कूकर खांसी या काली खांसी (Whooping cough) आज के इस युग में खांसी की बीमारी एक आम बात है। लेकिन शायद आप इस बात से अनजान होगे कि खांसी की बीमारी बहुत अधिक हिंसात्मक हो सकती है। इसी हिंसात्मक बीमारी में शामिल है “काली खांसी”। काली खांसी (whooping cough) खासकर बच्चों को अधिक प्रभावित करती है। यह जीवाणु से होने वाली श्वसन संक्रमण की बीमारी है, जिसे परट्यूसिस (pertussis) के नाम से भी जाना जाता है। श्वास लेने में कठिनाई एवं लगातार खांसी, इस बीमारी के प्रमुख लक्षणों में शामिल कारक हैं। इसके लक्षण कुछ सामान्य बीमारियों की तरह ही होते है।
काली खांसी एक बैक्टीरिया संक्रमण बीमारी है, इसीलिए इसका इलाज समय पर किया जाना अतिआवश्यक होता है। अब आप इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि काली खांसी क्या है, इसके कारण, लक्षण, निदान, इलाज, रोकथाम और घरेलू उपचार के बारे में।
1. काली खांसी क्या है – What is whooping cough in Hindi
2. काली खांसी के लक्षण – kali khansi ke lakshan, Whooping cough Symptoms in Hindi
3. काली खांसी के कारण – Whooping cough Causes in Hindi
4. काली खांसी (कुकर खांसी) का निदान – Whooping cough Diagnosis in Hindi
5. काली खांसी (कुकर खांसी) का इलाज – Whooping cough Treatment in Hindi
6. काली खांसी की रोकथाम – Whooping cough Prevention in Hindi
7. काली खांसी की जटिलताएं – Whooping cough complications in Hindi
8. काली खांसी के घरेलू उपाय – whooping cough Home remedies in Hindi
कुकर खांसी (whooping cough) एक श्वसन संक्रमण रोग है, जो बोर्डेटेला पेर्टसिस (Bordetella pertussis) नामक बैक्टीरिया के कारण फैलता है। काली खांसी को परट्यूसिस (pertussis) भी कहा जाता है। यह संक्रमण अनियंत्रित खांसी को जन्म देता है, जो आगे चलकर प्रचंड रूप धारण कर सकती है। जिससे साँस लेने में तकलीफ या कठिनाई हो सकती है।
व्यक्ति किसी भी उम्र में काली खांसी से संक्रमित हो सकते है। यह शिशुओं और छोटे बच्चों के लिए बहुत ही घातक हो सकती है। टीका विकसित होने के बाद काली खांसी से शिशुओं और छोटे बच्चों के प्रभावित होने की सम्भावना कम हो गई है।
एक संक्रमित व्यक्ति के खांसते या छींकते समय, यह बोर्डेटेला पेर्टसिस नामक बैक्टीरिया वायु के माध्यम से दूसरे व्यक्ति में श्वसन क्रिया के दौरान अन्दर प्रवेश करते है, जिससे संक्रमण फैलता है।
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कुकर खांसी के लक्षण या काली खांसी के प्रारंभिक संक्रमण के दौरान 7 से 10 दिन बाद ही इसके लक्षण प्रगट होते है। काली खांसी का प्रारंभिक चरण कैटररल चरण (catarrhal stage) कहलाता है। कैटररल चरण सामान्यता एक से दो सप्ताह तक रहता है, एक संक्रमित व्यक्ति को प्रारंभिक चरण में ठंड के लक्षण शामिल होते है-
ये सभी लक्षण सामान्य सर्दी के जैसे ही प्रतीत होते है, परन्तु वास्तव में यह काली खांसी का शुरुआती प्रभाव हो सकता है। समय के साथ-साथ ये लक्षण गम्भीर होते जाते है।
एक से दो सप्ताह के बाद काली खांसी का दूसरा चरण शुरू होता है। जिसे पैरॉक्सिज्मल चरण (paroxysmal stage) कहते है। इस चरण में चिकित्सकों को काली खांसी के निदान पर संदेह होता है। दूसरे चरण के दौरान काली खांसी निम्नलिखित लक्षणों को प्रगट करती हैं-
अतः काली खांसी के प्रारम्भिक लक्षणों के प्रगट होने के साथ ही इसका इलाज हो जाना चाहिए।
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बोर्डेटेला परट्यूसिस नामक एक प्रकार का बैक्टीरिया काली खांसी का कारण होता है। जब एक संक्रमित व्यक्ति खांसता या छींकता है, तो ये बैक्टीरिया हवा में फेल जाते है, और श्वसन क्रिया के माध्यम से आस-पास के व्यक्तियों के अन्दर प्रवेश कर जाते है। जिससे अन्य व्यक्ति भी काली खांसी के सिकार हो जाते हैं।
ये बैक्टीरिया ऊपरी श्वसन तंत्र में श्वसन मार्ग से जुड़ा हुआ होता है, और विषाक्त पदार्थों को छोड़ता है, जो जलन और सूजन का कारण बनता है।
इसके अतिरिक्त शुरुआती दौर में काली खांसी को सामान्य खांसी समझने पर, की जाने वाली लापरवाही भी इसका कारण बनती है।
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प्रारम्भिक चरणों में लक्षणों की जानकारी ना होने के कारण काली खांसी का निदान करना कठिन हो सकता है, क्योंकि इसके संकेत और लक्षण अन्य सामान्य बीमारियों जैसे ठंड, फ्लू या ब्रोंकाइटिस (bronchitis) के समान होते हैं।
नाक या गले में बलगम (कफ) का परीक्षण A nose or throat culture and test – काली खांसी का निदान करने के लिए डॉक्टर शारीरिक परीक्षण करता है। शारीरिक परीक्षण के दौरान नाक और गले में बलगम (कफ) के नमूने लिए जाते है। इस परीक्षण के दौरान परट्यूसिस बैक्टीरिया की उपस्थिति का पता लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त काली खांसी के लक्षणों को सुनिश्चित करने के लिए रक्त परीक्षण भी आवश्यक होता है।
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रक्त परीक्षण (Blood tests) – रक्त के नमूने को प्रयोगशाला में सफेद रक्त कोशिका की जांच के लिए भेजा जा सकता है। ये सफेद रक्त कोशिकाएँ संक्रमण रोगों से शरीर की रक्षा करती है, जैसे- काली खांसी इत्यादि।
छाती का एक्स – रे (chest X-ray) – डॉक्टर मरीज के फेफड़ों में सूजन या तरल पदार्थ (कफ) की उपस्थिति की जांच करने के लिए एक्स-रे परीक्षण का आदेश दे सकता है। यह परीक्षण तब आवश्यक होता है जब निमोनिया, खांसी और अन्य श्वसन संक्रमण को उलझा देता है।
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कुकर खांसी या काली खांसी से पीड़ित शिशुओं को आम तौर पर उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती कराया जाता है, क्योंकि शिशुओं के लिए काली खांसी अधिक खतरनाक होती है।
चूंकि काली खांसी एक जीवाणु (बैक्टीरिया) संक्रमण बीमारी है, इसलिए एंटीबायोटिक्स इसके इलाज का प्राथमिक कोर्स है। एंटीबायोटिक्स (antibiotics) को काली खांसी के शुरुआती चरणों में उपयोग करना सबसे लाभदायक होता है। इन्हें संक्रमण के आखिरी चरणों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे कि काली खांसी को दूसरों तक फैलने से रोका जा सके। एंटीबायोटिक्स संक्रमण का इलाज करने में मदद करती हैं, परन्तु एंटीबायोटिक्स खांसी को रोकने या उसके इलाज में सहायक नहीं होती हैं।
एजिथ्रोमाइसिन (Azithromycin), क्लेरिथ्रोमाइसिन (clarithromycin), एरिथ्रोमाइसिन (Erythromycin) और सल्फामेथोक्साज़ोल (sulfamethoxazole) एंटीबायोटिक्स हैं जो काली खांसी के इलाज में उपयोगी हैं।
नोट:- किसी भी तरह की दवा को चिकित्सक के परामर्श के बिना ना लें।
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कुकर खांसी या काली खांसी की रोकथाम का सबसे अच्छा तरीका परट्यूसिस टीका है। डॉक्टर शिशु अवस्था के दौरान टीकाकरण शुरू करने की सलाह देते हैं। डॉक्टर अक्सर यह टीका दो अन्य गंभीर बीमारियों जैसे- डिप्थीरिया और टेटनस के टीकों के साथ सम्मिलित कर देते हैं।
टीकाकरण में पांच इंजेक्शन का एक क्रम होता है, जिसे आमतौर पर बच्चों की बढ़ती उम्र के आधार पर दिए जाते है:
गर्भवती महिलाओं को भी गर्भावस्था के दौरान टीके की व्यवस्था की जाती है।
अतः टीकों की यह श्रंखला काली खांसी के संक्रमण को रोकती है। यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आ जाते हैं जो काली खांसी से संक्रमित होते है, तो डॉक्टर संक्रमण से सुरक्षित रहने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं की सिफारिश कर सकता है।
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ऑक्सीजन की कमी के कारण संभावित जटिलताओं से बचने के लिए काली खांसी से प्रभावित शिशुओं की नज़दीकी देखभाल की आवश्यकता होती है। काली खांसी की गंभीर जटिलताओं में निम्न समस्याएँ शामिल हैं:
अतः अगर आपके शिशु को संक्रमण के लक्षण का अनुभव होता है, तो तुरंत ही डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
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बड़े बच्चों और वयस्कों को भी काली खांसी की जटिलताओं का अनुभव हो सकता है, जिनमें निम्न जटिलताएं शामिल हैं –
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सही जांच और इलाज करा कर आप काली खांसी से बच सकते है इसके साथ ही आप काली खांसी को जल्दी ठीक करने के लिए कुछ घरेलू उपाय भी अपना सकते है आइये जानते है काली खांसी से बचाव के घरेलू उपाय के बारे में
काली खांसी के इलाज में अदरक सबसे महत्वपूर्ण घरेलू उपाय है। इसमें एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं, जो काली खांसी का कारण बनने वाले बैक्टीरिया को नष्ट करने में मदद करते हैं।
अदरक के रस और शहद को 1-1 चम्मच लेकर उसको अच्छी तरह से मिलाकर इसे दिन में 2 बार लेना शुरू करें। या फिर चाय के साथ भी इसे उपयोग में ला सकते है।
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हल्दी में एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल (antiviral) गुण होते हैं जो काली खांसी का इलाज करने में मदद करते हैं।
1 चम्मच शहद और ¼ से ½ चम्मच हल्दी पाउडर को मिलाकर सेवन करें या फिर गर्म दूध में ½ चम्मच हल्दी मिलकर रात को सोते समय लें। इससे काली खांसी को राहत मिलती है।
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लहसुन काली खांसी से लड़ने के लिए एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक के रूप में काम करता है, जो परट्यूसिस बैक्टीरिया के संक्रमण को रोकता है।
कटा हुआ लहसुन उबलते पानी के एक बर्तन में डालकर, अपने सिर को एक तौलिया से ढकें और इसकी वाष्प साँस के माध्यम से अंदर लें। आप एक चम्मच लहसुन का रस दिन में 2 से 3 बार भी ले सकते है। यह उपाय छोटे बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं है।
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काली खांसी के उपचार के लिए अजवाइन का उपयोग भी कर सकते है
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नींबू में विटामिन सी उपस्थित होता है जो प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने में मदद करता है। इसके जीवाणुरोधी और एंटीवायरल गुण संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं।
1 बड़ा चमचा नींबू का रस, शहद के साथ एक गिलास गर्म पानी में मिलकर इसे प्रतिदिन लेना शुरु कर सकते है। या फिर आधा नींबू में नमक और काली मिर्च लगाकर सीधे तौर पर पी भी सकते है।
इसके अतिरिक्त ओर भी घरेलू सामग्री है जिनका उपयोग काली खांसी के उपचार में कर सकते हैं जैसे – केसर, बादाम, हरी चाय, कैमोमाइल चाय इत्यादि।
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तरल पदार्थ में पानी, रस और सूप अच्छे विकल्प हैं। विशेष रूप से बच्चों में, निर्जलीकरण के संकेतों पर ध्यान दें, जैसे सूखे होंठ, बिना आँसू के रोना। ऐसी स्थितियां संक्रमण को प्रगट करती है।
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एक शांत और अंधेरा कमरा आपको आराम करने में मदद कर सकता है।
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अपने घर के वातावरण को तम्बाकू धुआं और चूल्हा के धुआं से मुक्त रखे क्योंकि ये काली खांसी को बढ़ाते है।
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खांसी आने पर अपने मुंह को कपड़े से ढकें और अपने हाथ धोएं। यदि आप दूसरों के आस-पास रहते है जिन्हें खांसी है तो मास्क पहनें रहें।
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