Tourette Syndrome in hindi पिछले दिनों हिचकी नाम की एक फिल्म रिलीज हुई जिसमें बॉलीवुड अभिनेत्री रानी मुखर्जी एक ऐसी महिला टीचर की भूमिका में है जिसे टूरेट या टॉरेट सिंड्रोम है। आज हम आपको बताने वाले है कि आखिर टॉरेट सिंड्रोम क्या है, यह कैसे होता है, इसके लक्षण क्या हैं और इसका इलाज कैसे होता है। टॉरेट सिंड्रोम (हिचकी या अन्य) की वजह से उस महिला को बात करने में परेशानी होती है और वह सही तरीके से अपनी बात रखने में सक्षम नहीं होती है। वह महिला किसी रोगी की तरह नहीं बल्कि आम इंसान की तरह ही सामान्य दिखाई देती है लेकिन जब उसे टिक्स (Tics) (अचानक से सिकुड़न या सुंकचन होना) महसूस होता है तब बोलने में दिक्कत महसूस होती है।
फिल्म आने से पहले बहुत कम लोगों ने इस बीमारी का नाम सुन रखा था। तो आइये जानते हैं कि आखिर टॉरेट (टूरेट) सिंड्रोम क्या है, यह कैसे होता है, इसके लक्षण क्या हैं और इसका इलाज कैसे किया जाता है।
1. टॉरेट सिंड्रोम क्या है – What Is Tourette Syndrome in Hindi
2. टॉरेट सिंड्रोम का कारण – Tourette Syndrome Causes in Hindi
3. टॉरेट सिंड्रोम के लक्षण – Tourette Syndrome Symptoms in Hindi
4. टॉरेट सिंड्रोम का इलाज – Tourette Syndrome Treatment in Hindi
टॉरेट सिंड्रोम तंत्रिका तंत्र (nervous system) से जुड़ी एक बीमारी है जिसके कारण व्यक्ति अचानक कोई हरकत (sudden movements) करने लगता है या मुंह से आवाज निकालने लगता है, जिसे टिक्स कहा जाता है और व्यक्ति इसे नियंत्रित नहीं कर पाता है। ऐसी गतिविधियां या हरकतें प्रत्येक व्यक्ति में अलग-अलग तरह की हो सकती हैं। उदाहरण के तौर पर टॉरेट सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति अपनी पलकों को तेजी से झपकाता है और अपने गले को बार-बार साफ करता है। कुछ लोग अपने बातों को बहुत तपाक से बहुत जोर से कहते हैं जबकि वे वास्तव में ऐसा जानबूझकर नहीं करते बल्कि खुद को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं।
टॉरेट सिंड्रोम एक आनुवांशिक बीमारी है। यह संक्रामक बीमारी नहीं हैं इसलिए यह टॉरेट सिंड्रोम से पीड़ित किसी मरीज के संपर्क में आने या उसके साथ रहने से नहीं होती है। यह बीमारी वंशानुगत (hereditary) होती है और आमतौर पर शिशुओं या छोटे बच्चों में होती है।
टॉरेट मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्सों सहित बेसल गैंग्लिया (basal ganglia) से जुड़ा हुआ होता है, जो शरीर की गतिविधियों या चाल को नियंत्रित करने में मदद करता है। फर्क सिर्फ इतना है कि यह सिंड्रोम तंत्रिका कोशिकाओं (nerve cells) और उन रसायनों को प्रभावित करता है जो दोनों के बीच सूचना पहुंचाने का कार्य करती हैं। शोधकर्ताओं का विचार है कि मस्तिष्क के नेटवर्क में गड़बड़ी ही टॉरेट सिंड्रोम की बीमारी का मुख्य कारण हो सकता है। वास्तव में डॉक्टर भी यह सही तरीके से नहीं जानते हैं कि मस्तिष्क में किस समस्या के कारण यह बीमारी होती है, लेकिन अनुमान के अनुसार इस बीमारी के पीछे जीन की भूमिका होती है।
यदि परिवार में किसी व्यक्ति को टॉरेट हो तो अन्य सदस्यों को भी टॉरेट सिंड्रोम होने की संभावना रहती है। लेकिन टॉरेट सिंड्रोम से पीड़ित एक ही परिवार के मरीजों में इस बीमरी के लक्षण भी अलग-अलग होते हैं।
इस बीमारी के लक्षण बहुत हल्के (mild) होते हैं जो आसानी से पहचान में नहीं आ पाते हैं। जबकि टिक्स (tics) के अन्य लक्षणों का सामना मरीज को बार-बार करना पड़ता है। स्ट्रेस, उत्तेजना, कमजोरी, थकावट या बीमार पड़ जाना इस बीमार को और खतरनाक बना देता है। इस बीमारी का सबसे गंभीर लक्षण यह है कि इससे पीड़ित व्यक्ति के रोजमर्रा के कार्य और सामाजिक जीवन बहुत ज्यादा प्रभावित होता है।
मोटर टिक्स (Motor tics) में आमतौर पर मरीज ये हरकतें करता है-
वोकल टिक्स(Vocal tics) में मरीज इस तरह की हरकतें करता है-
टिक्स सामान्य और जटिल होते हैं। सामान्य टिक्स शरीर के सिर्फ कुछ ही हिस्सों को प्रभावित करते हैं, इसमें मरीज पलके झपकाता है या मुंह बनाता है। जबकि जटिल टिक्स (complex Tics) में मरीज के शरीर का ज्यादातर भाग प्रभावित होता है और वह चिल्लाने के साथ ही कूदता है और कसमें खाता है।
मोटर टिक से पहले व्यक्ति को सनसनाहट होती है जिसकी वजह से वह झुनझुनी और तनाव महसूस करता है। लेकिन जब वह कोई गतिविधि या हरकत करना शुरू कर देता है तो सनसनाहट अपने आप खत्म हो जाती है। सनसनाहट (sensation) ज्यादा देर तक नहीं रहती है और आती-जाती रहती है। डॉक्टर अभी भी सुनिश्चित नहीं कर पाये हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है लेकिन टॉरेट सिंड्रोम के आधे मरीजों में अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर(एडीएचडी) के लक्षण दिखायी देते हैं जिसके कारण ध्यान देने, बैठने और काम को खत्म करने में परेशानी होती है। टॉरेट सिंड्रोम के कारण चिंता, सीखने की क्षमता में कमी (dyslexia), विचारों और व्यवहार को नियंत्रित करने की क्षमता में कमी आदि समस्याएं भी हो सकती हैं।
कई बार टॉरेट सिंड्रोम के टिक्स बहुत हल्के होते हैं और इलाज की आवश्यकता नहीं पड़ती है। लेकिन यदि वे समस्या को बढ़ाने लगते हैं तब डॉक्टर दवा लेने की सलाह देते हैं। टिक्स (tics) को नियंत्रित करने के लिए मरीज को दवा की कितनी खुराक दी जानी चाहिए, यह जानने में कुछ समय लग जाता है इसलिए धैर्यपूर्वक डॉक्टर की सलाह का पालन करना चाहिए।
टॉरेट सिंड्रोम के टिक्स को नियंत्रित करने के लिए हालोपेरिडॉल (Haloperidol), फ्लूफेनाजिन(fluphenazine) सहित अन्य दवाएं भी दी जाती हैं जो मस्तिष्क रसायन का कार्य करते हैं, जिसे डोपामिन (dopamine) के नाम से जाना जाता है और यह टिक्स को नियंत्रित करने में मदद करता है।
दवाओं के अलावा मरीज को टॉक थेरेपी की भी जरूरत होती है। साइकोलॉजिस्ट या काउंसलर टॉरेट सिंड्रोम के मरीज को यह बताने में मदद करते हैं कि वे टिक्स के कारण होने वाली परेशानियों से किस तरह लड़ें। इसके अलावा मरीजों को बिहेवियर थेरेपी भी दी जाती है जिसमें उन्हें यह पहचान करायी जाती है टिक्स आ रहा है तो क्या करें कि वह रूक जाए।
ऊपर के लेख में आपने जाना टॉरेट सिंड्रोम के लक्षण, टॉरेट (टूरेट) सिंड्रोमके कारण, टॉरेट (टूरेट) सिंड्रोम की जाँच और टॉरेट (टूरेट) सिंड्रोम का उपचार के बारें में।
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