Navjat Shishu Ki Dekhbhal In Hindi अगर आप अभी नयी माँ बनी है तो आप जरुर जानना चाहेंगीं कि नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें और कैसे उसे स्वस्थ्य रखे, मां बनना एक सुखद एहसास होता है लेकिन मां बनने के बाद बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं। जन्म के बाद नवजात शिशु (newborn baby care in Hindi) की हर गतिविधियों (activity) पर विशेष ध्यान रखकर उसे समझने की जरूरत होती है। हालांकि यह कुछ ही दिनों में समझ में आ जाता है कि शिशु को कब भूख लगती है, वह कब अधिक रोता है, कब अधिक खुश रहता है और किन चीजों से उसे अधिक तकलीफ (problem) होती है।
हर मां को विशेषरूप से यह बात ध्यान देना चाहिए कि बच्चे को जो भी व्यक्ति छूए या उठाए, उसका हाथ साफ होना चाहिए या संभव हो तो हाथ साबुन से धोने के बाद ही बच्चे को छूने देना चाहिए। नवजात शिशु की देखभाल करना बहुत आसान नहीं होता है और इस दौरान मां को अपने बच्चे के प्रति बेहद सतर्क रहना पड़ता है। इस आर्टिकल में हम आपको नवजात शिशु की देखभाल करने के बेहतर तरीकों के बारे में बताएंगे।
विषय सूची
नवजात शिशु का शरीर बहुत नाजुक (fragile) और लचीला (delicate) होता है। इसलिए बच्चे को बहुत आराम से उठाएं और पकड़ें। एक स्टडी में पाया गया है कि जिन बच्चों को प्रतिदिन दो घंटे सही तरीके से पकड़ा जाता है या गोद में लिया जाता है वे बच्चे कम रोते हैं। नवजात शिशु को पकड़ते समय यह ध्यान रखें कि उसके गर्दन की मांसपेशियां (neck muscles) अभी विकसित नहीं होती हैं इसलिए उसे उठाते समय एक हथेली से उसके सिर को सहारा देकर उठाएं और उसके दूसरी हथेली से उसके दोनों पैरों को सहारा देते हुए उठाएं। बच्चे को उठाने के बाद भी उसके सिर के नीचे एक हथेली रखे रहें अन्यथा उसकी गर्दन (neck) लटक सकती है।
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नवजात शिशु को नहलाना सबसे ज्यादा कठिनाई भरा (dangerous) काम होता है। इसलिए उसे नहलाने से पहले आपको पूरी तरह से तैयारी कर लेनी चाहिए। बच्चे को नहलाने से पहले टॉवेल, साबुन और शैंपू सब पास रखें और पर्याप्त पानी भी भरकर रखें। बच्चे के पूरे शरीर में एक साथ ही साबुन न लगाएं। चेहरे और सिर को छोड़कर बच्चे के बाकी शरीर में बेबी साबुन (baby soap) लगाएं और हल्के हाथों से मालिश करके पानी से धो लें। इसके बाद यदि बच्चे के सिर में ज्यादा बाल है तो बेबी शैंपू उसके बाल में लगाएं और एक हथेली पर उसका सिर रखकर और बाकी शरीर को गोद में रखकर उसके सिर को पानी से धोएं। इसके बाद चेहरे में साबुन लगाएं और पानी और कपड़े से तुरंत पोछ लें। ध्यान रखें कि पानी बच्चे के कान और आंख में न जाए।
आमतौर पर नवजात शिशु को नियमित नहलाना जरूरी नहीं होता है लेकिन डॉक्टर से बात करके अपने शिशु की स्थति के अनुसार आप प्रत्येक तीन या चार दिन पर उसे नेहला सकतीं हैं।
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बच्चे का शरीर बेहद नाजुक (flexible) होने की वजह से पूरे दिन लेटे रहने के कारण शरीर में अकड़न आ जाती है। इसलिए शिशु के शरीर को राहत देने के लिए मालिश करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। शिशु की मालिक करने से उसे नींद बेहतर आती है, शरीर को आराम मिलता है और बच्चे को चिड़चिड़ाहट नहीं होती है। इसलिए नवजात शिशु की देखभाल करने का सबसे बेहतर तरीका यह है कि उसे बेबी ऑयल से दिनभर में कई बार मसाज करें।
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बच्चे के जन्म के बाद ज्यादातर मां इस भ्रम में रहती हैं कि उन्हें बच्चे का डायपर कब और दिनभर में कितनी बार बदलना चाहिए। कुछ घरों में मां-बाप ढेर सारे डायपर एक साथ ही खरीदकर रख लेते हैं। लेकिन बच्चे का डायपर जरूरत पड़ने पर ही बदलना चाहिए। नवजात शिुश की त्वचा कोमल होती है और जन्म के कुछ महीनों तक वे दिनभर में कई बार जल्दी-जल्दी मल और पेशाब करते हैं। ऐसे में नाजुक त्वचा होने के कारण त्वचा में लालिमा और जाती है और बच्चे की त्वचा पर दाने भी निकल आते हैं। इसलिए बच्चे की त्वचा को इंफेक्शन से बचाने के लिए उसका डायपर (diaper) चेक करते रहें और गीला होने पर तुरंत बदल दें। बेहतर यह होगा कि आप डायपर पहनाने वाली जगहों के आसपास बच्चे की त्वचा पर जिंक ऑक्साइड युक्त क्रीम लगा दें।
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जन्म के बाद नवजात शिशु लगभग तीन महीनों तक एक दिन में औसतन दो घंटे रोते हैं। इसलिए जब भी बच्चा रोए तो उसे अच्छा महसूस कराने और चुप कराने की कोशिश करें। अपने बच्चे पर पूरा ध्यान लगाए रखें और यह समझने की कोशिश करें कि बच्चे को किस चीज से परेशानी हो रही है और वह कब ज्यादा रो रहा है। विशेषरूप से यह ध्यान रखें कि बच्चे को भूख कब लग रही है क्योंकि भूख लगने पर बच्चे सबसे ज्यादा रोते हैं। इसके अलावा पेट में गैस बनने, डायपर बदलने की जरूरत होने और नींद आने पर भी बच्चे रोते हैं। इसलिए बच्चे की इन छोटी-छोटी जरूरतों का ध्यान रखें। जब नवजात शिशु को नींद आये तो उसे थपकी देकर सुलाएं क्योंकि बच्चे नींद में भी बेचैनी (uncomfortable) महसूस होने पर रोने लगते हैं। नवजात शिशु को किसी तरह का कष्ट न होने दें।
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आमतौर पर हर व्यक्ति यह जानता है कि बच्चे के लिए मां का दूध अमृत से कम नहीं होता है इसलिए अपने नवजात शिशु को छह महीनों तक मां के दूध के अलावा कोई अन्य दूध न पिलाएं। मां के दूध से बच्चे को संपूर्ण पोषक तत्व मिलता है। संभव हो तो बच्चे को गोद में लिटाकर दूध पिलाएं और उसके सिर को हथेली से सहारा दिए रहें। मां का दूध बच्चे की हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद करता है। शुरूआत के कुछ दिन बच्चे पर बहुत अच्छे से ध्यान दें कि उसे कितनी देर बाद भूख लगती है। बच्चे को अधिक देर तक भूखा न रहने दें और समय-समय पर दूध पिलाते रहें।
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जैसा की ऊपर ही बताया जा चुका है कि बच्चे को प्रतिदिन नहलाना जरूरी नहीं है। इसलिए बच्चे के हाथ पैर और शरीर को आप नियमित पानी से पोछते रहें। इसके अलावा बच्चे के कपड़े भी बदलते रहें। दूध पीने के बाद या बच्चे के कपड़े पर दूध गिरने के बाद उसे तुरंत बदल दें। बच्चा बार-बार पेशाब करता है तो उसकी नैपकिन (napkin) बदलते रहें। इन छोटी-छोटी चीजों का विशेष ध्यान रखें। बच्चे के हाथों और पैरों की उंगलियों को भी बहुत अच्छे साफ करें और बच्चे के नाखून में मैल न जमने दें।
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जन्म के बाद जैसे-जैसे समय बीतता है नवजात शिशु के सोने का तरीका (pattern) भी बदलता जाता है। नवजात शिशु चौबीस घंटे में कई बार सोता है और कई बार जागता इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखें कि सोते समय बच्चे का शरीर सीधा (straight) हो। हाथ या पैर मुड़े या किसी चीज से दबे हुए न हों। बच्चे के सिर के नीचे कोई कोमल और मखमली कपड़ा या तकिया हो। जन्म के बाद लगभग 6 से 8 हफ्तों में बच्चे के सोने का रूटीन बन जाता है इसके बाद मां को अधिक परेशानी नहीं होती है लेकिन जब तक बच्चा सोने का पैटर्न बदलता रहता है उसकी विशेष देखभाल (special care) की जरूरत पड़ती है।
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