Pregnancy Me Hone Wali Problem In Hindi: गर्भावस्था के दौरान शरीर कई बदलावों से गुजरता है। हार्मोनल और इमोशनल कई तरह के परिवर्तनों के कारण गर्भवती महिला को विभिन्न प्रकार की असुविधाएं भी हो सकती हैं। गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताएं बच्चे और मां दोनों के लिये परेशानी का कारण बन सकती हैं। इस लेख में गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं और उनसे बचने के आसान तरीके जानें।
ज्यादातर गर्भवती महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान मॉर्निंग सिकनेस, कमर दर्द से लेकर सूजन और योनि स्त्राव आदि समस्याओं से निपटना पड़ता है। देखा जाए, तो ये सभी समस्याएं गर्भावस्था में होना आम हैं, हर महिला को इस अवस्था से गुजरना ही पड़ता है, लेकिन फिर भी इन्हें अनेदखा नहीं करना चाहिए। जरूरी नहीं, कि हर समस्या के लिए डॉक्टर के पास जाया जाए, कुछ छोटे-छोटे बदलाव और उपायों के साथ भी इनसे राहत पायी जा सकते हैं। यदि आप गर्भवती हैं, तो आपको गर्भावस्था में होने वाली उन सभी समस्याओं की जानकारी होनी चाहिए।
आज के इस आर्टिकल में हम आपको गर्भावस्था में होने वाली समस्याएं और इनसे बचने के उपाय बताने जा रहे हैं। इन्हें अपनाकर आप अपनी प्रेग्नेंसी प्रॉब्लम्स को आसानी से दूर कर सकती हैं।
विषय सूची
गर्भावस्था के दौरान होने वाली असुविधाएं – Discomfort during pregnancy in Hindi
गर्भावस्था के दिनों में होने वाली समस्याएं गर्भवती को बहुत परेशान करती हैं। अगर आपको इनके बारे में जानकारी होगी, तो आप कुछ उपाय कर सकतीं हैं, जिनके बारे में हम आपको आगे बता रहे हैं।
मॉर्निंग सिकनेस प्रारंभिक गर्भावस्था का आम लक्षण है। ऐसा एस्ट्रोजन के स्तर में बदलाव होने, एचसीजी हार्मोन लेवल में वृद्धि, पोषण की कमी और गैस्ट्रिक समस्या के कारण होता है। यह गर्भवती महिला को दिन में कभी भी हो सकती है। कई मामलों में ये समस्या शुरूआती तीन महीनों में ही रहती है। हालांकि, मॉर्निंग सिकनेस भ्रूण के लिए कोई खतरा नहीं होती, लेकिन अगर महिला पूरे नौ महीने इसका अनुभव करती है, तो डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी हो जाता है, क्योंकि मोटापा, तनाव, युवा मातृ आयु (Young maternal age), फीमेल का मोटापा (Female fats) और पिछली प्रेग्नेंसी मॉर्निंग सिकनेस के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।
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प्रेग्नेंसी के दिनों में शरीर में प्रोजेस्टेरॉन की वृद्धि के कारण आंत्र की गति स्लो हो जाती है। इस वजह से गर्भवती महिला को कब्ज होता है। गर्भावस्था के तीन महीनों के बाद कब्ज की समस्या गर्भवती को प्रभावित करती है।
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गर्भावस्था की अंतिम तिमाही में महिलाओं को बार-बार पेशाब आने की समस्या होने लगती है। यह स्थिति बच्चे के सिर के दबाव के कारण महसूस होती है। गर्भावस्था के छठे सप्ताह से आपको महसूस होगा कि आपको सामान्य से अधिक पेशाब आ रही है।
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गर्भावस्था के दौरान शरीर में लिगामेंट्स नरम हो जाते हैं और आपको प्रसव के लिए तैयार करने के लिए खिंचाव पैदा करते हैं। यह आपकी पीठ के निचले हिस्से और श्रोणि के जोड़ों पर दबाव डाल सकता है, जिस वजह से गर्भवती पीठ दर्द महसूस कर सकती है। यदि पूरी गर्भावस्था में पीठ दर्द की समस्या बनी रहती है, तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं। क्योंकि कमर दर्द योनि से ब्लड लॉस से जुड़ा हुआ है।
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पीठ के निचले हिस्से में खिंचाव-
इसे करने के लिए सबसे पहले अपने घुटनों पर एड़ी के बल बैठें। फर्श की ओर आगे झुकें और कोहनी को अपने सामने जमीन पर टिकाएं। धीरे-धीरे अपनी बाहों को आगे बढ़ाएं। कुछ सैकंड के लिए इसी अवस्था में रहें।
ऊपरी पीठ में दर्द के लिए खिंचाव-
सबसे पहले एक कुर्सी पर बैठें। अब पेट की मांसपेशियों को ठीक करें। अब अपनी उंगलियों को आपस में जोड़ें और अपनी बाहों को ऊपर उठाएं। इसके बाद अपनी कोहनी को सीधी करें और हथेलियों को ऊपर की ओर ले जाएं। कुछ सैकंड के लिए इसी पोजीशन में रहें। अब पहले जैसी पोजीशन में आ जाएं और इस प्रक्रिया को फिर दोहराएं।
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गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल परिवर्तन आपके बालों को प्रभावित कर सकता है। जिससे या तो आपके बाल पतले या फिर मोटे हो सकते हैं। बता दें, कि बालों में एक प्राकृतिक जीवन चक्र होता है। पहले बाल बढ़ते हैं और फिर दो से तीन महीने इनका बढ़ाना रूक जाता है। लेकिन गर्भावस्था में यह चक्र बदल जाता है। लगभग 15 सप्ताह की गर्भावस्था में महिलाओं अपने बालों को मोटा महसूस करती हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि बाल अपने बढ़ते चरण में अधिक समय तक टिके रहते हैं, जिसका मतलब है कि इस दौरान बाल कम झड़ते हैं। ऐसा एस्ट्रोजन हार्मोन में वृ़द्धि के कारण होता है। कई महिलाओं को गर्भावस्था के तीन से चार महीने बाद तक बाल झडऩे की समस्या बनी रहती है। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है। बच्चे के 12 महीने के होने पर इस समस्या से निजात मिल जाती है।
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जैसे-जैसी आपकी गर्भावस्था विकसित होती है, आप अपने बालों के साथ त्वचा में भी बदलाव महसूस करतीं हैं। कुछ महिलाओं के चेहरे पर काले धब्बे हो जाते हैं। कई महिलाओं को शरीर पर खिंचाव के निशान यानि स्ट्रेच मार्क्स दिखने लगते हैं, खासतौर से पेट के आसपास। इसके अलावा हार्मोनल परिवर्तन आपकी त्वचा का रंग थोड़ा गहरा कर सकता है।
क्लोस्मा (Chlosma)– क्लोस्मा एक ऐसी स्थिति है, जब महिलाओं के चेहरे पर गहरे रंग के पैच विकसित हो जाते हैं। यह आमतौर पर गाल, नाक, होंठ और माथे पर दिखाई देते हैं। कुछ महिलाओं को यह पैच तब होते हैं, जब वे ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स लेती हैं। पैच ज्यादातर शिशु को जन्म देने के बाद कुछ महीनों में खुद हल्के पड़ जाते हैं, लेकिन कुछ महिलाओं को ये सालों तक बने रहते हैं, जिसके बाद ट्रीटमेंट लेना ही पड़ता है। इससे बचने के लिए गर्भावस्था में हर दिन सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें। यहां तक प्रेग्नेंसी के बाद भी सनस्क्रीन का इस्तेमाल
जारी रखें, ताकि ये पैच फिर से उभर न पाएं।त्वचा में बदलाव (Changes in skin)– गर्भावस्था में होने वाले हार्मोनल परिवर्तन निपल और इसके आसपास के क्षेत्र को गहरा कर सकते हैं। त्वचा का रंग थोड़ा काला हो सकता है। बर्थमार्क, मोल्स फीके पड़ सकते हैं। कुछ महिलाओं के पेट के बीचों-बीच एक डार्क लाइन दिखती है, जिसे लाइनिया निग्रा कहा जाता है। गर्भावस्था के बाद यह फीकी पड़ने लगती है।
स्ट्रेच मार्क्स (Stretch marks)– कई महिलाएं गर्भावस्था के दौरान त्वचा पर खिचांव के निशान विकसित करती हैं। खासतौर से गर्भावस्था के आखिरी तीन महीनों में। यह आपके पेट या जांघों या फिर स्तनों पर दिखाई देते हैं। खिंचाव के निशान आपके लिए हानिकारक नहीं हैं, समय के साथ यह हल्के पड़ जाते हैं। इसके लिए बाजार में उपलब्ध स्ट्रेच मार्क क्रीम लगाना अच्छा विकल्प है।
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प्रेग्नेंसी के दिनों में थकान और शरीर में गर्माहट महसूस होना सामान्य है। कई गर्भवती महिलाओं को इस दौरान बेहोशी भी महसूस होती है। यह सब प्रेग्नेंसी के दिनों में हार्मोनल परिवर्तन के कारण होता है ।
बेहोशी- गर्भवती महिलाएं कभी कभी बेहोश हो जाती हैं। इसका कारण हार्मोनल बदलाव है। बेहोशी तब होती है, जब आपके मास्तिष्क को पर्याप्त खून नहीं मिल रहा और पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। ऑक्सीजन की कमी से बेहोशी आ सकती है।
गर्मी लगना- गर्भावस्था के दौरान आपको सामान्य से ज्यादा गर्मी लगती है। यह हार्मोन्ल परिवर्तन और त्वचा में रक्त की आपूर्ति में वृद्धि के कारण होता है। इससे बचने के लिए नीचे कुछ उपाय दिए जा रहे हैं।
थकान और नींद- गर्भावस्था के शुरूआती 12 हफ्तों में आप थकान और ज्यादा नींद का अनुभव कर सकती हैं। इससे बचने के टिप्स आप नीचे जान सकती हैं।
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गर्भावस्था में अक्सर महिलाओं को हार्मोनल बदलाव के कारण सिर दर्द की शिकायत रहती है। खासतौर से पहली और तीसरी तिमाही में। ऐसा आपके शरीर में लगातार रक्त की वृद्धि होने के कारण हो सकता है। इसके अलावा नींद न पूरे होने, डिहाइइ्रेशन, लो ब्लड शुगर की वजह से भी सिर दर्द हो सकता है। लेकिन गर्भावस्था में लगातार सिर दर्द होना एक्लेमप्सिया का संकेत हो सकता है। इसमें आमतौर पर गर्भवती महिला के रक्तचाप में वृद्धि होती है। प्री एक्लेमप्सिया ज्यादातर गर्भावस्था की दूसरी छमाही में होता है।
माइग्रेन( Migraine) – गर्भावस्था के पहले कुछ महीनों में माइग्रेन होना बहुत खतरनाक माना जाता है। गर्भावस्था में माइग्रेन होने पर गर्भवती को दवा खाने की सलाह नहीं दी जाती। इसके लिए कुछ सुझाव दिए जाते हैं, जिन्हें आप अपना सकते हैं।
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कई महिलाओं को गर्भवती होने पर अपच और जलन का अनुभव होता है, जो दर्दनाक और असहज हो सकता है। अपच में पेट में दर्द या बेचैनी होती है। ज्यादातर खाने या पीने के बाद बैचेनी और उल्टी जैसा फील होता है। यदि ये गर्भावस्था के शुरूआती चरण में है, तो ये हार्मोनल बदलाव के कारण है। दूसरी और तीसरी तिमाही में अपच आम हो जाता है। गर्भावस्था के दौरान 10 में से 8 महिलाओं को अपच होता है। वहीं जलन गले या छाती में दर्द के साथ होती है। यह अक्सर एकसाथ ज्यादा भोजन खाने से, चॉकलेट या पुदीना खाने से, खाने के बाद तुरंत फिजिकल एक्टिविटी करने से हो जाती है। अगर आहार और लाइफस्टाइल में बदलाव के बाद भी ये समस्या खत्म नहीं होतीं, तो आप इसके लिए दवा ले सकते हैं। अपच की दवा पेट द्वारा उत्पादित एसिड को कम करने में मदद करती है।
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सूजन और वैरिकॉज नसों के साथ पैरों की ऐंठन गर्भावस्था का एक सामान्य लेकिन कभी-कभी असुविधाजनक हिस्सा है। ऐंठन इस बात का संकेत है, कि आपकी मांसपेशियां बहुत कसकर अनुबंधित हो गई हैं। यह समस्या ज्यादातर रात में होती है। पैरों में ऐंठन की कई वजह हैं, जैसे भारी वजन उठाना, विटामिन की कमी होना, मेटाबॉलिज्म में बदलाव, एक्टिव न रहना आदि। ऐंठन को रोकने के लिए नीचे बताए गए तरीकों से अपनी गर्भावस्था को आरामदायक बना सकती हैं।
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ज्यादातर महिलाओं को गर्भवती होने पर पैरों और टखनों में सूजन आ जाती है। इसके तीन कारण होते हैं। पहला बच्चे के बढ़ने को लेकर सामान्य से ज्यादा रक्त का उत्पादन, दूसरा गर्भाशय के दबने से पैरों से दिल तक रक्त का लौटना और तीसरा हार्मोन द्वारा नसों की दीवारों को नरम बनाने के कारण पैरों में रक्त जमा हो जाता है। यह समस्या प्रेग्नेंसी के बाद भी उत्पन्न हो सकती है।
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महिलाओं को यौवन से एक या दो साल पहले और मेनोपॉस के बाद योनि स्त्राव होता ही है। गर्भावस्था में योनि स्त्राव होना भी आम है। दरअसल, गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय ग्रीवा और यूट्रस वॉल नरम हो जाती हैं और योनि से गर्भ तक जाने वाले किसी भी संक्रमण को रोकने के लिए निर्वहन बढ़ जाता है। गर्भावस्था के अंमित सप्ताह में डिस्चार्ज में गाढ़ापन और खून में धारियां दिखने लगती हैं। अगर डिस्चार्ज रंगीन है, अजीब गंध आ रही है या खुजली महसूस हो तो आपको डॉक्टर को दिखाना चाहिए। विशेषज्ञ के अनुसार, स्वस्थ योनि स्त्राव स्पष्ट और सफेद होना चाहिए। इसमें गंध नहीं आनी चाहिए। योनि स्त्राव रंगीन है और आपको खुजली हो रही है, तो आपको संक्रमण हो सकता है। सबसे आम संक्रमण थ्रश है। इसके लिए आप हमेशा ढीले सूती अंडरवियर पहनें।
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स्वस्थ पैर की नसों में रक्त के प्रवाह को लाने में मदद करने के लिए एक तरफा वाल्व होता है। जब आप चलते हैं, तो आपकी मांसपेशियां आपके हृदय की ओर रक्त पंप करती हैं और वाल्व इसे वापस गिरने से रोकता है। वैरिकोज नसें, तब विकसित होती हैं, जब ये वन वे वॉल्व ठीक से काम नहीं करते। ये नसों में खून को पूल करने का कारण बनता है। गर्भावस्था में तीन मुख्य कारणों से वैरिकॉज नसों के विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है। पहला, गर्भावस्था के दौरान सातान्य से अधिक खून का उत्पादन करना, पैरों से आपके दिल में खून का लौटना, तीसरा गर्भाशय हार्मोन नसों द्वारा नसों की दीवारों को नर्म बनाना। हर मामले में खून आपके पैरों में पूल करता है, जिससे आपको सूजन वाले पैर और वैरिकोज वेन्स मिलती हैं।
गर्भावस्था में वैरिकॉज नसों के कारण आपको पैरों में दर्द हो सकता है, पैर भारी होने के साथ बेचैनी महसूस हो सकती है। वैसे तो गर्भवती होने पर वैरिकोज नसों को रोकने का कोई उपाय नहीं है, लेकिन नीचे दिए गए कुछ उपायों की मदद से आप इन्हें विकसित होने से रोक सकते हैं।
(और पढ़े – गर्भावस्था की पहली तिमाही में देखभाल केसे करे…)
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