गर्भावस्था

प्रेगनेंसी में एनटी टेस्ट (न्यूकल ट्रांसलुसेंसी) कराना क्यों है जरूरी – NT scan (nuchal translucency) in pregnancy in Hindi

जानें प्रेगनेंसी में एनटी टेस्ट (न्यूकल ट्रांसलुसेंसी) कराना क्यों है जरूरी - NT scan (nuchal translucency) in pregnancy in Hindi

NT scan in pregnancy in Hindi एनटी स्कैन आमतौर पर बच्चे को जन्म देने से पहले कराया जाता है। हालांकि यह यह गर्भवती महिला की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह एनटी स्कैन कराना चाहती है या नहीं। न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन कराने से बच्चे के स्वास्थ्य जैसे एनीमिया, हृदय में समस्या और जेस्टेशनल डायबिटीज (gestational diabetes) सहित बच्चे में डाउन सिंड्रोम के भी लक्षणों का पता चल जाता है। यह स्कैन प्रेगनेंसी की पहली तिमाही (first trimester) में कराया जाता है। आइये

विषय सूची

  1. एनटी स्कैन क्या होता है – What is a nuchal translucency (NT) scan in Hindi
  2. एनटी स्कैन कराने का उद्देश्य – Purpose of nuchal translucency (NT) scan in Hindi
  3. डॉक्टर एनटी स्कैन कराने की सलाह क्यों देते हैं – Why doctor refer to have scan NT in Hindi
  4. NT (एनटी) स्कैन कराने का तरीका – Procedure of nuchal translucency (NT) scan in Hindi
  5. एनटी स्कैन कराने के फायदे – Nuchal translucency (NT) scan in Hindi

एनटी स्कैन क्या होता है – What is a nuchal translucency (NT) scan in Hindi

एनटी स्कैन क्या होता है - What is a nuchal translucency (NT) scan in Hindi

न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन अल्ट्रासाउंट स्कैन का एक हिस्सा है, जिसे ज्यादातर प्रेगनेंट महिलाएं गर्भावस्था के 11 से 12वें हफ्ते में कराती हैं। इसे एनटी स्कैन भी कहा जाता है। इस स्कैन में अल्ट्रासाउंड के माध्यम से डॉक्टर बच्चे के गर्दन के पीछे के न्यूकल मोड़ (nuchal fold) के आकार को मापते हैं। इससे यह पता चलता है कि बच्चे के गुणसूत्र सामान्य हैं या असामान्य। एनटी स्कैन के माध्यम से बच्चे की सेहत एवं गुणसूत्र (chromosome) में असामान्यताओं के बारे में बहुत आसानी से पता चल जाता है।

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एनटी स्कैन कराने का उद्देश्य – Purpose of nuchal translucency (NT) scan in Hindi

न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन एक सामान्य स्क्रीनिंग टेस्ट है जो प्रेगनेंसी के पहले तिमाही (first trimester) में कराया जाता है। इस टेस्ट के माध्यम से बच्चे के गर्दन के पीछे के खाली ऊतकों का आकार मापा जाता है, इसलिए इसे न्यूकल ट्रांसलुसेंसी कहते हैं। भ्रूण के गर्दन के पीछे तरल पदार्थ (fluid) या खाली स्थान (clear space) होना असामान्यता नहीं है लेकिन यदि अधिक खाली जगह होना डाउन सिंड्रोम का लक्षण माना जाता है या गुणसूत्र में असामान्यता (abnormality) का संकेत होता है।

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हमारे शरीर की कोशिकाओं में केंद्रक (nucleus) सहित कई भाग होते हैं। इसी केंद्रक में आनुवंशिकता के गुण मौजूद होते है। ज्यादातर मामलों में केंद्रक में 23 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं जो माता-पिता से बराबर संख्या में प्राप्त होते हैं। यदि कोई बच्चा डाउन सिंड्रोम (down syndrome) के साथ पैदा होता है तो उसके पास एक जोड़ी अतिरिक्त गुण सूत्र होता है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता है। इसके कारण बच्चे के शारीरिक विकास (physical development) में देरी होती है। इसके कारण

  • बच्चे का कद छोटा होता है।
  • आंखों की पुतलियां ऊपर की ओर होती हैं।
  • मांसपेशियां कमजोर होती हैं।

यह समस्या जन्म लेने वाले सात सौ बच्चों में से एक को होती है। यह एक बहुत गंभीर अनुवांशिक समस्या है। इन असामान्यताओं के साथ जन्म लेने के एक साल के अंदर बच्चे की मौत हो जाती है। यही कारण है कि जन्म से पहले ही बच्चे के शरीर में असामान्यताओं का पता करने के लिए एनटी स्कैन कराया जाता है।

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डॉक्टर एनटी स्कैन कराने की सलाह क्यों देते हैं – Why doctor refer to have scan NT in Hindi

डॉक्टर किसी भी उम्र की गर्भवती महिला को एनटी स्कैन कराने की सलाह देते हैं। इस स्कैन के माध्मय से डॉक्टर को यह बताने में आसानी होती है कि

  • महिला किस दिन से प्रेगनेंट है और किस दिन डिलीवरी होगी।
  • गर्भ में भ्रूण की संख्या (fetus number) की पुष्टि करने के लिए कि एक भ्रूण है या कई।
  • यह पुष्टि करने के लिए कि भ्रूण सही और सामान्य तरीके से विकसित हो रहा है।
  • यदि गर्भवती महिला 35 वर्ष से अधिक उम्र की है तो उसे विशेष रूप से एनटी स्कैन कराने की सलाह दी जाती है  क्योंकि इस उम्र में गर्भवती महिला के बच्चे में असामान्यता होने का खतरा अधिक होता है।
  • किसी महिला को पहली प्रेगनेंसी में भी बच्चा असामान्य रहा हो, तब भी एनटी स्कैन कराने की सलाह दी जाती है।
  • यदि परिवार में किसी को इस तरह की अनुवांशिक समस्या (genetic problem) है तब भी गर्भवती महिला को एनटी स्कैन कराने की सलाह दी जाती है।

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NT (एनटी) स्कैन कराने का तरीका – Procedure of nuchal translucency (NT) scan in Hindi

न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन (एनटी स्कैन) कराने से पहले किसी विशेष तैयारी की जरूरत नहीं पड़ती है। ज्यादातर मामलों में यह टेस्ट 30 मिनट में ही पूरा हो जाता है। लेकिन स्कैन कराने से पहले प्रेगनेंट महिला का ब्लैडर भरा होना चाहिए। इससे बच्चे में जो भी असामान्यताएं मौजूद होती हैं, रिपोर्ट में भी उसका स्पष्ट चित्र आता है। एनटी स्कैन करने के लिए टेक्निशियन गर्भवती महिला को एक टेबल पर लेटा देते हैं और उसके पेट पर अल्ट्रासाउंड तरंगों (ultrasound wand) को घुमाते हैं। इसके साथ ही ट्रांस वजाइनल टेस्ट (transvaginal test) भी किया जाता है जिसमें योनि के अंतर एक अल्ट्रासाउंड उपकरण (equipment) डाला जाता है।

अल्ट्रासाउंड में उच्च आवृत्ति की ध्वनि तरंगों (sound wave) का इस्तेमाल किया जाता है। इसके माध्मय से डॉक्टर या टेक्निशियन बच्चे के गर्दन के पीछे खुले स्थान (clear space) या ट्रांसलुसेंसी की माप करते हैं। इसके बाद वे कंप्यूटर प्रोग्राम में गर्भवती महिला की उम्र दर्ज करके यह गणना करते हैं कि बच्चे के असामान्य होने का खतरा कितना ज्यादा है। एनटी स्कैन बच्चे में डाउन सिंड्रोम या गुणसूत्र की असामान्यताओं का पता लगता है। यह टेस्ट सिर्फ खतरे को ही बताता है। एनटी स्कैन के साथ ही गर्भवती महिला का ब्लड टेस्ट भी किया जाता है। ब्लड टेस्ट के माध्यम से एनटी स्क्रीनिंग की 85 प्रतिशत सटीक रिपोर्ट आती है और यह डाउन सिंड्रोम होने से बारे में भी सटीक बताता है। लेकिन एनटी स्कैन के साथ ब्लड टेस्ट न कराने पर रिपोर्ट 75 प्रतिशत तक ही सही आती है।

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एनटी स्कैन कराने के फायदे – Nuchal translucency (NT) scan in Hindi

  • एनटी स्कैन पूरी तरह से सुरक्षित है। इस स्कैन के दौरान गर्भवती महिला को किसी तरह का दर्द नहीं होता है। यह स्कैन कराने से गर्भवती महिला के बच्चे को भी कोई नुकसान नहीं होता है।
  • यह स्कैन गर्भावस्था की पहली तिमाही में कराना ज्यादा फायदेमंद होता है क्योंकि इस दौरान बच्चे में कोई असमान्यता होने पर वह स्कैन में सही तरीके से पता चल जाता है और गर्भपात का भी खतरा नहीं होता है।
  • अगर आप एनटी स्कैन से संतुष्ट नहीं हैं तो आप गर्भावस्था के 10 से 13वें हफ्ते में सीवीएस टेस्ट भी करा सकती हैं। इस टेस्ट में यह पूरी तरह से पता चल जाता है कि बच्चे में कोई असामान्यता है या नहीं।
  • एनटी स्कैन कराने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि गर्भावस्था के शुरूआत में ही बच्चे में डाउन सिंड्रोंम का निदान हो जाता है जिससे डॉक्टर से समय रहते ही इस समस्या के उपचार के लिए सलाह ली जा सकती है।

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