बीमारी

रिकेट्स के लक्षण, कारण, जांच, इलाज, बचाव और आहार – Rickets Disease Symptoms, Causes and Treatment in Hindi

Rickets in hindi रिकेट्स या सूखा रोग एक गंभीर बीमारी है, जो विटामिन डी की कमी के कारण होती है। यह बीमारी ज़्यादातर बच्चों और शिशुओं को प्रभावित करती है। रिकेट्स की समस्या में विटामिन डी की कमी के कारण शरीर में कैल्शियम और फॉस्फेट के पर्याप्त स्तर को बनाए रखना मुश्किल होता है। शिशुओं और बच्चों के लिए रिकेट्स (सूखा रोग) की समस्या अनेक प्रकार की स्थाई जटिलताओं को उत्पन्न कर सकती है। अतः रिकेट्स से संबन्धित लक्षणों को ध्यान में रखते हुए जल्द से जल्द इस समस्या का निदान और  इलाज किया जाना चाहिए। आज के इस लेख में आप जानेगें कि रिकेट्स क्या है, इसके लक्षण, कारण और  जटिलताएँ क्या क्या हैं तथा इसका निदान, इलाज और  बचाव कैसे किया  जा सकता है।

  1. रिकेट्स बीमारी क्या है – What is rickets disease in Hindi
  2. रिकेट्स के लक्षण – Rickets symptoms in Hindi
  3. रिकेट्स के लिए डॉक्टर को कब दिखाएं – When to see a doctor for rickets in hindi
  4. रिकेट्स के कारण – Rickets Causes in Hindi
  5. रिकेट्स (सूखा रोग) के जोखिम कारक – Rickets Risk factors in hindi
  6. सूखा रोग (रिकेट्स) की जटिलताएँ – Rickets Complications in hindi
  7. रिकेट्स रोग की जांच – Rickets Diagnosis in Hindi
  8. रिकेट्स का उपचार – Rickets treatment in Hindi
  9. रिकेट्स से बचाव – Rickets prevention in Hindi
  10. रिकेट्स आहार – Rickets Diet in Hindi

रिकेट्स बीमारी क्या है – What is rickets disease in Hindi

रिकेट्स एक ऐसी बीमारी है, जिसमें बच्चे कमजोर या नरम हड्डियों से पीड़ित हो जाते है। रिकेट्स विटामिन डी, कैल्शियम या फॉस्फेट की कमी के कारण होता है। ये पोषक तत्व मजबूत तथा स्वस्थ हड्डियों के विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। रिकेट्स (सूखा रोग) से पीड़ित व्यक्तियों को हड्डियों के फ्रैक्चर, कमजोर और नरम हड्डियां, अवरुद्ध विकास और हड्डियों की विकृति आदि का खतरा होता है। रिकेट्स की बीमारी औद्योगिक देशों में सबसे अधिक देखने को मिलती है। रिकेट्स मुख्य रूप से विटामिन डी की कमी के कारण होता है। विटामिन डी मानव शरीर में आंतों से कैल्शियम और फॉस्फेट को अवशोषित करने में मदद करता है।

विटामिन डी दूध, दही, अंडे और मछली सहित विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पादों से प्राप्त होता हैं। सूर्य के प्रकाश से भी विटामिन डी को पर्याप्त मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है। विरासत में मिली दुर्लभ समस्याएं भी रिकेट्स का कारण बन सकती हैं।

विटामिन डी की कमी से शरीर में हार्मोन का उत्पादन होने लगता है, जिसके परिणामस्वरूप कैल्शियम और फॉस्फेट हड्डियों से निकल जाता हैं। अतः इस स्थिति में हड्डियों में कैल्शियम और फॉस्फेट खनिजों की कमी, हड्डिया में कमजोरी और विकृति का कारण बनती है। रिकेट्स रोग उन बच्चों में सबसे अधिक होता है, जिनकी उम्र 6 से 36 महीने के बीच होती है। अतः बच्चों में सूखा रोग होने का सबसे अधिक खतरा होता हैं।

(और पढ़े – विटामिन और उनकी कमी से होने वाले रोग…)

रिकेट्स के लक्षण – Rickets symptoms in Hindi

रिकेट्स (सूखा रोग) के लक्षणों में निम्न को शामिल किया जा सकता है, जैसे:

  • हाथ, पैर या रीढ़ की हड्डियों में दर्द होना
  • शारीरिक विकास रूक जाना और छोटा कद होना
  • मांसपेशी में कमज़ोरी
  • बोन फ्रैक्चर (bone fractures)
  • रिकेट्स के कारण झुके हुए पैर
  • माथे का बड़ा होना
  • सोने में परेशानी
  • मांसपेशियों में ऐंठन उत्पन्न होना
  • दांतों में विकृति, जैसे: दांतों के गठन में देरी होना, दांत की संरचना में दोष उत्पन्न होना
  • कैविटी में वृद्धि होना
  • स्तनों का उभरा हुआ होना
  • एक घुमावदार रीढ़ की हड्डी
  • संक्रमण
  • विकास में देरी
  • बौद्धिक विकलांगता, इत्यादि।

रिकेट्स में कभी-कभी बहुत अधिक गंभीर लक्षण विकसित हो सकते हैं, जो कैल्शियम या फॉस्फेट के स्तर बहुत कम होने से संबन्धित हैं, जिनमें मांसपेशी संकुचन या दौरे आदि शामिल हो सकते हैं।

(और पढ़े – विटामिन डी की कमी के लक्षण…)

रिकेट्स के लिए डॉक्टर को कब दिखाएं – When to see a doctor for rickets in hindi

यदि बच्चे में रिकेट्स (सूखा रोग) के लक्षण दिखाई दे रहें है, तो तुरंत डॉक्टर को दिखना चाहिए। यदि बच्चे के विकास में आने वाली कठनाइयों या विकारों जैसे रिकेट्स का इलाज नहीं किया जाता है, तो बच्चा वयस्कता में बहुत छोटे कद का हो सकता है तथा हड्डियों में विकृति भी स्थायी हो सकती है।

रिकेट्स के कारण – Rickets Causes in Hindi

रिकेट्स मुख्यतः विटामिन डी, कैल्शियम, या फॉस्फेट की कमी के कारण होता है। यदि बच्चे धूप में बहुत कम समय व्यतीत करते हैं, शाकाहारी भोजन या डेयरी उत्पाद का सेवन नहीं करते हैं, तो बच्चों को पर्याप्त विटामिन डी नहीं मिल पाता है। जिससे रिकेट्स के लक्षण प्रगट होने लगते हैं। रिकेट्स (सूखा रोग) के सामान्य कारणों में निम्न को शामिल किया जा सकता है, जैसे:

रिकेट्स का कारण विटामिन डी की कमी – Rickets Causes Lack of vitamin D in hindi

विटामिन डी की कमी उन बच्चों को हो सकती है, जो सूर्य की रोशनी और विटामिन डी युक्त आहार से वंचित रह जाते हैं। मानव त्वचा सूर्य प्रकाश के संपर्क में आने पर विटामिन डी का उत्पादन करती है। लेकिन विकसित देशों में बच्चे सूर्य प्रकाश में कम समय व्यतीत करते हैं। इसके अलावा सनस्क्रीन (sunscreen) का उपयोग तथा कम धूप वाले आवास आदि कारक भी सूर्य प्रकाश द्वारा विटामिन डी ग्रहण करने की संभावना को बहुत कम कर देते हैं।

(और पढ़े – विटामिन D क्या है, स्रोत, कमी के लक्षण, रोग, फायदे और नुकसान…)

सूखा रोग का कारण चिकित्सकीय स्थितियां – Rickets Causes of medical conditions in hindi

कुछ बच्चे उन चिकित्सकीय स्थितियों के साथ जन्म लेते हैं, जो उनके शरीर द्वारा विटामिन डी को अवशोषित करने की क्षमता को प्रभावित करती हैं। विटामिन डी के अवशोषण में अवरोध पैदा करने वाली चिकित्सकीय समस्याओं में निम्न को शामिल किया जा सकता है:

  • सीलिएक रोग (Celiac disease)
  • इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (inflammatory bowel disease)
  • सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic fibrosis)
  • किडनी से संबन्धित समस्याएं, इत्यादि।

(और पढ़े – किडनी रोग क्या है कारण, लक्षण, जांच, इलाज और रोकथाम…)

रिकेट्स के जीन या वंशानुगत कारण – Genes or hereditary Causes of rickets in Hindi

रिकेट्स की बीमारी वंशानुगत या जीन के कारण भी हो सकती है। अर्थात वंशानुगत या जीन के कारण शिशु रिकेट्स संबंधी विकार के साथ ही जन्म लेता है।

रिकेट्स (सूखा रोग) के जोखिम कारक – Rickets Risk factors in hindi

जिन बच्चों या व्यक्तियों को दूध के पाचन में परेशानी होती है या लैक्टोज से एलर्जी है, तो उन्हें रिकेट्स का जोखिम अधिक होता है। इसके अतिरिक्त रिकेट्स (सूखा रोग) के जोखिम को बढ़ाने वाले कारकों में निम्न को शामिल किया जा सकता है:

आयु (Age) – रिकेट्स उन बच्चों में सबसे होता है, जिनकी उम्र 6 से 36 महीने के बीच होती है। इस समय बच्चों में विकास बहुत अधिक तेजी से होता है, इस दौरान बच्चों के शरीर में हड्डियों को मजबूत और विकसित करने के लिए सबसे अधिक कैल्शियम और फॉस्फेट की आवश्यकता होती है। अतः 6 से 36 महीने के बच्चों को कैल्शियम और फॉस्फेट के अभाव में रिकेट्स होने की संभावना अधिक होती है|

सांवली त्वचा (Dark skin) – डार्क स्किन में पिगमेंट मेलानिन (melanin) की मात्रा अधिक पाई जाती है, जो त्वचा द्वारा सूरज की रोशनी से विटामिन डी का उत्पादन करने की क्षमता को कम करता है।

गर्भावस्था के दौरान माँ में विटामिन डी की कमी गर्भावस्था के दौरान माँ में विटामिन डी की कमी के कारण पैदा होने वाले बच्चे में कुछ महीनों के भीतर रिकेट्स के संकेत या लक्षण देखने को मिल सकते हैं।

समय से पहले जन्म (Premature birth) – समय से पहले पैदा होने वाले शिशुओं में विटामिन डी के कम स्तर पाये जाते हैं, क्योंकि उनके शरीर को माँ के गर्भ में विटामिन डी प्राप्त करने के लिए कम समय मिलता है।

दवाएं (Medications) – एचआईवी (HIV) संक्रमण का इलाज करने के लिए उपयोग की जाने वाली कुछ प्रकार की anti-seizure medications और एंटीरेट्रोवायरल दवाएं (antiretroviral medications), विटामिन डी का उपयोग करने के लिए शरीर की क्षमता में हस्तक्षेप कर सकती हैं, तथा रिकेट्स (सूखा रोग) का कारण बन सकती हैं।

(और पढ़े – अपरिपक्व शिशु (प्रीमैच्योर बेबी) के लक्षण, कारण, जांच, जटिलताएं और उपचार…)

सूखा रोग (रिकेट्स) की जटिलताएँ – Rickets Complications in hindi

यदि रिकेट्स (सूखा रोग) का समय पर इलाज न किया जाये, तो हड्डी के फ्रैक्चर की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। अधिक गंभीर और लंबे समय तक रिकेट्स से पीड़ित व्यक्ति स्थायी विकृति को प्रपट कर सकते हैं।

रक्त में कैल्शियम की कमी के कारण दौरे, दंत दोष (Dental defects) और सांस लेने में समस्या आदि जटिलताएँ महसूस हो सकती है।

(और पढ़े – सांस फूलने के कारण, लक्षण, जांच, उपचार, और रोकथाम…)

रिकेट्स रोग की जांच – Rickets Diagnosis in Hindi

डॉक्टर, पीड़ित व्यक्ति या बच्चे का शारीरिक परीक्षण कर रिकेट्स की समस्या का निदान कर सकते हैं। डॉक्टर प्रभावित अंग को हल्के से दबाकर, हड्डियों में कोमलता या दर्द की जांच कर सकते है। इसके अतिरिक्त डॉक्टर द्वारा रिकेट्स का निदान करने के लिए कुछ परीक्षणों का भी आदेश दिया जा सकता है, जैसे:

रक्त परीक्षण (Blood tests) – रक्त परीक्षण के द्वारा कैल्शियम और फास्फोरस के स्तर को मापा जा सकता है, तथा विटामिन डी की कमी का निदान भी किया जा सकता है।

आर्टिरियल ब्लड गैस टेस्ट(Arterial blood gases) – इस परीक्षण के द्वारा यह  पता लगाया जाता है, कि रक्त कितना अम्लीय है। यह परीक्षण रक्त में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को मापता है, जिनका उपयोग रक्त पीएच को निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है।

एक्स-रे (X-rays) – एक्स-रे परीक्षण से हड्डियों में कैल्शियम की हानि, हड्डियों की संरचना या आकार में परिवर्तन आदि का पता लगाया जा सकता हैं। एक्स-रे परीक्षण की मदद से खोपड़ी, छाती, पैर  आदि की जांच की जा सकती है।

बोन बायोप्सी (Bone biopsy) – बोन बायोप्सी परीक्षण डॉक्टर द्वारा रिकेट्स की पुष्टि करने के लिए सिफ़ारिश की जा सकती है लेकिन यह परीक्षण बहुत कम प्रयोग में लाया जाता है।

(और पढ़े – एक्स-रे क्या है, क्यों किया जाता है, कीमत और तरीका…)

रिकेट्स का उपचार – Rickets treatment in Hindi

सूखा रोग (रिकेट्स) की समस्या का इलाज करने के लिए डॉक्टर द्वारा सप्लीमेंट और दवा निर्धारित की जा सकती है। रिकेट्स के उपचार में विटामिन डी का सेवन सबसे प्रमुख उपाय है। चूंकि विटामिन डी की अधिकांश मात्रा हानिकारक हो सकती है, अतः डॉक्टर द्वारा निर्धारित विटामिन डी सप्लीमेंट की उचित मात्रा का ही सेवन करना चाहिए।

रिकेट्स (सूखा रोग) की कुछ गंभीर स्थितियों में हड्डी की असामान्यताओं को दूर करने के लिए सर्जरी की सिफ़ारिश की जा सकती है।

रिकेट्स के उपचार में कैल्शियम, फॉस्फेट और विटामिन डी को प्रदान करने वाले आहार का सेवन अधिक मात्रा में करने की सलाह दी जाती है। पर्याप्त मात्रा मे विटामिन डी को आहार या सूर्य के प्रकाश के संपर्क के माध्यम से भी प्राप्त किया जा सकता है। विटामिन डी आहार के रूप में मछली के तेल की गोलियाँ, दूध और अंडे आदि का सेवन करने से एर्गोकैल्सिफेरोल (ergocalciferol) या कॉलेकैल्सिफेरॉल (cholecalciferol) प्राप्त होता है, जो कि विटामिन डी के दो रूप हैं।

आनुवांशिक स्थिति के कारण उत्पन्न होने वाली रिकेट्स की बीमारी का इलाज करने के लिए फॉस्फोरस की दवाएं और सक्रिय विटामिन डी हार्मोन को निर्धारित किया जाता है।

जब रिकेट्स की समस्या एक अन्य अंतर्निहित चिकित्सकीय समस्या के कारण होती है, तो बच्चे को अतिरिक्त दवाएं या अन्य उपचार प्रक्रियाँ उपलब्ध कराई जा सकती हैं।

(और पढ़े – कैल्शियम की कमी दूर करने वाले भारतीय आहार…)

रिकेट्स से बचाव – Rickets prevention in Hindi

रिकेट्स (rickets) की समस्या की रोकथाम के लिए पर्याप्त विटामिन डी के सेवन की सलाह दी जाती है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक विटामिन डी की उचित मात्रा का अनुमान लगाना कठिन होता है, क्योंकि यह मापना कठिन होता है कि व्यक्ति का शरीर धूप के माध्यम कितना विटामिन संश्लेषित कर रहा है। फिर कुछ तरीके ऐसे है जो रिकेट्स की रोकथाम में व्यक्ति की मदद कर सकते हैं, जैसे कि:

  • रिकेट्स (सूखा रोग) से बचने का सबसे अच्छा तरीका एक आहार है, जिसमें पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम, फॉस्फोरस और विटामिन डी शामिल होते हैं
  • किडनी रोग वाले व्यक्तियों को नियमित रूप से शरीर में कैल्शियम और फॉस्फेट के स्तर पर निगरानी रखने के लिए डॉक्टर की साहायता लेनी चाहिए
  • रिकेट्स से बचाने और पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन सूर्य के प्रकाश को लेना चाहिए,
  • गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों को पराबैंगनी किरणों (सूर्य प्रकाश) के संपर्क में लंबे समय तक रहना चाहिए
  • शिशुओं को स्तनपान के साथ-साथ विटामिन डी पूरक देने के बारे में डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए
  • विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में कॉड लिवर ऑयल (Cod liver oil), हलिबूट-लिवर तेल (Halibut-liver oil) और विस्टारिल (Vistaril) के सेवन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

(और पढ़े – सूरज की धूप लेने के फायदे और नुकसान…)

रिकेट्स आहार – Rickets Diet in Hindi

रिकेट्स (सूखा रोग) की स्थिति में विटामिन डी से परिपूर्ण आहार का सेवन लाभकारी होता है। रिकेट्स में फायदेमंद खाद्य पदार्थों के रूप में निम्न को शामिल किया जा सकता है:

(और पढ़े – संतुलित आहार के लिए जरूरी तत्व , जिसे अपनाकर आप रोंगों से बच पाएंगे…)

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Sourabh

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