Parkinson’S Disease Information In Hindi पार्किंसंस रोग नर्वस सिस्टम से जुड़ी एक बीमारी है जिसमें हाथों की हथेलियों में लगातार और तेज कंपन होता है। इस बीमारी की शुरूआत में केवल एक हथेली में कंपन होता है लेकिन धीरे-धीरे यह दूसरी हथेली को भी प्रभावित करने लगती है। पार्किंसन्स रोग होने पर हथेली अक्सर झुकी रहती है और हथेलियों में कंपन होता रहता है। शुरूआती स्टेज में इस बीमारी का जल्दी पता नहीं चल पाता है। इसके अलावा काम करते या टहलते समय भी हाथों की क्रिया में कोई खास परिवर्तन नहीं दिखता है।
जैसे-जैसे समय बीतता है पार्किंसंस रोग के लक्षण और खतरनाक होने लगते हैं। आमतौर पार्किंसन्स रोग को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है लेकिन कुछ दवाओं के जरिए इस बीमारी के लक्षणों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। यहां हम आपको पार्किंसंस रोग के लक्षण, पार्किंसन्स रोग होने के कारण, जोखिम कारक और पार्किंसंस रोग के इलाज के बारे में बताएंगे।
पार्किंसन रोग एक प्रगतिशील तंत्रिका संबंधी विकार है, इसे मस्तिष्क विकार की श्रेणी में भी रखा जा सकता है। यह मस्तिष्क के एक हिस्से में तंत्रिका कोशिकाओं को क्षति पहुंचने के कारण उत्पन्न होता है। मस्तिष्क का यह हिस्सा गति को नियंत्रित करने के लिए डोपामाइन का उत्पादन करता है, जिसे “सबस्टेंटिया नाइग्रा “(substantia nigra) कहा जाता है।
पार्किंसन रोग में सबस्टेंटिया नाइग्रा (substantia nigra) की कोशिकाएं मरने लगती हैं। जब ऐसा होता है, तो डोपामाइन का स्तर कम हो जाता है। डोपामाइन में 60 से 80 प्रतिशत तक की कमी होने पर पार्किंसंस के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। चूँकि डोपामाइन मांसपेशियों की गति को नियंत्रित करता है, इसलिए पार्किंसंस से पीड़ित लोग अक्सर हिलते हैं या अन्य असामान्य हरकतें दिखाते हैं।
व्यक्ति में पार्किंसंस रोग होने पर दिमाग की कुछ तंत्रिका कोशिकाएं या न्यूरॉन धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं या मृत हो जाते हैं। न्यूरॉन के टूटने पर दिमाग में डोपामाइन और नॉरपेनेफ्रिन (norepinephrine) का लेवल घटने लगता है। जिससे मस्तिष्क असामान्य तरीके से काम करने लगता है और हमें पार्किंसंस रोग होने का संकेत मिलता है। पर्किंसन रोग के उत्पन्न होने के अनेक कारण हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
शोधकर्ताओं ने पार्किंसन्स रोग होने के पीछे जेनेटिक म्यूटेशन को जिम्मेदार माना है। इसका मतलब यह है कि अगर आपके घर का कोई सदस्य पार्किंसन्स रोग से पीड़ित है, तो आपको भी यह बीमारी होने की संभावना बनी रहती है। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर मामले में पार्किंसंस रोग के पीछे आनुवांशिक कारण ही हो।
दूषित पर्यावरण और विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने से भी पार्किंसंस रोग होने की संभावना होती है। हालांकि इससे कम ही लोग प्रभावित होते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया है कि पार्किंसन्स बीमारी होने से मरीज के दिमाग में कई तरह के बदलाव होने लगते हैं लेकिन यह पता नहीं चल पाया है कि ये बदलाव किस वजह से होते हैं।
कुछ सामान्य कारण पार्किंसन रोग होने के जोखिम को बढ़ाने में सहायक होते हैं, जिनमें शामिल हैं:
पार्किंसंस रोग के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग होते हैं। इसके शुरूआती लक्षण इतने मामूली होते हैं कि जल्दी इसपर किसी का ध्यान नहीं जाता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को शुरू में सिर्फ एक हाथ में कंपन होता है, लेकिन बाद में दूसरे हाथ में भी वैसा ही कंपन होने लगता है।
यह बीमारी आमतौर पर हाथ या उंगलियों में कंपन से शुरू होती है। आप अपने हाथ के अंगूठे को तर्जनी उंगली पर रगड़कर इसे महसूस कर सकते हैं। इस बीमारी का एक संकेत यह भी है कि आपके हाथों में हमेशा बेचैनी सी महसूस होगी।
पार्किंसन रोग होने पर हाथों की गति कम हो जाती है और हाथ कम हिलते-डुलते हैं। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति को हाथ से खाना खाने में भी परेशानी होती है। इसके अलावा टहलते समय कदमों की गति धीमी हो जाती है और पीड़ित व्यक्ति को कुर्सी से उठने में दिक्कत होती है।
पार्किंसन्स रोग होने पर आपको उठने-बैठने में अधिक तकलीफ होती है और आपकी बैठने की मुद्रा भी बदल जाती है। इसके अलावा बार-बार पलकें झपकना, मुस्कुराना और चलते समय हाथों को झटकने जैसे लक्षण भी देखे जाते हैं।
इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को बोलने में भी परेशानी होती है। मरीज जल्दी-जल्दी बोलता है या बोलने से पहले संकोच करता है। व्यक्ति की आवाज भी कर्कश हो सकती है, जो सुनने में असामान्य सी लगेगी। आपको लिखने में भी दिक्कत होगी और आपको अपना लिखा छोटा दिखेगा।
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जो व्यक्ति पार्किंसन्स बीमारी से पीड़ित होते हैं उनको इस बीमारी के चलते कई दिक्कतों और परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, जिनमें शामिल हैं:
जो पार्किंसन रोग (Parkinson’s disease) अधिक बढ़ जाता है, तो इससे पीड़ित व्यक्ति को सोचने समझने और याद रखने में परेशानी होती है। यह लक्षण काफी देरी से दिखता है। इस तरह की समस्या को ठीक करने में दवाएं भी ज्यादा कारगर नहीं होती है।
जो व्यक्ति पार्किंसन्स रोग से पीड़ित होते है, उनके डिप्रेशन में जाने का ख़तरा अधिक होता है। इस स्थिति में डिप्रेशन का इलाज कराने से पार्किंसन्स की बीमारी के लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है। इसके अलावा पार्किंसन बीमारी से पीड़ित व्यक्ति में कुछ भावनात्मक बदलाव भी होते हैं जैसे अचानक से डर, चिंता और आत्मविश्वास में कमी महसूस होना। डॉक्टर ऐसे मरीज को कुछ दवाएं देकर पार्किंसन्स रोग के लक्षणों को कम करते हैं।
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पार्किंसन रोग से पीड़ित मरीज को भोजन निगलने में भी परेशानी होती है। भोजन निगलने में परेशानी होने की वजह से लार मुंह में जमा हो जाता है और फिर मुंह से बाहर टपकने लगता है।
पार्किंसन की बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को नींद की समस्या हो जाती है। रात में बार-बार मरीज की नींद खुल जाती है। वह सुबह जल्दी उठ जाता है और पूरे दिन उसे नींद नहीं आती है। इसके अलावा इस रोग से पीड़ित व्यक्ति नींद में बार-बार अपनी पलकें सिकोड़ता और फैलाता है, जैसे वह कोई सपना देख रहा हो। दवाओं के जरिए इस समस्या को ठीक किया जा सकता है।
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पार्किंसन्स रोग से पीड़ित व्यक्ति को थोड़ी देर के लिए भी पेशाब रोककर रखने में परेशानी होती है। इसके अलावा उसे पेशाब करने में भी दिक्कत होती है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति की पाचन क्रिया धीमी हो जाती है, जिससे उसे कब्ज की भी समस्या हो सकती है।
पार्किंसंस के निदान के लिए कोई विशिष्ट परीक्षण नहीं है। इसका निदान मरीज के स्वास्थ्य इतिहास की जानकारी, एक शारीरिक और तंत्रिका संबंधी परीक्षण और लक्षणों की समीक्षा के आधार पर किया जाता है।
इसकी नैदानिक प्रक्रिया में कैट स्कैन (CAT scan), एमआरआई (MRI) और डोपामाइन ट्रांसपोर्टर (DAT) स्कैन का भी उपयोग किया जा सकता है। हालांकि ये परीक्षण पार्किंसंस की पुष्टि नहीं करते हैं, लेकिन अन्य स्थितियों जानकारी देने में सहायक होते हैं, जिसके आधार पर डॉक्टर को पार्किंसन का निदान करने में सहायता मिलती है।
हालांकि पार्किंसंस रोग का कोई उचित इलाज नहीं है लेकिन कुछ दवाओं की मदद से एवं जीवन शैली में परिवर्तन कर इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। पर्याप्त आराम, नियमित व्यायाम और संतुलित आहार इस रोग को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पार्किंसंस रोग के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं निम्न हैं:
सर्जरी की सिफारिश उन लोगों के लिए की जाती है, जो दवाओं और जीवन शैली में परिवर्तन जैसे तरीके आजमाने के बाद भी बीमारी के इलाज में कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हैं। पार्किंसंस के इलाज के लिए दो प्रकार की सर्जरी का उपयोग किया जाता है:
गहरी मस्तिष्क उत्तेजना (Deep brain stimulation) – डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस) के दौरान, सर्जन मस्तिष्क के विशिष्ट भागों में इलेक्ट्रोड इम्प्लांट करते हैं। इलेक्ट्रोड से जुड़ा एक जनरेटर लक्षणों को कम करने में मदद करने के लिए पल्स को भेजता है।
पंप डिलीवरड थेरेपी (Pump-delivered therapy) – फ़ूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने जनवरी 2015 में डुओपा (Duopa) नामक एक पंप डिलीवरड थेरेपी को मंजूरी दी। इस प्रक्रिया में पंप द्वारा मरीज को लेवोडोपा और कार्बिडोपा का संयोजन प्रदान किया जाता है। डॉक्टर पंप को मरीज की छोटी आंत से कनेक्ट करने के लिए एक शल्य चिकित्सा द्वारा पेट में एक छोटा सा छेद करता है।
अभी तक पार्किंसन्स रोग होने की सही वजह पता नहीं चल पायी है। यह लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है। लेकिन रिसर्च में पाया गया है कि कॉफी में मौजूद कैफीन और चाय पार्किंसन्स की बीमारी के खतरे को बढ़ने से रोकते हैं। इसके अलावा ग्रीन टी भी पर्किंसन की बीमारी को बढ़ने से रोकने में मदद करती है। कुछ रिसर्च यह भी दावा करते हैं कि एरोबिक एक्सरसाइज से पर्किंसन बीमारी के खतरे को कम किया जा सकता है।
कुछ मामलों में डॉक्टर दिमाग के कुछ हिस्सों को रेगुलेट करने और इस बीमारी के लक्षणों को कम करने के लिए सर्जरी की भी सलाह देते हैं।
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पार्किंसंस से पीड़ित लोगों के लिए, आहार दैनिक गतिविधियों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हालांकि आहार के माध्यम से पार्किंसंस को ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसके माध्यम से लक्षणों को नियंत्रित रखने और इन्हें कम करने में सफलता प्राप्त की जा सकती है। एक स्वस्थ आहार के माध्यम से पार्किंसंस रोगियों के मस्तिष्क में डोपामाइन के स्तर बढ़ाने में सफलता प्राप्त की जा सकती है। पार्किंसन की बीमारी में निम्न खाद्य पदार्थों का सेवन फायदेमंद होता है, जैसे:
एंटीऑक्सीडेंट गुणों में उच्च खाद्य पदार्थ का अधिक सेवन ऑक्सीडेटिव तनाव और मस्तिष्क को नुकसान पहुंचने से रोकने में मदद कर सकते हैं। एंटीऑक्सिडेंट युक्त खाद्य पदार्थों में नट्स, बेरी (berries) और नाइटशेड सब्जियां (nightshade vegetables) शामिल हैं। पौष्टिक नाइटशेड फल और सब्जियों में शामिल हैं:
इन लाइम ग्रीन बीन्स (lime green beans) या फावा बीन्स में लेवोडोपा (levodopa) होता है, जो कुछ पार्किंसंस दवाओं में इस्तेमाल किया जाने वाला एक ही घटक है। अतः जो व्यक्ति पार्किंसंस रोग से बीमार है, उनको अपने आहार में फावा बीन्स को शामिल करने पर अधिक जोर देना चाहिए।
सैल्मन, ओएस्टर (Oyster), अलसी और कुछ बीन्स जैसे ओमेगा-3 फैटी एसिड युक्त आहार हृदय और मस्तिष्क स्वस्थ को बढ़ावा देने में लाभकारी होते हैं। ओमेगा-3 फैटी एसिड पार्किंसन रोग के मरीजों में मस्तिष्क को पहुंचने वाले नुकसान को कम करने में मदद कर सकता है।
इन लाभकारी खाद्य पदार्थों को अधिक खाने के अलावा, पार्किंसन मरीजों को डेयरी और संतृप्त वसा के सेवन से परहेज करने की सलाह भी दी जाती है।
पार्किंसंस रोग के लक्षण, कारण और बचाव (Parkinson’s Disease Symptoms, Causes And Prevention In Hindi) का यह लेख आपको कैसा लगा हमें कमेंट्स कर जरूर बताएं।
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