Pancreatic Cancer In Hindi पैन्क्रीऐटिक कैंसर को हिंदी में अग्नाश्य का कैंसर कहा जाता है। अग्न्याशय (pancreas) एक 6 इंच लंबा अंग होता है जो पेट के पीछे पित्ताशय (gall bladder) के पास स्थित होता है। इसमें ग्रंथियां होती हैं जो अग्नाशयी रस (pancreatic juice), हार्मोन और इंसुलिन बनाती हैं। अग्नाशय (pancreas) में दो तरह की ग्रंथियां होती है एक होती है एक्सोक्राइन ग्रंथियां और दूसरी एंडोक्राइन ग्रंथियां।
एक्सोक्राइन ग्रंथियां (Exocrine glands) रस और एंजाइम का उत्पादन करती हैं, जो आंतों (intestines) में प्रवेश करती हैं और वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट को पचाने में मदद करती हैं। ये अधिकांश अग्नाशय को बनाती हैं।
एंडोक्राइन ग्रंथियां कोशिकाओं के छोटे समूह जैसे होते हैं जिन्हें लैंगरहैंस के आइलेट्स के रूप में जाना जाता है। यह ग्रंथियां हार्मोन, इंसुलिन और ग्लूकागन (glucagon) को रक्तप्रवाह में छोड़ते हैं। वहां, यह रक्त शर्करा (blood sugar level) के स्तर का प्रबंधन करते हैं। परन्तु जब यह ग्रंथियां ठीक से काम नहीं करती हैं, तो अक्सर मधुमेह होने की आशंका होती है।
अग्नाशय कैंसर दोनों में से किसी भी ग्रंथियो में हो सकता है, कैंसर का प्रकार इस बात पर भी निर्भर करता है कि कैंसर किस ग्रंथि के कार्य को प्रभावित कर रहा है। शोध में पाया गया है की महिलओं के मुकाबले पुरुषों में अग्नाशय कैंसर होने की ज्यादा संभावना होती है।
आज के लेख में हम अग्नाशय कैंसर क्या है इसके लक्षण कारण जांच इलाज और बचाव के बारे में जानेंगे।
1. अग्नाशय कैंसर क्या है – Agnashay cancer kya hai in hindi
2. अग्नाशय कैंसर के प्रकार – Agnashay cancer ke prakar in hindi
3. अग्नाशय कैंसर के लक्षण – Agnashay cancer ke lakshan in hindi
4. अग्नाशय कैंसर होने का कारण – Agnashay cancer hone ka karan in hindi
5. अग्नाशय कैंसर की जांच – Agnashay cancer ki janch in hindi
6. अग्नाशय कैंसर के चरण -Agnashay cancer ke charan in hindi
7. अग्नाशय के कैंसर का इलाज – Agnashay ke cancer ka ilaj in hindi
8. अग्नाशय कैंसर से बचाव – Agnashay cancer se bachav in hindi
अग्नाशय कैंसर तब होता है जब अग्नाशय के एक हिस्से में अनियंत्रित कोशिका वृद्धि (uncontrolled cell growth) शुरू होती है। जिससे ट्यूमर विकसित हो जाता हैं, और ये अग्नाशय के काम करने के तरीके में हस्तक्षेप करने लगता हैं।
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अग्नाशय कैंसर दो प्रकार के होते है परन्तु यह इस बात पर निर्भर करते है की यह एक्सोक्राइन या एंडोक्राइन दोनों में से किस ग्रंथि को ज्यादा प्रभावित कर रहे है।
एक्सोक्राइन ग्रंथि के कार्यों को प्रभावित करने वाले ट्यूमर सबसे आम प्रकार के होते हैं। यह ट्यूमर निंदनीय (malignant) या सौम्य (benign) हो सकते हैं। सौम्य ट्यूमर (benign tumor) या सिस्ट को सिस्टेडेनोमा (cystadenomas) कहा जाता है। ज़्यादातर अग्नाशय के ट्यूमर घातक या कैंसरग्रस्त होते हैं। विभिन्न प्रकार के अग्नाशय के कैंसर एक्सोक्राइन ग्रंथि के कार्यों को प्रभावित कर सकते हैं।
इस तरह के ट्यूमर के कई प्रकार होते है जैसे-
एडेनोकार्सिनोमा (adenocarcinomas) – यह ट्यूमर आमतौर पर अग्नाशय की नलिकाओं की ग्रंथि कोशिकाओं में पैदा होता है, जिससे कैंसर हो सकता है।
एसीनार सेल कार्सिनोमा (acinar cell carcinoma) – यह ट्यूमर अग्नाशयी एंजाइम कोशिकाओं (pancreatic enzyme cells) में जाकर पैदा होता है, इससे भी अग्नाशय कैंसर होता है।
एम्पुलरी कैंसर (ampullary cancer) – यह ट्यूमर पित्त नलिका (bile duct) और अग्नाशयी नलिका (pancreatic duct) से होते हुए छोटी आंत से मिलता है और वहां पर पैदा होता है।
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अग्नाशय के एंडोक्राइन कार्यों को प्रभावित करने वाले ट्यूमर को न्यूरोएंडोक्राइन (neuroendocrine) या आइलेट-सेल ट्यूमर (islet cell tumor) कहा जाता है। यह ट्यूमर काफी असामान्य होते हैं। एंडोक्राइन अग्नाशय कैंसर में शामिल है-
फंक्शनिंग आइलेट सेल ट्यूमर हार्मोन बनाने का अपना काम हमेशा करते रहते हैं। इनमें से अधिकांश ट्यूमर सौम्य (benign) होते हैं, लेकिन जो आइलेट सेल कार्यशील नहीं होते है उस तरह के ट्यूमर बहुत अधिक घातक होते है और इस वजह से इनमे आइलेट-सेल कार्सिनोमा होने की अधिक संभावना होती है।
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अग्नाशय कैंसर के ज़्यादातर लक्षण तब तक दिखाई नहीं देते जब तक यह उच्च स्तर के ट्यूमर में ना बदल जाये, इसलिए इसे साइलेंट ट्यूमर भी कहा जाता है।
फिर भी अग्नाशय कैंसर कुछ सामान्य लक्षण देखने को मिलते है जैसे-
हालांकि यह सभी लक्षण अन्य बीमारियों के भी हो सकते है इसलिए ज़्यादातर डॉक्टर अग्नाशय कैंसर की जांच सही समय पर नहीं कर पाते है जब तक यह अपने घातक स्तर पर ना पहुँच जाये।
न्यूरोएंडोक्राइन (neuroendocrine) या आइलेट-सेल ट्यूमर (islet cell tumor) की वजह से अग्नाशय में बहुत अधिक इन्सुलिन और हॉर्मोन पैदा होते है जिसकी वजह से-
दस्त लग जाते है अग्नाशयी कैंसर कई बार अलग तरह से भी उत्पन्न होता है, यह निर्भर करता है कि अग्नाशय के किस हिस्से में ट्यूमर है, हेड या टेल में । अग्नाशय के टेल में ट्यूमर के परिणामस्वरूप दर्द और वजन कम होने की संभावना अधिक होती है। परन्तु सिर के ट्यूमर में फैटी मल, वजन घटने और पीलिया जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।यदि कैंसर फैलता है या मेटास्टेसिस (metastasizes) करता है, तो प्रभावित क्षेत्र और शरीर के बाकी हिस्सों में नए लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं।
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अग्नाशय कैंसर होने के क्या कारण है इनका पता साइंटिस्ट भी नही लगा पाए है परन्तु इस तरह के ट्यूमर होने के कुछ मुख्य कारण हो सकते है जैसे-
यदि किसी व्यक्ति के डीएनए में क्षति पहुँचे तो यह परिवर्तन, कोशिका विभाजन (cell division) को नियंत्रित करने वाले जीन (genes) को नुकसान पहुंचा सकता है। जिसकी वजह से अग्नाशय का कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। अग्नाशय का कैंसर अनुवांशिक भी हो सकता है जिसके चलते यह हो सकता है की यदि किसी व्यक्ति के परिवार में से किसी को कभी अग्नाशय की कोई गंभीर बीमारी रही हो तो यह अग्नाशय का कैंसर होने का कारण हो सकता है और उस व्यक्ति को भी यह कैंसर होने की पूरी संभावना है। ज्यादा धुम्रपान करने से भी अग्नाशय का कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है इसलिए यह बीमारी महिलओं से अधिक पुरुषों में पाई जाती है।
यदि किसी व्यक्ति को कोई अनुवांशिक सिंड्रोम है तब भी उसमे यह कैंसर उत्पन्न होने की संभावना होती है जैसे-
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कीटनाशकों के संपर्क में आना – कीटनाशकों के संपर्क में आने से विभिन्न बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है और अग्नाशयी कैंसर इनमें से एक मुख्य कारण हो सकता है।
अग्नाशयी कैंसर के जोखिम को बढ़ाने वाले पदार्थों की सूचि इस प्रकार हैं-
जब शरीर एक कार्सिनोजेन (carcinogen) के संपर्क में आता है, तो मुक्त कण (free radicals) बनते हैं जिससे यह कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती है। ये क्षति, कोशिकाओं और सामान्य रूप से कार्य करने की उनकी क्षमता को प्रभावित करते हैं जिससे अग्नाशय कैंसर की संभावना में वृद्धि हो सकती है।
अग्नाशय कैंसर होने का कारण उम्र (Age) – उम्र भी एक बहुत बड़ा कारण हो सकता है अग्नाशय कैंसर के लिए क्योकि ज़्यादातर 60 की उम्र से ऊपर वाले व्यक्ति में ही अग्नाशय कैंसर की संभावना अधिक होती है।
साइंटिस्ट का मानना है की अग्नाशय के कैंसर और अन्य बीमारियों के बीच सम्बन्ध हो सकता है जैसे –
यह सभी कारण अग्नाशय के कैंसर को उत्पन्न कर सकते है।
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हमारे जीवनशैली का असर भी हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है इसलिए यह भी अग्नाशय का कैंसर होने का एक बहुत बड़ा कारण हो सकता है जैसे-
इन सभी कारणों से अग्नाशय कैंसर होने की संभावना बढ़ सकती है।
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अग्नाशय कैंसर की जांच के लिए कई तरह के टेस्ट उपलब्ध है जिन्हें करवाकर आप ट्यूमर का पता कर सकते है, इन टेस्ट में मुख्य है-
अग्नाशय कैंसर की जाँच के परीक्षणों में शामिल हैं-
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डॉक्टर यह पता लगाने के लिए इमेजिंग टेस्ट करवाते है की क्या अग्नाशय कोई ट्यूमर मौजूद है और यदि ऐसा है, तो यह कितना ज्यादा फ़ैल गया है यह देखना भी जरुरी है।
आम इमेजिंग टेस्ट कई प्रकार के होते हैं जैसे-
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बायोप्सी में डॉक्टर माइक्रोस्कोप से जाँच करने के लिए ऊतक (tissue) का एक छोटा सा नमूना निकालते हैं। इस विधि से डॉक्टर सबसे अच्छे से पता लगा पाते है की कैंसर के लक्षण है या नहीं।
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अग्नाशय के कैंसर के चरण कितने होते है यह जानना भी बहुत जरुरी है ताकि उस चरण के हिसाब से उपचार किया जा सके, इसके विभिन्न चरण कुछ बातों पर निर्भर करते है जैसे-
स्टेज 0- चरण 0 में अग्नाशय वाहिनी कोशिकाओं (pancreatic duct cells ) की ऊपरी परतों में कैंसर की कोशिकाएँ होती हैं। ट्यूमर ने गहरे ऊतकों (deeper tissues) पर आक्रमण नहीं किया है या अग्न्याशय के बाहर नहीं फैला है यह इस चरण में देखा जाता है।
स्टेज IV– चरण IV में यह पता किया जाता है की कैंसर पूरे शरीर में दूर-दूर तक फैल गया है।
स्टेज 0 पर, प्रभावी उपचार संभव हो सकता है। परन्तु चौथे चरण में, ट्यूमर दूर के अंगों में फैल चुका होता है इसलिए सर्जरी करना ही एक मात्र उपाय रहता है जिसकी सलाह डॉक्टर भी देते है इससे दर्द को कम किया जा सकता है।
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अग्नाशय के कैंसर के इलाज के कई उपाय है जिनकी सहायता से दर्द को कम किया जा सकता है और अगर समय रहते इसका इलाज करवाया जाये तो कैंसर पूरी तरह से ख़त्म भी हो सकता है।
इस कैंसर के इलाज के कुछ उपाय इस प्रकार है-
सर्जरी के द्वारा अग्नाशय का कुछ हिस्सा या पूरा अग्नाशय अलग कर दिया जाता है जिससे दर्द में आराम मिलता है। अगर कैंसर अभी तक किसी एक हिस्से में ही है तो उसे पूरी तरह से ख़त्म किया जा सकता है। इन सर्जरी को करने के भी कई तरीके है जैसे-
यह सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली प्रक्रिया है। यदि ट्यूमर अग्नाशय के सिर की तरफ है तो इस प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में सर्जन अग्नाशय के सिर को हटा देते है, और कभी-कभी पूरे अग्नाशय को और उसके साथ पेट के एक हिस्से को या ग्रहणी (duodenum), लिम्फ नोड्स और अन्य ऊतक (tissues) को भी निकाल देते है । यह एक जटिल और जोखिम भरी प्रक्रिया है। जटिलताओं में लीक, संक्रमण, रक्तस्राव और पेट की समस्याएं हो सकती हैं।
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इस प्रक्रिया में सर्जन अग्नाशय की पूंछ और कभी-कभी अग्नाशय के अन्य हिस्सों को भी स्प्लीन (spleen) के साथ हटा देते है। डॉक्टर आमतौर पर आइलेट सेल या न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के इलाज के लिए इस प्रक्रिया को इस्तेमाल करते हैं।
इस प्रक्रिया में सर्जन पूरे अग्नाशय और स्प्लीन (spleen) को हटा देते है। अग्नाशय के बिना रहना संभव है, लेकिन मधुमेह की शिकायत उत्पन्न हो सकती है क्योंकि अग्नाशय को अलग करने के बाद शरीर इंसुलिन कोशिकाओं का उत्पादन करना बंद कर देता है।
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पैलिएटिव सर्जरी का विकल्प तब इस्तेमाल किया जाता है जब अग्नाशय में उत्पन्न कैंसर को दूर करना संभव नहीं होता है।
यदि पित्त नली (bile duct) या ग्रहणी (deodenum) में रुकावट आती है, तो सर्जन एक बाईपास बना देता है ताकि पित्त लीवर से बहना जारी रख सके। ऐसा करने से दर्द और पाचन समस्याओं को कम किया जा सकता है।
पित्त नली की रुकावट को राहत देने का एक तरीका यह भी है कि इसे खुला रखने के लिए डक्ट में एक छोटा सा स्टेंट डाला जाए। यह एक कम दर्द देने वाली प्रक्रिया है जिसे एंडोस्कोप का उपयोग करके किया जा सकता है।
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कीमोथेरेपी दवा का एक ऐसा रूप है जो कोशिका विभाजन प्रक्रिया (cell division process) में हस्तक्षेप करके उन कैंसर बढ़ाने वाली कोशिकाओ को बढ़ने से रोकता हैं। जैसे-जैसे दवा शरीर में जाती है यह कैंसर को फैलने से रोकती है।
उपचार कई तरह के चक्रों में संपन्न होता है, ताकि शरीर को ठीक होने के लिए थोड़ा समय मिल जाये। इस प्रक्रिया के कई तरह के साइड इफ़ेक्ट भी होते है जैसे-
संयोजन उपचार (combination therapy) में अन्य उपचार विकल्पों के साथ विभिन्न प्रकार की कीमोथेरेपी शामिल हो सकती हैं।
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विकिरण चिकित्सा (radiation therapy) कैंसर कोशिकाओं पर उच्च-ऊर्जा किरणों (high energy rays) को केंद्रित करके कैंसर को नष्ट करती है।
यह एक स्टैंडअलोन उपचार के रूप में माना जाता है, क्योकि यह ट्यूमर को सिकोड़ सकता है और कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर सकता है। डॉक्टर इसे अन्य कैंसर उपचारों जैसे कि कीमोथेरेपी और सर्जरी के साथ भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
कोई भी व्यक्ति सामान्य रूप से 5 से 6 सप्ताह के लिए अग्नाशय के कैंसर के लिए सप्ताह में 5 दिन विकिरण चिकित्सा प्राप्त कर सकता है। जब सामान्य पित्त नली या ग्रहणी में रुकावट होती है तब विकिरण चिकित्सा दर्द या पाचन समस्याओं को दूर करने में सहायक होती है।
विकिरण चिकित्सा के कुछ दुष्प्रभाव में होते हैं जैसे-
इन सभी इलाजों से अग्नाशय कैंसर के दर्द से राहत पायी जा सकती है।
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अग्नाशय कैंसर से बचाव का वैसे तो कोई ख़ास उपाय नहीं है परन्तु हम अपनी जीवनशैली और खानपान को सुधार कर इस तरह की गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है।
इसमें कुछ बचाव के निम्न उपाय इस प्रकार है-
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