Human Skin Anatomy In Hindi: त्वचा एक वयस्क शरीर के कुल वजन का लगभग 15% होती है। यह शरीर के आवश्यक अंगों, मांसपेशियों, ऊतकों और कंकाल प्रणाली इत्यादि की, बाहरी दुनिया से सुरक्षा करती है। अतः एक स्वास्थ्य त्वचा मनुष्यों को बैक्टीरिया, बदलते तापमान और रासायनिक जोखिम से बचाती है। सनस्क्रीन लगाने, हाइड्रेटेड रहने और अपनी डाइट में विटामिन (A, C, E and K) से भरपूर खाद्य पदार्थ को शामिल करने से त्वचा को स्वस्थ्य रखने में मदद मिलती हैं। आज के इस लेख में आप जानेगें कि त्वचा क्या है, इसकी कितनी परतें होती हैं, तथा साथ-साथ इसके कार्य, रोग, निदान और उपचार के बारे में।
विषय सूची
1. मानव त्वचा की संरचना – Human skin anatomy in hindi
2. मानव त्वचा के कार्य – Function of skin in Hindi
3. त्वचा की परतें – Skin layers in Hindi
4. त्वचा की समस्याएं – Skin problems in Hindi
5. त्वचा रोगों की जाँच के लिए स्किन टेस्ट – Skin Tests in Hindi
6. त्वचा रोगों का इलाज – Twacha rog ka ilaj in Hindi
त्वचा शरीर का सबसे बड़ा बाहरी भाग है, जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग 20 वर्ग फुट होता है। मानव त्वचा की औसत मोटाई 0.05 से 0.65 सेमी० तक होती है। त्वचा मुख्य रूप से शरीर को एक सुरक्षात्मक कवच प्रदान करती है। यह यांत्रिक प्रभाव और दबाव, तापमान में बदलाव, सूक्ष्म जीव, विकिरण और रसायन इत्यादि से शरीर की रक्षा करती है।
त्वचा को तीन परतों में विभाजित किया जाता है, जो एपिडर्मिस, डर्मिस, और चमड़े के नीचे की वसा या हाइपोडर्मिस (hypodermis) हैं। त्वचा का सबसे बाहरी स्तर, एपिडर्मिस में केराटिनोसाइट्स (keratinocytes) नामक कोशिकाओं का एक विशिष्ट समूह होता है, जो केराटिन (keratin) नामक एक सुरक्षात्मक प्रोटीन को संश्लेषित करता है। त्वचा की मध्य परत डर्मिस, मुख्य रूप से तंतुमय संरचनात्मक प्रोटीन कोलेजन (collagen) से बनी होती है। त्वचा की सबसे निचली परत हाइपोडर्मिस (hypodermis), वसा कोशिकाओं (लिपोसाइट्स) से बनी होती है। शरीर की शारीरिक रचना और भौगोलिक स्थिति के आधार पर, इन परतों की मोटाई काफी भिन्न-भिन्न होती है।
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त्वचा शरीर का एक सुरक्षात्मक कवच होने के साथ, अनेक प्रकार के कार्यों में अपना योगदान देती हैं, जैसे:
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मानव त्वचा में परतों अर्थात स्किन लेयर की संख्या तीन होती हैं, जो कि इस प्रकार हैं:
एपिडर्मिस त्वचा की सबसे बाहरी परत है, जो एक वाटरप्रूफ या जलरोधी आवरण प्रदान करती है और त्वचा को रंग प्रदान करती है। एपिडर्मिस में स्थित मेलानोसाइट्स (melanocytes) नामक विशेष कोशिकाओं द्वारा उत्पादित मेलेनिन (melanin) रंजक ही स्किन के कलर का कारण बनता है।
एपिडर्मिस को पांच सबलेयर (sublayers) में बांटा गया है:
यह एपिडर्मिस की सबसे निचली परत है, जिसे बेसल सेल लेयर (basal cell layer) के रूप में भी जाना जाता है। इस लेयर में स्तंभ (columnar) के आकार की बेसल कोशिकाएं होती हैं, जो विभाजित होती हैं और पुरानी कोशिकाओं को त्वचा की सतह की ओर धकेलती हैं।
इस परत को स्क्वैमस सेल लेयर (squamous cell layer) के रूप में भी जाना जाता है, जो स्ट्रेटम ग्रैनुलोसम (stratum granulosum) और स्ट्रेटम बेसल के बीच पाई जाती है। यह लेयर, एपिडर्मिस की सबसे मोटी परत है। इसमें नवीन केराटिनोसाइट्स (keratinocytes) नामक कोशिकाएं होती है, जो केराटिन प्रोटीन का गठन करती है। इस परत में लैंगरहैंस कोशिकाएं (Langerhans cells) भी पाई जाती हैं, जो संक्रमण की स्थिति को रोकने में मदद करती हैं।
इस परत में त्वचा की ऊपरी सतह की ओर जाने पर, केराटिनोसाइट्स (keratinocytes) नामक कोशिकाओं की संख्या अधिक होती जाती है। यह परत जलरोधी आवरण की तरह कार्य करती है, अर्थात शरीर से तरल पदार्थ की हानि को रोकने में मदद करती है।
स्ट्रेटम-ल्यूसिडम, एपिडर्मिस में मृत त्वचा कोशिकाओं की एक पतली और पारदर्शी या स्पष्ट परत (clear layer) होती है। यह परत केवल हाथों की हथेलियों और तलवों में पाई जाती है।
स्ट्रेटम कॉर्नियम, एपिडर्मिस त्वचा की सबसे बाहरी या ऊपरी परत है, जो मृत, सपाट केराटिनोसाइट्स कोशिकाओं से मिलकर बनी होती है।
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एपिडर्मिस के नीचे की परत है, जो कठोर संयोजी ऊतक की बनी होती है, इसमें बालों के रोम, लिम्फ वाहिकाएं (lymph vessels) और पसीने की ग्रंथियां मौजूद होती हैं। डर्मिस को दो भागों में बांटा गया है:
त्वचा की डर्मिस परत से सम्बंधित निम्न समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं:
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हाइपोडर्मिस सबसे निचली स्किन लेयर्स है, जिसे चमड़े के नीचे की वसा (subcutaneous fat) या हाइपोडर्मिस लेयर (hypodermis layer) के नाम से भी जाना जाता है। यह वसा और संयोजी ऊतकों से बनी होती है, जिसमें रक्त वाहिकाएं और तंत्रिकाएं अधिक मात्रा में उपस्थित होती हैं। यह परत इन्सुलेटर के रूप में शरीर के तापमान को विनियमित करने में मदद करती है।
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त्वचा रोग और समस्याएँ, लक्षणों और रोग की गंभीरता के आधार पर भिन्न-भिन्न होने हैं। यह समस्याएँ अस्थायी या स्थायी हो सकती हैं। त्वचा विकार में निम्न को शामिल किया जाता है:
त्वचा की बनावट में किसी भी प्रकार का परिवर्तन चकत्ते या रैशेज कहलाता है। अधिकांश चकत्ते साधारणतः त्वचा की जलन या खुजली का कारण बनते हैं। (और पढ़े – शिशु को डायपर रैशेज से बचाने के लिए घरेलू उपाय…)
डर्माटाइटिस को सामान्यतः त्वचा की सूजन के रूप में जाना जाता है। एटोपिक डर्माटाइटिस, एक्जिमा का एक सबसे आम रूप है।
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एक्जिमा नामक स्थिति, डर्माटाइटिस (त्वचा की सूजन) के कारण त्वचा पर खुजली वाले चकत्ते (itchy rash) से सम्बंधित है। यह समस्या अधिकतर, एक अतिसक्रिय प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण उत्पन्न होती है।
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यह एक ऑटोइम्यून स्थिति है, अर्थात इस स्थिति में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से स्वास्थ्य ऊतकों पर हमला करती है, और त्वचा पर लाल चकत्ते के उत्पन्न होने का कारण बन सकती है। सोरायसिस की स्थिति में त्वचा पर सूजन, खुजली और जलन के साथ-साथ रूखी और पपड़ी जैसी मृत त्वचा इत्यादि लक्षण देखे जा सकते हैं।
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यह सिर (खोपड़ी) की त्वचा से संबंधिति समस्या है, जिसका कारण सेबोरहाइक डर्मेटाइटिस (seborrheic dermatitis), सोरायसिस या एक्जिमा जैसी स्थितियां हो सकती है।
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यह त्वचा से सम्बंधित सबसे सामान्य स्थिति है। मुँहासे किसी भी उम्र में, 85% से अधिक व्यक्तियों को प्रभावित करते हैं।
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सेल्युलाइटिस, त्वचा की डर्मिस लेयर और चमड़े के नीचे के ऊतकों (हाइपोडर्मिस लेयर) की सूजन से सम्बंधित स्थिति है, जिसका कारण गंभीर बैक्टीरियल त्वचा संक्रमण बनता है। इस रोग के परिणामस्वरुप त्वचा पर लाल, दर्दनाक चकत्ते उत्पन्न हो सकते हैं।
स्किन एब्सेस, त्वचा पर फोड़ा या फुंसी (Skin abscess) की स्थिति है, जो त्वचा संक्रमण के कारण उत्पन्न होती है, जिसमें त्वचा के नीचे मवाद का एक संग्रह होता है।
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यह त्वचा से सम्बंधित एक ऐसी स्थिति है, जो चेहरे पर लालिमा और दृश्यमान रक्त वाहिकाओं का कारण बनती है। रोसैसिया (Rosacea) की स्थिति में चेहरे पर लालिमा और अक्सर छोटे, लाल, मवाद से भरे छाले या मुँहासे भी उत्पन्न हो सकते हैं।
जब ह्यूमन पैपिलोमावायरस के कारण त्वचा या श्लेष्म झिल्ली पर मांस में एक छोटा या अतिरिक्त उभार उत्पन्न होता है, तो इस स्थिति को मस्सा कहा जाता है। यह शरीर एक किसी भी स्थान पर हो सकते हैं।
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मेलेनोमा, त्वचा कैंसर का सबसे खतरनाक प्रकार है, जो त्वचा के रंग का निर्माण करने वाली मेलानोसाइट्स (melanocytes) कोशिकाओं में होता है। यह शरीर के किसी भी क्षेत्र में विकसित हो सकता है लेकिन विशेष रूप से सूर्य के संपर्क में रहने वाली त्वचा को अधिक प्रभावित करता है। (और पढ़े –
यह त्वचा कैंसर का सबसे आम प्रकार है जो बेसल कोशिकाओं से प्रारंभ होता है। बेसल कोशिकाएं (Basal cells) नवीन त्वचा कोशिकाओं के उत्पादन में मदद करती हैं। बेसल सेल कार्सिनोमा, मेलेनोमा की तुलना में कम खतरनाक होता है। (और पढ़े – महिलाओं में कैंसर के लक्षण…)
सेबोरिक केरेटोसिस एक सौम्य, कैंसरमुक्त (non-cancerous) त्वचा का ट्यूमर है, जो त्वचा की बाहरी परत की कोशिकाओं से उत्पन्न होता है। यह खुजली का कारण बन सकता है।
यह स्किन कैंसर का एक सामान्य रूप, जो स्क्वैमस कोशिकाओं के अनियंत्रित विकास का कारण बनता हैl स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा एक अल्सर के रूप में विकसित हो सकता है। यह आमतौर पर सूर्य के संपर्क में आने वाली त्वचा की एपिडर्मिस लेयर में विकसित होता है। (और पढ़े – सूरज की धूप लेने के फायदे और नुकसान…)
इस रोग की स्थिति में हर्पीज़ वायरस (HSV-1 and HSV-2) के कारण पीड़ित व्यक्ति की त्वचा, अधिकांशतः होंठ या जननांगों के आसपास की त्वचा पर तरल से भरे छोटे-छोटे फफोले उत्पन्न होते हैं जो जलन पैदा कर सकते हैं।
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इस त्वचा रोग की स्थति में त्वचा पर लाल, खुजलीदार, उभरे हुऐ धब्बे (चकत्ते) अचानक उत्पन्न होते है। शीतपित्त या पित्ती की समस्या आमतौर पर एलर्जी के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है।
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टिनिया वर्सिकलर को सेहुँआ के नाम से भी जाना जाता है, यह एक प्रकार का सामान्य स्किन फंगल इन्फेक्शन है। यह संक्रमण त्वचा की कम रंजकता वाले धब्बों या त्वचा पर सफ़ेद रंग के छोटे-छोटे चकत्तों के उत्पन्न होने का कारण बनता है। (और पढ़े – सफेद दाग (विटिलिगो) क्या है कारण, लक्षण, इलाज और रोकथाम…)
वायरल संक्रमण के कारण त्वचा के बड़े क्षेत्र को प्रभावित करने वाले लाल चकत्ते (स्किन रैश) से सम्बंधित समस्या को वायरल एक्सान्थेम (Viral exanthema) कहा जाता है। यह समस्या विशेष रूप से बच्चों को अधिक प्रभावित करती है।
शिंगल्स (हर्पीज जोस्टर) की स्थिति में, चेचक वायरस (chickenpox virus) के कारण, शरीर के एक तरफ दर्दनाक चकत्ते या दाने उत्पन्न होते हैं। इस स्थिति में पीड़ादायक खुजली का अनुभव होता है।
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उंगलियों, कलाई, कोहनी और नितंबों की त्वचा पर एक तीव्र खुजली वाले दाने व चकत्ते उत्पन्न होने की स्थिति को खाज (स्कैबीज) के नाम से जाना जाता है। यह स्थिति काफी संक्रामक है, जो जलन व तीव्र खुजली का कारण बनती है। स्केबीज रोग, सरकोप्टस स्कैबी नामक घुन (mite) के कारण होता है।
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यह एक प्रकार त्वचा संक्रमण है जो कवक के कारण होता है, इसे टीनिया के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार की स्किन समस्या में रिंग के सामान खुजली वाले दाग उत्पन्न होते हैं।
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स्किन डिसऑर्डर या स्किन डिजीज जैसी समस्याओं की जाँच करने के लिए डॉक्टर निम्न परीक्षणों का उपयोग कर सकते हैं, जो कि निम्न हैं:
त्वचा की बायोप्सी (Skin biopsy) – त्वचा की समस्याओं का निदान करने के लिए स्किन बायोप्सी की सिफारिश की जा सकती है। इस परीक्षण के दौरान प्रभावित त्वचा से एक छोटे से ऊतक को निकालकर, माइक्रोस्कोप की मदद से जांच की जाती है।
त्वचा परीक्षण (एलर्जी परीक्षण) (Skin testing) – एलर्जी से सम्बंधित स्किन समस्याओं का निदान करने के लिए कुछ सामान्य पदार्थों (जैसे पराग) के रस को त्वचा पर लगाया जाता है, और किसी भी प्रकार की एलर्जी प्रतिक्रियाओं का निरीक्षण किया जाता है।
तपेदिक त्वचा परीक्षण (Tuberculosis skin test) – टीबी स्किन टेस्ट को मैनटॉक्स ट्यूबरकुलीन स्किन टेस्ट (Mantoux tuberculin skin test) (TST) भी कहा जाता है। इस टेस्ट के दौरान तपेदिक (टीबी) का कारण बनने वाले बैक्टीरिया से बनाये गए प्रोटीन (ट्यूबरकुलीन) पीड़ित व्यक्ति की त्वचा के नीचे इंजेक्ट किया जाता है। इस प्रोटीन के कारण टीबी से पीड़ित व्यक्ति की त्वचा सख्त हो जाती है।
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स्किन रोग या त्वचा समस्याओं के उपचार, रोग के प्रकार और इसकी गंभीरता के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
कॉर्टिकोस्टेरॉइड (Corticosteroids (steroids)) – यह दवा प्रतिरक्षा प्रणाली की गतिविधि को कम कर त्वचाशोथ या डर्मेटाइटिस (dermatitis) की स्थिति में सुधार कर सकती हैं। अतः इस प्रकार की स्किन समस्याओं में सामयिक स्टेरॉयड (Topical steroids) का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है।
एंटीबायोटिक्स (Antibiotics) – एंटीबायोटिक्स दवाओं का उपयोग सेलुलाइटिस (cellulitis) और अन्य त्वचा संक्रमण का कारण बनने वाले बैक्टीरिया को नष्ट करने के लिए किया जाता हैं।
एंटीवायरल ड्रग्स (Antiviral drugs) – इस प्रकार की दवाओं का उपयोग वायरस (herpes virus) के प्रभाव को कम करने और त्वचा सम्बन्धी लक्षणों को कम करने के लिए जा सकता है।
ऐंटिफंगल ड्रग्स (Antifungal drugs) – अधिकांशतः फंगल स्किन इन्फेक्शन का इलाज करने के लिए ऐंटिफंगल ड्रग्स या सामयिक क्रीम (Topical creams) का उपयोग किया जा सकता है।
एंटीहिस्टामिन (Antihistamines) – इस प्रकार की मौखिक या सामयिक दवाएं शरीर में हिस्टामाइन (histamine) के प्रभाव को कम कर सकती हैं। हिस्टामाइन एक कार्बनिक नाइट्रोजनयुक्त यौगिक है, जो खुजली और प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं का कारण बनता है।
त्वचा की सर्जरी (Skin surgery) – ज्यादातर त्वचा के कैंसर का इलाज करने के लिए सर्जरी की सिफारिश की जा सकती है।
इम्यून मॉड्यूलेटर (Immune modulators) – इम्यून मॉड्यूलेटर के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की दवाएं, प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्यों में सुधार कर सकती हैं, जिसके कारण इसका उपयोग अधिकांशतः सोरायसिस (psoriasis) या जिल्द की सूजन (dermatitis) की स्थिति में किया जा सकता है।
स्किन मॉइस्चराइज़र (Skin moisturizers (emollients)) – शुष्क त्वचा, जलन और खुजली जैसी स्थितियों को उत्पन्न कर सकती है। अतः स्किन मॉइस्चराइज़र का उपयोग कर त्वचा समस्याओं से सम्बंधित लक्षणों को कम किया जा सकता है।
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