सिजोफ्रेनिया एक प्रकार की मानसिक बीमारी होती है जिसे एक प्रकार के पागलपन के रूप में देखा जाता है। इस मानसिक विकार के कारण व्यक्ति के सोचने-समझने और विचार करने की क्षमता पूरी तरह बर्बाद हो जाती है। इस डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति वास्तविकता से दूर होता जाता है। आज हम आपको सिजोफ्रेनिया रोग क्या है, इसके लक्षण, कारण, जाँच, इलाज और बचाव के बारे में बताने जा रहे हैं।
सिज़ोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक रोग है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति वास्तविकता को छोड़कर एक काल्पनिक दुनिया में जीता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति अक्सर भ्रम (delusions) या मतिभ्रम (hallucinations) का अनुभव करते हैं, जिसका पूरा प्रभाव उसके काम पर पड़ता है। ऐसे में पीड़ित व्यक्ति का समाज में रह पाना काफी मुश्किल हो जाता है। उसे अजीबो-गरीब आवाजें सुनाई देती है, और अक्सर ऐसी चीजें दिखाई देती हैं, जो वास्तव में होती ही नहीं हैं, ऐसे में वह हमेशा एक डर में जीता है और अवसादग्रस्त हो जाता है।
यह मानसिक रोग सभी उम्र के पुरुषों और महिलाओं को प्रभावित कर सकता है, लेकिन ज्यादातर किशोरावस्था के अंत में या 20 के दशक की शुरुआत में इसके लक्षण विकसित हैं।
इस बीमारी का असर पीड़ित के काम,रिलेशनशिप के साथ-साथ निजी और सार्वजनिक जीवन पर भी पड़ता है। इस बीमारी का पूर्ण उपचार तो संभव नहीं लेकिन दवाओं और सही उपचार की मदद से इसके बुरे प्रभाव को कम किया जा सकता है। सिज़ोफ्रेनिया एक आजीवन स्थिति है, लेकिन उपचार के माध्यम से इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है।
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किसी व्यक्ति में सिजोफ्रेनिया होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
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अधिकतर लोगों को सिजोफ्रेनिया आनुवांशिक होता है। यह रोग माता-पिता में से किसी को भी होने पर बच्चे को होने का खतरा बढ़ जाता है। यदि किसी परिवार में सिज़ोफ्रेनिया का कोई इतिहास नहीं है, तो उस परिवार से सम्बंधित व्यक्ति को इसके विकसित होने की संभावना 1% से भी कम होती है।
जब बच्चा कोख में होता है तो मां द्वारा पोषक तत्वों का सेवन न करने की वजह से भी बच्चे का दिमाग सही से विकसित नहीं हो पाता है। इससे बच्चे को सिजोफ्रेनिया होने का खतरा होता है। इसके अलावा जन्म के दौरान आघात, विषाणु संक्रमण (viral infections) आदि कारक भी इस रोग के विकसित होने का कारण बन सकते हैं।
ड्रग्स का सेवन करने वाले लोग भी सिजोफ्रेनिया का शिकार हो जाते हैं। अक्सर लोगों में इस बीमारी को लेकर जागरुकता नहीं होती है, इसलिए वे गंभीर रुप से इस बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं। इसके अलावा कुछ दवाएं भी इसके विकसित होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति में अलग-अलग कई लक्षण देखने को मिलते हैं, जिसमे से सिज़ोफ्रेनिया के मुख्य लक्षण निम्न हैं-
इस मानसिक विकार के लक्षण आमतौर पर किशोरावस्था और 20 के दशक की शुरुआत में देखे जा सकते हैं। इस उम्र में, सिजोफ्रेनिया के शुरुआती लक्षणों को किशोरावस्था के सामान्य व्यवहार के कारण अनदेखा किया जा सकता है। इस रोग के प्रारंभिक लक्षणों में निम्न शामिल हैं:
इस बीमारी में लोगों को अक्सर ऐसे विचार आते हैं जो कि सच नहीं होते। वे ऐसी चीजों को देखकर भ्रमित होते हैं जो उस जगह मौजूद ही नहीं होती है। इससे उनकी मानसिक स्थिरता भी नष्ट हो जाती है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति अक्सर गलत तरीके से ही सोचते हैं। बार-बार भ्रम का शिकार हो जाना सिजोफ्रेनिया का एक संकेत होता है।
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इन बीमारी से पीड़ित लोगों के दिमाग में बहुत ज्यादा ख्याल आते हैं। अलग-अलग तरीके के विचार आने के कारण वे अक्सर किसी एक चीज पर ध्यान नहीं लगा पाते और ना ही अपने मन की बात को सही तरह से जाहिर कर पाते हैं। ऐसे लोगों को ध्यान लगाने और बोलने में परेशानी होती है।
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इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति का व्यवहार बदल जाता है। वे अक्सर नकारात्मक सोचते हैं, जिसका प्रभाव उनके व्यवहार पर पड़ता है। वे अक्सर डर में जीते हैं और घबराहट के कारण चीखते-चिल्लाते हैं। कई बार उनका व्यवहार इतना हिंसक हो जाता है कि इससे दूसरे लोगों को भी नुकसान पहुंचता है। पीड़ित का यह अजीबो-गरीब व्यवहार भी सिजोफ्रेनिया का संकेत होता है।
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हल्लुसिनेशन एक प्रकार का मतिभ्रम होता है जिसमें पीड़ित व्यक्ति को ऐसी चीजें दिखाई, सुनाई देती है जो वास्तविक रुप में मौजूद ही नहीं होती है। ऐसे में वे इतने परेशान हो जाते हैं कि अपने आप को नुकसान पहुंचाने लगते हैं जो कि सिजोफ्रेनिया का एक हानिकारक संकेत है।
इस रोग से पीड़ित व्यक्ति अक्सर डर के साये में जीते हैं। रोजमर्रा के काम जैसे वॉक पर जाना, खाना बनाना इत्यादि काम करना भी उनके लिए मुश्किल हो जाता है। इससे पीड़ित व्यक्ति साधारण सी चीजों से भी डरने लगता है और उसे लगता है कि हर एक चीज से उसे जान का खतरा है। इस बीमारी में पीड़ित व्यक्ति की मानसिक शांति बिल्कुल समाप्त हो जाती है।
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सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। यदि इसका समय पर इलाज नहीं किया गया यह तो यह बीमारी कुछ गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकती है, जिनमें शामिल हैं:
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किसी एक परीक्षण के आधार पर सिजोफ्रेनिया का निदान नहीं किया जा सकता है। इसके लिए सम्पूर्ण मनोरोग परीक्षण (psychiatric exam) करने की आवश्यकता पड़ती है। एक मनोचिकित्सक (psychiatrist) सिजोफ्रेनिया की जाँच करने के लिए चिकित्सा पीड़ित व्यक्ति के इतिहास, मानसिक स्वास्थ्य, पारिवारिक चिकित्सा इतिहास से सम्बंधित जानकारी को प्राप्त करने की कोशिश करेगा।
डॉक्टर सिजोफ्रेनिया की जाँच करने के निम्न परीक्षणों की मदद ले सकता है, जैसे-
जागरुकता की कमी की वजह से सिजोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति इस मेंटल डिसऑर्डर से बुरी तरह प्रभावित होता है और आत्महत्या करने के ख्याल भी उसके दिमाग में आने लगते हैं। सिजोफ्रेनिया का इलाज पूरी तरह संभव नहीं है लेकिन मानसिक दृढ़ शक्ति और कुछ उपचार प्रक्रियाओं के माध्यम से इसके प्रभाव को कम जरुर किया जा सकता है।
सिजोफ्रेनिया का उपचार करने के दौरान डॉक्टर निम्न विकल्पों को शामिल कर सकता है:
एंटीसाइकोटिक दवाएं (Antipsychotic drugs) – डॉक्टर सिजोफ्रेनिया मेंटल डिसऑर्डर का इलाज करने के दौरान एंटीसाइकोटिक दवाओं की सिफारिश कर सकता है। इन दवाओं को मौखिक या इंजेक्शन के रूप में मरीज को दिया जा सकता है।
परामर्श (Counseling) – परामर्श पीड़ित व्यक्ति के लिए कौशल विकसित और अपने जीवन लक्ष्यों को पाने में मदद करने का एक प्रभावी उपचार है। दवाओं के साथ साथ मरीज को उचित परामर्श भी दिया जाना आवश्यक होता है।
वैकल्पिक उपचारों – सिजोफ्रेनिया के इलाज के लिए दवा सेवन काफी महत्वपूर्ण है। लेकिन डॉक्टर सिजोफ्रेनिया के उपचार के दौरान निम्न की भी सिफारिश कर सकता है:
सिजोफ्रेनिया से बचने या इसे रोकने का कोई निश्चित तरीका नहीं है, लेकिन उपचार के साथ कुछ उपाय अपनाकर इसके लक्षणों को बिगड़ने से रोका जा सकता है। उपचार प्रक्रिया को सक्रिय रखकर एक पीड़ित व्यक्ति भी स्वस्थ औरर लक्षण-मुक्त जीवन का आनंद ले है। सिजोफ्रेनिया के जोखिम को कम करने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, जैसे:
सिजोफ्रेनिया एक प्रकार का पागलपन, जानें इसके कारण लक्षण और उपचार (What Is Schizophrenia In Hindi) का यह लेख आपको कैसा लगा हमें कमेंट्स कर जरूर बताएं।
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