सोरायसिस जिसे अंग्रेजी में Psoriasis कहते हैं, यह एक चर्म रोग हैं जो मोटे, लाल पैच के रूप में विकसित होता है। कभी-कभी, इन पैच में क्रैक आ सकता है और इनसे खून भी निकल सकता है। सोरायसिस घुटनों और कोहनी को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है लेकिन यह हाथ, पैर, गर्दन, सिर और चेहरे सहित शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकता है। सोरायसिस के कुछ प्रकार ऐसे हैं जो नाखून, मुंह और जननांगों के आसपास की त्वचा को भी प्रभावित करते हैं।
इस आर्टिकल में हम आपको सोरायसिस क्या है, सोरायसिस के लक्षण, कारण, निदान और इलाज के साथ इसके प्रकार और बचाव के बारे में भी बताएंगे।
सोरायसिस एक त्वचा संबंधी रोग है जो त्वचा कोशिकाओं के 10 गुना तेजी से गुणन करने का कारण बनता है। ये कोशिकाएं त्वचा की निचली परत में वृद्धि करती हैं और फिर त्वचा की पूरी परत को घेर लेती हैं। जब कोशिकाएं विकसित हो जाती हैं तो त्वचा की नमी भी खत्म हो जाती है और त्वचा की परत रूखी हो जाती है। इसके बाद इस परत में सूजन, लालिमा और कभी-कभी जलन भी उत्पन्न हो जाती है। यह पूरी प्रक्रिया लगभग एक महीने की अवधि तक होती रहती है। आमतौर पर सोरायसिस देखने में मोटे और लाल चकत्ते या पैच जैसा होता है। कभी-कभी इन चकत्तों में दरारें पड़ जाती हैं और फिर इसमें से खून भी निकलने लगता है।
इस स्थिति में त्वचा
पर ऊबड़-खाबड़ लाल धब्बों पर सफेद दाग उत्पन्न होते हैं। सोरायसिस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैल सकता है। यह कभी-कभी एक ही परिवार के सदस्यों में होता है। यह शरीर में कहीं भी हो सकता है, लेकिन ज्यादातर खोपड़ी, कोहनी, घुटनों और पीठ के निचले हिस्से पर दिखाई देता है। उपचार से त्वचा के पैच और दाग धब्बे पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं और जीवन के किसी भी पक्ष में पुनः उत्पन्न हो सकते हैं।और पढ़ें: मानव त्वचा की संरचना, रोग…)
सोरायसिस एक क्रोनिक ऑटोइम्यून स्थिति है जो त्वचा कोशिकाओं के तेजी से निर्माण का कारण बनती है। लेकिन अभी तक त्वचा में सोरायसिस होने के कारण का पूरी तरह से स्पष्टीकरण नहीं किया गया है। लेकिन यह हमारे शरीर में T कोशिकाओं और अन्य श्वेत रक्त कोशिकाओं के साथ प्रतिरक्षा प्रणाली से जुडी समस्या है।
टी कोशिकाएं आमतौर पर वायरस एवं बैक्टीरिया जैसे बाहरी पदार्थों से बचाव के लिए शरीर में विचरण करती रहती हैं। लेकिन जब कोई व्यक्ति सोरायसिस से पीड़ित हो जाता है तो यही टी कोशिकाएं गलती से स्वस्थ त्वचा पर हमला करना शुरू कर देती हैं इस हमले के परिणामस्वरूप त्वचा कोशिकाओं का उत्पादन बहुत तेज हो जाता है, जिससे कि त्वचा मोटी होने लगती हैं और उसपर चकत्ते पड़ने शुरू हो जाते हैं।
लेकिन सोरायसिस होने के कारण के पीछे सिर्फ टी कोशिकाएं ही जिम्मेदार नहीं हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस रोग के पीछे आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारक भी जिम्मेदार होते हैं।
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कुछ स्थितियां सोरायसिस की स्थिति को उत्पन्न करने में सहायक होती हैं तथा इसके लक्षणों को ट्रिगर कर सकती हैं। सोरायसिस की समस्या को ट्रिगर करने वाले कारकों में निम्न को शामिल किया जा सकता है:
सामान्य प्रकार के सोरायसिस में निम्न को शामिल किया जाता है:
त्वचा संबंधी समस्या या सोरायसिस के लक्षण प्रत्येक व्यक्ति में अलग-अलग दिखाई पड़ते हैं। यह लक्षण इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि व्यक्ति को किस प्रकार की सोरायसिस है। सोरायसिस त्वचा के बहुत ही छोटे स्थान को घेरता है जैसे की सिर या कोहनी या शरीर का अन्य कोई हिस्सा। सोरायसिस के मुख्य लक्षण निम्न हैं:
हालांकि यह कतई जरूरी नहीं है कि सोरायसिस से पीड़ित व्यक्ति में इनमें से ही कुछ लक्षण दिखाई दें। जो व्यक्ति कम सामान्य प्रकार के सोरायसिस से पीड़ित होते हैं उनमें कुछ अलग तरह के लक्षण दिखाई देते हैं।
ज्यादातर व्यक्ति सोरायसिस के लक्षणों के एक पूरे चक्र से गुजरते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति में ये लक्षण कुछ दिनों या फिर कुछ हफ्तों तक दिखाई देते हैं और फिर गायब हो जाते हैं और पहचान में नहीं आते हैं। लेकिन कुछ दिनों बाद ये लक्षण दोबारा से दिखाई देने लगते हैं। लेकिन कभी-कभी ये लक्षण पूरी तरह समाप्त भी हो जाते हैं।
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आमतौर पर शरीर की जांच और बायोप्सी के जरिए डॉक्टर सोरायसिस का पता लगाते हैं।
शारीरिक परीक्षण – शारीरिक परीक्षण में डॉक्टर मरीज के शरीर पर उभरे लक्षणों को देखकर इस बीमारी का पता लगाते हैं। इस दौरान डॉक्टर पीड़ित व्यक्ति के प्रभावित त्वचा की अच्छे से जांच करते हैं। लेकिन इस दौरान मरीज को यह भी बताना होता है कि उसके परिवार में कोई व्यक्ति सोरायसिस से ग्रस्त था या नहीं। यह बताने से डॉक्टर का आसानी से सोरायसिस का निदान कर सकता है।
बायोप्सी – अगर इस बीमारी के लक्षण शारीरिक परीक्षण के माध्यम से स्पष्ट रूप से पता नहीं चल पाते हैं, तो डॉक्टर मरीज की प्रभावित त्वचा का एक छोटा सा सैंपल लेते हैं और फिर परीक्षण करते हैं, इसे बायोप्सी कहा जाता है। इस त्वचा नमूने को लैब में भेजा जाता है, जहां माइक्रोस्कोप से इसकी जांच की जाती है। इसमें यह स्पष्ट पता चल जाता है कि व्यक्ति किस प्रकार के सोरायसिस से पीड़ित है।
सौभाग्य से सोरायसिस की स्थिति में इलाज के दौरान लक्षणों को दूर करने के अनेक तरीके हैं। सामान्य सोरायसिस की स्थिति में उपचार के लिए निम्न को शामिल किया जा सकता है:
मध्यम से गंभीर सोरायसिस की स्थिति में इलाज करने के लिए मौखिक या इंजेक्शन वाली दवाओं का उपयोग किया जा सकता है। डॉक्टर आमतौर निम्न दवाओं की सिफारिश कर सकते हैं:
ध्यान रहें कि यह दवाएं गंभीर साइड इफ़ेक्ट उत्पन्न कर सकती हैं, अतः इन्हें डॉक्टर की सलाह पर ही लेना चाहिए।
इस थेरेपी में डॉक्टर मरीज की त्वचा के ऊपर पराबैंगनी प्रकाश डालते हैं। इस थेरेपी की आवश्यकता मरीज को जल्दी से जल्दी इस रोग से छुटकारा दिलाने के लिए होती है। सोरायसिस के इलाज में यह प्रक्रिया हमेशा डॉक्टर की देखरेख में होनी चाहिए अन्यथा अधिक पराबैंगनी प्रकाश त्वचा को हानि पहुंचा सकता है।
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प्रत्येक व्यक्ति अपने शरीर की देखभाल कर सोरायसिस की समस्या से बच सकता है। इन बचाव संबंधी उपाय में निम्न शामिल हैं:
भोजन सोरायसिस का इलाज नहीं कर सकता है, लेकिन बेहतर खाना इसके लक्षणों को कम कर सकता है। सोरायसिस की स्थिति में ओमेगा-3 फैटी एसिड, साबुत अनाज और पौधों से भरपूर आहार का अधिक सेवन करें। ओमेगा-3 फैटी एसिड युक्त आहार में निम्न को शामिल किया जा सकता है:
सोरायसिस त्वचा की सूजन का कारण बनता है। अतः इस स्थिति में कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे भी है, जो सूजन और अन्य लक्षणों को गंभीर कर सकते हैं, तथा बीमारी को बढ़ा सकते हैं। इस बजह से सोरायसिस की स्थिति में लक्षणों में सुधार लाने के लिए निम्न खाद्य पदार्थों के सेवन से बचने की सलाह दी जाती हैं:
त्वचा संक्रमण असुविधाजन होने के साथ ही कई बार लोगों में शर्मिंदगी का भी कारण बन सकता है। हालांकि सोरायसिस इतनी गंभीर समस्या नहीं है कि इसका उपचार नहीं किया जा सकता है। यदि आप भी सोरायसिस से परेशान हैं तो घबराएं नहीं। क्योंकि सोरायसिस के घरेलू और प्राकृतिक उपाय भी होते हैं। जिन्हें अपनाकर आप सोरायसिस जैसी त्वचा संबंधी समस्या से आसानी से निपट सकते हैं। आइए जाने सोरायसिस का घरेलू इलाज किस प्रकार किया जा सकता है।
त्वचा के रोगों के इलाज में हल्दी बहुत ही असरदार होती है। हल्दी सोरायसिस से उत्पन्न सूजन को कम करती है। आप चाहें तो हल्दी का सेवन भोजन के माध्यम से या फिर गोली के रूप में कर सकते हैं। इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें। माना जाता है कि डेढ़ से तीन ग्राम हल्दी का रोजाना उपयोग करने से सोरायसिस के लक्षणों से बचा जा सकता है।
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त्वचा में होने वाले सोरायसिस की एक मुख्य कारण तनाव भी है। तनाव इस बीमारी के लक्षणों को और गंभीर बना सकता है, इसलिए जितना संभव हो तनाव से बचें और योग एवं मेडिटेशन करें।
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ज्यादातर साबुन, परफ्यूम इत्यादि में डाई और केमिकल होते हैं जो कभी-कभी त्वचा में जलन पैदा कर देते हैं। इनकी खुशबू भले ही अच्छी हो लेकिन ये सोरायसिस को ज्यादा बढ़ा देते हैं। अगर आपकी त्वचा संवेदनशील है तो ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल करने से बचें।
ऊपर आपने जाना सोरायसिस क्या है, इसके होने के कारण, लक्षण, सोरायसिस के प्रकार, जाँच, इसका इलाज और सोरायसिस का घरेलू इलाज करने के लिए क्या खाएं और क्या न खाएं।
सोरायसिस के कारण, लक्षण, जाँच और इलाज (Psoriasis Causes Symptoms and Treatment In Hindi) का यह लेख आपको कैसा लगा हमें कमेंट्स कर जरूर बताएं।
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