Premature Baby Care At Home In Hindi भारत में हर साल लगभग 3.5 लाख बच्चों का जन्म समय से पहले यानि निर्धारित जन्म के समय (37 वें सप्ताह) से पहले हो जाता है, ऐसे बच्चों को प्रीमैच्योर बेबी कहा जाता है। प्रीमैच्योर बेबी होने की वजह से ऐसे बच्चों को कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है इसलिए प्रीमैच्योर बच्चों को नवजात गहन चिकित्सा इकाई (नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट) (NICU) में रखा जाता है जिससे डॉक्टरों द्वारा बच्चे की उचित निगरानी की जा सके। वैसे तो जब तक बच्चा डॉक्टरों की निगरानी में रहता है तब तक चिंता की कोई बात नहीं होती है परन्तु जब आप बच्चे को घर लेकर जायेंगे तब बच्चे की ठीक से देखभाल करने की आपकी जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाएगी और इसी के साथ आपको बहुत सी सावधानियां भी रखनी पड़ेगी।
इसलिए आज इस लेख में हम आपको बताएँगे की प्रीमैच्योर बेबी की घर में देखभाल कैसे करें और प्रीमैच्योर बेबी (premature baby) को घर में रखते समय क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।
विषय सूची
प्रीमैच्योर बेबी को घर लाकर आप कुछ विभिन्न तरह की सावधानियां बरत सकते है जिससे बच्चे को गंभीर तरह के संक्रमण और बीमारियों से बचाया जा सकता है। समय से पहले जन्मे बच्चे की देखभाल के लिए आपको घर पर कुछ निम्न उपाय करने होंगे, जैसे-
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प्रीमैच्योर बच्चों या सामान्य बच्चों दोनों में से किसी के लिए भी माँ के दूध से अच्छा न्यूट्रीशन का विकल्प कोई नहीं है। माँ के दूध में वो सारे पोषक तत्त्व पाए जाते है जिससे बच्चे को रोगों से लड़ने की ताकत मिलती है और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। आप प्रीमैच्योर बच्चें को घर लाकर अपना स्तनपान करवाएं और यदि बच्चा स्तनपान करने में असमर्थ हो तो अपना दूध किसी चम्मच या बोतल के सहारे उसे पिलाएं। आप अपने दूध के आलावा किसी भी अन्य प्रकार का दूध जैसे गाय या भैंस का दूध बच्चें को ना पिलाएं।
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प्रीमैच्योर बेबी को सबसे ज्यादा खतरा इन्फेक्शन से होता है, क्योकि बच्चों के शरीर में इम्युनिटी प्रेगनेंसी के आखिरी 3 हफ्तों में ही बनती है परन्तु जिन बच्चों का जन्म समय से पहले हो जाता है उनमे यह इम्युनिटी नहीं बन पाती है जिसकी वजह से इन्फेक्शन से लड़ने की क्षमता प्रीमैच्योर बच्चों में कम होती है। इसलिए जब आप अपने प्रीमैच्योर बच्चें को घर लायें तो डॉक्टर आपको यही सलाह देगा की बाहरी व्यक्ति को ज्यादा घर में ना आने दे ना ही बच्चे के पास जाने दे जब तक उसका शरीर इन्फेक्शन से लड़ने के लिए तैयार न हो जाये।
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अपने प्रीमैच्योर बच्चे को हर तरह से सुरक्षित रखने के लिए दूसरों की सलाह मानने के जगह हमेशा अपने पीडियाट्रिशियन (pediatrician) की ही सुने क्योकि आपके बच्चे को लेकर वाही आपको सही सलाह दे सकते है।
माताओं को प्रीमैच्योर बच्चों को पर्याप्त देखभाल प्रदान करने के लिए कंगारू मदर केयर (केएमसी) तकनीक का उपयोग करना चाहिए। इस प्रक्रिया में बच्चे को मां के स्तनों के बीच रखा जाता है, जिससे माँ के सांस लेने से सीने के ऊपर और नीचे गति होने की वजह से बच्चे के श्वसन क्रिया को बेहतर बनाने में मदद मिलती है। इसके अलावा, माँ के स्तनों के साथ निकटता बच्चे में स्तनपान करने की इच्छा को पैदा करने में भी मदद करती है, जबकि इस प्रक्रिया से माँ के स्तन के दूध के उत्पादन में भी सुधार होता है।
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प्रीमैच्योर बच्चों को सुलाते समय पीठ के बल लेटाने में सावधानी बरतनी चाहिए। हमेशा बच्चे के सिर को खुला रखें और कंबल को हाथों के नीचे टक करें। बच्चे के लिए एक अच्छा और आरामदायक कमरे का तापमान बनाए रखें। इस तरह के सक्रिय उपाय से आप शिशुओं में अचानक होने वाले शिशु मृत्यु सिंड्रोम (Sudden Infant Death Syndrome) (SIDS) जैसी गंभीर और घातक समस्या के जोखिम को कम कर सकते हैं।
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समय से पहले जन्मे बच्चों में आंखों की समस्या, सुनने की समस्याएं, श्वसन संकट सिंड्रोम (respiratory distress syndrome) आदि जैसी कुछ दीर्घकालिक समस्याओं का खतरा हो सकता है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि प्रीमैच्योर शिशुओं को इन बीमारियों से बचाने के लिए उनकी ठीक तरह से जांच की जाए, और नियमित जांच और फॉलो अप लिया जाए। क्योकि पर्याप्त उपचार और स्थिति की निगरानी से ही प्रीमैच्योर बच्चों की सही देखभाल की जा सकती है और उन्हें सुरक्षित रखा जा सकता है।
माता-पिता और देखभाल करने वालों को प्रीमैच्योर बेबी द्वारा दिए जाने वाले खतरनाक संकेतों और लक्षणों, जैसे कि सांस लेने में कठिनाई होना, सामान्य तापमान को बनाए रखने में असमर्थता, तेज बुखार, ऐंठन, दूध पीने में कमी या लगातार उल्टी और गतिविधि में कमी होने पर तुरन्त डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
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माता पिता कोशिश करें की वह अपने प्रीमैच्योर बेबी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं, ऐसा करने से न सिर्फ बच्चे को गर्माहट मिलेगी और सुरक्षित महसूस होगा बल्कि बच्चे के साथ आपका रिश्ता भी मजबूत हो जायेगा।
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