शिव का रहस्य: भगवान शिव को सभी हिंदू देवताओं (Hindu God) में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इन्हें विनाश का भी देवता (god of destruction) माना जाता है। इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव अपने विभिन्न रुपों एवं कार्यों के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। भगवान शिव के अनन्य भक्त देश के हर कोने में हैं। सावन के पवित्र महीने में चारों तरफ भगवान शिव की भक्ति एवं पूजा होती है। शिव को वरदान का भी देवता माना जाता है। इसके अलावा शिव को फक्कड़, साधु, भूत प्रेतों के बीच रहने वाला माना जाता है। शिव के गले में सर्प, हाथ में त्रिशूल और नंदी की सवारी (vehicle) ही इनकी पहचान है।
हिन्दू धर्म में शिव जी प्रमुख देवताओं में से हैं। वेदों में इनका नाम रुद्र है। भगवान शिव व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। भगवान शिव अधिकतर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। ज्यादातर लोग भगवान शिव के बारे में कुछ न कुछ जानते हैं। लेकिन भगवान शिव से जुड़ी कुछ गुप्त बातें ऐसी हैं जो अभी तक रहस्य हैं और कम ही लोग इनके बारे में जानते हैं।
आज हम इस आर्टिकल में भगवान शिव से जुड़ी इन्हीं 10 गुप्त बातों के बारे में बताने जा रहे हैं।
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भगवान शिव के पहले पुत्र भगवान अयप्पा (lord ayyappa) थे ना कि भगवान गणेश या कार्तिकेय। ज्यादातर लोग यही जानते हैं कि भगवान शिव को सिर्फ दो पुत्र थे, यानि भगवान गणेश और कार्तिकेय, जबकि यह गलत है। वास्तव में भगवान शिव को छह पुत्र थे- भगवान अयप्पा, अंधक, भौम, खुजा, गणेश, और कार्तिकेय या सुब्रमण्य एवं एक पुत्री थी जिसका नाम अशोक सुंदरी था। इन सभी पुत्रों में भगवान अयप्पा सबसे बड़े (oldest) और गणेश एवं कार्तिकेय सबसे छोटे पुत्र थे। भगवान अयप्पा का जन्म मोहिनी की कोख से हुआ था और इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है। गणेश और कार्तिकेय का जन्म अयप्पा, अंधक, भौम, खुजा और अशोक सुंदरी के बाद हुआ था। माना जाता है कि जब गणेश का सिर अलग हुआ था तब अशोक सुंदरी वहीं मौजूद थी।
ऐसा माना जाता है कि हनुमान भगवान शिव के ग्यारहवें अवतार (11th avatar) हैं। कई ग्रंथ उन्हें भगवान शिव के अवतार के रूप में प्रस्तुत करते हैं। भगवान हनुमान को रुद्रावतार के नाम से भी जाना जाता है और शिव को भी रुद्र (rudra) कहा जाता है। हनुमान को भगवान राम की भक्ति के लिए जाना जाता है और उन्हें अंजनी, केशरी एवं वायु पुत्र (wind son) के नाम से भी जाना जाता है। रामायण में लिखा गया है कि मनुष्य के पूर्वजों या वानरों ने राम की सहायता की थी। उनकी सहायता के बिना राम रावण को कभी नहीं हरा सकते थे।
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भगवान शिव में श्रद्धा रखने वाले उनके भक्त अपने जीवन में एक बार अमरनाथ गुफा के दर्शन जरूर करना चाहते हैं। वास्तव में अमरनाथ गुफा का महत्व इसलिए है क्योंकि इसी गुफा में मां पार्वती ने भगवान शिव को अमरता (secret of immortality) का रहस्य बताया था। जब भगवान शिव ने मां पार्वती से अमरत्व का रहस्य जानने की जिद की तब वह उन्हें इसी गुफा (cave) में लेकर आयी थीं। इस गुफा तक पहुंचने के लिए भगवान ने रास्ते में कुछ पवित्र कार्य किये थे यही कारण है कि अमरनाथ यात्रा के पूरे रास्ते को आज भी बहुत धार्मिक (religious) माना जाता है।
वास्तव में अमरकथा के रहस्यों को उजागर करने के लिए भगवान शिव ने अपने पुत्र और वाहन को छोड़कर एकांत स्थान (isolated place) पर चले गए। यही कारण है कि इस स्थान को तीर्थस्थल माना जाता है। अमरनाथ पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं। पहला रास्ता पहलगाम और दूसरा रास्ता सोनमार्ग बल्टाट है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव पहलगाम के रास्ते अमरनाथ गुफा पहुंचे थे।
माना जाता है कि भगवान विष्णु को प्रसिद्ध सुदर्शन चक्र भगवान शिव ने ही दिया था। एक बार भगवान विष्णु भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए उनकी आराधना कर रहे थे। वे भगवान शिव को चढ़ाने के लिए एक हजार कमल के फूल (lotus flower) ले आये। भगवान शिव ने उनकी परीक्षा लेने के लिए उन हजार फूलों में से एक फूल उठा लिया। भगवान विष्णु प्रत्येक फूल के साथ एक नाम का जाप करते हुए शिवलिंग पर अर्पित करने लगे, लेकिन जब हजारवें नाम की बारी आयी तो फूल खत्म हो चुका था। चूंकि भगवान विष्णु को कमलानयन के नाम से जाना जाता है इसलिए फूल कम पड़ने पर उन्होंने उस फूल की जगह अपनी आंखें निकालकर भगवान शिव को अर्पित (devoted) कर दी। तब भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें सुदर्शन चक्र दिया था।
ज्यादातर लोग जानते हैं कि भगवान शिव ने मां पार्वती को पत्नी के रुप में स्वीकार करने से पहले उनकी परीक्षा (test) ली थी। वे एक ब्राह्मण के वेश में मां पार्वती के पास पहुंचे और उनसे कहने लगे कि भगवान शिव से शादी करना उनके लिए अच्छा नहीं होगा, क्योंकि वो भिखारी (beggar) की तरह दिखते हैं और उनके पास कुछ नहीं है। भगवान के बारे में ऐसे शब्द सुनकर मां पार्वती को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उस ब्राह्मण से कहा कि वो भगवान शिव के अलावा किसी से शादी नहीं करेंगी। उनके उत्तर से प्रसन्न होकर भगवान शिव अपने रुप में आ गए और उन्होंने पार्वती से विवाह कर लिया।
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आमतौर पर भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रुप को बहुत सराहा जाता है और उन्हें एक आदर्श विवाह के उदाहरण के रुप में प्रस्तुत किया जाता है। अर्धनारीश्वर रुप में आधा हिस्सा मां पार्वती और आधा हिस्सा भगवान शिव का है। माना जाता है कि शिव का अर्धनारीश्वर रुप या द्विलिंगी रुप ब्रह्मांड की मर्दाना ऊर्जा (Purusha) और स्त्री ऊर्जा (Prakrithi) को दर्शाता है।
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क्षैतिज अभिविन्यास (horizontal orientation) में शिव के माथे पर राख की तीन पंक्तियां हैं। ये रेखाएं हिंदू धर्म के तीनों लोकों के विनाश का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह जड़त्व (inertia) और संचार की कमी का सुझाव देता है और स्वयं के साथ जुड़ने के लिए तीनों लोकों के विलय को संदर्भित करता है।
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जैसा कि कहा जाता है कि राजा भागीरथ ने ब्रह्मा से गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने के लिए कहा ताकि वे अपने पूर्वजों के लिए एक समारोह (ancestors) कर सकें। ब्रह्मा ने भागीरथ को भगवान शिव को राजी (propitiate) करने के लिए कहा क्योंकि केवल शिव ही गंगा को भूमि पर ला सकते थे। गंगा ने अहंकारवश धरती की ओर उतरना चाहा लेकिन शिव ने उसे शांति से अपनी जटाओं में समाहित कर लिया और उसे छोटी-छोटी धाराओं में बांटकर धरती पर भेज दिया। कहते हैं शिव के स्पर्श ने गंगा को और भी पवित्र कर दिया।
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देवताओं और असुरों ने अमृत पाने के लिए दूधिया सागर (milky ocean) का मंथन करना शुरू कर दिया। इस प्रक्रिया में उन्हें एक घातक जहर यानि हलाला जहर मिला जिसे समुद्र से बाहर निकालना पड़ा। परिणामों के बारे में सोचे बिना शिव ने सारा जहर पी लिया और पार्वती ने उनके गले को दबाए रखा ताकि उनके शरीर के अन्य हिस्सों में जहर फैलने से रोका जा सके। समुद्र मंथन से निकले विष के घड़े को पीने के कारण ही भगवान शिव का कंठ नीला (blue throat) है।
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जैसा कि हम सभी जानते हैं कि शिव के शरीर पर राख मला जाता है। यह विनाश एवं स्थायित्व दोनों चीजों का प्रतीक है। भगवान की मर्जी के बिना चीजों को अपने आप न तो नष्ट किया जा सकता है ना ही उत्पन्न किया जा सकता है। यह अमर आत्मा के स्थायित्व का प्रतीक है।
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