने के लक्षणों का पता लगाया जा सकता है।
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गर्भवती महिलाओं को जब तेज संकुचन महसूस होने लगे तो इस लक्षण के आधार पर पहचान लेना चाहिए कि प्रसव पीड़ा शुरू होने वाली है। संकुचन डिलीवरी का समय नजदीक आने पर होता है और शुरूआत में यह बहुत हल्का होता है लेकिन धीरे धीरे इसकी गति तेज हो जाती है। आमतौर पर संकुचन कमर के निचले हिस्से में होता है और प्रत्येक 20 से 30 मिनट के अंतराल पर होता है। एक समय के बाद यदि संकुचन सामान्य तरह से होता है तो कोई चिंता की बात नहीं है लेकिन अगर असहनीय संकुचन हो रहा हो तो प्रसव की तैयारी और डॉक्टर के पास जाने की जरूरत पड़ सकती है।
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डिलीवरी का समय नजदीक आते ही अक्सर गर्भवती महिला का वजन बढ़ना बंद हो जाता है। इस दौरान कुछ महिलाओं का वजन भी घटने लगता है। हालांकि यह बहुत सामान्य बात है और इससे शिशु के वजन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। माना जाता है कि डिलीवरी से कुछ हफ्तों पहले गर्भवती महिलाओं के शरीर में एम्नियोटिक द्रव (amniotic fluid) का स्तर कम हो जाता है जिसके कारण उनका वजन घटने लगता है। इस आधार पर प्रसव पीड़ा के लक्षण को पहचाना जा सकता है।
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गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में प्रेगनेंट महिला का मूत्राशय (bladder) अधिक एक्टिव हो जाता है और पेट भी ज्यादा भारी हो जाता है। कुछ महिलाओं को लेबर पेन शुरू होने से पहले बार बार पेशाब का अनुभव होता है जबकि कुछ महिलाओं को रात के समय सही तरीके से नींद नहीं आती है। डिलीवरी से कुछ हफ्तों पहले गर्भवती महिला के शरीर में एनर्जी का लेवल कम हो जाता है जिसके कारण उन्हें अन्य दिनों की अपेक्षा अंतिम कुछ हफ्तों में अधिक थकान का अनुभव होता है। इस आधार पर प्रसव पीड़ा के लक्षणों को पहचाना जा सकता है।
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शिशु को जन्म देने का समय करीब आने पर अचानक गर्भवती महिलाओं के शरीर और जोड़ों की मांसपेशियां ढीली पड़ जाती हैं और उनके शरीर को पहले की अपेक्षा कुछ राहत महसूस होती है। माना जाता है कि शिशु को इस दुनिया में आने के लिए प्रकृति गर्भवती महिला के श्रोणि (pelvis) को खोलती है। इसलिए यदि शरीर और जोड़ों की मांसपेशियों में ढीलापन या लचीलापन महसूस हो तो यह डिलीवरी होने के लक्षण या प्रसव पीड़ा शुरू होने का संकेत हो सकता है।
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गर्भाशय में एक झिल्ली या थैली होती है जिसे एसआरओएम के नाम से जाना जाता है। डिलीवरी होने से कुछ दिनों पहले यह थैली फल जाती है जिसे आम बोलचाल की भाषा में पानी की थैली फटना कहा जाता है। लगभग 15 से 25 प्रतिशत महिलाओं में प्रसव पीड़ा शुरू होने का यह सबसे पहला लक्षण होता है। थैली फटने के बाद जब पानी बाहर निकलता है तो इसकी महक पेशाब की तरह होती है और कई बार इतनी तेजी से पानी निकलता है कि तत्काल डॉक्टर के पास जाने की जरूरत पड़ती है।
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