नेफ्रोटिक सिंड्रोम, किडनी से जुडी हुई एक स्वास्थ्य समस्या है, जिसके कारण यूरिन के माध्यम से प्रोटीन का अधिक ह्रास होता है। नेफ्रोटिक सिंड्रोम की समस्या संक्रमण और रक्त थक्के बनने के जोखिम को बढ़ा सकती है। अतः इसकी जटिलताओं को रोकने तथा इससे निजाद पाने के लिए नेफ्रोटिक सिंड्रोम का समय रहते निदान किया जाना आवश्यक होता है। उचित उपचार से रोग पर नियंत्रण होना और बाद में पुनः सूजन दिखाई देना, यह सिलसिला सालों तक चलते रहना नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम की विशेषता है।
यह लेख नेफ्रोटिक सिंड्रोम के बारे में हैं, जिसमे आप नेफ्रोटिक सिंड्रोम क्या है, इसके कारण, लक्षण, जाँच, इलाज, बचाव और घरेलू उपचार से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी के बारे में जान सकेगें।
नेफ्रोटिक सिंड्रोम क्या है – What is Nephrotic Syndrome in Hindi
नेफ्रोटिक सिंड्रोम कोई बीमारी नहीं है, अपितु यह लक्षणों का एक समूह है। यह समस्या तब उत्पन्न होती है, जब किडनी ठीक से काम नहीं करती है। नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम मूत्र में बहुत अधिक प्रोटीन विसर्जित करने का कारण बनती है। यह समस्या आमतौर पर किडनी में उपस्थित छोटी रक्त वाहिकाओं के समूहों को नुकसान पहुंचने के कारण उत्पन्न होती है। यह छोटी रक्त वाहिकाएं रक्त से अपशिष्ट और अतिरिक्त पानी को फ़िल्टर करने का कार्य करती हैं। यह स्वास्थ्य समस्या विशेष रूप से पैरों और एड़ियों में सूजन संबंधी लक्षण उत्पन्न करती है, और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम को बढ़ाती है।
किडनी के इस रोग की वजह से किसी भी उम्र में शरीर में सूजन हो सकती है, परन्तु मुख्यतः यह समस्या बच्चों में देखी जाती है।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के मुख्य लक्षण- Main symptoms of Nephrotic Syndrome in Hindi
आमतौर पर इस रोग की शुरुआत बुखार और खाँसी के बाद होती है। नेफ्रोटिक सिंड्रोम मुख्य रूप से निम्न लक्षणों के उत्पन्न होने का कारण बनती है:
- रक्त में एल्ब्यूमिन का निम्न स्तर या हाइपोएल्ब्यूमिनमिया।
- मूत्र में बहुत अधिक प्रोटीन या प्रोटीनूरिया (proteinuria)
- रक्त में वसा और कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर या हाइपरलिपिडिमिया।
- पैरों, एड़ियों और कभी-कभी हाथों तथा चेहरे पर सूजन आना अर्थात एडिमा।
- मूत्र में अतिरिक्त प्रोटीन का परिणामस्वरुप झागदार मूत्र आना,
- वजन बढ़ना
- थकान महसूस होना
- भूख में कमी आना, इत्यादि।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के कारण – Nephrotic syndrome causes in Hindi
आमतौर पर नेफ्रोटिक सिंड्रोम किडनी की छोटी रक्त वाहिकाओं अर्थात ग्लोमेरुली (glomeruli) के समूहों को नुकसान पहुंचने के कारण होता है।
ग्लोमेरुली किडनी में रक्त को फ़िल्टर करता है और शरीर को उन चीज़ों से अलग करता है, जिनकी ज़रूरत नहीं होती है। इसके अलावा स्वस्थ ग्लोमेरुली रक्त प्रोटीन (मुख्य रूप से एल्ब्यूमिन) की निश्चित मात्रा को बनाए रखता है। लेकिन ग्लोमेरुली क्षतिग्रस्त होने की स्थिति में शरीर बहुत अधिक रक्त प्रोटीन को मूत्र के माध्यम से बाहर छोड़ने लगता है, जिससे नेफ्रोटिक सिंड्रोम हो जाता है।
कई बीमारियां और स्वास्थ्य समस्याएं किडनी की ग्लोमेरुली रक्त वाहिकाओं की क्षति का कारण बन सकती हैं और नेफ्रोटिक सिंड्रोम को जन्म दे सकती हैं, जिनमें शामिल हैं:
- मिनीमल चेन्ज डिजीज (Minimal change disease) – मिनीमल चेन्ज डिजीज बच्चों में नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का सबसे आम कारण है। इस रोग के परिणामस्वरूप व्यक्ति की किडनी सही तरीके से कार्य नहीं करती हैं। माइक्रोस्कोप के तहत किडनी के ऊतकों की जांच करने पर इस रोग का निर्धारण नहीं किया जा सकता है। नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का कारण बनने वाली इस बीमारी के 90 % रोगी स्टेरॉयड उपचार से ठीक हो जाते हैं।
- डायबिटिक किडनी डिजीज (Diabetic kidney disease) – मधुमेह की बीमारी किडनी के क्षतिग्रस्त होने का कारण बन सकती है, जिसे डायबिटिक नेफ्रोपैथी (diabetic nephropathy) के नाम से जाना जाता है। यह समस्या नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम को उत्पन्न कर सकती है।
- फोकल सेगमेंटल ग्लोमेरुलोस्केलेरोसिस (Focal segmental glomerulosclerosis) – FSGS अर्थात फोकल सेगमेंटल ग्लोमेरुलोस्केलेरोसिस एक वायरस है, जो ग्लोमेरुली में निशान (scars) का कारण बनता है। यह बीमारी वयस्कों में नेफ्रोटिक सिंड्रोम का सबसे आम कारण है। यह रोग एचआईवी या दवाओं के कारण उत्पन्न हो सकता है।
- ल्यूपस (Lupus) – ल्यूपस प्रतिरक्षा प्रणाली पर अटैक करने वाली बीमारी है, जो किडनी को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकती है।
- अमाइलॉइडोसिस (Amyloidosis) – यह समस्या तब उत्पन्न होती है, जब अमाइलॉइड प्रोटीन का निर्माण अधिक होता है। अमाइलॉइड प्रोटीन अक्सर किडनी के फिल्टरिंग सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है।
- झिल्लीदार नेफ्रोपैथी (Membranous nephropathy) – झिल्लीदार नेफ्रोपैथी में ग्लोमेरुली की झिल्ली मोटी हो जाती है। इस समस्या को उत्पन्न करने वाले कारणों में कैंसर, मलेरिया, हेपेटाइटिस बी और ल्यूपस आदि शामिल हो सकते हैं।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के जोखिम कारक – Nephrotic Syndrome Risk factors in Hindi
यह रोग मुख्यतः दो से छः साल के बच्चों में दिखाई देता है। अन्य उम्र के व्यक्तियों में इस रोग की संख्या बच्चों की तुलना में बहुत कम दिखाई देती है। नेफ्रोटिक सिंड्रोम के जोखिम को बढ़ाने वाले कारकों में निम्न शामिल हैं:
- कुछ स्वास्थ्य स्थितियों से पीड़ित होना- जैसे कि मधुमेह (diabetes), ल्यूपस (lupus) और अमाइलॉइडोसिस (amyloidosis)।
- नियमित रूप से नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) का सेवन करना।
- कुछ संक्रमण रोग जिनमें शामिल है: हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी, HIV, मलेरिया इत्यादि।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम की जटिलताएं – Nephrotic Syndrome Complications in Hindi
उपचार के बिना, नेफ्रोटिक सिंड्रोम अन्य समस्याएं पैदा कर सकता है, जिनमें शामिल हैं:
- खून के थक्के बनने की समस्या उत्पन्न होना। प्रोटीन के ह्रास के कारण शरीर द्वारा रक्त के थक्के बनने से रोकने की क्षमता कम हो जाती है।
- उच्च कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स के उच्च स्तर की समस्या उत्पन्न होना।
- अनुपचारित नेफ्रोटिक सिंड्रोम, उच्च रक्तचाप (High blood pressure) का भी कारण बन सकती है।
- किडनी फेल्योर (गुर्दे की विफलता) का जोखिम बढ़ जाना।
- शरीर में इम्युनोग्लोबुलिन नामक संक्रमण से लड़ने वाले प्रोटीन की कमी के कारण निमोनिया और मेनिन्जाइटिस जैसे संक्रमण की समस्या उत्पन्न होना।
- नेफ्रोटिक सिंड्रोम नामक रोग के बढ़ने पर पेट फूल जाता है, पेशाब कम होता है, पुरे शरीर में सूजन आने लगती है और वजन बढ़ जाता है।
(और पढ़ें: किडनी फेल्योर, कारण, लक्षण, निदान और उपचार)
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का निदान– Nephrotic Syndrome Diagnosis in Hindi
डॉक्टर द्वारा नेफ्रोटिक सिंड्रोम के निदान के लिए उपयोग की जाने वाली टेस्ट और प्रक्रियाओं में निम्न शामिल हैं:
- मूत्र परीक्षण (urine test) – एक यूरिनलिसिस परीक्षण मरीज के मूत्र नमूने में असामान्यताओं की जाँच कर सकता है। नेफ्रोटिक सिंड्रोम की स्थिति में मूत्र के नमूने में प्रोटीन की मात्रा सामान्य से अधिक पाई जाती है।
- रक्त परीक्षण (Blood tests) – एक रक्त परीक्षण एल्ब्यूमिन प्रोटीन के निम्न स्तर और रक्त प्रोटीन के समग्र स्तर में कमी की जाँच कर सकता है। नेफ्रोटिक सिंड्रोम की स्थिति में एल्ब्यूमिन की मात्रा कम हो जाती है जिसके कारण रक्त कोलेस्ट्रॉल और रक्त ट्राइग्लिसराइड्स के स्तर में वृद्धि हो जाती है। इसके अतिरिक्त रक्त में क्रिएटिनिन और यूरिया नाइट्रोजन के स्तर की जाँच कर सम्पूर्ण किडनी कार्यों का आकलन किया जा सकता है।
- गुर्दे की बायोप्सी (Kidney biopsy) – नेफ्रोटिक सिंड्रोम का निदान करने के लिए किडनी की बायोप्सी सबसे महत्वपूर्ण परीक्षण है। किडनी बायोप्सी में किडनी के ऊतक का एक छोटा सा नमूना लिया जाता है और प्रयोगशाला में इसकी माइक्रोस्कोप द्वारा जाँच की जाती है।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का इलाज – Nephrotic Syndrome Treatment in Hindi
उपचार के तहत नेफ्रोटिक सिंड्रोम के कारणों का इलाज करना शामिल है। डॉक्टर लक्षणों को नियंत्रित करने या नेफ्रोटिक सिंड्रोम की जटिलताओं का इलाज करने के लिए कुछ दवाओं और आहार में बदलाव करने की भी सिफारिश कर सकता है। इस रोग का उपचार आमतौर पर एक लंबी अवधि तक चलता है। इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली दवाओं में शामिल हो सकती हैं:
- रक्तचाप की दवाएं (Blood-pressure medications) – मूत्र में जारी प्रोटीन की मात्रा को कम करने के लिए डॉक्टर ब्लड प्रेशर की दवाओं की सिफारिश कर सकता है। इन दवाओं में लिसीनोप्रिल (lisinopril), बेनाज़िप्रिल (benazepril), कैप्टोप्रिल (captopril) और एनालाप्रिल (enalapril) शामिल हैं।
- मूत्रवर्धक (diuretics) – यह दवाएं किडनी की द्रव उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर सूजन को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। मूत्रवर्धक दवाओं में आमतौर पर फ्यूरोसेमाइड (furosemide) शामिल होती हैं।
- कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाएं (Cholesterol -reducing drugs) – स्टैटिन (Statins) कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद कर नेफ्रोटिक सिंड्रोम के लक्षणों में सुधार कर सकती हैं।
- ब्लड थिनर मेडिसिन (Blood thinners (anticoagulants)) – नेफ्रोटिक सिंड्रोम में उत्पन्न होने वाली रक्त के थक्के बनने की समस्या को रोकने के लिए डॉक्टर ब्लड थिनर दवाओं की सिफारिश कर सकता है। ब्लड थिनर या एंटीकोआगुलंट्स में हेपरिन (heparin), वार्फरिन (warfarin), डाबीगट्रान (dabigatran) और एपिक्सबान (apixaban) शामिल हैं।
यदि दवाओं द्वारा नेफ्रोटिक सिंड्रोम ठीक नहीं होता है, तो मरीज को डायलिसिस की आवश्यकता पड़ सकती है, इस उपचार प्रक्रिया में एक मशीन रक्त को फ़िल्टर करने के लिए किडनी की तरह कार्य करती है।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम की रोकथाम – Nephrotic Syndrome prevention in Hindi
हालांकि नेफ्रोटिक सिंड्रोम के कुछ कारणों को नहीं रोका जा सकता है। लेकिन व्यक्ति किडनी ग्लोमेरुली को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए कुछ उपाय अपना सकते हैं, जैसे:
- नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम की रोकथाम के लिए यदि आपको या बच्चों को किसी भी प्रकार का संक्रमण है, तो उसका जल्द से जल्द इलाज करना आवश्यक है। सामान्य संक्रमणों जैसे हेपेटाइटिस और अन्य के टीके लगवाना सुनिश्चित करें।
- उच्च रक्तचाप और मधुमेह का प्रबंधन करें।
- यदि डॉक्टर किसी व्यक्ति को एंटीबायोटिक्स की सिफारिश करना है, तो उन्हें निर्देशानुसार सेवन करें।
(और पढ़ें: किडनी पेशेंट को क्या खाना चाहिए)
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का घरेलू उपचार और आहार – Nephrotic Syndrome Home Remedies and diet in Hindi
नेफ्रोटिक सिंड्रोम की स्थिति में घरेलू उपचार के दौरान डॉक्टर स्वस्थ आहार लेने की सलाह देतें हैं। स्वस्थ आहार के सेवन में निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए, जैसे:
- रक्त कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने के लिए आहार में वसा का सेवन कम करें।
- लीन प्रोटीन स्रोत को अपने आहार में शामिल करें। पौधे आधारित प्रोटीन किडनी की बीमारी में फायदेमंद होता है।
- सूजन को नियंत्रित करने में मदद करने के लिए कम नमक वाला आहार लें।
- अपने आहार में तरल पदार्थ की मात्रा कम करें।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम, कारण, लक्षण और इलाज (Nephrotic syndrome, Symptoms, Causes, Treatment and prevention in Hindi) का यह लेख आपको कैसा लगा हमें कमेंट्स कर जरूर बताएं।
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