Color Blindness in Hindi कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता) को रंग देखने की क्षमता में कमी के रूप में जाना जाता है। यह एक सामान्य स्थिति है, जो ज्यादातर पुरुषों को प्रभावित करती है। वर्णांधता (Color Blindness) रोग से प्रभावित व्यक्तियों में से अधिकतर लोग वंशानुगत वर्णांधता रखते हैं। यह नेत्र रोग आंखों का अंधापन (Blindness) से सम्बंधित नहीं होता है।
आँख की रेटिना में, दो प्रकार की कोशिकाएं होती हैं, जो प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता रखती हैं। उन्हें रॉड (rods) और कॉन्स (cones) कोशिकाएं कहा जाता है। ये दोनों कोशिकाएं रंग का बोध कराती हैं। अतः कलर ब्लाइंडनेस या वर्णांधता की स्थिति, रेटिना कोशिकाओं में दोष या समस्या उत्पन्न होने के कारण प्रगट होती है। कुछ व्यक्तियों में वर्णांधता की स्थिति सामान्य और कुछ में यह स्थिति अधिक गंभीर हो सकती है, जिसके कारण रंगहीनता (Achromatosis) या अवर्णता की स्थिति भी पैदा हो सकती है। अतः इस स्थिति से बचने के लिए कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता) के कारणों, प्रारम्भिक लक्षणों को जानना अति आवश्यक है।
इस लेख के माध्यम से आप जानेंगे कि कलर ब्लाइंडनेस (Color Blindness) या वर्णांधता क्या है, इसके कारण, लक्षण, प्रकार, जाँच और उपचार क्या हैं, कलर ब्लाइंडनेस से बचने के लिए कौन से उपाय अपनाए जा सकते हैं।
रंगों की पहचान करने या रंगों में अंतर करने की क्षमता में कमी को कलर ब्लाइंडनेस (Color Blindness) या वर्णांधता कहा जाता है। वर्णांधता (Color Blindness) एक नेत्र रोग है, जिसमें रंगों के बीच अंतर स्पष्ट करने में कठिनाई होती है। इसका संबंध आँखों के अंधापन से नहीं होता है। यह आँखों द्वारा रंगों की स्पष्ट पहचान न कर पाने की स्थिति से सम्बंधित है। इस नेत्र रोग के कारण पीड़ित व्यक्ति को नीले और पीले रंग या लाल और हरे रंग जैसे कुछ रंगों की अलग-अलग पहचान करने में कठिनाई होती है।
वर्णांधता या स्पष्ट रूप से रंग दृष्टि में कमी (Color Vision Deficiency) एक अनुवांशिक या वंशानुगत स्थिति है, जो महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को अधिक प्रभावित करती है। लाल-हरे रंग की दृश्यता में कमी, वर्णांधता (Color Blindness) का सबसे सामान्य रूप है। व्यक्तियों में नीले-पीले रंगों को देखने की क्षमता में कमी का पाया जाना बहुत अधिक दुर्लभ होता है। नीले-पीले रंग की वर्णांधता आमतौर पर पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करती है।
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कलर ब्लाइंडनेस (Color Blindness) मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है।
जब आंखों की लाल कॉन्स (red cones) कोशिकाओं या हरे कॉन्स (green cones) कोशिकाओं के फोटोपिगमेंट (photopigments) ठीक से काम नहीं करते है। तब इस स्थिति में लाल और हरे रंग के बीच पहचान कर पाना मुश्किल होता है। रेड-ग्रीन कलर ब्लाइंडनेस मुख्य रूप से चार प्रकार का होता है:
ड्यूटेरोनोमाइल (Deuteranomaly) – यह महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला वर्णांधता का एक सामान्य रूप है। यह तब होता है जब ग्रीन कॉन्स फोटोपिगमेंट काम नहीं करता है। जिसके कारण पीला और हरा रंग लाल दिखाई देता है, तथा पीड़ित व्यक्ति बैंगनी और नीले रंग में अंतर स्पष्ट नहीं कर पाता है।
प्रोटानोमली (Protanomaly) – इस स्थिति में व्यक्ति का रेड कॉन्स फोटोपिगमेंट (red cone photopigment) ठीक से काम नहीं करता है। इस प्रकार की वर्णांधता की स्थिति में नारंगी, लाल और पीले रंग व्यक्ति को हरे दिखाई देते हैं। यह वर्णांधता काफी हल्की होती है और दैनिक जीवन में कोई समस्या पैदा नहीं करती है।
प्रोटेनोपिया (Protanopia) – इस प्रकार की वर्णांधता में व्यक्ति की आँख में रेड कॉन्स कोशिकाएं (red cone cells) काम करना बंद कर देती हैं। जिसके कारण व्यक्ति को लाल रंग, गहरे भूरे रंग का दिखाई देता है। इसके अलावा नारंगी, पीले और हरे रंग की वस्तुएं कुछ पीले रंग की दिखाई देती हैं।
ड्यूटेरोनोपिया (Deuteranopia) – इस प्रकार की वर्णांधता की स्थिति में ग्रीन कॉन कोशिकाएं (green cone cells) अपना काम करना बंद कर देती हैं। जिससे लाल रंग की वस्तुएं भूरे-पीले रंग की दिखाई देती हैं, और हरा रंग, गहरा पीला दिखाई देता है।
इस प्रकार की वर्णांधता (Color Blindness) से प्रभावित व्यक्ति को पीले और नीले रंग की अलग-अलग पहचान करने में कठिनाई होती है। इस प्रकार की कलर ब्लाइंडनेस की समस्या तब उत्पन्न होती है, जब व्यक्ति की आँख में उपस्थित ग्रीन कॉन फोटोपिगमेंट सही से कार्य नहीं करते हैं या फिर अनुपस्थित होते हैं। यह कलर ब्लाइंडनेस का दूसरा सबसे सामान्य रूप है, और पुरुषों तथा महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करता है। नीला-पीला कलर ब्लाइंडनेस मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है:
ट्राइटोनोमाइल (Tritanomaly) – इस प्रकार की वर्णांधता की स्थिति में नीली कॉन कोशिकाएँ (blue cone cells) सीमित मात्रा में कार्य करती हैं, जिसके कारण नीला रंग, हरा दिखाई देता है।
ट्रिटेनोपिया (Tritanopia) – यह नीले-पीले रंग के अंधापन की स्थिति है। यह स्थिति अत्यंत दुर्लभ है जिसमें नीला रंग, हरा दिखाई देता है, और पीला रंग, हल्का ग्रे या बैंगनी दिखाई देता है।
पूर्ण वर्णांधता की स्थिति को एक्रोमैटोप्सिया (achromatopsia) कहा जाता है। इस प्रकार की वर्णांधता वाला व्यक्ति कोई भी रंग नहीं देख सकता है। सभी वस्तुएं उसे भूरे रंग की दिखाई देती है। एक्रोमैटोप्सिया (Achromatopsia) कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता) का गंभीर रूप है।
इसके अतिरिक्त वर्णांधता (Color Blindness) के निम्न प्रकार भी हो सकते हैं।
अनुवांशिक वर्णांधता (Inherited Color Blindness) एक सामान्य प्रकार है। इस प्रकार की कलर ब्लाइंडनेस व्यक्ति में एक अनुवांशिक दोष के कारण उत्पन्न होता है। अर्थात यह स्थिति परिवार के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित की जाती है। जिन व्यक्ति के परिवार में कलर ब्लाइंडनेस (Color Blindness) से पीड़ित सदस्य हैं, तो उस परिवार का कोई भी व्यक्ति इस स्थिति को ग्रहण कर सकता है।
अक्वायर्ड कलर ब्लाइंडनेस (Acquired Color Blindness) जीवन के किसी भी पक्ष में विकसित हो सकती है और यह स्थिति पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से प्रभावित कर सकती है। वे रोग जो ऑप्टिक तंत्रिका (optic nerve) या आंख की रेटिना (retina) को नुकसान पहुंचाते हैं, अक्वायर्ड कलर ब्लाइंडनेस रोग (वर्णांधता) का कारण बन सकते हैं। इसलिए यदि किसी कारणवश रंग दृष्टि (color vision) बदलती है, तो सम्बंधित व्यक्ति को तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
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कलर ब्लाइंडनेस या वर्णांधता (Color Blindness) के लक्षण काफी सामान्य होते हैं। ये लक्षण किसी-किसी व्यक्ति में बहुत हल्के, जबकि किसी-किसी व्यक्ति में बहुत गंभीर हो सकते हैं। बहुत से व्यक्तियों में इतने हल्के लक्षण होते हैं, कि वे वर्णांधता (Color Blindness) रोग की पहचान आसानी से नहीं कर पाते है। वर्णांधता के लक्षणों में शामिल हैं:
सामान्य स्थितियों में कलर ब्लाइंडनेस या वर्णांधता की स्थिति, दृष्टि की तीव्रता को प्रभावित नहीं करती है। इसके अतिरिक्त यदि कोई व्यक्ति सभी रंगों को देखने में असमर्थ हो और सभी वस्तुएं भूरे रंग की दिखाई दें, तो उसे एक्रोमैटोप्सिया (achromatopsia) रोग होता है। एक्रोमैटोप्सिया (achromatopsia) एक टोटल कलर ब्लाइंडनेस की स्थिति है, जिसमें व्यक्ति निम्न समस्याओं का अनुभव कर सकता है, जैसे:
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जब आँख की रेटिना में उपस्थित प्रकाश संवेदनशील कोशिकाएं, आने वाले प्रकाश की तरंग दैर्ध्य में अंतर स्पष्ट करने में असफल होती हैं, तब यह समस्या वर्णांधता (Color Blindness) का कारण बनती है। यह समस्या बढ़ती उम्र, कुछ प्लास्टिक में मौजूद स्टाइरीन (styrene) जैसे जहरीले रसायनों और अत्यधिक शराब पीने की आदत के कारण भी उत्पन्न हो सकती है। वर्णांधता या कलर ब्लाइंडनेस (Color Blindness) के अनेक कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
आनुवंशिकता (Heredity) – अधिकांश व्यक्तियों में वर्णांधता (Color Blindness) का मुख्य कारण आनुवंशिकता है, जो व्यक्ति को विरासत के रूप में दिया जाता है। यह रोग आम तौर पर मां से बेटे को दिया जाता है।
रोग (Diseases) – कलर ब्लाइंडनेस रोग (Color Blindness) की स्थिति रेटिना की बीमारी या चोट के परिणामस्वरूप उत्पन्न हो सकती है। दृष्टि को प्रभावित करने वाली बीमारियां, जो वर्णांधता का कारण बनती हैं, में शामिल हैं:
दवाएं (Medications) – कुछ दवाएं रंग दृष्टि (color vision) में परिवर्तन कर कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता) का कारण बन सकती हैं, इन दवाओं में शामिल हैं:
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महिलाओं की तुलना में एक पुरुषों को जो वर्णांधता रोग (Color Blindness) के साथ पैदा होता है, उसे अधिक जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है। वर्णांधता रोग के जोखिम को बढ़ाने वाली कुछ स्थितियां निम्न हैं:
इसके अतिरिक्त कुछ दवाएं भी इस समस्या के जोखिम को बढ़ा सकती हैं।
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वर्णांधता रोग (Color Blindness) की संभावनाओं की जाँच और निदान करने के लिए नेत्र रोग विशेषज्ञ की सलाह ली जाती है। इस स्थिति में डॉक्टर मरीज के पारिवारिक इतिहास के बारे में जानकारी लेगा और लक्षणों से सम्बंधित कुछ प्रश्न पूंछेगा। इसके साथ ही वर्णांधता की समस्या का निदान करने के लिए एक सरल परीक्षण की भी सिफारिश कर सकता है।
कलर ब्लाइंड टेस्ट (colour blind test) – इस परीक्षण में “स्यूडोइओक्रोमैटिक प्लेट्स” (pseudoisochromatic plates) नामक विशेष छवियों का उपयोग किया जाता है। इन विशेष प्रकार की प्लेट्स में बहुत से रंगीन बिंदुओं से बना पैटर्न दिखाया जाता है। ये पैटर्न संख्याओं और प्रतीकों के रूप में होते हैं, जिन्हें केवल सामान्य दृष्टि वाले व्यक्ति ही देख सकते हैं। जो व्यक्ति कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता) से पीड़ित है, वह इन पैटर्न को नहीं देख सकते हैं या फिर उन्हें कोई ओर पैटर्न दिखाई दे सकता हैं।
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कलर ब्लाइंडनेस (Color Blindness) का इलाज, इसके कारणों का निदान करने के बाद किया जा सकता है। वर्णांधता का कारण बनने वाली अंतर्निहित स्थितियां या रोगों का इलाज करने के लिए दवाओं की सिफारिश की जा सकती है। अतः अंतर्निहित कारण का इलाज, रंगों की पहचान में सुधार करने में मदद कर सकता है।
आनुवंशिक कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता) के लिए कोई उचित इलाज नहीं है। लेकिन वर्णांधता (Color Blindness) की स्थिति में आवश्यक रंग की कमी को दूर करने के लिए संपर्क लेंस (contact lenses) और चश्मे (glasses) का उपयोग किया जा सकता है। संपर्क लेंस या चश्मे की सिफारिश नेत्र रोग विशेषज्ञ द्वारा की जा सकती है।
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कलर ब्लाइंडनेस रोग अधिकतर वंशानुगत होता है। इस रोग को ज्यादातर लड़के, अपनी मां से प्राप्त करते हैं, और कुछ स्थितियों में लड़कियां अपने माता-पिता दोनों से प्राप्त कर सकती हैं। अतः वंशानुगत कलर ब्लाइंडनेस की रोकथाम के लिए कोई उपाय नहीं है।
इसके अतिरिक्त कुछ स्वास्थ्य बीमारियाँ जैसे मधुमेह, पार्किंसंस रोग (Parkinson’s disease), मोतियाबिंद (Cataracts), अल्जाइमर रोग (Alzheimer’s disease) आदि के प्रति जागरूक रहकर और इन बीमारियों का उचित समय में इलाज प्राप्त कर, कलर ब्लाइंडनेस या वर्णांधता के जोखिम को कम किया जा सकता है।
शराब का अत्यधिक सेवन भी वर्णांधता रोग का कारण बनता है, अतः शराब के सेवन बहुत कम मात्रा में करना चाहिए।
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