Normal delivery in Hindi नार्मल डिलीवरी का मतलब होता है प्राकृतिक प्रसव के द्वारा बच्चे का जन्म होना। प्रेगनेंसी का सोच कर ही कई महिलाओं को घबराहट महसूस होने लगती है। गर्भावस्था धारण करते ही महिलायें ये सोचने लगती है की उनकी नार्मल डिलीवरी होगी या सिजेरियन डिलीवरी। अगर आपको किसी प्रकार की कोई बीमारी या परेशानी ना हो तो हमेशा नार्मल डिलीवरी का विकल्प ही सही माना जाता है क्योकि शुरूआत में भले ही नार्मल डिलीवरी में बच्चे को जन्म देने में ज्यादा दर्द होता हो पर स्वास्थ्य के लिहाज से यही सही होती है, क्योकि सिजेरियन डिलीवरी में चाहें प्रसव के समय दर्द ना हो पर यह आगे चलकर माँ और बच्चे दोनों के लिए हानिकारक है। आज बहुत सी महिलायें दर्द से बचने के लिए सिजेरियन डिलीवरी का सहारा ले रही है पर यह स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है।
2005-06 के बीच में सिजेरियन डिलीवरी का आकड़ा जहां सिर्फ 8.5 प्रतिशत था वहीं 2015-16 तक यह आकड़ा 28.3 प्रतिशत तक पहुँच गया है, जो बहुत ही चिंताजनक बात है। इसलिए आज इस लेख में हम आपको सामान्य प्रसव नार्मल डिलीवरी क्या है, नार्मल डिलीवरी कैसे कराई जाती है, नॉर्मल डिलीवरी वीडियो इन इंडिया, सामान्य प्रसव के लक्षण, प्रकार, फायदे और रिस्क क्या है इसके बारे में बतायेंगे।
विषय सूची
- नार्मल डिलीवरी क्या है – What is normal delivery in Hindi
- नार्मल डिलीवरी के लक्षण – Normal delivery symptoms in hindi
- प्रेगनेंसी में नार्मल डिलीवरी कैसे होती है – Normal delivery process in Hindi
- लेबर और गर्भाशय ग्रीवा का कटने लगना – Labor and effacement of the cervix in hindi
- नार्मल डिलीवरी प्रोसेस में बच्चे को पुश करना और बच्चे का जन्म होना – Normal delivery process Pushing and birth of the baby in Hindi
- नॉर्मल बच्चे की डिलीवरी के बाद गर्भनाल को बाहर निकालना – Normal delivery process Delivering the placenta in Hindi
- नार्मल डिलीवरी में कितना टाइम लगता है – Normal delivery duration in Hindi
- नार्मल डिलीवरी के फायदे – Normal delivery benefits in hindi
- नार्मल डिलीवरी में जोखिम और जटिलताएं – Normal delivery risk and complications in Hindi
- नार्मल डिलीवरी होने की संभावना को कैसे बढाएं – Tips to have a normal delivery in Hindi
- ऑपरेशन के बाद नार्मल डिलीवरी हो सकती है – Normal delivery chances after cesarean in Hindi
- नार्मल डिलीवरी में ठीक होने में कितना समय लगता है – Normal delivery recovery time in Hindi
- नॉर्मल डिलीवरी वीडियो इन इंडिया – Normal Delivery Video in india
नार्मल डिलीवरी क्या है – What is normal delivery in Hindi
नार्मल डिलीवरी का अर्थ होता है प्राकृतिक तरीके से महिला की योनी के द्वारा ही बच्चे का जन्म होना। नार्मल डिलीवरी के लिए किसी तरह की दवा या सर्जरी का उपयोग नहीं किया जाता है। अगर महिला के साथ स्वास्थ्य सम्बंधित कोई समस्या ना हो तो उस महिला को आराम से नार्मल डिलीवरी हो सकती है। इस प्रक्रिया में सामान्य तरीके से महिला की योनी से ही बच्चे का जन्म होता।
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नार्मल डिलीवरी के लक्षण – Normal delivery symptoms in Hindi
एक स्वस्थ महिला आराम से सामान्य प्रसव के द्वारा बच्चे को जन्म दे सकती है। एक स्वस्थ और नियमित जीवनशैली अपनाकर, सामान्य रक्तचाप और भ्रूण के सही स्थिति को नार्मल डिलीवरी का ही संकेत और सबसे अच्छा लक्षण माना जाता है।
नार्मल डिलीवरी के अन्य लक्षण है-
- 30-34 सप्ताह के बीच में भ्रूण अपनी स्थिति को बदलकर सिफिलिक (cephalic) पोजीशन या सिर को नीचे की तरफ ले आता है जिससे ऐसा महसूस होता है की बच्चा नीचे आ रहा है।
- बार बार पेशाब जाने की इच्छा होगी क्योकि बच्चे का सिर पेल्विस और ब्लैडर के हिस्से पर दबाव बनाएगा।
- पीठ के निचले हिस्से में दर्द होना शुरू होगा क्योकि बच्चा अपनी स्थिति को बदलने की कोशिश करता है और सिर को नीचे की तरफ लाने की कोशिश करता है।
- आपके योनी स्राव (vaginal discharge) में भी वृद्धि हो जाएगी। नार्मल डिलीवरी के समय योनीस्राव का रंग बहुत ज्यादा सफेद, गुलाबी हो सकता है और कभी कभी योनीस्राव के साथ रक्त भी निकल सकता है। यह लक्षण नार्मल डिलीवरी के ही होते है।
- कुछ हार्मोनल गतिविधियों में बदलाव होने के कारण गर्भवती महिला में बोवेल मूवमेंट (bowel movement) की शुरुआत हो जाती है,जिसकी वजह से गर्भाशय में ऐंठन होने लगती है और असुविधा सी महसूस होता है।
- गर्भवती महिला के स्तन की स्थिति से भी नार्मल डिलीवरी होने के संकेतो के बारे में पता लगाया जा सकता है। क्योकि जैसे ही सामान्य प्रसव का समय पास आता है गर्भवती महिलाओं को स्तनों में भारीपन सा लगता है और असहज महसूस होने लगता है।
- पानी की थैली का फटना (broken water bag) भी प्रसव समय पूरे होने का संकेत होता है परन्तु कभी कभी यह पानी की थैली समय से पहले भी फट जाती है ऐसी स्थिति में तुरन्त अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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प्रेगनेंसी में नार्मल डिलीवरी कैसे होती है – Normal delivery process in Hindi
नार्मल डिलीवरी कैसे की जाती है इसको तीन चरणों में बांटा गया है, जिसमें शामिल है-
- लेबर और गर्भाशय ग्रीवा का कटने लगना (Labor and effacement of the cervix)
- बच्चे को पुश करना और बच्चे का जन्म होना (Pushing & birth of the baby)
- गर्भनाल को बाहर निकालना (Delivering the placenta)
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लेबर और गर्भाशय ग्रीवा का कटने लगना – Labor and effacement of the cervix in Hindi
यह नार्मल डिलीवरी प्रक्रिया और लेबर का पहला चरण है। बच्चे को जन्म देने के लिए माँ के गर्भाशय ग्रीवा को लचीला, नरम और लम्बा होना चाहिए, तभी बच्चा आराम से गर्भाशय ग्रीवा से बाहर आ पाता है।
पहला चरण गर्भवती महिला के लिए 13 घंटे तक रह सकता है यदि वह महिला पहली बार बच्चे को जन्म दे रही है। तो गर्भाशय ग्रीवा में संकुचन होने से वह पतला हो जाता है जिससे बच्चे को बाहर आने में आसानी होती है।
पहले चरण के भी तीन उप चरण होते है, जिसमें शामिल है-
नार्मल डिलीवरी प्रोसेस प्रारंभिक चरण (Early phase)– नार्मल डिलीवरी के प्रारंभिक चरण में गर्भवती महिला का गर्भाशय ग्रीवा 4 सेंटीमीटर तक खुल जाता है। इस चरण का एहसास महिलाओं को ज्यादातर घर पर ही होता है अगर आपको भी ऐसा लगे तो घबराएं नहीं ज्यादा से ज्यादा पानी पीयें, अपनी सामान्य गतिविधियों को करते रहे, अकेले ना रहे किसी को अपने पास ही रखें, हल्के भोजन का सेवन करें और सबसे जरुरी बात संकुचन पर ध्यान दें। अगर पहले के मुकाबले संकुचन मजबूत और तेज हो गया तो समझ जायें की आप प्रसव के एक्टिव चरण में आ गयी है। धीरे धीरे अस्पताल जाने की तैयारी कर लें।
नार्मल डिलीवरी प्रोसेस सक्रिय चरण (Active phase)– नार्मल डिलीवरी के इस चरण में गर्भाशय ग्रीवा 4-7 सेंटीमीटर तक खुल जाती है। यह वह समय है जब गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाना चाहिए। इस चरण में संकुचन हर 3-5 मिनट के बीच में होता है, इस समय संकुचन कम से कम 60 सेकंड के लिए होता है परन्तु इसका समय बढ़ कर डेढ़ मिनट भी हो सकता है। जैसे जैसे लेबर का समय बढ़ता है गर्भाशय ग्रीवा का मुंह और जाता खुलता जाता है जिसकी वजह से पानी की थैली भी फट सकती है अगर ऐसा हो तो गर्भवती महिला को ज्यादा से ज्यादा आराम करना चहिये, महिला चाहिए तो अपना स्थान बदल सकती है धीरे धीरे चल सकती है या गर्म और ठन्डे पानी के सेक ले सकती है।
संकुचन के समय आराम करना सबसे महत्वपूर्ण है क्योकि इससे गर्भाशय ग्रीवा को खुलने में मदद करता है जिससे महिला की असुविधा कम हो जाएगी।
सामान्य प्रसव का ट्रांज़िशन चरण (Transition phase)– गर्भवती महिला के लिए यह चरण सबसे ज्यादा कष्टदायक होता है क्योकि इस चरण में गर्भाशय ग्रीवा 8-10 सेंटीमीटर तक खुल चुकी होती है और अपना पूरा आकार चौड़ा कर चुकी होती है। अब इस स्थिति में संकुचन हर समय होता है और दर्द भी बढ़ जाता है। ऐसे समय में महिला को पुश करने का मन करता है क्योकि बच्चे का सिर नीचे की तरफ आ चुका होता है जिससे गुदा (rectal) वाली जगह पर महिला को असहनीय दर्द होता है परन्तु ऐसे समय में गलती से भी पुश ना करें जब तक डॉक्टर आपको पुश करने को ना कहें। एक बार गर्भाशय ग्रीवा पतला हो जाये फिर डॉक्टर आपको पुश करने का संकेत देगा। ऐसे समय में महिला को थकान, चिड़चिड़ाहट, मिचली और बार-बार गर्म या ठंडा महसूस हो सकता है। ऐसे में घबराएं नहीं आराम से साँसे लें।
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नार्मल डिलीवरी प्रोसेस में बच्चे को पुश करना और बच्चे का जन्म होना – Normal delivery process Pushing and birth of the baby in Hindi
इस चरण में गर्भाशय ग्रीवा पूरी तरह से खुल चुकी होती है और संकुचन भी तेज हो चुका होता है, ऐसा इसलिए होता है क्योकि इस चरण में बच्चे का सिर पूरी तरह से नीचे आ चुका होता है। जब बच्चे का सिर नीचे आ जाता है तो डॉक्टर गर्भवती महिला को पुश करने को कह सकते है जिससे बच्चा पूरी तरह से बाहर आ जाये। ऐसी स्थिति में डॉक्टर एपिसीओटॉमी (episiotomy) करने का भी निर्णय ले सकते है। इस प्रक्रिया में योनी और मलाशय के बीच में एक चीरा लगाया जाता है जिससे वेजाइना की ओपनिंग और खुल जाये ताकि आवश्यकता पड़ने पर बच्चे को बाहर आने में आसानी हो सके। इसके बाद डॉक्टर महिला को फिर से पुश करने को कहते है और जब बच्चे का सिर बाहर आ जाता है फिर डॉक्टर बच्चे के बाकी के शरीर को भी बाहर निकाल लेते है।
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नॉर्मल बच्चे की डिलीवरी के बाद गर्भनाल को बाहर निकालना – Normal delivery process Delivering the placenta in Hindi
बच्चे के बाहर आने के बाद भी महिला को संकुचन का एकसास होता है क्योकि गर्भनाल यानि प्लेसेंटा (placenta) धीरे धीरे बाहर आती है, यह संकुचन 5 मिनट से लेकर आधे घंटे तक होता है उसके बाद गर्भनाल पूरी तरह बाहर आ जाती है तो नर्स पेट की मालिश करती है जिससे प्लेसेंटा को अलग करने में मदद मिलती है और फिर डॉक्टर इसे काटकर अलग कर देते है। इस तरह से नार्मल डिलीवरी की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।
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नॉर्मल डिलीवरी वीडियो इन इंडिया – Normal Delivery Video in India
कैसे होती है नार्मल डिलीवरी इस वीडियो में देखे और जानें नॉर्मल डिलीवरी कैसे कराई जाती है (normal delivery kaise hoti hai in hindi video)।
नार्मल डिलीवरी में कितना टाइम लगता है – Normal delivery duration in Hindi
सामान्य प्रसव या नार्मल डिलीवरी में कितना समय लगता है यह तो गर्भवती महिला के स्वास्थ्य अवस्था पर निर्भर करता है क्योकि यदि गर्भवती महिला पहली बार बच्चे को जन्म दे रही हो तो उसे लगभग 13 घंटे के आसपास का समय लगता है, लेकिन यदि महिला दूसरी या तीसरी बार बच्चे को जन्म दे रही है तो यह समय 7-8 घंटे के आसपास का हो सकता है। गर्भाशय ग्रीवा के फैलने की स्थिति पर नार्मल डिलीवरी का समय निर्भर करता है।
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नार्मल डिलीवरी के फायदे – Normal delivery benefits in Hindi
सामान्य प्रसव से बच्चे को जन्म देने या नार्मल डिलीवरी में बच्चे का जन्म बिल्कुल प्राकृतिक तरीके से माँ की योनी द्वारा होता है इसलिए यह अन्य किसी भी प्रकार के प्रसव से ज्यादा सुरक्षित तरीका है और नार्मल डिलीवरी कराने के कई सारे फायदे भी है। नार्मल डिलीवरी के कुछ फायदे है, जैसे-
- नार्मल डिलीवरी से बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा मिलता है।
- सामान्य प्रसव से बच्चे का पाचन तंत्र मजबूत होता है।
- नॉर्मल डिलीवरी के फायदे हॉस्पिटल में कम दिनों तक रहना पड़ता है।
- नार्मल डिलीवरी गर्भवती महिला को कॉन्फिडेंट बनाती है।
- सिजेरियन डिलीवरी के मुकाबले नार्मल डिलीवरी में तेजी से प्रसव के बाद रिकवरी होती है।
- बर्थ कैनाल को बैक्टीरिया से बचाता है।
- लैक्टेशन की प्रक्रिया को बढ़ाता है।
- नार्मल डिलीवरी माँ और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है।
- नॉर्मल डिलीवरी के द्वारा जन्मे बच्चों में श्वसन संबंधी समस्याओं से पीड़ित होने का जोखिम कम होता है।
- कोई पोस्ट-सर्जिकल रक्तस्राव नहीं होता है।
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नार्मल डिलीवरी में जोखिम और जटिलताएं – Normal delivery risk and complications in Hindi
नार्मल डिलीवरी में गर्भवती महिला को गर्भावस्था से पहले और गर्भावस्था के दौरान भी कुछ जोखिम और जटिलताएं हो सकती है, जिसमें शामिल है-
- गर्भाशय का टूटना (rupture of the uterus)
- भ्रूण संकट (fetal distress) मतलब बच्चे को कम ऑक्सीजन मिल पाना
- वेजाइनल टियर (vaginal tear)
- पेरिनेम टियर (perineum tear) यानी वल्वा (vulva) और गुदा (anus) के बीच के सॉफ्ट टिश्यू
- अम्बिलिकल कॉर्ड प्रोलैप्स (umbilical cord prolapse) यह स्थिति तब होती है जब गर्भनाल शिशु से पहले बाहर आ जाती है
- यदि माँ किसी संक्रमण से पीड़ित है, तो माँ से बच्चे को संक्रमण फैलने का खतरा रहता है
- बच्चा पहले नितंब (buttocks) / पैर से बाहर आ रहा हो (ब्रीच पोजीशन)
- बच्चा पहले कंधे से बाहर आ रहा हो
- गर्भाशय में एक से अधिक बच्चे हों
- बच्चे का आकार बड़ा हो
- सेफलोपेल्विक अनुपात (cephalopelvic disproportion) मतलब बच्चा मां के श्रोणि के छोटे आकार के कारण श्रोणि के माध्यम से बाहर आने के लिए फिट नहीं हो सकता है।
- अनपेक्षित प्लेसेंटा प्रिविया (undetected placenta previa), जिसका अर्थ है कि प्लेसेंटा गर्भाशय ग्रीवा को कवर कर लेता है।
इसी तरह गर्भवती महिला को सामान्य प्रसव होने के बाद भी कुछ जोखिम और जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें शामिल है-
- पेल्विक फ्लोर को नुकसान पहुंचना जिसके कारण महिला अस्थायी या पुरानी श्रोणि दर्द से पीड़ित हो सकती है।
- पेल्विक ऑर्गन प्रोलैप्स (pelvic organ prolapse) मतलब यह तब होता है जब मूत्राशय, गर्भाशय या मलाशय योनि में या योनि के बाहर खुलते हैं।
- प्लेसेंटा बाकि रह जाये (retained placenta)
- अचानक खांसने, छींकने या हंसने से प्रसव के समय मूत्र का रिसाव होना
- प्रसव से बाद रक्तस्राव (postpartum haemorrhage)
- एनेस्थीसिया (यदि उपयोग किया जाता है) तो उससे संबंधित जटिलताएं हो सकती है।
(और पढ़े – गर्भावस्था में योनि में दर्द के कारण और उपचार…)
नार्मल डिलीवरी होने की संभावना को कैसे बढाएं – Tips to have a normal delivery in Hindi
नार्मल डिलीवरी होने की संभावना को बढ़ाने के लिए आप कुछ उपाय अपना सकती है, जैसे-
- गर्भावस्था और लेबर के बारे में कुछ अच्छी शिक्षा प्राप्त करें
- एक अच्छे केयरटेकर या अस्पताल के बारे में शोध करें जो प्राकृतिक प्रसव करवाने में विशेषज्ञ हो
- हमेशा सकारात्मक सोच रखे और खुश रहें
- ज्यादा वजन ना बढाएं
- गर्भवती महिलायें तैराकी करें, वाल्किंग करें
- केगेल एक्सरसाइज करें (kegel exercise)
- पेल्विक स्ट्रेच का अभ्यास करें
- योग करें
- खूब पानी पिएं
- फ्लैट और आरामदायक जूते पहनें
- स्क्वाट करें (squats exercise)
- भरपूर नींद लें
- गर्भवती महिलाएं अच्छे से साँस लेने का अभ्सास करें
- स्वस्थ भोजन खाएं
(और पढ़े – नॉर्मल डिलीवरी के लिए योग…)
ऑपरेशन के बाद नार्मल डिलीवरी हो सकती है – Normal delivery chances after cesarean in Hindi
बहुत सी महिलाओं के मन में यह सवाल आता है की क्या सिजेरियन डिलीवरी के बाद भी नार्मल तरह से डिलीवरी करवाई जा सकती है तो हम आपको बता दें की ऐसा करना बिलकुल संभव है। एक शोध में पाया गया है की 60-80 प्रतिशत महिलाएं जिनकी पहले सी सेक्शन डिलीवरी हो चुकी है वह भी बाद में नार्मल डिलीवरी से बच्चा पैदा करने में सफल रहीं है। बस इस तरह की स्थिति में एक तरह का जोखिम होता है वह है गर्भाशय का फटना (uterine rupture)। इसलिए अगर आपकी पहले सिजेरियन डिलीवरी हुई है तो ऐसा जोखिम उठाने से पहले अपने डॉक्टर से जरुर बात करें और सारी जटिलताओं और जोखिम के बारे में पूरी जानकारी लेने के बाद ही कोई निर्णय लें।
(और पढ़े – जानबूझकर सिजेरियन डिलीवरी कराने से पहले इन 3 बातों को जान लें…)
नार्मल डिलीवरी में ठीक होने में कितना समय लगता है – Normal delivery recovery time in Hindi
सामान्य प्रसव के बाद भी कम से कम 2 सप्ताह तक योनी में खराश (soreness) और कोमलता (tenderness) बनी रह सकती है। इसके बाद 7-10 दिन के अंदर आपको खुद ही अपनी उर्जा से ठीक होने की कोशिश करनी होगी। अगर आपने डिलीवरी के समय पेरिनेम टियर (perineum tear) का अनुभव किया है तो आपकी पूरी रिकवरी होने में कम से कम 6 सप्ताह या उससे ज्यादा का समय लग सकता है। किसी भी तरह का व्यायाम शुरु करने से पहले अपने डॉक्टर से पूछें की नार्मल डिलीवरी के बाद आप कब से एक्सरसाइज करना शुरू कर सकती है, क्योकि कोई भी एक्सरसाइज शुरू करना आपकी स्वास्थ्य स्थिति पर निर्भर करेगा। हालांकि अगर आपका डॉक्टर आपको व्यायाम करने का कह देता है तो आप डिलीवरी के तुरन्त बाद केगेल एक्सरसाइज करना शुरू कर सकती है, परन्तु उसे बहुत जोर लगा कर ना करें आराम से करें।
(और पढ़े – जानिए सामान्य प्रसव के बाद योनि में होने वाले बदलाव के बारे मे…)
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