अल्ट्रासाउंड स्कैन एक मेडिकल टेस्ट है जिसमें उच्च आवृति वाले ध्वनि चित्रों का उपयोग कर शरीर के अंदर के सजीव चित्रों को लिया जाता है। इसे सोनोग्राफी (sonography ) के नाम से भी जाना जाता है। बिना किसी तरह का चीरा लगाए अल्ट्रासाउंड के जरिए डॉक्टर शरीर के अंगों, वाहिकाओं और कोशिकाओं में समस्याओं का पता लगाते हैं।
यह बताना भी बेहद जरूरी है कि अन्य तकनीकों के विपरीत अल्ट्रासाउंड में किसी भी तरह के विकिरण का उपयोग नहीं किया जाता है। गर्भावस्था के दौरान महिला के गर्भ में बढ़ रहे भ्रूण (fetus) की स्थिति का पता लगाने के लिए यह तरीका सबसे ज्यादा प्रचलित है। यहां हम आपको बताएंगे कि अल्ट्रासाउंड क्यों किया जाता है, अल्ट्रासाउंड के लिए तैयारी कैसे करें, अल्ट्रासाउंड की प्रक्रिया और अल्ट्रासाउंड के नुकसान क्या हैं।
1. अल्ट्रासाउंड क्यों किया जाता है – Why an ultrasound is performed in Hindi
2. अल्ट्रासाउंड के लिए तैयारी कैसे करें – How to prepare for an ultrasound in Hindi
3. अल्ट्रासाउंड की प्रक्रिया – Procedure of an ultrasound in Hindi
4. अल्ट्रासाउंड के नुकसान – Side effects of ultrasound in Hindi
अल्ट्रासाउंड क्यों किया जाता है – Why an ultrasound is performed in Hindi
ज्यादातर लोग अल्ट्रासाउंड को महज प्रेगनेंसी से जोड़कर देखते हैं। अल्ट्रासाउंड स्कैन के जरिए गर्भवती मां अपने अजन्में बच्चे की पहली झलक देख पाती है। हालांकि इस परीक्षण के अन्य कई उपयोग हैं। डॉक्टर किसी व्यक्ति को अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह तब देते हैं जब उसे शरीर के किसी हिस्से में लगातार दर्द, सूजन या अन्य कोई दिक्कत हो। इस तरह के मरीज के शरीर के भीतरी अंगों में परेशानी का परीक्षण करने के लिए अल्ट्रासाउंड किया जाता है। अल्ट्रासाउंड के जरिए मूत्राशय, शिशुओं के मस्तिष्क, आंख, पित्ताशय, गुर्दा, लीवर, अंडाशय, अग्नाशय, थॉयराइड, अंडकोष, रक्तवाहिकाएं आदि का दृश्य लिया जाता है।
कुछ मेडिकल प्रक्रियाओं जैसे बायोप्सी के दौरान शल्य चिकित्सक के कार्यों को आसान बनाने में भी अल्ट्रासाउंड काफी उपयोगी साबित होता है।
अल्ट्रासाउंड के लिए तैयारी कैसे करें – How to prepare for an ultrasound in Hindi
अल्ट्रासाउंड के लिए मरीज को पहले से ही तैयार रहना पड़ता है, हालांकि अल्ट्रासाउंड के लिए तैयारी इस बात पर भी निर्भर करता है कि किस अंग का परीक्षण किया जाना है। आमतौर पर अल्ट्रासाउंड कराने से आठ से बारह मिनिट पहले डॉक्टर मरीज को कुछ न खाने की सलाह देते हैं। विशेषरूप से तब जब मरीज के पेट का अल्ट्रासाउंड किया जाना हो। अपचा भोजन शरीर में ध्वनि तरंगों को रोक देता है और फिर तकनीशियन के लिए साफ-साफ दृश्य लेना संभव नहीं हो पाता है।
पित्ताशय की थैली, यकृत, अग्नाशय या तिल्ली का परीक्षण कराने के पहले डॉक्टर शाम को ही मरीज को वसा रहित भोजन करने की सलाह देते हैं, और टेस्ट से कई घंटों पहले तक कुछ खाने के लिए मना करते हैं। हालांकि आप अल्ट्रासाउंड के लिए तैयारी में पानी जरूर पी सकते हैं। जबकि कुछ अन्य परीक्षण के लिए डॉक्टर अल्ट्रासाउंड के लिए तैयारी में ज्यादा से ज्यादा पानी पीने की सलाह देते हैं ताकि मूत्राशय में यूरीन इकट्ठा हो जाए और दृश्य साफ और सटीक लिया जा सके।
अगर अल्ट्रासाउंड से पहले आपने कोई दवा या जड़ी-बूटी ली हो तो अपने डॉक्टर को जरूर बताएं। इस प्रक्रिया से पहले डॉक्टर की सलाह का पूरा पालन करें और डॉक्टर जो कुछ पूछे उसे भी सही-सही बताएं।
एक्स-रे और सीटी स्कैन के विपरीत अल्ट्रासाउंड में बहुत कम जोखिम होता है। क्योंकि अल्ट्रासाउंड में किसी विकिरण का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसी वजह से गर्भावस्था के दौरान कोख में भ्रूण की स्थिति का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड किया जाता है।
(और पढ़ें – एक्स-रे क्या है, क्यों किया जाता है, कीमत और तरीका)
अल्ट्रासाउंड की प्रक्रिया – Procedure of an ultrasound in Hindi
अल्ट्रासाउंड से पहले मरीज को हॉस्पिटल का गाउन पहनाया जाता है और जिस अंग का अल्ट्रासाउंड करना होता है उसके आधार पर मरीज को एक टेबल पर लिटा दिया जाता है। इसके बाद अल्ट्रासाउंड तकनीशियन, जिसे कि सोनोग्राफर कहते हैं मरीज की त्वचा पर एक चिकनाई युक्त जेली लगाता है। यह जेली घर्षण को रोकता है ताकि अल्ट्रासाउंड ट्रांसड्यूसर को उस जगह पर चलाया जा सके। ट्रांसड्यूसर एक माइक्रोफोन के समान दिखता है। इसके अलावा जेली भी ध्वनी तरंगों को प्रसारित होने में मदद करता है।
ट्रांसड्यूसर शरीर के माध्यम से उच्च आवृति वाली ध्वनि तरंगों को भेजता है। यह तरंगें गूंजती हैं और उस अंग या हड्डी को प्रभावित करती है। फिर वही ध्वनियां कंप्यूटर में फिर प्रतिबिंबित होती हैं। इन तरंगों की आवाज मानव कान के लिए बहुत अधिक पिच की होती हैं। यह एक चित्र बनाती हैं जिसे देखकर डॉक्टर मरीज के बीमारियों के बारे में बताते हैं। अल्ट्रासाउंड के दौरान कभी-कभी परीक्षण किए जा रहे जगह के आधार पर तकनीशियन मरीज को उसके लेटने की स्थिति भी बदलने को कहता है ताकि बेहतर परीक्षण कर समस्याओं का जल्दी पता लगाया जा सके।
इस प्रक्रिया के बाद त्वचा (skin) के ऊपर से जेल (gel) को साफ कर दिया जाता है। अल्ट्रासाउंड की इस पूरी प्रक्रिया में करीब आधे घंटे से कम का समय लगता है, यह इस पर भी निर्भर करता है कि किस अंग का परीक्षण किया जा रहा है। इसके बाद प्रक्रिया समाप्त हो जाती है और आप अपने सामान्य क्रिया में आ जाते हैं।
(और पढ़ें – सीटी स्कैन क्या है कैसे होता है, कीमत, फायदे और नुकसान)
अल्ट्रासाउंड के नुकसान – Side effects of ultrasound in Hindi
स्टडी में पाया गया है कि अल्ट्रासाउंड के दौरान कोशिकाएं प्रभावित हो जाती हैं जिसके कारण कभी-कभी आंत से ब्लीडिंग भी होने लगती है।
अल्ट्रासाउंड के बाद नकारात्मक परिणाम आने पर व्यक्ति चिंता और तनाव (stress) से ग्रसित हो जाता है।
अल्ट्रासाउंड का साइड इफेक्ट जानने के लिए उन मांओं पर एक शोध किया गया जिन्होंने गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड कराया था। शोध में यह पाया गया कि जिन महिलाओं ने अल्ट्रासाउंड कराया था उनके बच्चों का वजन अन्य बच्चों की अपेक्षा बहुत कम था। इसके अलावा ऐसे बच्चे बहुत देर से बोलना भी शुरू किए।
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mai biology se releted baat padh kar bahut khush hu