Periods Myths In Hindi पीरियड्स से जुड़े ये मिथक आज भी हैं प्रचलित हैं जानिए मासिक धर्म (माहवारी) से जुड़े सबसे आम मिथकों के बारे में। हम समझ गए कि मासिक धर्म के रक्त का विवरण सभी को थोड़ा शर्मीला बना सकता है, इसलिए हमने सोचा कि मासिक धर्म के बारे में कुछ बातों को स्पष्ट करने की कोशिश करना हम सबके लिए मददगार हो सकता है। लड़कियां अक्सर पीरियड्स से जुड़े कुछ मिथकों का आसानी से शिकार हो जाती हैं। माहवारी या अवधि के दौरान रक्त स्राव होना लड़कियों के लिए शर्मिंदगी का कारण हो सकता है। लेकिन माहवारी आना कोई बीमारी नहीं है।
आज इस आर्टिकल में आप पीरियड्स से संबंधित कुछ बातों को जानेगी जो कि सामान्य रूप से मिथक माने जाते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि जब लड़कियों में सेक्स के प्रति इक्छा, गुप्तांग में बाल, शरीर की विशेष गंध और अन्य शारीरिक परिवर्तन होते तो यह यौवन की शुरुआत मानी जाती है। लेकिन महिलाओं के मासिक धर्म से संबंधित कुछ मिथक फैले हुए हैं। आइए इन्हें जानें।
विषय सूची
सबसे पहले यह समझना महत्वपूर्ण है कि एक महिला का मासिक धर्म चक्र उसकी अवधि के समान नहीं है। एक महिला में रक्त स्राव का होना वास्तविक मासिक धर्म के रूप में जाना जाता है। लेकिन उसका मासिक धर्म एक समय से अगले मासिक धर्म के शुरू होने तक का पूरा समय होता है। हालांकि यह सभी जानते हैं कि एक महिला का मासिक धर्म चक्र 28 दिनों का होता है। यह केवल एक औसत संख्या है क्योंकि कुछ महिलाओं का चक्र 29 से 35 दिनों तक का होता है। या फिर कुछ महिलाओं को सामान्य से कुछ कम दिन हो सकते हैं।
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एक अवधि या पीरियड्स के दौरान महिलाओं को होने वाला दर्द वास्तविक होता है। यह दर्द सिर के दर्द, बदन दर्द या आपके कानों में होने वाले दर्द से अलग होता है। कुछ महिलाओं में यह मासिक दर्द गंभीर हो सकता है। जिसके कारण उनके दैनिक कार्य प्रभावित हो सकते हैं और वे विस्तर पर आराम करना चाहती हैं। इस समस्या को डिसमेनोरिया (कष्टयुक्त मासिकस्राव) (dysmenorrhea) कहते है। वास्तव में लगभग 20 प्रतिशत महिलाओं को डिसमेनोरिया (कष्टयुक्त मासिकस्राव) है जो दैनिक जीवन की गतिविधियों में हस्तक्षेप करने के लिए पर्याप्त है। यह ध्यान केंद्रित करने की हमारी क्षमता को प्रभावित करता है और हमारे तनाव को बढ़ा सकता है। इस स्थिति में महिला के व्यवहार में परिवर्तन भी आ सकता है और चिड़चिड़े स्वाभाव का अनुभव कर सकती हैं।
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जब महिलाएं पीरियड्स पर होती हैं तो उनकी भावनाओं को समझना चाहिए न कि उन्हें ठेस पहुंचाना चाहिए। पीरियड के दौरान एक महिला के शरीर में बहुत से शारीरिक परिवर्तन होते हैं। जब महिला की अवधि शुरू होती है तब शुरुआती दिनों में एस्ट्रोजन प्लमेट (estrogen plummet) के स्तर और उसके प्रोजस्टेरोन के स्तर में वृद्धि होती है। एस्ट्रोजन सेरोटोनिन से जुड़ा होता है जो कि हैप्पी हार्मोन (happy hormone) है। जबकि प्रोजेस्टेरोन मस्तिष्क के उस हिस्से से जुड़ा होता है जो डर, चिंता और अवसाद का कारण बनता है।
इसलिए पीरियड्स के दौरान हार्मोन परिवर्तन महिलाओं की मनोदशा को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन इन हार्मोन के कारण मनोदशा में परिवर्तन स्थाई नहीं होते हैं। इसलिए महिलाओं के मासिक धर्म के समय होने वाले मानिकस परिवर्तनों को समझना चाहिए।
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ऐसा माना जाता है कि हार्मोन महिलाओं को परिभाषित करता है। हार्मोन की बात की जाए तो यह कहा जाता है कि महिलाएं हार्मोनल होती हैं क्योंकि इनके शरीर में हार्मोन परिवर्तन लगभग लगातार होता है। जबकि ऐसा नहीं है, हार्मोन परिवर्तन पुरुषों में भी होते हैं। पुरुष गर्भनिरोधक पर हुए एक अध्ययन के अनुसार इनका उपयोग करने पर पुरुषों में मुंहासे, स्खलन के दौरान दर्द और भावनात्मक विकार आदि होते हैं। जबकि ऐसे ही विकार गर्भनिरोधक उपायों को अपनाने पर महिलाओं के लिए भी होते हैं।
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कुछ लोगों का माना है कि मासिक धर्म के समय जो रक्त स्राव होता है जो कि दूषित होता है। महिलाओं को मासिक धर्म के समय निकलने वाला तरल पदार्थ शरीर के विषाक्त पदार्थ को बाहर निकालने का माध्यम नहीं है। इसे योनि स्राव के रूप में सोचें। इस तरल पदार्थ में रक्त की मात्रा बहुत ही कम होती है, जबकि इसमें गर्भाशय ऊतक, बलगम अस्तर और बैक्टीरिया की मात्रा अधिक होती है। लेकिन यह समय के साथ बदलते रहता है। यह सेक्स को प्रभावित नहीं करता है। इस तरह से मासिक रक्त नसों में चलने वाले रक्त से अलग होता है। वास्तव में इसे मासिक रक्त कहा जाता है जबकि इसमें रक्त की मात्रा बहुत कम होती है। पीरियड ब्लड में सामान्य रक्त की अपेक्षा रक्त कोशिकाएं बहुत ही कम होती हैं।
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ऐसा नहीं है कि पीरियड्स केवल महिलाओं को ही आते हैं। हर महिला को अपना पीरियड नहीं मिलता है साथ ही हर महिला को पीरियड नहीं आता है। बल्कि कुछ ट्रांसजेंडर पुरुषों को भी पीरियड आ सकते हैं। लेकिन ट्रांसजेंडर महिलाओं को पीरियड्स नहीं आते हैं। इस तरह से यह कहना गलत है कि केवल महिलाओं को ही पीरियड्स आते हैं।
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अगर हम यह सोचना बंद कर दें कि पीरियड्स किसी महिला के लिए शर्मनाक और गंदे हैं तो सही होगा। लेकिन फिर भी यह एक सतत प्रक्रिया है जो कि कुछ निश्चत समय के बाद फिर से आती है। लोगों को यह समझना चाहिए कि यह महिलाओं के लिए सामान्य अवस्था है। यह उनके शरीर की कार्य प्रणाली का प्रमुख अंग है। महिलाओं में आने वाले मासिक धर्म चक्र के दौरान उन्हें हीन भावना से नहीं देखा जाना चाहिए। आप और हम मिलकर इस भावना को बदलने का प्रयास कर सकते हैं। मासिक धर्म चर्क आखिरकार पीरियड्स और हार्मोन्स का संतुलन ही तो है जो महिलाओं को जवां रहने में मदद करता है। इसके अलावा पीरियड्स महिलाओं की उम्र बढ़ने की गति को धीमा करने और यहां तक की हृदय रोगों की संभावना को कम करने में मदद करते हैं।
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मासिक धर्म काल एक मानवीय संकट है। 2014 में, संयुक्त राष्ट्र ने घोषणा की कि मासिक धर्म स्वच्छता एक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है। बहुत से लोगों को उचित स्वच्छता, संसाधनों तक पहुँच नहीं होती है, और उन्हें अपने पीरियड्स के लिए आवश्यक सहायता नहीं मिलती है। भारत में, 4 में से 1 लड़कियों को उनके पीरियड्स के कारण स्कूल की कमी खलती है, जो उनकी शिक्षा और भविष्य को काफी प्रभावित कर सकती है।
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भारत जैसे देश में आज भी यह मिथक व्यापक रूप से फैला है कि मासिक धर्म के समय महिलाओं को पूजा नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा उन्हें मंदिर में जाने, धार्मिक कार्यों में भाग लेने और यहां तक की रसोई घर में जाने की अनुमति नहीं होती है। लेकिन यह मानना बिल्कुल गलत है। बहुत से लोगों का मानना है कि इस दौरान महिलाएं अशुद्ध होती हैं इसलिए उन्हें भगवान और रसोई से संबंधित कार्यो से दूर रहना चाहिए। ऐसा मानने वाले लोगों को यह सोचना चाहिए कि जिस भगवान ने महिलाओं को यह प्रकृति दी है वह किसी महिला के छूने मात्र से कैसे अशुद्ध हो सकते हैं। पुरुषों को महिलाओं के मासिक धर्म पर गर्व होना चाहिए क्योंकि यह प्रजनन प्रणाली का सूत्राधार होता है।
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बहुत से लोगों के मन मे यह मिथक व्याप्त है कि मासिक धर्म के लक्षण वास्तविक नहीं होते हैं। जबकि मासिक धर्म के लक्षण लगभग 50 प्रतिशत से अधिक महिलाओं द्वारा अनुभव किये जाते हैं। इस स्थिति का अनुभव पीरियड्स होने के एक या दो हफ्ते पहले से होने लगता है। पीरियड्स के लक्षणों में ऐंठन होना, चिड़चिड़ा पन होना, घबराहट और बैचेनी आदि होती है।
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ऐसा माना जाता है कि मासिक धर्म चक्र के दौरान महिलाएं गर्भधारण नहीं कर सकती हैं। जो कि एक मिथक है, क्योंकि इस दौरान गर्भधारण करना मुश्किल जरूर है लेकिन गर्भाधारण करने की संभावना बनी रहती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पुरुष शुक्राणु महिला योनि में लगभग 5 दिनों तक जीवित रह सकते हैं। इसलिए यदि मासिक चक्र के दौरान असुरक्षित यौन संबंध बनाए जाते हैं गर्भाधारण करने की संभावना खत्म नहीं होती है।
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बहुत से लोगों का मत है कि पीरियड्स के दौरान सेक्स नहीं किया जा सकता है। सामान्य रूप से देखा जाए तो यह सही नहीं है। पीरियड्स के दौरान सेक्स करने में किसी प्रकार की समस्या नहीं है। लेकिन रक्त स्राव होने के कारण कुछ लोगों को सेक्स करने में घिन आ सकती है इस कारण से सेक्स नहीं किया जाता है। लेकिन पीरियड्स के दौरान सेक्स न करने के कोई वैज्ञानिक कारण नहीं हैं। जबकि बहुत सी महिलाओं को पीरियड्स के दौरान अधिक उत्तेजना का अनुभव होता है। लेकिन यौन संक्रमण से बचने के लिए पीरियड्स के दौरान सेक्स करते समय कंडोम का उपयोग करना बहुत ही आवश्यक है।
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योगा करने के लिए कोई विशेष समय या स्थिति नहीं होती है, इसके लिए केवल उचित शारीरिक क्षमता का होना आवश्यक है। यह सबसे बड़ा मिथक है कि महिलाएं पीरियड्स में योग नहीं कर सकती हैं। लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि इस दौरान योग या व्यायाम करने से महिलाओं को चोट लगने की संभावना अधिक रहती है। जबकि यह पूर्ण रूप से गलत है क्योंकि मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को थोड़ा बहुत व्यायाम करना अनिवार्य है। क्योंकि योग महिलाओं में मासिक धर्म के लक्षणों को कम करने में सहायक हो सकता है।
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कुछ लोगों का मानना है कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं का स्वीमिंग करना नुकसानदायक हो सकता है। जबकि ऐसा नहीं है क्योंक यदि महिलाएं पूरी सावधानी बरतें तो स्वीमिंग करने से कोई नुकसान नहीं है। इस दौरान महिलाओं को स्वीमिंग करने के दौरान टैम्पॉन और अन्य सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करना चाहिए। ऐसा करने से शारीरिक सुरक्षा के साथ ही स्वीमिंग सूट पर दाग धब्बे आने की संभावना कम हो जाती है।
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