Vitamin D In Hindi विटामिन डी एक ऐसा पोषक तत्व है, जो वसा में आसानी से घुलनशील है और यह हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सही तरीके से काम करने, कोशिकाओं के विकास को नियंत्रित करने एवं हड्डियों को स्वस्थ्य रखने में शरीर की मदद करता है। विटामिन डी शरीर की त्वचा पर लालिमा और सूजन आने से रोकता है। यह मानव शरीर के लिए बहुत ही आवश्यक होता है, जिसे सूर्य प्रकाश के माध्यम से त्वचा द्वारा प्राप्त किया जाता है। सूर्य के प्रकाश के अलावा विटामिन डी को कुछ खाद्य पदार्थों और सप्लीमेंट के रूप में भी प्राप्त किया जा सकता है। विटामिन डी की कमी बच्चों में रिकेट्स तथा अनियमित विकास का कारण बनती है, इसलिए विटामिन डी का पर्याप्त सेवन आवश्यक हो जाता है।
आज के इस लेख में आप जानेंगे कि विटामिन D क्या है, इसके स्रोत, कमी के लक्षण तथा कमी से होने वाले रोग क्या हैं, एवं इसके फायदे और नुकसान के बारे में।
विषय सूची
1. विटामिन D क्या है – What is Vitamin D In Hindi
2. विटामिन डी के प्रकार – Vitamin D Types in hindi
3. विटामिन D स्रोत – Vitamin D Sources In Hindi
4. विटामिन D की कमी – Vitamin D Deficiency In Hindi
5. विटामिन D की कमी के लक्षण – Vitamin D Deficiency Symptoms In Hindi
6. विटामिन D की कमी से रोग – Vitamin D Disease In Hindi
7. विटामिन D के फायदे – Vitamin D Benefits In Hindi
8. विटामिन D का दैनिक सेवन – Vitamin D Dosage in hindi
9. विटामिन D के नुकसान – Vitamin D Side Effects In Hindi
विटामिन डी, वसा में घुलनशील एक महत्वपूर्ण खनिज है, जो शरीर द्वारा त्वचा के सीधे सूर्य प्रकाश के संपर्क में आने से निर्मित किया जाता है। सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में शरीर द्वारा उत्पादन होने के कारण इसे “सनशाइन विटामिन” (sunshine vitamin) के नाम से भी जाना जाता है। जब आप सीधे सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आते हैं तो आपका शरीर स्वाभाविक रूप से विटामिन डी का उत्पादन करता है। आप अपने रक्त में विटामिन के पर्याप्त स्तर को सुनिश्चित करने के लिए कुछ खाद्य पदार्थों और पूरक आहार (Supplements) के माध्यम से भी इसे प्राप्त कर सकते हैं। विटामिन डी को भोजन या पूरक आहार के रूप में भी ग्रहण किया जा सकता है। यह मानव शरीर के लिए अनेक प्रकार से लाभदायक होता है।
यकृत (Liver) द्वारा त्वचा या भोजन से प्राप्त होने वाले विटामिन डी को 25-हाइड्रॉक्सीविटामिन डी नामक रसायन के रूप में भंडारण करके रखा जाता है। विटामिन डी की कमी से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, जिसके कारण रिकेट्स तथा अन्य गंभीर समस्याएँ उत्पन्न होती है। सूर्य प्रकाश विटामिन डी का सबसे अच्छा प्राकृतिक स्रोत हैं। हड्डियों और दांतों को स्वस्थ रखने के साथ-साथ कैंसर, टाइप 1 मधुमेह और मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसी अनेक स्थितियों से शरीर को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त विटामिन डी महत्वपूर्ण होता है। मानव शरीर विटामिन D को अधिक समय तक स्टोर करके नहीं रख पाता है। अतः प्रत्येक मनुष्य को प्रतिदिन एक निश्चित मात्रा में विटामिन D के सेवन पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
विटामिन डी के कई महत्वपूर्ण कार्य हैं। और उनमे सबसे महत्वपूर्ण कार्य कैल्शियम और फास्फोरस के अवशोषण को विनियमित करना हैं, और सामान्य प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाना है। विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा प्राप्त करना हड्डियों और दांतों के सामान्य विकास के लिए महत्वपूर्ण है, साथ ही साथ कुछ रोगों के खिलाफ बेहतर प्रतिरोध भी उत्पन्न करना है।
विटामिन डी शरीर के अनेक महत्वपूर्ण कार्यों में अपना योगदान देता है, जो कि निम्न हैं:
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विटामिन डी को स्टेरॉयड हार्मोन (Steroid Hormones) के एक वर्ग में रखा जाता है, जो वसा में घुलनशील है और शरीर के लिए अत्यंत ही आवश्यक है। विटामिन डी मानव रक्त में, 25-हाइड्रोक्सीविटामिन डी और 1, 25- डाईहाइड्रोक्सीविटामिन डी के रूप में पाया जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण विटामिन डी के प्रकार निम्न हैं:
विटामिन डी 3 (Cholecalciferol) – विटामिन डी 3, जिसे कॉलेकैल्सिफेरॉल (Cholecalciferol) के रूप में भी जाना जाता है, यह विटामिन डी का प्राकृतिक रूप है, जिसका निर्माण शरीर द्वारा धूप के अवशोषण के दौरान किया जाता है।
विटामिन डी 2 (Ergocalciferol) – विटामिन डी 2, जिसे एर्गोकैल्सिफेरोल (Ergocalciferol) के रूप में भी जाना जाता है, यह स्वाभाविक रूप से शरीर द्वारा नहीं बनाया जाता है, अर्थात यह विटामिन डी का प्राकृतिक रूप नहीं है। यह कवक को विकिरित (Irradiated) कर प्राप्त किया जाता है।
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सूर्य प्रकाश को विटामिन D का एक उत्तम स्रोत माना जाता है, लेकिन अनेक प्रकार के कारक केवल सूर्य प्रकाश के माध्यम से पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी प्राप्त करने की कोशिश को नाकाम बना सकते हैं। इन कारकों में उच्च प्रदूषण वाले, सनस्क्रीन का उपयोग, गहरे रंग की त्वचा आदि शामिल हैं। अतः कोई भी व्यक्ति सनशाइन के आलावा विटामिन D का पर्याप्त सेवन करने के लिए निम्न स्रोतों का उपयोग कर सकता है, जिनमें शामिल हैं:
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किसी व्यक्ति के रक्त में विटामिन D के सामान्य से कम स्तर विटामिन D की कमी की ओर संकेत होते हैं। विशेष रूप से विटामिन डी की कमी से संबंधित जोखिम कारकों में बुढ़ापा, मोटापा, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सर्जरी, शिशुओं और कम धूप वाले क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों आदि को शामिल किया जा सकता है। शरीर में विटामिन डी की कमी, हड्डियों की कमजोरी (Osteoporosis) और हड्डियों में विकृति (Rickets) का कारण बन सकती है। डॉक्टर साधारण रक्त परीक्षण के माध्यम से विटामिन डी की कमी का निदान कर सकता है।
विटामिन डी के कम स्तर व्यक्तियों में दिल के दौरे, कैंसर, श्वसन विकारों और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के बढ़ते जोखिमो से संबन्धित हो सकते हैं।
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विटामिन डी की कमी के लक्षणों में निम्न शामिल हो सकते हैं, जैसे:
यदि विटामिन डी की कमी अधिक समय तक बनी रहती है, तो इसके परिणामस्वरुप निम्न लक्षण प्रगट हो सकते हैं, जैसे:
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विटामिन डी की कमी अनेक प्रकार के रोगों के उत्पन्न होने का कारण बन सकती हैं, जिनमें शामिल हैं:
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विटामिन डी को अनेक संभावित स्वास्थ्य लाभों के लिए उपयोगी माना जाता है। यह हड्डियों के अच्छे स्वास्थ्य में सहायक होने से लेकर कैंसर की रोकथाम के लिए भी फायदेमंद होता है। विटामिन डी के स्वास्थ्य सम्बन्धी लाभों में निम्न को शामिल किया जाता है, जैसे:
विटामिन डी कैल्शियम के नियमन और रक्त में फास्फोरस के स्तर को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, ये दोनों ही कारक हड्डियों को स्वस्थ रखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। अतः आंतों में कैल्शियम को अवशोषित करने के लिए विटामिन डी की आवश्यकता होती है। बच्चों में विटामिन डी की कमी से रिकेट्स रोग हो सकता है। इसके अतिरिक्त वयस्कों में, विटामिन डी की कमी ऑस्टियोमलेशिया (Osteomalacia) या ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) के रूप में प्रकट होती है। अतः विटामिन डी हड्डियों को मजबूत रखने तथा हड्डी स्वास्थ्य को उत्तम बनाने के लिए फायदेमंद है।
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कोशिका वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए विटामिन डी बेहद महत्वपूर्ण विटामिन है। कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि कैल्सीट्रियोल (Calcitriol), जो कि विटामिन डी का हार्मोन सक्रिय रूप है, कैंसर के विकास और वृद्धि की दर को धीमा कर कैंसर ऊतकों को नई रक्त वाहिकाओं तक फैलने से रोकता है तथा कैंसर कोशिका को नष्ट करने में सहायक होता है।
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शिशुस्वास्थ्य के लिए विटामिन डी को काफी फायदेमंद माना गया है। विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा शिशुओं के शारीरिक और मानसिक विकास
के साथ-साथ हड्डियों को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विटामिन डी की कमी के साथ एटोपिक चाइल्डहुड डिजीज (Atopic Childhood Disease) और एलर्जी संबंधी बीमारियों के उच्च जोखिम जुड़े होते है, जिसमें अस्थमा, एटॉपिक डर्मेटाइटिस (Atopic Dermatitis) और एक्जिमा (Eczema) शामिल हैं।अतः विटामिन डी बच्चों में रिकेट्स तथा अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को रोकने के लिए आवश्यक है। विटामिन डी ग्लूकोकार्टोइकोड्स (Glucocorticoids) के एंटी-इंफ्लेमेटरी प्रभाव को भी बढ़ा सकता है, जिसके कारण यह स्टेरॉयड-प्रतिरोधी अस्थमा (Steroid-Resistant Asthma) के उपचार के लिए संभावित रूप से उपयोगी हो सकता है।
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जिन गर्भवती महिलाओं में विटामिन डी की कमी होती है, उनमें प्रीक्लेम्पसिया (Preeclampsia) विकसित होने और सिजेरियन सेक्शन (Caesarean Section) की आवश्यकता के अधिक जोखिम उत्पन्न होने का खतरा अधिक होता है। विटामिन डी की कम मात्रा गर्भवती महिलाओं में गर्भकालीन मधुमेह और बैक्टीरियल वेजिनोसिस (Bacterial Vaginosis) (योनि में बैक्टीरिया की अधिकता) की स्थिति से सम्बंधित होती है। साथ ही साथ गर्भावस्था के दौरान विटामिन डी का उच्च स्तर बच्चे के जन्म के प्रारंभिक 2 वर्षों के दौरान खाद्य एलर्जी के जोखिम को बढ़ा सकता है। अतः गर्भावस्था के दौरान विटामिन डी की निश्चित मात्रा का सेवन अति आवश्यक होता है।
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प्रारंभिक शोध से पता चलता है कि विटामिन डी के उच्च स्तर से सम्बंधित व्यक्तियों में, विटामिन डी के कम स्तर वाले व्यक्तियों की अपेक्षा टाइप 2 मधुमेह विकसित होने की कम संभावना होती है। टाइप 2 मधुमेह वाले व्यक्तियों के रक्त में विटामिन डी का कम स्तर पाया जाता है।
शोध से यह भी ज्ञात हुआ है कि जन्म के पहले वर्ष के दौरान शिशुओं को प्रतिदिन विटामिन डी देने से जीवन में टाइप 1 मधुमेह के विकसित होने का जोखिम कम हो जाता है।
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सर्दियों के दौरान लगभग 4 महीने तक प्रति दिन बच्चों को विटामिन डी देने से इन्फ्लूएंजा के संक्रमण का खतरा 40 प्रतिशत तक कम हो जाता है। अतः फ्लू से सम्बंधित जोखिमों को कम करने के लिए विटामिन डी जरूरी होता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को सर्दी के दौरान संक्रमण की स्थिति से बचने के लिए सुबह-शाम निश्चित समय के लिए धूप लेना आवश्यक होता है।
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अनुसंधान से पता चला है कि विटामिन डी व्यक्ति के मूड (Mood) को नियंत्रित करने और डिप्रेशन को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। विटामिन डी सप्लीमेंट का उपयोग डिप्रेशन से सम्बंधित व्यक्तियों में लक्षणों का सुधार करने के लिए किया जाता है। एक अन्य अध्ययन में पाया गया है कि फाइब्रोमाइल्गिया (Fibromyalgia) से पीड़ित व्यक्तियों में विटामिन डी की कमी चिंता और डिप्रेशन जैसे लक्षणों को उत्पन्न कर सकती है।
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जो व्यक्ति वजन कम करने या हृदय रोग से छुटकारा पाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हे अपने आहार में विटामिन डी को शामिल करने की कोशिश करना चाहिए। विटामिन डी सप्लीमेंट वजन को कम करने में फायदेमंद हो सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार अतिरिक्त कैल्शियम और विटामिन डी का सेवन भूख को कम कर वजन घटाने में मदद करने के साथ-साथ हृदय रोग से सम्बंधित जोखिमों को भी कम करता है।
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विटामिन डी अन्य रोगों के जोखिमों को भी कम करने में अपनी अहम् भूमिका निभाता है, जिनमें शामिल हैं :
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विटामिन डी की एक निश्चित मात्रा मानव शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जरुरी होती है। अतः प्रतिदिन एक निश्चित मात्रा में विटामिन डी का सेवन कर अनेक प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं से बचा जा सकता है। विटामिन डी का 1 माइक्रोग्राम विटामिन डी के 40 आईयू (IU) के बराबर है। प्रत्येक व्यक्ति को उनकी उम्र और स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार एक निश्चित मात्रा के सेवन की सिफारिश की जाती है। एक पूर्ण स्वास्थ्य व्यक्ति के लिए विटामिन डी की सिफारिश की जाने वाली दैनिक मात्रा निम्न प्रकार है:
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हालांकि कुछ शारीरिक स्थितियों में विटामिन डी की अत्यधिक मात्रा विषाक्तता का कारण बन सकती है। विटामिन डी का अधिक सेवन एक त्वचा सम्बन्धी एलर्जी प्रतिक्रिया का कारण बन सकता है। अतः किसी भी तरह के सप्लीमेंट का सेवन करने से पहले डॉक्टर को एलर्जी सम्बन्धी जानकारी जरुर दें। चूँकि मानव शरीर को एक निश्चित मात्रा में विटामिन डी के सेवन की आवश्यकता होती है, इसलिए जरुरत से ज्यादा विटामिन डी लेने से अनेक प्रकार के साइड इफ़ेक्ट देखने को मिल सकते हैं। विटामिन डी से सम्बंधित नुकसान में निम्न को शामिल किया जा सकता है:
विटामिन डी किसी व्यक्ति द्वारा सेवन किये गए भोजन से कैल्शियम को अवशोषित करने में शरीर की मदद करता है। लेकिन यदि विटामिन डी का सेवन अत्यधिक मात्रा में किया जाता है, तो रक्त में कैल्शियम का स्तर काफी उच्च हो सकता है जिसके कारण अनेक प्रकार के खतरनाक लक्षण पैदा हो सकते हैं। हाइपरलकसीमिया (Hypercalcemia) या रक्त में उच्च कैल्शियम स्तर से सम्बंधित लक्षणों में निम्न शामिल हैं:
रक्त कैल्शियम की सामान्य सीमा 8.5–10.2 Mg/Dl (2.1–2.5 Mmol/L) होती है।
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बहुत अधिक विटामिन डी का सेवन मतली, उल्टी और भूख में कमी जैसे लक्षणों का कारण बन सकता है। हलांकि यह लक्षण विटामिन डी सप्लीमेंट लेने के फलस्वरूप देखने को मिलते हैं। उच्च विटामिन डी के सेवन से रक्त में कैल्शियम के उच्च स्तर प्राप्त हो सकते हैं जो मतली, उल्टी और कुछ व्यक्तियों के लिए भूख की कमी का कारण बनते हैं।
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पेट दर्द, कब्ज और दस्त पाचन सम्बंधित समस्याएँ हैं, जो अक्सर खाद्य असहिष्णुता (Food Intolerance) या इर्रिटेबल बोवेल सिंड्रोम (Irritable Bowel Syndrome) से संबंधित होती हैं। अतः यह पाचन सम्बन्धी समस्याएँ तब उत्पन्न हो सकती हैं, जब विटामिन डी की अधिक मात्रा का सेवन करने पर रक्त में कैल्शियम के स्तर में वृद्धि होती है।
अतः विटामिन डी सप्लीमेंट का उचित मात्रा में सेवन कर पेट में दर्द और कब्ज जैसी समस्याओं से बचा जा सकता है।
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विटामिन डी की सिफारिश की जाने वाली सीमित मात्रा का सेवन, महिलाओं के लिए गर्भावस्था और स्तनपान की स्थिति में सुरक्षित होता है। जबकि गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान विटामिन डी की अनियमित मात्रा का सेवन अनेक स्वास्थ्य समस्याओं को विकसित कर सकता है। गर्भावस्था और स्तनपान की स्थिति में अधिक मात्रा में सप्लीमेंट का उपयोग करने से शिशु को गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है।
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गंभीर किडनी रोग से सम्बंधित व्यक्तियों में विटामिन डी का सेवन कैल्शियम के स्तर को बढ़ा सकता है, जो “एथेरोस्क्लेरोसिस” (Atherosclerosis) के जोखिम को बढ़ाने में सहायक है। अतः किडनी से सम्बंधित समस्याओं के फलस्वरूप विटामिन डी के अधिक सेवन के कारण उत्पन्न अतिरिक्त कैल्शियम संतुलित नहीं हो पाता है, जिसके फलस्वरूप हड्डियों से सम्बंधित समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। गुर्दे की बीमारी वाले लोगों में कैल्शियम और विटामिन डी के स्तर पर सावधानीपूर्वक निगरानी रखी जानी चाहिए।
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हिस्टोप्लाज्मोसिस (Histoplasmosis) और लिम्फोमा (Lymphoma) से सम्बंधित व्यक्तियों में विटामिन डी के कारण कैल्शियम का स्तर बढ़ सकता है। जिसके फलस्वरूप किडनी स्टोन और अन्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। अतः हिस्टोप्लाज्मोसिस के रोगियों को विटामिन डी का सावधानीपूर्वक उपयोग करना चाहिए।
अति सक्रिय पैराथाइरॉइड ग्रंथि (हाइपरपरैथायराइडिज्म) और सारकॉइडोसिस (Sarcoidosis) से पीड़ित व्यक्तियों के लिए भी विटामिन डी, कैल्शियम के स्तर में वृद्धि का कारण बन सकता है। अतः विटामिन डी सप्लीमेंट लेने से पहले डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
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Reference
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